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Shashtriya Bhasha शास्त्रीय भाषा का दर्जा

केंद्र ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को शास्त्रीय भाषा Shashtriya Bhasha का दर्जा दिया। अब तक यह दर्जा तमिल, मलयालम, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़ और ओडिया को दिया गया था। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि सरकार भारत की समृद्ध विरासत को संरक्षित करने के लिए शास्त्रीय भाषाओं को बढ़ावा देने के लिए कदम उठा रही है।

किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देने का उद्देश्य उसके ऐतिहासिक महत्व को पहचान देना है । इन भाषाओं में विशेष पुराने लेखन की समृद्धि और शैली होती है शास्त्रीय भाषाओं को कई लाभ मिलते हैं इनमें प्रत्येक शास्त्रीय भाषा पर उन्नत शोध के लिए विशेष केंद्रों की स्थापना और भाषा के प्रति जागरूकता, संरक्षण में वृद्धि शामिल है

शास्त्रीय भाषा का दर्जा मिलने का फायदा?
सरकार की तरफ से जारी विज्ञप्ति में कहा गया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली भाषाओं को शास्त्रीय भाषा का दर्जा देने को मंजूरी दे दी है। शास्त्रीय भाषाएं भारत की गहन और प्राचीन सांस्कृतिक विरासत की संरक्षक के रूप में काम करती हैं, जो प्रत्येक समुदाय के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील के पत्थर का सार है।

हमारी सरकार भारत के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को महत्व देती है और उसका माँ – सम्मान करती है। हम क्षेत्रीय भाषाओं को लोकप्रिय बनाने की अपनी प्रतिबद्धता पर भी अटूट रहे हैं। ये सभी भाषाएं सुंदर हैं और देश की जीवंत विविधता को रेखांकित करती हैं। ये भाषाएं अपनी साहित्यिक परंपराओं के लिए भी जानी जाती हैं। शास्त्रीय भाषाओं के रूप में इन्हें जो मान्यता दी गई है, यह भारतीय विचार, संस्कृति और इतिहास पर उनके अतीत काल के  प्रभाव का सम्मान है।

क्या होती है शास्त्रीय भाषा ?
शास्त्रीय भाषाएं स्वतंत्र परंपराओं और समृद्ध साहित्यिक इतिहास वाली प्राचीन भाषाएं हैं जो विभिन्न साहित्यिक शैलियों और दार्शनिक ग्रंथों को प्रभावित करती रहती हैं। मंत्रिमंडल की नवीनतम मंजूरी के साथ, भारत में मान्यता प्राप्त शास्त्रीय भाषाओं की कुल संख्या अब 11 हो गई है। इससे पहले, तमिल, संस्कृत, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम और ओडिया को पहले ही शास्त्रीय भाषा का दर्जा प्राप्त था।

किस आधार पर मिलता है दर्जा ?
सरकार ने 12 अक्टूबर 2004 को ‘शास्त्रीय भाषा’ नामक एक नई श्रेणी बनाई थी। इसने तमिल को उसके एक हज़ार साल से ज़्यादा पुराने इतिहास, मूल्यवान माने जाने वाले ग्रंथों और साहित्य तथा मौलिकता के आधार पर शास्त्रीय भाषा घोषित किया। नवंबर 2004 में, साहित्य अकादमी के तहत संस्कृति मंत्रालय द्वारा शास्त्रीय भाषा का दर्जा दिए जाने के लिए प्रस्तावित भाषाओं की पात्रता की जांच करने के लिए एक भाषा विशेषज्ञ समिति (LEC) का गठन किया गया था।
शास्त्रीय भाषा घोषित करने के लिए निम्नलिखित मानदंड दिए गए हैं ।

उच्च पुरातनता: भाषा में प्राचीन ग्रंथ या दर्ज इतिहास होना चाहिए जो 1,500-2000 वर्षों से अधिक पुराना हो।

मूल्यवान विरासत: प्राचीन साहित्य या ग्रंथों का एक महत्वपूर्ण संग्रह जिसे बोलने वालों की पीढ़ियों द्वारा संरक्षित और मूल्यवान माना गया है।

मौलिकता: भाषा में एक अलग और मूल साहित्यिक परंपरा होनी चाहिए, जो किसी अन्य भाषण समुदाय से प्राप्त न हो।

आधुनिक रूपों से भिन्नता: शास्त्रीय भाषा और उसके आधुनिक रूपों के बीच स्पष्ट अंतर होना चाहिए। प्राचीन और बाद के संस्करणों के बीच संभावित असंतुलन के साथ।

बुन्देली का स्वरूप और विशेषताएं 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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