Homeबुन्देलखण्ड के त्यौहारSharad Purnima शरद पूर्णिमा की खीर और वैज्ञानिक महत्व

Sharad Purnima शरद पूर्णिमा की खीर और वैज्ञानिक महत्व

शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा का पृथ्वी पर अधिक प्रभाव होता है इस लिए Sharad Purnima की रात खीर बनाकर अस्थमा के  रोगियों को खिलाने की प्रथा है । वास्तव में हमारी परंपराओं का वैज्ञानिक आधार है।  एक अध्ययन के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन औषधियों की स्पंदन क्षमता pulsation potential  अधिक होती है।

लोगों का मानना है कि लंकाधिपति रावण शरद पूर्णिमा की रात चंद्र किरणों को दर्पण के माध्यम से अपनी नाभि पर ग्रहण करता था। इस प्रक्रिया से उसे पुनर्योवन शक्ति प्राप्त होती थी। चांदनी रात में 10 से मध्यरात्रि 12 बजे के बीच कम वस्त्रों में घूमने वाले व्यक्ति को अत्याधिक ऊर्जा प्राप्त होती है। सोमचक्र, नक्षत्रीय और आश्विन  के त्रिकोण के कारण शरद ऋतु से ऊर्जा का संग्रह Collection होता है और बसंत में निग्रह Repression होता है।

दुग्ध में  दूध मे लैक्टिक अम्ल होता है यह तत्व चंद्रमा की किरणों से अधिक मात्रा में शक्ति को अवशोषित absorb करता है। चावल में स्टार्च होने के कारण यह प्रक्रिया और आसान हो जाती है। इसी कारण ऋषि-मुनियों ने शरद पूर्णिमा की रात्रि में खीर खुले आसमान में रखने का विधान किया है। यह परंपरा विज्ञान पर आधारित है।

विज्ञान क्या कहता है
वर्षा ऋतु के बाद शरद ऋतु आती है। आकाश में बादल धूल न होने से कडक धूप पड़ती है जिससे शरीर में पित्त कुपित होता है। वैज्ञानिक दृष्टि से शरद पूर्णिमा की रात स्वास्थ्य के लिए  बहुत गुणकारी मानी जाती है। शरद पूर्णिमा के दिन चंद्रमा धरती के बहुत समीप होता है और इस वजह से चंद्रमा की  किरणें सीधे धरती तक पहुंचती हैं। इस दिन चन्द्रमा की किरणों में विशेष प्रकार के विटामिन उत्पन्न होते हैं जिससे चंद्रमा की रोशनी में रखी गई खीर और भी ज्यादा स्वास्थ्यवर्धक बन जाती है।

सभी जानते है बैक्टीरिया बिना उपयुक्त वातावरण के नहीं पनप सकते। जैसे दूध में दही डालने मात्र से दही नहीं बनता। दूध हल्का गरम होना चाहिए और उसे ढंककर गरम वातावरण में रखना होता है। बार-बार हिलाने से भी दही नहीं जमता।

ऐसे ही मलेरिया के बैक्टीरिया को जब पित्त का वातावरण मिलता है, तभी वह चार दिन में पूरे शरीर में फैलता है नहीं तो थोड़े समय में खत्म हो जाता है। सारे मच्छरमार प्रयासो के बाद भी मच्छर और रोगवाहक सूक्ष्म कीट नहीं काटें, यह हमारे हाथ में नहीं है, लेकिन पित्त को नियंत्रित रखना हमारे हाथ में तो है?

अब हमारी परम्पराओं का चमत्कार देखिये। खीर खाने से पित्त का शमन होता है। गाय के दूध की हो तो अतिउत्तम, विशेष गुणकारी (आयुर्वेद में घी से अर्थात् गौ घी और दूध गौ का)। इसके सेवन से मलेरिया होने की संभावना नहीं के बराबर हो जाती है।

शरद पूर्णिमा की रात चन्द्रमा अमृत वर्षा करता है। इसलिए इस रात में खीर को खुले आसमान में रखा जाता है और सुबह उसे प्रसाद के रूप में खाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि इससे रोग मुक्ति होती है और उम्र लंबी होती है। निरोग शरीर के रूप में स्वास्थ्य का कभी न खत्म होने वाला धन दौलत से भरा भंडार मिलता है।

शरद पूर्णिमा को रातभर चाँदनी के नीचे चाँदी के पात्र में रखी खीर सुबह खाई जाती है (चाँदी का पात्र न हो तो चाँदी का चम्मच खीर में डाल दे, लेकिन बर्तन मिट्टी या पीतल का हो, क्योंकि स्टील जहर और एल्यूमिनियम, प्लास्टिक, चीनी मिट्टी महा-जहर हैं)। यह खीर विशेष ठंडक पहुंचाती है।

खीर बनाने की विधि
शरद पूर्णिमा को देसी गाय के दूध में दशमूल क्वाथ, सौंठ, काली मिर्च, वासा, अर्जुन की छाल चूर्ण, तालिश पत्र चूर्ण, वंशलोचन, बड़ी इलायची और पिप्पली, इन सबको आवश्यक मात्रा में मिश्री मिलाकर पकाएं और खीर बना लें। खीर में ऊपर से शहद और तुलसी पत्र मिला दें। ध्यान रहे, इस ऋतु में बनाई खीर में केसर और मेवों का प्रयोग न करे।

अब इस खीर को साफ बर्तन में डालकर रात भर शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में खुले आसमान के नीच रखें, ऊपर से जालीनुमा ढक्कन से ढक कर छोड़ दें। अपने घर की छत पर बैठ कर चंद्रमा को अर्ध्य  देकर, अब इस खीर को रात्रि जागरण कर रहे दमे के रोगी को प्रात: काल ब्रह्म मुहूर्त (4-6 बजे के मध्य) में सेवन कराएं।

इससे रोगी को सांस और कफ दोष के कारण होने वाली तकलीफों में काफी लाभ मिलता है। रात्रि जागरण के महत्व के कारण ही इसे जागृति पूर्णिमा भी कहा जाता है, इसका एक कारण रात्रि में स्वाभाविक कफ के प्रकोप को जागरण से कम करना है। इस खीर को मधुमेह से पीडि़त रोगी भी ले सकते हैं, बस इसमें मिश्री की जगह प्राकृतिक स्वीटनर स्टीविया की पत्तियों को मिला दें।

उक्त खीर को स्वस्थ व्यक्ति भी सेवन कर सकते हैं, बल्कि इस पूरे महीने मात्रा अनुसार सेवन करने से साइनोसाईटीस जैसे उध्र्वजत्रुगत (ई.एन.टी.) से सम्बंधित समस्याओं में भी लाभ मिलता है। कई आयुर्वेदिक चिकित्सक शरद पूर्णिमा की रात दमे के रोगियों को रात्रि जागरण के साथ कर्णवेधन भी करते हैं, जो वैज्ञानिक रूप सांस के अवरोध को दूर करता है।

नौरता – बुन्देली लोक पर्व 

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