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Sora Somvar Vrat सोरा सोमबार व्रत कथा

बुन्देलखण्ड की औरतें भगवान शिव जी खों प्रसन्न कारबे के लानें Sora Somvar Vrat सोरा सोमबार व्रत कथा करतीं हैं । एक गाँव में एक बामुन कौ परिवार रत्तो, उनकै चार लरका उर एक बिटिया भई । पंडित  जी पंड़िताई कर-कर कै अपनौ उर अपने परिवार को भरन-पोषन करत रत्ते । कछू दिना में पंडित उर पंडितानी चल बसे । चारई भइया थोरी भौत खेती किसानी उर पंडिताई करकै पेट पालन लगें । उननने जैसे-तैसे अच्छौ खातौ- पीतौ घर देखकै ओई गाँव में बैन कौ ब्याव कर दओं ।

कछू दिना में हराँ – हराँ चारई भईयन के ब्याव हो गये, लरका उर बिटिया हो गई । घर में पाँच प्रानी हतें अकेलै हती भौतई गिरानी। कभऊँ तौ उनको परिवार कुंदा के भर डरो रत्तो । दो-दो दिन की लाँगन हो जातती कायकै थोड़ी भौत खेती किसानी से उनकी गुजर बसर होत ती । भइया उर भौजाई तौ हती चार-चार अकेले ऐसी कानात कई जात कै छूछे तुमें कोऊ ने नई पूछे । कभऊँ- कभऊँ औसर पा कें  मायके हो आऊत तीं ।

एक दार सावन के मईना में ऊकी चारई भौजाईयन ने सोसी कै कजन घर में कोऊ तनक काम टौका खौं होतो तो हम चारई जनी सोरा सोमवार कौ ब्रत कर लेती । बड़े भइया बोले कै पाँसई में अपनी बैन रत है । उयै सोमवार के दिना बुला लेबू करे । वा घर की झारा बटोरी लीपा पोती गोसली कर देव करें। तुम आराम सैं चारई जनीं पूजा पाट करत रइयौ । जाबात सबई खौं जँच गई, उर वे सावन के मईना में उपास करन लगी ।

खबर मिलतनई बैन खौं भौत हाल फूल भई सोसन लगी कै कम सैं कम ई बहाने सैं मायकै जाबे कौ मौका मिल जैय। भौजाइयन खौं सहारौ मिल गऔं । सो वे सावन के मईना सैं सोमवार कौ ब्रत करन लगी। उनकी बैन तरा ऊँगे सैं उठकै पैला लीपा-पोती उर पानी पंगल कर आबै, उर फिर लौट के अपने घर कौ काम करबै मोड़ी – मौड़न खौ खाबे पीबे को इन्तजाम घर कौ गोबर कूरा चौका बासन कर-करकै हार जात ती वा बिचारी ।

लस्त पर जातती काम करत-करत रात की परी उर पतों नई परत तौ कबै भन्सारों भओ । सोसत रत्ती कै जब हमाई भौजाइयन कै सोरा सोमवार पुजै तबवे हमाये परिवार खौं उन्नालत्ता बनवा दैय, उर कछू नाजपानी कौ इंतजाम कर दैय। जीसै मइना दोक की गुजर बसर हो जैय । चार मईना में उनके सोरा सोमवार पूरे हो गए। जिदना सोमवार पुजबै कौ मौका आव सोवा बिचारी बड़े भुन्साएँ तीनई बच्चन खौं लुआ कै उनई कै घरै डरी रई ।

पीसौ चालो उर कूटो उरदिन भर पकवान बनाये पूजा कौ सामान बनबाव खूब मलीदा बनो खीर पूड़ी हलुवा माल पुवा उर ना जाने का-का बनो उनके घर में । बैन की तीनई मौड़ी – मौड़ा भूके प्यासे पकवानन के बास लैकें हीड़त रये। दिन भर सैं बैन खौं काम मेतौ लगाये रई । अकेले अपने भानेंज उर भानेंजन के खाबै की काऊने सुरतई नई लई । वे उतई भूके डरे-डरे किलपत रये । अकेलै काऊये उनपै दिया नई आई।

वे हर-हर बेरऊ अपनी मताई सै कयें कै खाबै कबै मिले। बे बोली कैं अरे भइया पूजा होने है अबै जूठन नई करी जात । पूजा भई जात सो माई हरै तुमे भरपेट भोजन करायें । हर-हर बेर रोटी मँगाबै उर मताई उने समजा दैय। अब बताव कन्नो धीरज धर वे । भूकन के मारै राई नई आ रईती। पूजा हो गई गाँव भरको खूब मलीदा बटो ।

चारई भइया उर भौजाइयन ने खूब छक कै खाव पियों। अकेले बैन उर बैन के लरकन बिटियन खौं काऊ ने पूँछो नई, उर बाल-बच्चा किलपत रये अब बताव बा बिचारी कन्नो बाठ हेरै । दिन बूढ़ गओं सो वा निराश होकै अपने तीनई प्यासे मोड़ी मोड़न खौं लुआ कै अपने घरै लौट गई। मौड़ी – मौड़ा तौ भूकन के मारै ललथरया कै डर रये ।

पती देव खेत सैं लौटे नई हतें पौर के किवार लगाकै बैठी- बैठी सोसन लगी कै हे शंकर भगवान तुमाई पूजा करवाऊत चार मइना कड़ गये उर जे हमाये मौड़ी-मौड़ा भूके-प्यासे डरे खुआबे धर में भूँजी भाँग क्याऊँ । कजन क्योऊँ सै विषकी पुरिया मिल जाती तो इने खुआ देते उर हम खा लेते। ऐसौ जीबौ कौन करम कौ ।

ऐई बीच में क्याऊँ सैं घर में साँप कड़ आओ । मौड़ी – मौड़न नें उयै मार कै धर लओं । बैन ने सोसी कै चलो ऐई साँप खौं चुरै के इनन खौं खोवा दैय कै तौ जे सब मरई जैय उर बच जैयतौ फिर देखन लगें चूलौ परचाव उरऊ साँप खौं काट-काट कैं हड़िया में चुरवे  खौं चढ़ा दओ। मौड़ी- मौड़ा तौ सो गये ते। आदी राते घरवारे ने किवार भड़के ते सो ऊनें सोसी कै हारी थकी सो गई हुइये, सौ वे वायरै चौतरा पै सो गये ।

बैन ने सोसी कै अब तौ साँप चुरई गओ उयै टटोवे उगइया डारी सोऊ वा सोने की हो गई । देखतनई वा सनाकौ खाकै रै गई, उर उकतात में हड़िया खौं कुपरा में कुड़ेरौ सो कुपरा में सोने की मोहरन के ढेर लग गये। वा सन्न होकै रै गई, उर सोसन लगी कै हे शंकरजी जौ का चमत्कार हो रओ है। मौड़ी-मौड़ा तौ सोई रये ते ।

भुनसारें  किवार खोलतन घरवारौ भीतर आकै कन लगो कै हम तौ बायरै भूकई डरे रये। हम तौ सोसत ते कैं तुम मायके सैं मुलकन केरो पकवान उर मलीदा ले आई हुइयौ, उर इतै तौ कछू डौलई नई दिखात । बैन बोली कै जे सब बाते छोड़ौ । बच्चा हींडत-हींडत भूके प्यासे सो गये। जोलौ जा एक सोने की मोहर  लै जाकै बानिया कै ना सै सामान ल्याव । जीसै हम बच्चन के जगवे के पैला खाबे बना देवै ।

वे बोले कै तुमनौ जे मौहरे कासे आई । सब भगवान की कृपा है। तुम जे बाते पछाई के पूछियौ पैलऊ तौ सामान ल्याव । बानिया भुन्सरा सै उदार नई दैय। वे बानिया के नासै सौदा ल्आये । बानिया ने सोसी के ई कंगाल नौ जा मोहर  कासै आ गई । घर में तौ भूजी भाँग नई हती।

मताई ने अच्छी खीर पूड़ी बनाकै बच्चन खौं अच्छी तरा सैं ख्वाव पिआव। पुरा परोस में खुसर पुसर होन लगी । हराँ – हराँ उनके बड़े-बड़े अटा अटारी बनकै तैयार हो गये । पुरा परोसी सोसन लगे कै ई कंगीरा के लिंगा इत्ती जादाँ रकम कितै सै टपक परी कै अब तौ जो अच्छन -अच्छन की झक मारन लगो । उर उतै बैन के चारई भइया उर भौजाइयँन पै भौतई गिरानी आ गई।

काय कै उन्ने अपनी बैन भानेजन के संगै भारी कपट करो तो । वे अच्छी तराँ सै खड़न खपरन मिल गए ते। खाबे खौं घर में अन्न कौ दानौ नई हतो । मैन्त मंजूरी करकै पेट पालन लगे ते। भौजाई मंजूरी खौं जान लगी ती । उर उतै उनकी बैन कौ ठाट वाट देखके गाँव के लोग जरन-बरन लगे ते।

कछू जनन ने जाकै भईयन के कान भर दये कै तुमाई बैन चार मईना नौ हर सोमवार खों  झारा बटोरी करवे के बहाने सैं तुमाये घरै आऊत जात रई । ओई बैरा वा मौका पाके तुमाये घर कौ माल बटोर लै गई, सो वा तौ रहीस बन गई । जा बात ऊके चारई भईयन के गरें उतर गई, उर वे चारई लट्ठ लै लै के बैन के घरै पौंच गये।

बैन ने चारई भईयन को खूबई आदर सत्कार करो। बैन कौ प्यार देख सब बैर भाव भूल गये । बैन ने रो-रो कै पुरानी किसा सुनाई, उर भगवान शंकर की कृपा कौ प्रभाव बताव । भईयन नें अपनी भूल स्वीकार करी, उर बैन के गोड़न पै गिरकै माफी मांगन लगे। उनके मन कौ सबई मैल धुल गओ तो भगवान की कृपा सै उदनई सै वे बैन भई उर वे उनके भइया भये। जौ होत है सोरा सोमवार के व्रत कौ प्रभाव । जैसे वे बैन भइया मिले ऊसई भगवान सबके बैन भईयन खौं मिलावै।

भावार्थ

एक गाँव में एक ब्राह्मण का परिवार निवास करता था । उसके चार लड़के और एक लड़की थी। पंडित जी अपने गाँव के बहुत अच्छे पंडित थे । उनका सारे गाँव में पंडिताई का धंधा चल रहा था, जिसके द्वारा उनके परिवार का अच्छी तरह से भरण-पोषण होता रहता था। पंड़ित जी धीरे-धीरे वृद्ध हो गये और अचानक उनकी मृत्यु हो गई।

उनके पास थोड़ी सी खेती थी और वे थोड़ी बहुत पंडिताई भी करने लगे थे, जिससे उनके परिवार का भरण-पोषण होता रहता था। चारों भाइयों ने एक संपन्न घर-परिवार देखकर अपनी बहिन की शादी कर दी । धीरे-धीरे उन चारों भाइयों के भी विवाह हो गये ।

उनकी बहिन के बाल बच्चे हो गये। उसके घर में कुल मिलाकर पाँच लोग थे। घर में थोड़ी सी खेती-किसानी थी, किन्तु उससे उनका भरण-पोषण नहीं हो पाता था । किसी-किसी दिन तो उनका परिवार भूखा ही पड़ा रहता था। उसके चार – चार भाई और चार – चार भाभियाँ थीं, किन्तु उसका कोई सहयोग नहीं करता था । ये कहावत सही है कि गरीब का कोई नहीं होता है । भगवान ही उसका सहारा होता है।

कभी-कभी विशेष अवसर पर वह अपने मायके चली जाती थी। एक बार सावन के माह में उसकी चारों भाभियों ने सोचा कि यदि कोई घर का काम सँभालने वाला होता तो हम चारों जनी सोलह सोमवार का व्रत कर लेती। बड़े भाई ने कहा कि अपने समीप ही अपनी छोटी बहिन रहती है । उसे सोमवार के दिन बुला लिया करें, वह घर की झारा-बटोरी और लीपा-पोती कर दिया करेगी। तुम चारों जनी आराम से पूजा-पाठ करते रहना।

ये बात चारों भाभियों को बहुत अच्छी लगी और वे सावन के महीने में सोमवार का व्रत करने लगीं। समाचार मिलते ही बहिन को बहुत प्रसन्नता हुई। वह सोचने लगी कि चलो इस बहाने से मुझे अपने मायके जाने का अवसर तो मिल ही जायेगा । भाभियों को थोड़ा सा मेरा सहारा मिल जायेगा और वे बहिन के भरोसे पर सोलह सोमवार का व्रत करने लगीं ।

बहिन प्रातः काल उठकर घर की सफाई और लीपा-पोती कर लेती थी । पानी भरकर रख जाती थी और फिर अपने घर जाकर अपने घर का काम करके बच्चों को खिला-पिलाकर खेत पर काम करने के लिए चली जाती थी। दोनों जगह का काम करते-करते वह बहुत थक जाती थी । रात को उसका शरीर बिल्कुल शिथिल पड़ जाता था। सोते समय उसे सवेरा होने का पता ही नहीं लगता था।

वह सोचती थी कि जब हमारी भाभियों के सोलह सोमवार का पूजन होगा, तब वे हमारे परिवार को बढ़िया कपड़े बनवा देंगी और थोड़े बहुत अनाज की भी व्यवस्था कर देंगी, ऐसा मन में सोचकर वह मन लगाकर काम में लगी रही। इस प्रकार चार महीने में भाभियों के सोलह सोमवार पूरे हो गए। जिस दिन सोलह सोमवार के पूजन का दिन निश्चित हो गया, उस दिन बहिन को बहुत प्रसन्नता हुई।

उस दिन वह अत्यंत प्रसन्न होकर अपने तीनों बच्चों को लेकर घर में आकर काम करने में जुट गई। आटा पीसकर पूरे दिन बढ़िया-बढ़िया पकवान तैयार किए। उसके तीनों बच्चे पकवानों की गंध ले-लेकर तड़फते रहे। उसकी भाभियाँ उसे दिन भर भूखी-प्यासी काम में तो लगाये रहीं, किन्तु किसी भी भाभी ने बच्चों के खाने-पीने की बात नहीं पूछी । बच्चे भूखे-प्यासे तड़पते रहे । किसी को भी उन बच्चों पर दया नहीं आई।

बच्चे बार-बार अपनी माँ से व्याकुल हो – होकर पूछते रहे कि खाना कब मिलेगा? उसकी माता उन्हें सान्त्वना देती रही कि बेटा पूजा होने के बाद सभी को भरपेट भोजन मिलेगा। भूख के मारे बच्चों के प्राण निकले जा रहे थे । वे बेचारे कहाँ तक धैर्य रखें। भूख के मारे वे बेचारे बहुत व्याकुल हो रहे थे ।

कुछ समय बाद सोलह सोमवार की पूजा हो गई। खूब मनचाहा प्रसाद वितरण किया। चारों भाई और चारों भाभियों ने खूब जी भरकर भोजन किए, किन्तु किसी ने उसकी बहिन और बच्चों के खाने की बात नहीं पूछी। अब बच्चे और कहाँ तक प्रतीक्षा करें, भूख के कारण तड़प-तड़पकर मूर्छित हो गए। धीरे-धीरे शाम हो गई। अब वह वहाँ रहकर क्या करती। वह अपने भूखे-प्यासे बच्चों को लेकर अपने घर दुखी होकर लौट गई। बच्चे भूखे-प्यासे घर में व्याकुल होकर गिर पड़े।

उसका पति खेत से वापिस नहीं लौट पाया था । वह सोचने लगी कि इन बच्चों को खिलाने के लिए कुछ नहीं है। यदि कहीं विष की पडिया मिल जाती तो मैं इन बच्चों को खिला देती और खुद खा लेती । संसार में ऐसा जीना किस काम का है?

इसी बीच में घर में कहीं से सर्प निकल आया। बच्चों ने उसे मारकर रख दिया । उसने सोचा कि घर में अब खाने के लिए तो कुछ भी नहीं है। चलो इसी सर्प को उबालकर बच्चों को खिला देंगे, जिसे खाकर तो वे मर ही जायेंगे और बचेंगे तब देखा जायेगा । उसने चूल्हा सुलगाया और सर्प को काटकर हण्डी में उबालने को चढ़ा दिया ।

बच्चे तो भूखे-प्यासे सो ही गये थे । उसका पति आधी रात को खेत से लौटा । किवाड़ खड खड़ाये । उसने सोचा कि पत्नी थकी मांदी सो गई होगी। यह सोचकर वह बाहर ही चबूतरे पर सो गया, किन्तु उसकी घरवाली तो जाग रही थी। चूल्हे पर हण्डी चढ़ी थी । उसने सोचा कि अब तो सर्प पक ही गया होगा । यह सोचकर उसने टटोलने के लिए हण्डी में अँगुली डाली, किन्तु वह उबला हुआ सर्प सोने का हो गया, जिसे देखकर वह चकित होकर रह गई।

उसने घबड़ाकर हण्डी को कोपर में उड़ेल दिया। तो देखा कि कोपर में सोने की मुहरों के ढेर लग गए। वह मन ही मन सोचने लगी कि शंकर ने ऐसा कैसा चमत्कार दिखाया है। बच्चे तो सो ही रहे थे और पति बाहर से उठकर अंदर जाकर बोला कि – अरे ! हम तो बाहर भूखे ही पड़े रहे । मैं तो सोचता था कि तुम मायके से ढेरों पकवान लाई होगी, किन्तु यहाँ तो कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा है ।

उसकी पत्नी बोली कि आप ये सब बातें छोड़िये । बच्चे भूखे व्याकुल होकर सो गये । लीजिये यह एक स्वर्ण मुद्रा और दुकान से कुछ भोजन सामग्री लाइयेगा, जिससे बच्चों के जागरण के पूर्व हम भोजन बनाकर तैयार रख लें। देखते ही उसने अपनी पत्नी से पूछा कि ये मुहरें तुम्हारे पास कैसे आ गई हैं? उसने कहा कि ये सब भगवान शंकर की कृपा हैं। ये सब आप बाद में पूछना, पहले सामान ले आइयेगा।

वे सेठ के यहाँ सामान लेने गए और एक मुहर सेठ को दी, जिसे देखकर वह आश्चर्य चकित हो गया । उसने सोचा कि ये सोने की मुहर इस कंगाल के पास कहाँ से आई होगी। इसके घर में तो कुछ भी नहीं था । उसकी पत्नी ने बढ़िया खीर-पूड़ी बनाकर तैयार कर ली और अपने बच्चों को प्रेम – पूर्वक खिलाया – पिलाया। उसके पड़ौस में उन्हें खाता-पीता और हँसता देखकर संदेह पूर्ण चर्चा होने लगी। लोग सोचने लगे कि इस भिखमंगे के पास सब आया कहाँ से?

धीरे-धीरे शंकर जी की कृपा से बहिन के लंबे-चौड़े मकान तैयार हो गए । वे बहुत ही संपन्न हो गए थे और उधर बहिन के चारों भाई और भाभियों की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी। उन्हें तो खाने-पीने के लाले पड़ने लगे थे, क्योंकि उन्होंने अपनी बहिन और भान्जों के साथ भारी कपट किया था । वे सब दुखी होकर दर-दर की ठोकरें खाने लगे।

उसके चारों भाई और भाभियाँ मजदूरी करने के लिए द्वार-द्वार पर भटकने लगे। भगवान की कृपा से उन सबकी भारी दुर्दशा हो गई। उधर बहिन के ठाट-बाट देखकर गाँव के लोग ईर्ष्या करने लगे। कुछ लोगों ने उसके भाइयों के पास जाकर कह दिया कि सोलह सोमवार के बहाने से तुम्हारी बहिन चार महीने तक तुम लोगों के घर में घुसी रही और तुम लोगों का माल लूटकर अपने घर ले गई। इसी कारण से तुम सब गरीब हो गये और वह धनी हो गई है।

ये बात उसके भाइयों के गले उतर गई और वे सब लाठियाँ ले लेकर अपनी बहिन के घर पहुँच गये । बहिन के प्रेम को देखकर भाई सारा बैर भाव भूल गये । बहिन ने सबका खूब आदर सत्कार किया । बहिन ने रो-रोकर भाभियों की कपट की पूरी कहानी सुनाई और शिव जी की कृपा का प्रभाव बताया। भाई अपनी भूल स्वीकार करके क्षमा माँगने लगे । बहिन और भाइयों में पूर्व जैसा प्रेम हो गया। ये होता है सोलह सोमवार के व्रत का प्रभाव ।

करावा चौथ व्रत कथा 

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