Surshyam Tiwari (हमीरपुर) के निवासी थे। इनका जन्म संवत 1914 और मृत्यु संवत 1973 मानी जाती है। कवि के तीन ग्रन्थ उल्लेखनीय हैं (1) मनआनन्दकरण फाग (2) अधर फाग ( 3 ) प्रात विलास फाग । सूरश्याम तिवारी अपनी कविता के कारण कवि रत्न के नाम से जाने जाते थे। राधा-कृष्ण के वे अनन्य उपासक थे।
कवि की क्षमता का आकलन कर राजघराने से इन्हें प्रतिवर्ष खजाने से सम्मान निधि प्राप्त होती थी। तिवारी जी संस्कृत के विद्वान, ज्योतिषी और पुराण वक्ता थे। ये सच्चे राष्ट्र भक्त थे इसलिए विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करते थे। Surshyam Tiwari की सभी फागें श्रंगार भक्ति और शान्त रस से ओतप्रोत हैं। इनकी भाषा सरल, सुबोध और माधुर्य पूर्ण है। बुंदेली का प्रभाव कवि की फागों को रागात्मकता प्रदान करता है। कवि की अधर फाग का निम्नलिखित उदाहरण पर्याप्त है-
टेक :
रंग से रंग डारी गिरधारी, श्री राधा की सारी ।
छन्द :
हर सखन संग, दिल किये दंग, रहे डार रंग झिरसी भारी ।
उड़ान :
कट रहे तंग, रंग डार अंग, ऐसे निहंग देरये गारी ।
लागत लाज इहारी ।
कंचन कलस लिए कर गिरधर लागे करन तयारी ।
सूरश्याम की फागें फड़ रूप में गायी जाती थी। वैजनाथ यादव, जमुना प्रसाद जैसे गायक उनकी फागें सरसता से गाते थे।
सब गोपिन लि पकर श्याम को, राधे उड़ाई साथै