कविवर Vijay Prakash Saini, उपनाम “विजय सैनी” जी एक ऐसे महान कवि,साहित्यकार हैं, जिनकी लेखनी रूपी हिमगिरि से निसृत रचनाओं की स्वर धारा प्रगतिवाद के मधुवन में झर-झर झरती, लहराती, हहराती, मचलती, दलित, शोषित, पीड़ित, पुष्पों -पादपों को जीवंत ऊर्जा प्रदान करती हुई प्रवाहित होती है । श्री विजय सैनी जी का साहित्य सृजन मौलिकता, सांस्कृतिकता और सत्य की भावभूमि पर आधृत रहता है ।
श्री विजय प्रकाश सैनी जी ! का कविता संसार
वे अपने अनूठे काव्य सृजन से छुआ-छूत, ऊंच-नीच, जाति -पांति, भेदभाव, की भावना को राष्ट्रहित के लिए सही न मानते हुए समरसता की वकालत करते हैं। आपकी काव्य कल्पना है कि पावन स्नेह, समता, ममता समादर द्वारा ही सम्पूर्ण समाज को एक सूत्र में बांधा जा सकता है । वे सामाजिक विषमताओं, कुरीतियों, विसंगतियों विद्रूपताओं को मिटाकर भारत भूमि को सर्वोच्च शिखर पर देखना चाहते हैं ।
श्री श्यामलाल सैनी जी एवं माता श्रीमती जानकी बाई के आंगन में सुवासित – सुषमायुत आनंदप्रदायक सुमनों को बरसाते हुए २ अक्टूबर सन्- १९ ५३ को झांसी में कविवर श्री विजय प्रकाश सैनी जी का अवतरण हुआ । आपने विज्ञान वर्ग से स्नातक किया। उ.म.रेल झांसी में ( मेल/एक्सप्रेस) के गार्ड के पद का निष्ठापूर्वक निर्वहन करते हुए आपने लम्बे समय तक सेवा प्रदान की ।
अब आप “अखिल भारतीय साहित्य परिषद झांसी” के महामंत्री पद का कर्तव्यनिष्ठा के साथ साहित्य सेवा कर रहे हैं । आप एक श्रेष्ठ सृजनधर्मी हैं । वे छोटी-छोटी कविताओं में बहुत गहराई की प्रेरणास्पद भावनाओं को भरने की सामर्थ्य रखते हैं । देश के प्रतिष्ठित समाचार पत्र ( दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर आदि ) अनेक समाचार पत्रों में आपकी रचनाओं का प्रकाशन होता रहता है । बुंदेलखंड के अनेक काव्य – संकलनों में आपका सृजन प्रकाशित हुआ है ।
आईये कविवर श्री विजय सैनी जी की काव्य रचनाओं का रसास्वादन प्राप्त करते हैं । “कोई काम न आया” कविता में कवि की ईश्वरीय शक्ति ही समस्त जीवात्माओं को अपने स्नेहिल भाव से सेती, दुलारती, अपनी कृपा-करूणा बरसाती है। संसार का प्रेम स्वार्थ के रंगों से सराबोर है।
मानव को संसार की माया कभी अपने जाल से छूटने नहीं देती है इसलिए उसे सदैव इसके चुंगल से बचकर रहना चाहिए । व्यक्ति व्यर्थ में ही सांसारिक प्रेम में डूबकर अपने जीवन को विनष्ट कर लेता है । कवि की ये कविता प्रेरणा का महान आलोक प्रसारित करती है जिसकी रोशनी में संसार का सच सामने दृश्यमान हो उठता है । कविता अवलोकनीय है ——–
“कोई काम न आया “
जग की माया ने भरमाया ,
प्रभु से ध्यान लगा न पाया ।
स्वार्थ ने वह खेल खिलाया –
अपना भी हो गया पराया ।
चित्त का सब चैन गंवाया,
व्यथा किसी से कह न पाया ।
मनुआ रह -रह कर पछताया,
सारा जीवन व्यर्थ गंवाया ।”
संसार की माया का बन्धन अति मनोरम्, रमणीयता और आकर्षण का केंद्र है जो मानव को अपनी मनमोहक छवि से बंधे रहने के लिए विवश कर देता है ।
“अपना बुंदेलखंड” कविता में कविवर श्री विजय सैनी जी बुंदेलखंड की महिमा का वर्णन करते हुए उसके वैशिष्ट्य को प्रस्तुत करते हैं । प्राकृतिक सौंदर्य- की दृष्टि से हमारा बुंदेलखंड बहुत समृद्ध है । यहां पर खनिज संपदा का अद्भुत खजाना है । इसी बुंदेली धरती पर प्रभु श्री राम ने लक्ष्मण और सीता के साथ १२ वर्ष का वनवास काल व्यतीत किया ।
चित्रकूट में रम रहे, ‘रहिमन’ अवध नरेश ।
जा पर विपदा परत है वहि आवत यहि देश ।
यह कर कविवर रहीम जी ने बुंदेलखंड की महिमा की अनुपम व्याख्या प्रस्तुत की है । यहां की हरीतिमा , यहां की मंदाकिनी, वेतवा गंगा, केन आदि प्रवाहित होती नदियां तथा हर्षित, प्रमुदित, आनंदमय झरते झरने , इस पावन धरती के नैसर्गिक सौंदर्य को प्रदर्शित करते हैं ।
लाला हरदौल, वीर शिरोमणि महाराज छत्रसाल, भक्तिमती कुंवरि गणेश, वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई, महाकवि तुलसीदास, केशवदासजी, तथा औरछा – सी नगरी, विश्व-विश्रुत खजुराहो की अप्रतिम मूर्तिकला तथा शिल्प कला, चंदेरी की साड़ियां, कटनी का चूना, महोबा का पान, आल्हा का गान जैसे अनौखे, अद्भुत, अनुपम उपहार कहां मिलेंगे ? कविवर श्री विजय सैनी जी की अपनी बुंदेली माटी के प्रति समर्पित महान आस्था और प्रेम प्रणम्य है ।
हरियाली मन भावन,अपना बुंदेलखंड ।
यहां वेतवा, वहां केन,
राम रमे जहां, वहां ह रही मंदाकिनी ,
झरते झरने खंड – खंड –
अपना है बुंदेलखंड ।
हरदौल से चरित्र कहां और मिले ?
लक्ष्मीबाई – सी रानी कहां और मिले ?
छत्रसाल से वीर शिरोमणि कहां और मिले ?
कुंवर गणेश की भक्ति से लुभाता है,
अपना बुंदेलखंड ।
तुलसी, केशव – से कवि औरछा-सी नगरी ,
वेतवा की तान सुनाता, अपना बुंदेलखंड ।
खनिज संपदा से भरपूर देवगढ़ कालिंजर चित्रकूट से ठौर,
खजुराहो की कला से लुभाता अपना बुंदेलखंड । चंदेरी की साड़ी ,कटनी का चूना,
महोबा का पान, आल्हा का गान ,
सुनाता अपना बुंदेलखंड ।
बुंदेलखंड की धरती के प्रति कवि का अनन्य स्नेहिल भाव जुड़ा हुआ है । इसीलिए वह इस पावन मातृभूमि की दिव्यता को अपने अन्त:करण अनुभूत करता है । “आंखों में बसा लो” कविता में कवि की प्रेमानुभूतियों के रंगीन ,श्रृंगारिक चित्र श्रृंगार रस की मधुर, मनोहर छटा उपस्थित कर रहे हैं तो आइये इस रचना का रसास्वादन प्राप्त करते हैं ।
आंखों में बसा लो काजल की तरह ।
सारे गम बरस जायेंगे बादल की तरह ।
क्यों देखते हो आप इस तरह कहीं ,
फिर न बहक जाऊं पहले की तरह ।
जिंदगी कट ही जाती किसी भी तरह से ,
यदि आप न आते जिंदगी की तरह ।”
(“काव्य कलश” काव्य संकलन से)
प्रस्तुत रचना में उपमा अलंकार की छटा पदे -पदे अन्यतम् रूप से शोभायमान हो रही है ।
“सच का कोई पता ही नहीं” काव्य रचना अद्भुत रस की निष्पत्ति का आनंदमय झरना प्रवाहित कर रही है । और इस झरने की झरन में अनन्वय, रूपक, विशेषोक्ति, स्वभावोक्ति, मानवीकरण,वीप्सा आदिअलंकारों का सरस, सहज, मनोरम प्राकट्य हृदय स्पर्शी है ।
इश्क से बढ़कर कोई सजा ही नहीं ।
और इसके मजे जैसा कोई मजा ही नहीं ।
आज सब झूठ के हैं पैरोकार हो गए ,
आज के दौर में सच का कोई पता ही नहीं ।
ज़़ज्वातों से खेलना उसकी आदत हो गई,
मासूमियत ऐसी की जैसे कुछ पता ही नहीं ।
मेरे आने की खबर ने उसे यूं बेचेंन कर दिया ,
सामने बैठा रहा और मुझसे मिला ही नहीं ।
प्रस्तुत कविता में कवि ने संसार के प्रेम की महान आनंद की अनुभूति का अद्वितीय काव्य चित्रण कर पाठकों के अन्तर्मन को स्पर्श करने का अति सुन्दरतम् प्रयास किया है । कवि की दृष्टि में इश्क के समान कोई दूसरी मधुर आनंदमयी भावानुभूति नहीं है और इश्क से बढ़कर कोई दूसरा दण्ड भी नहीं है । सम्पूर्ण काव्यात्मक अभिव्यक्ति वक्रोक्ति की धारा में बहती हुई दृश्यमान हो रही है ।
आज परस्पर रिस्तों में आत्मीयता का अभाव दृष्टिगोचर हो रहा है । आज़ लोग झूठ की पैरोकारी कर रहे हैं । सच का कोई मूल्य नहीं रह गया है । आज लोगों के मिलने में कृत्रिमता का भाव रह गया है । स्नेह, आत्मीयता,और वो सच्ची मिलन की खुशी की सुगंध कहीं खो गई है ।
“वसंत” कविता में कविवर “विजय सैनी” जी ने प्रेमी की विरहाकुल भावनाओं का मधुर, मनोहर चित्र खींचा है। विरहणी को प्रिय प्रवास के समय में वसंत की बहार होने पर भी उसके हृदय को माधुर्य, सरस, सुहावनी नहीं लगती अधोलिखित काव्य पंक्तियां दृष्टव्य हैं —-
जिंदगी में वसंत तो बार-बार आया,
पर आई नहीं बहार तेरे बगैर ।
हादसे उस मोड़ पर ले आए मुझे ,
अब कोई अपना लगता नहीं तेरे बगैर ।
मंजिल तो दिख रही है यार मुझे ,
पर सफर कटता नहीं तेरे बगैर ।
दुनिया की हर शै में तू नजर आने लगा ,
निगाहों को कुछ दिखता नहीं तेरे बगैर ।
प्रिय के सान्निध्य ,संपर्क ,मिलन के अभाव में प्रेमी को बहार भी पतझार- सी अनुभव होती है । उसकी दृष्टि में केवल उसका प्रियतम ही उसकी बहार है । वसंत की मादकता , मदिरता ,सरस समीरण, सुगन्धित फूलों की मंजरीं उसे प्रभावित नहीं कर पा रही हैं । विरह जन्य भाव संवेदनाएं निर्झरणी की तरह विह्लल प्रवाह के साथ गतिमान हो रहीं हैं ।
“तूं तो मेरा यार है “ यह कविता वर्तमान के स्नेहिल संबंधों की स्वार्थ से आवेष्ठित चित्रावली प्रस्तुत करती है । किस प्रकार मित्र मित्र को लूटने का प्रयास कर रहा है । किस प्रकार मित्र मित्र के दुःख को देखकर प्रसन्न होता है – किस प्रकार मित्र उसके दुःख से दुःखी नहीं होता, उसे सहानुभूतिपूर्ण भावों के स्थान पर और दुःखी करने वाले भावों – विचारों को प्रस्तुत करता है ।
जिसने मित्र के कठिन समय में सहयोग- सहकार किया, स्नेहिल भावों से अभिसिंचित किया, असीम आत्मीयता से आह्लादित किया, आज वही मित्र के सहयोग के लिए कन्नी काट रहा है आदि मनोवैज्ञानिक, व्यवहारिक, यथार्थपरक काव्यात्मक विश्लेषण करतीं काव्य पंक्तियां दर्शनीय हैं —
तू तो मेरा यार है ।
तुझको हाल बताऊं क्या ?
तूं तो मेरा यार है ,
तुझसे हाल छिपा छिपाऊं क्या?
मेरी सूरत देख के भी तूने उफ तक न की,
तुझे अब अपना दुखड़ा और सुनाऊं क्या ?
अपने दिन तू भूल गया , वो दिन याद दिलाऊं क्या?
तू तो मेरा यार है तुझसे भी शरमाऊं क्या?
इस हाल में मैं जी रहा हूं आकर के बतलाऊं क्या?”
“आतंकवाद “ कविता में कविवर विजय सैनी जी ने विश्वव्यापी आतंकवाद की वो घटनाएं जो मानवता को शर्मशार करतीं हैं, जो मानव की दानवीय मनोवृत्ति का परिचय देती हैं, जो हृदय हीन परिदृश्यों को उपस्थित करतीं हैं, और जो संवेदनशून्यता के पर्वत की तरह जड़वत हो जातीं हैं । उन्हें अपने काव्य पटल पर दृश्यांकित करने का अनूठा रंगायन प्रस्तुत किया है । तो आईए विश्व की वर्तमान आतंकवादी संगठनों द्वारा किए जा रहे दुष्कृत्यपूर्ण क्रिया-कलापों का चित्रांकन देखते हैं —
सारा शहर सो गया होगा
किसी को क्या पता ?
क्या हो गया होगा ?
घर वीरान , खेत उजाड़ ,
छोटा सा बच्चा सुबुक-सुबुक कर
फिर सो गया होगा
किसी को क्या पता?
फिर क्या हो गया होगा ?
किसी को क्या पता ? क्या हो गया होगा ?
भावनाएं मर गई होंगी —
स्वार्थ से ढंक गई होंगी ,
किसी की मौत पर आंख से,
एक आंसू तक न गिरा होगा ,
दिल पत्थर का हो गया होगा ।
किसी को क्या पता- क्या हो गया होगा ।
सारा शहर सो गया होगा।”
“मेरा क्या- तेरा क्या ?” कविता वह काव्यात्मक अभिव्यक्ति है, जो मनुष्य को संसार के सच से सामना कराती है । इस जग में किसी का कुछ भी नहीं है । जो भी प्राप्त हुआ वह इसी संसार से प्राप्त हुआ और अंत में इसी संसार को देकर प्रस्थान करना है। यह शाश्वत सत्य जानते हुए भी मनुष्य इस सांसारिक सत्य को भूल जाता है तथा विपरीत आचरण करता है ।
जो प्रतिकूल समय बीत गया सो बीत गया अब उसके संदर्भ में सोचने से क्या लाभ है ? उसी गुजरे हुए कल के विषय में चिंतन करते हुए दुःखी होने से क्या होगा ? अतीत की कड़वी दृश्यावलियां देखकर रोने -विलाप करने से क्या होगा ? व्यक्ति को केवल वर्तमान को सजाने – संवारने के लिए प्रयास -प्रयत्न करना चाहिए ।
गुजर गया – वो गुर्जर गया ,
उसका अब रोना क्या ?
और समय अब खोना क्या ?
जब भी मौका मिले मुस्कराया करो ,
हमेशा हालात का रोना क्या ?
उम्र के इस पढ़ाव पर भी मेरा तेरा करता है,
मरने के बाद मेरा क्या ? तेरा क्या ?
जब खाली हाथ ही जाना है ,
तो फिर गठरी लादे फिरता क्या?
वक्त के साथ चलाकर वरना,
तन्हा ही रह जाएगा,
इतना भी मालूम नहीं क्या ?
आते-जाते राम राम कर लिया करो,
जीवन में और रखा है क्या ? “
“आत्मवत् सर्वभूतेषु “ सभी प्राणियों में एक ही प्रकाश-चेतना चैतन्य है । एक ही ज्योति -धारा प्रवाहित हो रही है। सम्पूर्ण चराचर एक ही ज्योति से अनुप्राणित है। प्रस्तुत “क्षणिकाएं ” प्रेम ,करूणा,दया तथा एकरसता के मूल्यों को जीवन में महत्व देना सच्चे मानव का आदर्श प्रस्तुत करतीं हैं। ये नैतिक मूल्य मनुष्यता की बगिया के सरस, मधुर, मनोहर, आनंद सुरभि से ओतप्रोत पादप -प्रसून हैं । प्रत्येक प्राणी में मानवता की उद्दाम भाव चेतना का संचार हो, इस प्रकार की काव्यात्मक अभिव्यक्ति के द्वारा कवि विश्व को प्रेरणा प्रदान करना चाहता है —
“क्षणिकाएं “
“प्रेम की ज्योति जलाये रखना ,
जीवन में करुणा भाव बनाये रखना ।
दया, प्रेम,निरीहों पर बनाये रखना ,
बे -जुबान पशु, पक्षियों के लिए ,
चारा पानी की व्यवस्था बनाये रखना ।”
कवि प्रस्तुत कविता में कर्म फल की सत्यानुभूति का दिग्दर्शन कराता है । इस संसार में जो जैसा करता है उसे वैसा ही फल प्राप्त होता है। अच्छे कर्मों का प्रतिफल अच्छा ही प्राप्त होता है और बुरे कर्मों का प्रतिफल बुरा ही प्राप्त होता है। सुकवि विजय सैनी जी चाहते हैं कि मानव के हृदय में प्रेम विश्वास, भाईचारा,आपसी सद्भाव और इंसानियत के सुमन सदा मुस्कुराते दिखाई देते रहना चाहिए । जो जस करहिं सो तस फल चाखा ‘ की भावभूमि को स्पर्श करतीं हुईं काव्य पंक्तियां दर्शनीय हैं —
अच्छे काम का अच्छा फल मिलता है ,
ये विश्वास मन में बनाए रखना ।
कहीं इंसानियत खो न जाए इस दौर में ,
अपने को इंसान बनाए रखना ।
भाईचारा आपसी सद्भाव बनाए रखना ,
जीवन को सरस बनाए रखना
कविवर श्री विजय प्रकाश सैनी “विजय सैनी” जी ने अपने साहित्य सृजन को नैतिक मूल्यों की स्थापना के लिए समर्पित किया है । नैतिक मूल्यों की स्थापना के वातावरण में ही मानवता के सुमन निश्चित रूप से पुष्पित, पल्लवित , आनंदमयी सुगन्ध से विश्व को महकाएंगे ; इसी विश्वास की आधारशिला पर जन -जन सुखी का गीत -संगीत अनुगुंजित होगा ।
” विजय सैनी” जी की कविता अतुकान्त -तुकान्त की प्रखर चेतना की प्रकाश धारा में हिलोरें लेती हुई उज्ज्वल भविष्य के सुनहरे सपने बुनती दृष्टिगोचर होती है । आपकी कविता यथार्थवाद के खुरदुरे सत्य का उद्घाटन करती है। आपकी कविता जहां श्रृंगार के रंगीन सितारों को तोड़ती दिखाई देती है वहां वह संसार के सत्य की विकृत कर्मशीलता का भी पर्दाफाश करती है । आपकी कविता में युग बोध की रंगोली छिटकी हुई आभासित होती है । आपकी कविता वर्तमान के नूतन – नवीन परिवेश के साथ जुड़कर यथार्थवादी भावभूमि का सृजन कर रही है ।
कविवर श्री विजय सैनी जी ने अपने जीवन के खट्टे – मीठे – कसैले अनुभवों को यथार्थ परक तरीके से जैसे जिया उसी तरीके से प्रस्तुत करने का उत्कृष्ट प्रयास किया है । आपकी कविता का भाव पक्ष अत्यंत संवेदनशीलता के साथ मुखरित हुआ है । आपकी अनेक कविताओं में संवेदना के कारूणिक झरने झरते हुए दिखाई देते हैं ; जो प्रेरणा के अनुपम स्रोत हैं ।
कला पक्ष की दृष्टि से अवलोकन करने पर पता चलता है कि भाषा, शैली, शिल्पविधान, कथ्य वैशिष्ट्य, बोधगम्यता, रस निष्पत्ति, अर्थालंकारों आदि का रमणीय प्रयोग अति सुन्दरतम् तथा अन्यतम् रूप से परिलक्षित है ।
वर्तमान में कविवर श्री विजय प्रकाश सैनी “विजय सैनी” जी महामंत्री “अखिल भारतीय साहित्य परिषद” के जनपद झांसी के सशक्त सृजनधर्मी के रूप में सक्रिय भूमिका निर्वहन कर रहे हैं एवं आशा करता हूं कि इसी प्रकार सक्रिय रहते हुए नूतन, मौलिक, उत्कृष्ट सृजन द्वारा हिन्दी साहित्य के मधुवन में नवीन कृतियों के पौधों से उसकी शोभा की श्रीवृद्धि करते रहें ।
आपके उत्कृष्ट सृजन के लिए अनेक संस्थाओं ने उन्हें सम्मानित किया -यथा -‘लक्ष्मीबाई काव्य श्री सम्मान’ विश्व हिन्दी रचनाकार मंच। “राष्ट्र गौरव सम्मान” ‘विश्व हिन्दी रचनाकार मंच ‘ श्री सीताराम नायक “साहित्य भूषण सम्मान” आदि जैसे पचासों सम्मान आपको प्राप्त हो चुके हैं ।
अंत में आदरणीय बड़े भाई श्री विजय सैनी जी को सुस्वास्थ्य सम्पन्न, सक्रिय सृजनधर्मी तथा दीर्घ जीवन की मंगलमय कामना करता हूं ।
“शुभमस्तु “
आलेखक – भगवान सिंह कुशवाहा “राही”
ग्राम कैलाशनगर क्योलारी जिला जालौन ( उ०प्र०)
दिनांक –२०/०९/२०२२