मोरे घरै धँधक रइ होरी
उनकें रोजउँ मनें दिबारी, मोरे घरै धँधक रइ होरी ।
उनकी पौर अटारी हँस रइ, सूनी डरी टपरिया मोरी ।।
वैतो हलुआ रबड़ी सूँटें, दूध धरें कुत्ता नौंरा खों ।
अदपेटाँ सोबे हम रोजउँ, तरस रए कौरा कौरा खों ।।
उनकी मटका कैसी थोंदे, मोरीसब हड़वार दिखारइ ।
पिचकौ पेट बैठ गया चबुआ, किलकोंटन की नें सुजारइ ।।
कछू बुलक रय मौंन भोग में, कैरइती कलुआ की ओरी ।
उनके रोजउँ मनें दिबारी, मोरे घरै धँधक रइ होरी ।।
उनके घर में सूरज ऊँगौ, मोरे घरै लगी लौलइया ।
सागर ऐन हिलोरें लैरव, रीती सूकी डरी तलइया ।।
बड़ी बड़ी नदियँन कौ पानूँ, सबरौ ओजू जेइ अचैगय ।
हमें चुरू भर जुरौ न पीवै, हम प्यासे के प्यासे रैगय ।।
मोरे रीते डरे कुठीला, बेतो गाड़ें धरें तिजोरी ।
उनके रोजउँ मने दिबारी, मोरे घरै धँधक रइ होरी ।।
धरमराज रीने से बैठे, दुरजोधन ललकारें ।
द्रोनाचार्य उसाँसें लैरय सोचें और विचारें ।।
चीर दुःशासन खँचे रोजउँ, द्रोपदि ठाँड़ी गलयारे में ।
भीम नकुल झपनी सी डारें, अर्जुन दुकत फिरे वारे में ।।
और आँदरी आँखन से धृतराष्ट्र, निहारत रत बरजोरी ।
उनकें रोजउँ मनें दिबारी, मोरे धँधक रह होरी ।।
घोरे तरस रए दानें खों, ओजू गदा पँजीरी खारय ।
बगला चल रय चाल हंस की, बाज, परेबा खों भारमारय ।।
लऐं मसाल फिरै अँदयारौ, और आँदरे गैल बतारय ।
चील, गीध रन लगे उपासे, गूंगा भोर प्रभाती गारय ।।
बेतौ धरै धरउअल उन्न, फटे चींथरा पैरें गोरी ।
उनकें रोजउँ मनें दिबारी, मोरे घरै धँधक रइ होरी ।।
रचनाकार – रतिभान तिवारी “कंज”