Vishwanath Mandir 1002 ई0 में महाराजा धंगदेव द्वारा बनवाया गया तथा यह मन्दिर सुन्दर एवं अपनी शिल्प कला में खजुराहों के दूसरे मन्दिरों की विश्वनाथ मन्दिर तरह बेजोड़ है। पश्चिमी मन्दिर समूह में यह मन्दिर उत्तर भाग में स्थित है। यह मन्दिर भगवान शिव को समर्पित है। यह मन्दिर पंचायतन शैली का है। इसके चारों कोने पर चार उप-मन्दिर बने होंगे लेकिन इस समय मात्र दो उप-मन्दिर शेष हैं। एवं उत्तर पूर्व के कोने पर एवं दूसरा दक्षिण पश्चिम कोने पर स्थित है शेष दो नष्ट हो गये।
जिस समय Vishwanath Mandir का निर्माण हुआ उस समय शिल्पकला अपनी चरम सीमा पर थी। इस मन्दिर की शिल्प एवं स्थाप्तय कला को देखने से प्रमाणित होता है कि कितनी उन्नत एवं समृद्ध थी । मन्दिर की लम्बाई 89 फीट एवं पौने 46 फीट चौड़ाई है। इसके उत्तर की तरफ के जीने की ओर दो हाथी हैं। मन्दिर की बाह्य दीवार पर ज्ञान मुद्रा में धर्म उपदेश करते हुए श्री गणेश जी हैं।
उसके बाद विभिन्न आलों में चामुण्डा, इन्द्राणी, वराही, वैष्णवी, कौमारी, महेश्वरी एवं ब्राह्मणी सप्त मात्रकायें विशेष दर्शनीय है। मन्दिर की मुख्य दीवार में छोटी-मोटी प्रतिमाएँ हैं जो उस समय के जीवन, रीति-रिवाज को दर्शाती हैं एवं समाज कितना समृद्ध एवं सम्पन था। इससे ऐसा प्रतीत होता है कि उस समय चन्देल वंश समृद्धि एवं उन्नति के चरण शिखर पर था।
इन मूर्तियों में संगीत, नृत्य, काम-क्रीड़ा एवं उत्सव आदि का चित्रण हुआ है। वेदी बंध के ऊपर एक छोटे पैनल में शिल्पकारों द्वारा निर्माण किया हुआ पत्थर यहाँ से 30 किमी दूर से श्रमिकों द्वारा लाया गया है। उसका दृश्य देखने को मिलता है। उस समय की उन्नत शिल्प एवं सम्पन्नता को दर्शाता है।
इस मन्दिर की मूर्तियों के केश विन्यास एवं विभिन्न प्रकार से अलंकृत आभूषणों से सुसज्जित मूर्तियाँ अपने आप में अनूठी है। उनके चेहरे के भाव सजीव हैं। मन्दिर की मुख्य दीवार में मूर्तियों की तीन लाइनें हैं। नीचे की पंक्ति में अष्टदिक्पाल हैं एवं मध्य में देव प्रतिमाएँ हैं। देव प्रतिमाओं के दोनों ओर नायिकाएँ विभिन्न मुद्राओं में दर्शायी गई हैं। नाग कन्याएँ, देव-दासियों जो चंवर डुला रही हैं विशेष उल्लेखनीय है। यह मन्दिर सांधार शैली का है। इसकी आंतरिक संरचना में प्रवेश द्वार महामण्डप, अन्तराल, गर्भग्रह एवं प्रदक्षिणा पथ है।
प्रवेश द्वार पर मकर तोरण नहीं है शयद काल के गर्त में खो गया है गर्भग्रह में शिवलिंग स्थापित है प्रदक्षिणा पथ में पाँच झरोखे देखने को मिलते हैं। इन झरोखों में देवदासी एवं पुजारी बैठा करते थे। धार्मिक चर्चाएँ एवं कथाएँ उस समय हुआ करती थीं। मन्दिर के अन्दर उत्तर की ओर अर्धनारीश्वर पश्चिम की ओर नटराज भगवान की मूर्ति है तथा दक्षिण की ओर अंधकासुर वध शिव द्वारा दिखाया गया है। मन्दिर के बाह्य दीवार के मध्य मैथुन क्रिया के दृश्य दिखाये गये हैं। जिससे प्रतीत होता है कि सामूहिक मैथुन दृश्य तांत्रिक अनुष्ठान कर रहे हैं।