किसी भी संस्कृति में सन्तुलन और संगठन होता है। यह संगठन अनेक तत्वों, इकाइयों, भागों और उपभागों को मिलाकर बनता है। Sanskriti Ke Tatva या भाग छोटे से छोटे या बड़े से बड़े हो सकते हैं। इनमें जो पारस्परिक संबन्ध तथा अन्तर्निर्भरता पाई जाती है, उसी के कारण संस्कृति के ढांचे में सन्तुलन और संगठन उत्पन्न होता है।
Elements of Culture
संस्कृति के विभिन्न उपादानों को, जिनसे उसके ढांचे का निर्माण होता है, सांस्कृतिक तत्व, संस्कृति संकुल, संस्कृति प्रतिमान और सांस्कृतिक क्षेत्र कहा जाता है। ये सभी क्रमशः संस्कृति के बढ़ने वाले उपादान हैं और वह इस अर्थ में कि संस्कृति के तत्व/लक्षण संस्कृति की सबसे छोटी इकाई है, जो परस्पर मिलकर एक संस्कृति संकुल का निर्माण करती है।
ये संस्कृति संकुल , संस्कृति के ढांचे में एक विशेष ढंग से व्यवस्थित रहते हैं, जिससे संस्कृति को एक विशिष्ट स्वरूप प्राप्त होता है। संस्कृति के इस विशिष्ट स्वरूप को संस्कृति प्रतिमान कहते हैं। इस संस्कृति प्रतिमान अर्थात एक प्रकार की जीवन के क्रिया कलापों का बिस्तार जिस विशिष्ट क्षेत्र में पाया जाता है, उसे सांस्कृतिक क्षेत्र कहते हैं।
संस्कृति के अन्तर्गत सम्पूर्ण जीवन विधियों का समावेश होता है। एक-एक विधि संस्कृति की एक-एक इकाई या तत्व है। संस्कृति की इन इकाइयों या तत्वों को सांस्कृतिक तत्व कहते हैं और ये तत्व भौतिक और अभौतिक दोनों प्रकार के हो सकते हैं। इस प्रकार के असंख्य तत्वों को मिलाकर सम्पूर्ण सांस्कृतिक ढांचे का निर्माण होता है और इसकी सबसे छोटी इकाई को सांस्कृतिक तत्व कहा जा सकता है।
किसी भी संस्कृति के विश्लेषण और निरूपण में इन इकाइयों या सांस्कृतिक तत्वों को पहले एकत्रित करना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि इसके बिना संस्कृति के आधारभूत तत्वों या उपादानों को नहीं समझा जा सकता। प्रत्येक सांस्कृतिक तत्व का सम्पूर्ण सांस्कृतिक व्यवस्था में एक निश्चित स्थान तथा कार्य होता है।
characteristics of the cultural element
सांस्कृतिक तत्व की तीन प्रमुख विशेषताएं हैं
1- प्रत्येक सांस्कृतिक तत्व का उसकी उत्पत्ति के सम्बन्ध में एक इतिहास होता है, चाहे वह इतिहास छोटा हो या बड़ा। उदाहरणार्थ सर्वप्रथम घड़ी का आविष्कार किसने किया और कब किया, आधुनिक एवं स्वयं क्रियाशील या अपने आप चलने वाली घड़ी का विकास कैसे हुआ, आदि के सम्बन्ध में एक इतिहास है। इसी प्रकार भारत में ’जय हिन्द’ अभिवादन या सांस्कृतिक एकता का प्रतीक है। ’जय हिन्द’ सांस्कृतिक तत्व है। सांस्कृतिक तत्वों का निजी अस्तित्व होते हुए भी वे सम्पूर्ण संस्कृति में घुले मिले रहते हैं।
2 – गतिशीलता सांस्कृतिक तत्व की एक उल्लेखनीय विशेषता है। इनकी संख्या में भी वृद्धि होती है। सांस्कृतिक तत्व से सम्बन्धित व्यक्ति जैसे-जैसे एक स्थान से दूसरे स्थान को फैलते हैं या दूसरे लोगों के सम्पर्क में आते हैं, वैसे-वैसे सांस्कृतिक तत्व भी फैलते रहते हैं। एक संस्कृति समूह दूसरे संस्कृति समूह से मिलता है तो सांस्कृतिक तत्वों का आदान-प्रदान होता है।
आधुनिक युग में यातायात तथा संचार के साधनों में उन्नति होने के फलस्वरूप सांस्कृतिक तत्वों की गतिशीलता और भी बढ़ गई है। अनेक जनजातियों के सांस्कृतिक तत्व भी सभ्य समाजों में तेजी से फैलते जा रहे हैं। यह विशेषता अन्त तक सांस्कृतिक परिवर्तन का एक कारण बन जाती है और संस्कृति के ढांचे में परिवर्तन भी लाती है।
3 – सांस्कृतिक तत्वों में पृथक-पृथक रहने की प्रवृत्ति नहीं होती है। ये सभी एक साथ मिलकर संस्कृति की एक या विविध आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। इन तत्वों को समझे बिना किसी भी संस्कृति को पूर्णतया समझना संभव नहीं है। किसी भी संस्कृति के अध्ययन, विश्लेषण तथा निरूपण में ये सांस्कृतिक तत्व वे प्राथमिक चरण या आधार हैं, जिन पर संपूर्ण सांस्कृतिक ढांचा निर्भर रहता है।
संस्कृति संकुल Culture Packages
मानव संस्कृति या समाज में एक सांस्कृतिक तत्व का कोई अर्थ नहीं होता है। प्रायः अनेक सांस्कृतिक तत्व एक साथ गुँथे रहकर मानव की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं। इसे ही संस्कृति संकुल Culture Packages कहा जाता है। लोक भाषा एक संस्कृति संकुल है, क्योंकि इसके अन्तर्गत अनेक शब्दों, वाक्यों, कहावतों, व्याकरण आदि का जो एक-एक सांस्कृतिक तत्व है उसका समावेश होता है ।
भाषा इन सबका अर्थपूर्ण संग्रह है जिसके द्वारा विचारों का आदान-प्रदान संभव होता है। इसी प्रकार भारत में खेती एक सांस्कृतिक तत्व है, परंतु इससे संबन्धित अन्य तत्व हैं, जैसे खेत जोतने के पहले हल और बैल की पूजा, यज्ञ आदि करना, चिड़ियों से फसल की रक्षा के लिए बिजूका लगाना, फसल काटकर खलिहान में रखना, अनेक प्रकार के अनाजों से भोजन बनाना आदि।
संस्कृति प्रतिमान Culture Pattern
प्रत्येक संस्कृति में चाहे वह आदिम समाज की हो या सभ्य समाज की उसमे एक संगठन होता है। संस्कृति इन तत्वों या संकुलों से इस प्रकार बनी होती है , जिस प्रकार पत्थरों से एक मकान। संस्कृति संकुलों के एक विशिष्ट ढंग से व्यवस्थित हो जाने से संस्कृति प्रतिमान बनता है और इन संस्कृति प्रतिमानों की सम्पूर्ण व्यवस्था को संस्कृति कहते हैं।
अतः स्पष्ट है कि सम्पूर्ण संस्कृतिक ढांचे के अन्दर एक विशिष्ट ढंग या क्रम से सजे हुए संस्कृति संकुलों के सम्मिलित रूप को संस्कृति प्रतिमान कहते हैं। उदाहरण के लिए भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत पाए जाने वाले संस्कृति प्रतिमान, जैसे जाति प्रथा, संयुक्त परिवार, धार्मिक भिन्नता, अध्यात्म, जीवन दर्शन आदि इस संस्कृति की विशेषताओं और आधारों को बताते हैं।
संस्कृति क्षेत्र Culture Area
वह भौगोलिक क्षेत्र जिसमें संस्कृति के एक से तत्व या संकुल विशेष रूप से पाए जाते हैं, सांस्कृतिक क्षेत्र कहलाता है। कोई भी व्यक्ति किसी भी संस्कृति को सीख सकता है। परंतु अपने पास-पड़ोस की संस्कृति को सीखना जितना सरल है, उतनी सरलता से दूर की संस्कृतियों को नहीं सीखा जा सकता। इस कारण सांस्कृतिक तत्वों में गतिशीलता का गुण होते हुए भी एक निश्चित भूभाग में ही वे विशेष रूप से पाए जाते हैं।
ऐसा भी हो सकता है कि एक ही सांस्कृतिक तत्व विभिन्न क्षेत्रों में समान या एक से हों, फिर भी संपूर्ण सांस्कृतिक व्यवस्था या संस्कृति संकुल में उनका स्थान या विशेषता भिन्न- भिन्न क्षेत्रों में भिन्न होती है। किसी स्थान पर एक सांस्कृतिक क्षेत्र समाप्त हुआ और दूसरा सांस्कृतिक क्षेत्र आरंभ हुआ।
एक सांस्कृतिक क्षेत्र के आस-पास के जितने भी क्षेत्र या प्रदेश होंगे, उन सब में उस सांस्कृतिक क्षेत्र की विशेषताएं अनेक रूपों में देखने को मिल सकती हैं। परंतु उसका यह फैलाव अनेक बातों पर निर्भर करेगा, जैसे यातायात और संचार के उपलब्ध साधन, सांस्कृतिक सम्पर्क स्थापित करने में प्राकृतिक बाधाएं, उस प्रदेश की अन्य भौगोलिक परिस्थितियां आदि।
वास्तव में संस्कृतियों के विभिन्न स्वरूपों के निर्माण का मूल कारण है, उनको अपनाने और ग्रहण करने वाले विभिन्न मानव अंशों के समूहों की विशिष्ट मौलिक शक्ति। इतिहासकारों का कथन है कि एक संस्कृति के तत्वों को दूसरी संस्कृति वाले मानव समूह पूर्ण रूप से कभी नहीं अपना सकते। अन्य मानव समूह अपने से भिन्न संस्कृति का अनुकरण केवल बाहरी रूप में ही कर पाता है और अन्य संस्कृतियों की विशेषताओं को अपनाते हुए उनमें अपनी मौलिक प्रवृत्ति के अनुसार परिवर्तन कर देता है।
आधुनिक युग में यातायात और संचार के साधनों में उत्तरोत्तर प्रगति होने के कारण सांस्कृतिक आदान-प्रदान तथा अवसर के साधन बढ़ते जाने के कारण सांस्कृतिक क्षेत्र की सीमा रेखाएं और भी अनिश्चित होती जा रही हैं। आधुनिक समाज की संस्कृति का वास्तविक भौगोलिक क्षेत्र या सांस्कृतिक क्षेत्र तो सारी दुनिया है, जिसे भूमण्डलीकरण की प्रक्रिया के रूप में समझा जा सकता है।