गनगौर पार्वती की पूजा है । यह चैत्र शुक्ल तृतीया को होती है Gangaur का व्रत सुहागवती स्त्रियाँ अपने अखण्ड सुहाग की कामना करती हैं। ऐसा माना जाता कि इस दिन भगवान शिव ने पार्वती को तथा पार्वतीजी ने समस्त स्त्री समाज मिट्टी की गनगौर लाती हैं। चन्दन, हल्दी, रोरी से पूजा कर गौरी को सुहागवती रहने का वरदान दिया था । पूजा के लिए कुम्हार से सुहाग की वस्तुएँ क्रमश: काँच की चूड़ियाँ, सिन्दूर, महावर मेहंदी, टीका, बिन्दी, काजल आदि चढ़ाई जाती है।
फूलों में टेसू का फूल चढ़ाना अनिवार्य होता है । फिर भोग लगाने के बाद गौरी की कथा कही जाती है। कथा के बाद गौरी पर चढ़ाये सिन्दूर को स्त्रियाँ अपनी माँग में भरती हैं । गनगौर के प्रसाद में फरा ( पानी में उबाली आटे की कुचइया) बनाये जाते हैं। पूजा कर भोजन में फरा ही खाते हैं। पनवारे में भी फरे दिये जाते हैं । गनगौर की पूजा नौ देवी की तीज को होती है। नवदुर्गा में बुन्देलखण्ड में चूल्हे पर कड़ाही नहीं चढ़ाई जाती है, इसीलिए पपरिया आदि पकवान नहीं बनाये जाते हैं।
गनगौर को फरा मिलने की विवशता निम्न पंक्तियों में दृष्टव्य है-
अकती की बनी चकती गनगौर के फरा ।
गनगौर बिचारी का करै पानी के फरा ।
इसका प्रसाद पुरुषों को देना वर्जित है । इस सम्बन्ध में बुन्देलखण्ड में निम्न उक्ति प्रचलित है-गनगौर के गनगौरा मान्स खों न देओ एकउ कौरा ।