बुन्देलखण्ड मे अनेक ग्राम देवी-देवताओं की पूजा होती है बुंदेलखंड में इनके प्रति अपार आस्था देखने को मिलती है आस्था और विश्वास लोक जीवन के मूल आधार हैं। ग्रामीण अंचल में लोक देवता आस्था के प्रतीक हैं। हर अंचल की एक आत्मा होती है। इसी आत्मा को लोक जीवन पुष्ट करते हैं। लोक का मन आस्था के मार्ग पर आगे बढ़ता है। गाँवों में लोक देवताओं को पूजने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है । Rakkas Baba बुन्देलखण्ड वासियों की प्रमुख लोक देवता हैं ।
रक्कस बाबा, गोंड़बाबा, दानेबाबा, मनियाँ बाबा, कारसदेव, हीरामन नगरे बाबा, प्यादी बाबा, रामजू बाबा, परीत बाबा, पठान बाबा, नारसिंह, घटौरिया, मसान, ठाकुर बाबा, भुमियाँ, बीजासेन, अघोरी बाबा के साथ- साथ पूरे बुंदेलखंड में हरदौल घर-घर पूजे जाते हैं। हर गाँव में ग्राम्य देवता विराजमान हैं। ‘थान’ (स्थान) चबूतरे के रूप में या मठिया के रूप में बने हुए हैं। कुँअर साब का घोड़ा खड़ा हुआ है। किसी पुराने पीपल के वृक्ष के नीचे परीत बाबा का स्थान है।
रक्कस बाबा सबके यहाँ पूजते हैं। हिन्दुओं में हर जाति विशेष के यहाँ ‘रक्कस’ लगता है। रक्कस स्थानीय शब्दावली का शब्द है। ‘रक्षक’ तत्सम है। तद्भव में’ रच्छक’ और देशज में बोली के आधार पर ‘रक्कस’ हो गया है। रच्छा रक्षा करने वाले देवता । भूमि देव बढ़वारी के देवता हैं रक्कस बाबा। रक्कस बाबा की पूजा जिसे कलेऊ देना कहते हैं-मेंड़े पर अर्थात् बस्ती – गाँव के बाहर खेत की मेंड़ पर दी जाती है। बरिया या नीम के पेड़ के नीचे रक्कस बाबा का थान चबूतरे के आकार में बना होता है, और उस पर बाबा की ‘मढ़िया’ बनी होती है।
हर गाँव में एक स्थान होता है, उनका जहाँ रक्कस दिया जाता है। पूजा को या कलेऊ देने को रक्कस देना कहते हैं। लड़के के सात रक्कस दिये जाते हैं। पैदा होने के बाद बच्चे का झूला डाला जाता है। झूले के नीचे गोबर से लीप कर चौक पूरा जाता है। छह खूँट बनाये जाते हैं, घर- परिवार की स्त्रियाँ इकट्ठी होती है ।
सात-सात पूड़ी उनके ऊपर लप्सी (गुड़ का हलुआ) नारियल फोड़कर गरी के टुकड़े और सात ककरा (छोटे कंकड़) रखे जाते हैं। दीया जलाकर होम किया जाता है। महिलायें उन खूँटों पर रखी गई पूड़ियाँ और लप्सी साथ में वहीं बैठकर खाती हैं। उन सात कंकड़ों को मनौती या बोलमा की तरह संभालकर घर में रख लिया जाता है। जब लड़के की शादी के पहले सातवा बड़ा रक्कस दिया जाता है, तब उन उठाये हुए ककड़ी का सब सामान के साथ रक्कस बाबा के थान पर रख दिया जाता है।
रक्कस बाबा वंशवेल बढ़ाने वाले देवता हैं। उनका प्रसाद कोई भी खा सकता है। विश्वासों की डोर से बँधा हुआ है ग्रामीण समाज । उत्तर आधुनिकता और शहरीकरण की बयार ने इस आँचलिक संस्कृति पर भी हमले शुरू कर दिये हैं फिर भी अभी गाँवों में बहुत कुछ शेष बचा है। यह आस्था परस्पर जोड़ती है। लोक शरीर है और संस्कृति आत्मा लोक संस्कृति रूपी आत्मा जीवन में उल्लास और ऊर्जा का संचार करती है। बच्चे को झूला झुलाते हुए महिलाएँ गाती हैं-
रक्कस बाबा के दये ललना,
मचल रये मोर अंगना ।
अबतो ‘बधाये’ और ‘सोहरे’ गाने का चलन बढ़ गया है। सातवें रक्कस का बड़ा महत्व है जिसे शादी के पहले मड़वा अथवा है’ तेल के दिन इतवार या बुधवार को देना आवश्यक है। वैसे तो ज्यादातर मेंड़े पर रकस देने की परम्परा है, किंतु कहीं-कहीं ‘जात घाट’ के कारण ‘घिनींची’ पर भी रक्कस बाबा की पूजा कर देते हैं। घिनाँची को जलधरा कहते हैं। पानी के बर्तन रखने का स्थान वहाँ कोई पौधा वृक्ष होना जरूरी है। धीरे-धीरे घिनौची समाप्त है। चौका लुप्त है। लीपना-पोतना, चौक उरैन गायब हैं। मिट्टी की खुशबू ढूढ़ना पड़ती है।
जब लड़के का सातवाँ रक्स दिया जाता है, तब बुआ नये कपड़े लातीं है जोड़ा से दिया जाता है जोड़ा याने दो भाइयों का जोड़ा। यदि खास भाई नहीं है तो मौसेरा फुफेरा भाई हो। बुआ माहुर लगाती है और छूटा लाती है। छूटा कमर में पहनने वाला चाँदी का आभूषण होता है। बाजार में लाल छूटा रक्कस के नाम से बुआ खरीदती है, जिस ‘छूटे’ को गले में भी पहिन लेता है। (मिट्टी का बड़े दीये के आकार का बर्तन करबा कहलाता है) जिनमें एक करने में चावल और दूसरे में देवल (दले हुए चने) रक्कस बाबा पर चढ़ाये जाते हैं। गोवर के गानेसजू बनाकर उनका होम किया जाता है। मेंड़े पर गीत गाने लगते हैं।
डारें गुरज पै डेरा, रकस बाबा बड़े अलबेला ।
डारें पहरिया पै डेरा, रक्कस बाबा बड़े अलबेला ।।
सोनें की धारी में भोजन परोसे, अरे जेबत में डार आये सोला।
रकस बाबा बड़े अलबेला ।।
झनझन झाड़ी गंगा जल पानी, पीबत में डार आये सेला ।
रकस बाबा बड़े अलबेला ।।
नौ रंग पलका बिछे रंग पाये, सोबत में डार आये सेला ।
रक्कस बाबा बड़े अलबेला ।।
बुलउआ में आयी सभी महिलाओं को चार लुचई (पूड़ी) उन पर लप्सी (हलुआ) कहीं-कहीं कचहा (गुड़ और तिली का खाती हैं। रकस बाबा का दरबार सज जाता है- बनता है) रखकर खूँट बाँटे जाते हैं सब साथ-साथ बैठकर वहीं खाती हैं ।
रक्कस बाबा कॉं भरी दरबार, दिवालें में रौंना जड़े।
तात जलेबी दूदा के लडुआ, जेबें जसोदा के लाल। दिवालें में रौना जड़े।।
सोनें के लोटा में जल भर ल्याये, पीवें जसोदा के लाल । दिवालें में राँना जड़े।
पाना पचासी के बीड़ा लगाये, चाबें जसोदा के लाल। दिवालें में रौना जड़े।
रक्स बाबा को भरौ दरबार ।।
दरबार की शोभा अवर्णनीय है। अद्भुत रक्कस बाबा किसी पर भरते नहीं हैं, वे तो बढ़वार चाहते हैं। लगना देवता नहीं हैं। कोई भी खाय सब पूछें, न भी पूजें किसी को परेशान नहीं करते। वे तो वंशवेल बढ़ाते हैं –
उलियन में मचल रये रे, रक्स बाबा तिहारे ललना।
तातीं जलेबी दूहा के लडुआ, जैव न जेवन देवें, तिहारे ललना।
झनझन झाड़ी जल भर ल्याये, पीर्थे न पीवन देवें, तिहारे ललना।
नौ रंग पलका बिछे रंग पाये, सोधें न सोबन देवें, तिहारे ललना।
सोरा सुपेती लाल रजइयाँ,
ओढ़े न ओढ़न देखेँ, तिहारे ललना ।
रायसेन फूलन के पंखा, फूलन के पंखा, ढोरेंन ढोरन देवें, तिहारै ललना।
उलियन में मचल रये रे, तिहारे ललना ।। रक्कस बाबा तिहारे ललना ।।
उलियन = ओली या गोदी।
कहीं-कहीं लड़की के पाँच रक्कस लगते हैं, किंतु लड़की के रक्कस देने का प्रचलन कम स्थानों पर है। सब जगह लड़के के ही सात रक्कस लगते हैं। सवा पाँच सेर की पूड़ियाँ और लप्सी बनती है। छोटा बच्चा नया कपड़ा नहीं पहिन सकता। जब बच्चा रोता है- खींझता है तो रक्कस बाबा को याद किया जाता है। उनका नाम लेकर कपड़े को धरती पर फेरा जाता है, और बच्चे को पहनाया जाता है। सात कलेऊ देने का रिवाज है। ये रीति-रिवाज ग्राम्य संस्कृति के प्रतीक हैं।
ये संस्कार सिखाते हैं जीवन के विविध पक्षों की मान्यताओं को। शादी के बाद लड़का स्वतंत्र हो जाता है, अपने जीवन को अपने तरीके से जीने के लिए। ग्राम्य संस्कारों के अपने अर्थ हैं। लड़के के विवाह के बाद बहू विदा होकर आती है तो बहू के मायके के ‘मेंड़े ‘ पर भी रक्कस बाबा की पूजा लगती है। मेंड़े पर नारियल और बताशा चढ़ाये जाते हैं। रक्कस बाबा को मना लिया जाता है। लड़की के साथ कोई देवता लगकर न आयें, इसलिये सभी लोक देवताओं का स्मरण किया जाता है।
गुह लइयो राग रघुवर वीर हमकों गेंद गजरा।
जौ गजरा रक्कस बाबा कों सोहै, उनके निर्मल सरी, हमको गेंद गजरा ।
जौ गजरा धरती माता कों सोहै, उनई कौ भारी सरीर, हमको गेंद गजरा ।
जौ गजरा माता रानी कों सोहै, उलई के निर्मल सरीर, हमकों गेंद गजरा।
जौ गजरा हरदौल लाला कों सोहै, उनई के परते सरीर, हमकों गेंद गजरा ।।
फूलों के गजरों से देवाताओं को प्रसन्न किया जाता है। ये ग्राम्य संस्कार, लोक रीति-रिवाज, विश्वास और आस्था को मजबूती प्रदान करते हैं। वंशवेल बढ़ाने वाले रक्कस बाबा, रक्षक देवता भूमि देव हैं। बुंदेलखंड के घर-घर में पूजे जाने वाले लोक देवता, लोक-संस्कृति के आधार ग्राम्य संस्कारों के स्वरूप जन-जन की आस्था और विश्वास परम्पराओं और मान्यताओं की विशिष्ट पहचान रक्कस बाबा ।
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