Handicrafts in Indus Civilization
प्राचीनतम् भारतीय सभ्यता के सभ्य मानवों ने उत्कृष्ट कला का सृजन किया। Sindhu Sabhyta Me Hastkalayen और अन्य कलाएं जिस क्षेत्र में भी लोगों ने प्रयोग किये उन क्षेत्रों में अपनी सर्वोच्च कलात्मक सृजनात्मकता का उदाहरण उन्होंने दिया हैं। वस्तुतः सिन्धु घाटी की सभ्यता एक परिपक्व साँस्कृतिक परिप्रेक्ष्य प्रस्तुत करती है। वे लोग उच्च साँस्कृतिक गतिविधियों में संलग्न रहे। उन्होंने विश्व प्रसिद्ध कलात्मक कृतियों का सृजन किया। जो अपने समकालीन सभ्यताओं में न केवल सर्वश्रेष्ठ थीं, साथ ही, विशिष्ठ भी थीं।
प्रस्तर मूर्ति कला Stone Sculpture
सिन्धु सभ्यता के लोगों ने प्रस्तर मूर्तिकला में सिद्धहस्त थे। सिन्धु घाटी से प्रस्तर (पत्थर) से बनी कुल तेरह लघु (छोटी) मूर्तियां मिली हैं, जिनमें ग्यारह मोहनजोदड़ों से तथा दो हड़प्पा से मिली है, मूर्तियों को बनाने में ’लाईम स्टोन’ अलबेस्टर (Alabaster)] सेलखड़ी (Steatite) का प्रयोग किया गया है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त मूर्तियों में चार में मनुष्य के सिर की आकृति, पाँच मे बैंठी हुई आकृति एवं दो मूर्तियाँ पशुओं की हैं।
हड़प्पा से मिली दो पत्थर की मूर्तियों में एक मनुष्य (पुरुष) तथा एक स्त्री की है, ये दोनों मूर्तियाँ लगभग 4 इंच ऊँचे मात्र हैं। मोहनजोदड़ों से खण्डित अवस्था में प्राप्त एक मूर्ति में पुरूष नक्काशीदार अलंकृत शाल ओड़े हुए है। पुरूष के दाढ़ी एवं सिर के बालों को उत्कृष्ट केशसज्जा से सजाया गया है। हड़प्पा से प्राप्त तीन प्रस्तर मूर्तियों में नृत्यरत पुरूष या नारी की मूर्ति विशेष उल्लेखनीय है। मोहनजोदड़ों से संयुक्त पशु मूर्तियाँ भी मिली हैं।
धातु मूर्तियाँ Metal Sculptures
सिन्धु सभ्यता वासी धातुकला में प्रवीण थे। धातु की विविध प्रकार की मूर्तियाँ उत्खनन से प्राप्त हुई है। उन्होंने धातुओं को मिश्रित करके कला का रूप देने में सफलता प्राप्त कर ली थी। सैधन्व वासियों ने धातु से मानव मूर्तियाँ, पशु मूर्तियाँ एवं अन्य भौतिक वस्तुओं की कलात्मक मूर्तियों का निर्माण किया।
चन्हूदड़ों से काँसे की बैलगाड़ी, इक्कागाड़ी, पीतल की बतख मिली है। लोथल से ताँबे का कुत्ता, बैल, चिड़िया, खरगोश, मोहनजोदड़ों से भेड़, भैंसा, हड़प्पा से बैलगाड़ी आदि धातु मूर्तियां प्राप्त हुई हैं, इनका निर्माण ’मोम सांचा विधि’ से किया गया है। सैन्धव सभ्यता Indus Civilization के अनेक स्थलों से ताँबे की मुहरें मिली हैं, जिनपर बैल, बाघ, हाथी, गैंड़ा आदि पशुओं के चित्र अंकित हैं।
मोहनजोदड़ों से प्राप्त नर्तकी की कांस्य प्रतिमा अद्भुत है। यह मूर्ति ’मधुच्छिष्ट विधि’ से बनायी गयी है। मोहनजोदड़ों से प्राप्त यह कांस्य की विश्व प्रसिद्ध नर्तकी की प्रतिमा आभूषणों से अलंकृत नग्नावस्था में नृत्य की मुद्रा में है। प्रतिमा का बाँया हाथ बाँयें घुटने की ओर झुकी हुई अवस्था में घुटने से टिका है तथा कंधे से लेकर हाथों तक चूड़ियों से भरा हुआ है। दाँया हाथ कमर पर लगा हुआ है, जिसमें बाजूबंद तथा कलाई में दो-दो चूड़ियाँ अंकित है।
मृण्मूर्तियाँ Terracotta
सैन्धव सभ्यता से उच्चकोटि की मृण्मूर्तियाँ मिली है। मृण्मूर्तियाँ स्त्री – पुरूष, पशु – पक्षी, जलीय जीवों एवं खिलौनों की मिली है। पुरूषों की अपेक्षा स्त्री मूर्तियाँ बहुसंख्या में मिली हैं। अधिकांश मूर्तियाँ हाथ से बना कर आग से पकायी गयी हैं। स्त्री मूर्तियाँ मोहनजोदड़ों, हड़प्पा एवं चन्हूदड़ों से बहुसंख्या में मिली हैं।
भारत में केवल हरियाणा के बनावली से दो स्त्री मृण्मूर्तियाँ मिली हैं। स्त्री मूर्तियाँ अलंकृत, आभूषणों से युक्त हैं। सैन्धव सभ्यता से सर्वाधिक मृण्मूर्तियाँ खिलौनों के रूप में बनी पशु-पक्षियों की है। पशु मृण्मूर्तियों में सर्वाधिक वृषभ प्रतिमाएँ हैं। गाय की प्रतिमा नहीं मिली है। पशुओं में बैल, ऊँट, भेड़ा, बकरा, भैंसा, कुत्ता, खरगोश, बन्दर, सुअर, भालू, हाथी, बाघ, गैंड़ा, गिलहरी, आदि की खिलौना प्रतिमाएँ मिली हैं।
सर्प, कछुआ, घड़ियाल, मछली आदि जलीय जीवों की प्रतिमाएँ मिली हैं। पक्षियों में तोता, बतख, मुर्गा, हंस, चील, उल्लू, मोर आदि की प्रतिमाऐं मिली है। सैन्धव सभ्यता से खिलौने, पहिये युक्त खिलौना गाड़ियाँ, इक्के एवं सीटियाँ भी मिली है। सैन्धव सभ्यता के बनवाली (बणावली, हरियाणा) एवं चोलिस्तान (पाकिस्तान) से मिट्टी के हल का प्रतिरूप मिला है।
मुहरें
सैन्धव सभ्यता की कला की सर्वोत्तम कलाकृतियाँ मुहरें हैं, अभी तक लगभग 3000 से अधिक मुहरें प्राप्त हो चुकी हैं, सर्वाधिक मुहरें सेलखड़ी (Steatite) से निर्मित है। इसके साथ ही मिट्टी, काचली मिट्टी, चर्ट, गोमेद एवं ताँबे की बनी मुहरें भी सैन्धव स्थलों से प्राप्त हुई हैं। लोथल एवं देसलपुर से तांबे की मुहरें मिली हैं।
सैन्धव सभ्यता की मुहरें आयताकार, वर्गाकार, गोलाकार, घनाकार, अण्डाकार आदि आकार में मिली हैं। सैन्धव सभ्यता में ’वर्गाकार मुहरें’ सर्वाधिक मिली हैं। मुहरों पर कूबड़दार बैल, एक श्रृंगी पशु, हाथी, भैंसा, नीलगाय, बाघ, गैंडा, हिरण आदि का अंकन मिला है।
सैन्धव सभ्यता की कतिपय मुहरें विशेष उल्लेखनीय है। नागधारी योगीश्वर शिव की आकृति, पशुओं के मध्य योगीश्वर शिव की मुद्रा, बाघ से लड़ते मानव का अंकन, सामुहिक समारोह में ढोल बजाते व्यक्ति और मनुष्यों का अंकन आदि प्रमुख मुहरें हैं। मोहनजोदड़ों से प्राप्त पशुपति शिव की मुहर पर अंकित प्रतिमा सर्वाधिक उल्लेखनीय है। इस मुहर पर पद्मासन मुद्रा पर त्रिमुखी शिव चौकी पर बिराजमान हैं तथा उनके आसपास हाथी, बाघ, गैंड़ा, भैंसा, हिरण अंकित है, मुहर के ऊपर सात अक्षरों का लेख विद्यमान है।
मनके Beaded
सैन्धव सभ्यता के कलाकार विश्व के उत्कृष्ठ मनके निर्माता थे। लोथल एवं चन्हूदड़ा से मनके (Beaded) बनाने के कारखाने मिले हैं। बहुत संभव है कि, लोथल एवं चन्हूदड़ा से मनके सैन्धव सभ्यता के अन्य नगरों को भेजे जाते होगें। मनके पकी मिट्टी सेलखड़ी, हाथी दाँत, सोने – चाँदी, ताँबे, गोमेद, शंख, सीप, फयॉन्स आदि से बनाये जाते थे।
सैन्धव सभ्यता से सर्वाधिक सेलखड़ी के मनके मिले हैं। घिसाई, पॉलिश एवं छेद करके मनकों से विविध आकर्षक आभूषण एवं अन्य वस्तुएँ बनायीं जाती थीं। मनकों में छेद करने के उपकरण धौलावीरा, लोथल एवं चन्हुदड़ों से प्राप्त हुए है। मनके अण्डाकार, बेलनाकार गोलाकार, चक्राकार, अर्द्ध – वृŸााकार, ढोलकार आदि आकार के मिले हैं। बेलनाकार मनके सर्वाधिक प्रचलन में थे।
मृदभाण्ड pottery मिट्टी के बर्तन
सिंधु सभ्यता के लोग मृदभाण्ड निर्माण में सिद्धहस्त थे। उन्होंने उत्कृष्ट अलंकरण एवं लिपि को मृद्भाण्डों पर अंकित किया। सैन्धव सभ्यता के मृद्भाण्ड चाक पर निर्मित हैं तथा इन्हें अच्छी तरह से पकाया गया है। मृद्भाण्ड लाल या गुलाबी रंग के हैं, जिनके ऊपर लाल रंग का चमकदार लेप चढ़ाया गया है।
खुदाई में हड़प्पा से 14 तथा मोहनजोदड़ों से 6 भट्टे कुम्भकारों के प्राप्त हुए है। हड़प्पा के मृद्भाण्डों पर लेख मिलते हैं। मृद्भाण्डों पर पशु-पक्षियों, पेड़-पौधों, फूल-पत्तियों एवं ज्यामितीय आकृतियों से अलंकरण किया गया है। लोथल से मिले एक मृद्भाण्ड पर एक वृक्ष पर मुंह में मछली पकड़े चिड़िया तथा नीचे एक लोमड़ी का अंकन उल्लेखनीय है। सैन्धव सभ्यता के पात्र-प्रकारों में थालियाँ, कलश, मटके, नाँद, तसले, घुण्डीदार ढक्कन, कुल्हड़, मर्तवान, जामदानी, हत्थेदार प्याले आदि प्रमुख है।