Homeबुन्देलखण्ड का शौर्यRani Ganesh Kunvari रानी गणेश कुँवरि

Rani Ganesh Kunvari रानी गणेश कुँवरि

पौराणिक कथाओं के अनुसार, संवत 1631 में बुन्देलखण्ड ओरछा राज्य के शासक महाराज मधुकर शाह कृष्ण भक्त थे और उनकी पत्नी Rani Ganesh Kunvari रामभक्त थीं। मधुकर शाह ने एक बार रानी गणेश कुंवरि को वृंदावन चलने को कहा पर महारानी अयोध्या जाने की जिद करने लगीं। महाराज ने कहा था कि राम सच में हैं तो ओरछा लाकर दिखाओ।

Rani Ganesh Kunvari अयोध्या चली गईं। वहां उन्होंने प्रभु श्रीराम को प्रकट करने के लिए पूजा-पाठ शुरू किया। 21 दिन बाद भी कोई परिणाम नहीं निकला तो महारानी सरयू नदी में कूद गईं। जहां प्रभु श्रीराम बाल स्वरूप में उनकी गोद में आ गए।

प्रभु श्रीराम को अयोध्या से ओरछा लाने वाली रानी गणेश कुंवरि

महाराज मधुकर शाह जिस प्रकार धर्म और कर्म परायण थे, उसी प्रकार उनकी रानी श्री गणेश कँवरि Rani Shri Ganesh Kunvari भी अनन्य भक्त थीं। मधुकर शाह श्री जुगलकिशोर जी के उपासक थे और गणेश कँवरि प्रभु श्रीराम की भक्त थीं। एक बार हास्य में महाराज ने रानी से कह दिया कि ऐसा प्रतीत होता है कि आप साक्षात् श्रीराम से लाड़ करती हो।

रानी के हृदय में यह बात चुभ गई, फिर भी उन्होंने प्रेम-भाव से विनम्र शब्दों में महाराज को उत्तर दिया कि महाराज से मुझे जो प्रेरणा मिली है, उसको मैं सफल बनाने का प्रयत्न करूँगी जिससे प्रभु श्रीराम का मुझे साक्षात् दर्शन हो सके । रानी गणेश कँवरि की बात सुनकर महाराज विचार करने लगे कि रानी को मेरी बात कुछ लग गई है, और पुनः हँस कर कहने लगे कि हमने तो आपसे विनोद में कहा था।


रानी गणेश कँवरि विनम्र शब्दों में अनुनय करते हुए बोली कि महाराज आपके विनोदी शब्दों ने हमारे हृदय के पट खोल दिये हैं। इससे मुझे दो लाभ होंगे, एक तो पति की आज्ञा का पालन, और दूसरा भगवान् श्रीराम के दर्शन। रानी ने कालान्तर में अयोध्या यात्रा की तैयारी कर दी और अयोध्या पहुँच कर श्रीराम के वात्सल्य भाव की साधना करने लगीं और साथ ही श्रीराम से ओरछा चलने का आग्रह करने लगीं।  

रानी गणेश कँवरि जब श्रीराम की साधना में थीं तब अवध के पूजारी उनको समझाने लगे कि रानी जी, श्रीराम जी भी क्या किसी के साथ प्रयाण करते हैं, वह तो केवल भक्त की भावना के भूखे हैं। आपको तो उनकी अनन्य भक्ति, केवल उपासना करनी चाहिये, जो कि भक्त के लक्षण हैं और जीव को इसी से मोक्ष की प्राप्ति होती है, किन्तु रानी अपने संकल्प में दृढ़ रहीं।


प्रभु श्रीराम के लिए एक विशाल मन्दिर का ओरछा मे निर्माण
Construction of a huge temple for Lord Shree Ram in Orchha
कालान्तर में मधुकर शाह ने भी रानी को ओरछा पधारने का संदेश भेजा। किन्तु वह नहीं गईं । एक दिन मधुकर शाह को स्वानुभूति हुई कि रानी अपने संकल्प को पूर्ण करके ही ओरछा लौटेंगी। इस कारण उन्होंने श्रीराम के लिए एक विशाल मन्दिर की नींव डाली। यह निर्माण कार्य वि० सम्वत् 1614 में पूर्ण हुआ।

रानी गणेश कँवरि को जब कई वर्षों तक साधना करने पर सफलता प्राप्त नहीं हुई, तब उन्होंने श्री सरजू जी में अपने शरीर को जल-मग्न करने का निश्चय किया, और एक दिन प्रातः काल इसी भावना से उन्होंने सरजू के जल में प्रवेश किया। जब उनके शरीर का अर्ध-भाग डूबने लगा तब श्री राम उनकी गोदी में आ गये। भगवान भक्त की परीक्षा अवश्य लेते हैं, लेकिन रहते उसके मन में ही हैं। श्रीराम गोद में आकर मुस्कराते हुए कहने लगे माता मैं आ तो गया हूं।

रानी गणेश कँवरि आत्म-विभोर हो गई और श्रीराम को गोदी में लिए हुए सरजू जी से बाहर निकल कर ओरछा चलने की तैयारी करने लगीं। यह देख राम हँसकर कहने लगे—माँ कहाँ प्रयाण करने की सोच रही हो। रानी ने वात्सल्य भाव से उत्तर दिया… ओरछा के लिये। श्रीराम भी वत्स की भांति हठ करते कहने लगे… मैं साथ अवश्य चलूँगा, किन्तु मेरी कुछ बातें तुमको स्वीकार करनी होंगी।

रानी ने प्रसन्न मुद्रा में माता की भांति उत्तर दिया—’कौन-कौन सी बातें…?
प्रथम, मैं तुम्हारे साथ में ही निवास करूँगा। दूसरी, जिस नगर में मैं रहूंगा, वहां मेरा राज होगा। तीसरी, पुष्य नक्षत्र में ही केवल यात्रा करूंगा। श्रीराम की इन तीनों प्रतिज्ञाओं को रानी गणेश कुंवरि ने बड़े हर्ष के साथ स्वीकार कर लिया ।


श्री राम का अयोध्या से ओरछा आना
Shri Ram to Orchha from Ayodhya
पुष्य नक्षत्र के लगते ही रानी गणेश कुंवरि ने अपनी यात्रा प्रारम्भ कर दी। रानी गणेश कंवरि इस प्रकार अपनी साधना में सफल होकर वि० सम्वत् 1661, चैत्र शुक्ल 6, सोमवार को अपने रनवास ओरछा में पधारी और श्रीराम की साधना में तन्मय हो गई। श्रीराम ने एक रात में मधुकर शाह को स्वप्न में कहा कि तुमने हमारे लिये जो मन्दिर निर्माण कराया है, उसमें श्री चर्तुभुज जी निवास करेंगे और यह प्रतिमा तुमको अनायास ही प्राप्त होगी । मैं अपनी माता के साथ महल में रहँगा, अतएव अब ओरछा में तुम्हारा नहीं, मेरा राज होगा।

ओरछा मे श्री राम राज्य की स्थापना
Establishment of Shri Ram State in Orchha
मधुकर शाह निद्रा भंग होने पर स्वप्न पर विचार करने लगे और नित्य कर्म से निवृत हो रानी के महल में पहुंचे। महाराज को देखकर रानी ने चरणों में मस्तक झुका कर प्रणाम किया तथा आसन पर बैठा कर पधारने का कारण पूछा। महाराज ने भी बड़ी आतुरता से भाव विभोर हो रात्रि के स्वप्न का प्रसंग रानी को सुना दिया। रानी और महाराज दोनों हर्षित हो स्वप्न पर विचार करने लगे, क्योंकि सबसे जटिल प्रश्न था, राज्य-त्याग का ।

अन्त में मधुकर शाह और रानी गणेश कुंवरि ने यह निश्चय किया कि आज से ओरछा में श्रीराम का राज्य होगा, और हम सेवा रूप में उसका संचालन करेंगे।
उसी समय से ओरछा ‘राम राज्य’ के नाम से विख्यात हुआ और सभी वैधानिक कागजों पर तभी से राम-राज्य की मोहर लगती आई। यह मोहर सन् 1947 के पश्चात् जब श्री वीर सिंह जू देव द्वितीय ने स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्र प्रसाद को ओरछा राज्य का राज-कोष समर्पित किया तब बन्द हुई।


इस प्रकार महाराज मधुकर शाह ने ऐतिहासिक दृष्टि से बुन्देलखण्ड के विशाल नगर ओरछा पर वि० सम्वत 1632 से 1649 वि० तक राज्य किया है। इससे यह अनुमान होता है, कि मधुकर शाह को मध्य में राज्य से विरक्ति हो गई थी और वह भगवत-साधना में तल्लीन हो गये थे। उनकी यह साधना लगभग बारह वर्ष निरन्तर चलती रही और अन्त में जब उनकी रानी गणेश कुंवरि श्रीराम को अवध से ओरछा लेकर पधारी ।

महाराज ने राज्य का कार्य-भार पून: सम्हाला होगा और श्रीराम के स्वप्न देने पर श्रीराम को राज्य का अधिष्ठाता बना कर आप सेवा रूप से ओरछा राज्य की देखभाल करते रहे होंगे। मधुकर शाह ने जिस प्रकार अपने प्राणों की बाजी लगाकर बुन्देलखण्ड भमि की संस्कृति की रक्षा की, ठीक उसी प्रकार रानी गणेश कंवरि ने भी अडिग तपस्या द्वारा श्री राम को अयोध्या से ओरछा लाकर अपनी अनन्य भक्ति का परिचय दिया है।

संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!