Homeबुन्देलखण्ड के लोक विश्वासPrakriti Sambandhi Lok Vishwas प्रकृति सम्बन्धी लोक-विश्वास

Prakriti Sambandhi Lok Vishwas प्रकृति सम्बन्धी लोक-विश्वास

प्रकृति संबंधी लोक विश्वास Prakriti Sambandhi Lok Vishwas भारतीय लोकसंस्कृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, और ये विश्वास स्थानीय मान्यताओं, परंपराओं और प्रकृति से जुड़े गहरे संबंधों को प्रकट करते हैं। हर क्षेत्र और समुदाय में प्रकृति के विभिन्न रूपों की पूजा और सम्मान किया जाता है।

यह लोक-विश्वास वर्तमान में पर्यावरण संरक्षण को सम्बल प्रदान करता है। इसी प्रकार चिड़िया, मछली व चींटी को चुगाने का लोक-विश्वास भी धरती, आकाश और जल में रहने वाले प्राणियों पर दया, प्रेम व आश्रय देने का भाव उत्पन्न करता है। इनमे लोक-कल्याण का भाव निहित हैं। बुन्देलखण्ड के कुछ प्रमुख लोक विश्वास दिए गए हैं जो प्रकृति से संबंधित हैं।

1- वृक्ष पूजा
कई भारतीय समुदायों में वृक्षों को पवित्र माना जाता है। पीपल, वट (बरगद), और नीम जैसे वृक्षों को विशेष रूप से पूजनीय माना जाता है। यह विश्वास किया जाता है कि इन वृक्षों में देवताओं का वास होता है और उन्हें हानि पहुँचाना अपशकुन माना जाता है। पीपल का वृक्ष विशेष रूप से भगवान विष्णु और भगवान शिव से जुड़ा हुआ है।

2- नदी और जल स्रोतों की पूजा
भारत में गंगा, यमुना, नर्मदा, और अन्य नदियों को देवी के रूप में माना जाता है और उनकी पूजा की जाती है। गंगा नदी को मोक्ष प्रदान करने वाली माना जाता है, और गंगा जल को पवित्र माना जाता है। इसके अलावा, तालाब, झरने और कुओं को भी स्थानीय देवताओं या जल देवताओं का निवास स्थल माना जाता है।

3- पर्वत और पहाड़ों की पूजा
कई भारतीय समुदायों में पहाड़ों और पर्वतों को देवताओं का निवास स्थान माना जाता है। हिमालय को भगवान शिव का निवास स्थान माना जाता है। इसके अतिरिक्त, अरावली, विंध्याचल, और नीलगिरी पर्वतमालाओं के प्रति भी श्रद्धा व्यक्त की जाती है।

4- सूर्य और चंद्रमा की पूजा
सूर्य और चंद्रमा को प्रमुख देवता माना जाता है। सूर्य को जीवनदायिनी शक्ति माना जाता है, और सूर्य देव की पूजा करने से आरोग्य, समृद्धि और शक्ति प्राप्त होती है। चंद्रमा की पूजा विशेष रूप से करवा चौथ और अन्य व्रतों में की जाती है, जहां उसे शांति और संतुलन का प्रतीक माना जाता है।

5- पशु और पक्षी संबंधी विश्वास
कुछ समुदायों में गाय, हाथी, नाग, मोर, और अन्य पशु-पक्षियों को पवित्र माना जाता है। नाग पंचमी के अवसर पर नाग देवता की पूजा की जाती है। इसी प्रकार, मोर को भगवान कार्तिकेय का वाहन माना जाता है, और हनुमानजी से जुड़े बंदर को पवित्र माना जाता है।

6- ऋतु और मौसम से संबंधित विश्वास
प्रकृति के विभिन्न ऋतु चक्रों से जुड़े अनुष्ठान और त्योहार भी महत्वपूर्ण होते हैं। जैसे कि मानसून के समय किसान इंद्र देवता की पूजा करते हैं ताकि अच्छी वर्षा हो। वसंत पंचमी और मकर संक्रांति जैसे पर्व ऋतु परिवर्तन से संबंधित होते हैं, जहां नए सीजन का स्वागत किया जाता है।

7- धरा देवी और धरती माँ
भारतीय संस्कृति में धरती को माता माना गया है। खेती-बाड़ी करने वाले समाजों में धरती माँ की पूजा करने का रिवाज होता है, जिसमें बीज बोने से पहले और फसल काटने के बाद धरती के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की जाती है।

ये सभी लोक विश्वास यह दर्शाते हैं कि भारतीय संस्कृति में प्रकृति और मानव का रिश्ता कितना गहरा और पवित्र है। इन विश्वासों के माध्यम से लोग प्रकृति के प्रति अपनी जिम्मेदारी और उसकी रक्षा की भावना को व्यक्त करते हैं।

 वृक्षों में जीवन है। तुलसी, पीपल, आंवला, वट-वृक्ष, केला आदि की पूजा से इच्छापूर्ति होती है तथा दीर्घायु जीवन प्राप्त होता है। वैज्ञानिक एवं आयुर्वेदिक दृष्टि से यह सभी वृक्ष गुणकारी हैं। फलदार वृक्ष को सींचना पुण्य है, इस लोक-विश्वास भावना में हमारा लाभ भी निहित है। यदि फलदार पौधे की निरन्तर देख-रेख तथा सिंचाई की जाये तो परिपक्वता की स्थिति आने पर हमें स्वास्थ्यवर्धक फल प्राप्त होगें।  

गाय को मोक्ष दायिनी मानकर माता के रूप में पूजना एक प्रचलित लोक-विश्वास है| चूंकि गाय का दूध पौष्टिक और सुपाच्य है। उसका पुत्र बैल कृषि-सम्बन्धी कार्यों में सहायक है। गाय का गोबर शुभ कीटनाशक व आयुर्वेदिक गुणों से युक्त होने के कारण कार्यों में प्रयुक्त होता है। गौ-मूत्र सेवन दीर्घायु प्रदान करता है। जिस पशु में इतने गुण एक साथ होंगें, वह समाज में निश्चित ही पूजनीय होगा।

पितृ-पक्ष में कोंओं को पितृ स्वरूप मानकर भोजन कराना। इसी पक्ष में परासन (जालौन) में पितृ मेले के अवसर पर मछलियों को पितृ-तुल्य मानकर चुगाना और उन्हें नथ पहनाना अपने स्वर्गीय स्वजनों को मृत्यु के पश्चात्‌ भी स्मरण रख, प्रतिवर्ष प्रकृति के माध्यम से उन्हें स्मरण रखना। यह परम्परायें ही बुन्देली लोक-संस्कृति को आदरणीय बनाती हैं। 

चंदेल कालीन वेशभूषा 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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