बुन्देलखंड की Parsa Lok Gatha मे जादू-टोने का अजीब ताना-बाना बुना गया है। परसा की गोपीचन्दा को ब्याहने की इच्छा थी। गोपीचन्दा ने तालाब में जादू की तुमरिया छोड़कर चुनौती दी कि तुमरिया ले आने पर विवाह होगा। परसा तालाब में कूदकर फँस गया। परसा ने थककर देवी का स्मरण किया। देवी ने धर्मा को बताया और धर्मा जादू की थैली से परसा को निकालने में सफल हुई लेकिन परसा की प्रतिज्ञा थी कि बिना ब्याहे नहीं जाएगा। गोपीचन्दा ने फिर जादू से परसा को मेढ़ा बना दिया।
बुन्देलखंड की परसा लोक-गाथा
Bundelkhand ki Parsa Lok-Gatha
लोक-गाथा परसा का स्वरूप
बुन्देलखंड की चरागाही गाथाओं में गहनई का स्वरूप कुछ परिष्कृत होने के कारण अलग-थलग सा लगता है, क्योंकि उसकी वियोगपरक प्रवत्ति अन्य गाथाओं की भावपरकता से कुछ उपर उठी हुई है। परसा गाथा धर्मासाँवरी का ही एक अंग है, उसे लोकगायकों और संकलनकर्ताओं ने अलग नामकरण कर दिया है, क्योंकि उसकी घटनाओं का नायक परसा है।
परसा का प्रस्तुत पाठ सागरी गायकी का है, लेकिन इसकी लोकधुन धर्मासाँवरी की धुन से अलग है। यद्यपि इस पाठ की संरचना का आधार गाहा के परिवर्तित स्वर ही है, पर वे आल्हा गाथा के लोकछन्द से मिलते-जुलते हैं।
इससे यह सिद्ध होता है कि परसा के इस पाठ की वस्तु तो धर्मसाँवरी गाथा की कथावस्तु जैसी ही है, लेकिन धर्मासाँवरी के स्वर-सन्निवेश को थोड़ा-सा परिवर्तित कर यदि इस पाठ की रचना की गई है तो इस पाठ की लोकधुन आल्हा गाथा की प्रेरक लगती है। इस तरह एक महत्त्वर्पूण समस्या का समाधान भी हो जाता है।
परसा- हाँत जोर कें रिछवा बोलें, माता सुनो हमारी बात।
अग्याँ है देव देस बंगाले, मइया चलो हमारे साथ।।
बोली सारदा रिछवा सें सुन (भइया) मोरें रिछारिया माल।
अग्गम जइयो पिच्छम जइयो, और जाइयो (पुन) गुजरात।।
बंगाले बेटा नै जइयो, (इत्ती) मानो कही हमार।
धर्मसाँवरी- परसू सुन लेव धरम की बात, बोलो गंगाराम सुअना रे।
अब तो हो गये बारा साल, ना रै गयीं बातें पैलाँ की रे।
आल्हा- पत राखौ मल्हना माता की, और राखियो धरम हमार।
पत गयैं फिर पानी ढर जैहै, बिन पानी जीवन धिरकार।।
परसा और आल्हा के लोकछन्द के पंक्तियों की तुलना करने पर परसा आल्हा से पूर्व की रचना ठहरती है, क्योंकि उसमें वह कसावट नहीं है, जो आल्हा की पंक्तियों में है। इसलिए उसकी रचना 12वीं शती के पूर्वार्द्ध अर्थात् 1100 ई. से 1150 ई. के अन्तराल में हुई थी।
परसा की कथा–वस्तु
परसा की कथा सुमरनी से प्रारम्भ होती है, जिसमें देवीभक्ति को महत्त्व मिला है। रिछारिया माल देवी से बंगाल जाने की आज्ञा माँगता है, परन्तु देवी जालम धोबिन और हेमा जैसी जादूगिरनी का नाम लेकर उसे मना कर देती हैं। बाद में अपनी माता सिंधन से बंगाल जाने की अनुमति देने की प्रार्थना करता है, लेकिन माता कहती है कि पहले धर्मा की विदा करवा ला और वंश चलाने के लिए पौंर में पलना डलवा दे, तब बंगाल जाना।
रिछारिया नकला दानो को पहरे में बैठाकर बंगाल चला जाता है। कलारी गाँव में नौकरी खोजता है और उसका सामना जालम धोबन से होता है, जो उसे जादू से बाँध लेती है। वह उसे दिन में सुआ और रात में मनुष्य बनाकर रखती है। सात माह काम लेकर उसे छोड़ देती है और वहाँ से रिछारिया बंगाल पहुँचता है।
नौकरी के लिए हेमा के पास पहुँचकर पड़ा चराता है और फिर लकड़ी लेने जंगल जाता है। 52 गाड़ियों के 52 नौकर उससे झगड़ा करते हैं, तो वह सभी को मार डालता है और अकेले 52 गाड़ी लकड़ी भरकर सभी गाड़ियों को खींच लाता है। हेमा उसकी शक्ति देखकर प्रेम से पान खिलाती है और उसे पड़ा बना देती है, जिसकी खबर देवी धर्मा को देती है।
धर्मा राजा नेमू की सुपुत्री थी। राजा का शत्रु सुल्तान को उसके सौन्दर्य की प्रशंसा कर उसके डोला उठाने की सलाह देता है। सुल्तान का आक्रमण होता है और चार-पाँच स्थानों में छोटी लड़ाइयों को जीत सुल्तान महलों में पहुँच जाता है, जहाँ देवी उसे धीरज बँधा रही थीं। धर्मा छह माह के बाद तुरकनी बनना स्वीकारती है और सुल्तान उसकी शर्त मान लेता है।
ज्योंही डोला जलेसुर पहुँचता है, धर्मा ननद से मिलती है और सात वर्ष का परसा देवी की मढ़िया से सांग लेकर देवी की सहायता से फौज को पराजित कर देता है। फलस्वरूप धर्मा का डोला फिर निमनापुर पहुँच जाता है। सुल्तान अकबर की बेटी और धर्मासाँवरी में विवाद होने पर अकबर की बेटी ने करिया बगुलिया को सब हाल लिखकर डोला लेने बुलवाया। निमनापुर पर संकट जानकर धर्मा ने देवी से मदद माँगी और देवी ने शारदा को रिछारिया की खोज में बंगाल भेजा।
शारदा रिछारिया माल और हेमा को निमनापुर की खबर देकर सचेत कर आईं, जबकि देवी ने परसा को सारा हाल सुना दिया। परसा ने शेषनाग की पूजा कर सुख-दुख की मुरली और महूँना वरदान के रूप में प्राप्त किए और वह लोहांगी, मिहूँना, मुरली, मलनियाँ साँड़ और 989 गायें लेकर निमनापुर पहुँचा। रिछारिया माल भी निमनापुर पहुँचे तथा धर्मासाँवरी से मिलन हुआ।
परसा द्वारा करिया बगुरिया से युद्ध की तैयारी थी। रिछारिया और करिया में युद्ध हुआ। करिया बगुरिया पराजित होकर लौट गया। धर्मासाँवरी की विदा करवाकर रिछरिया गोबरगाँव से बंगाल को प्रस्थान कर गए। हेमा से हरीसिंग का जन्म हुआ। परसा का सागरताल को जाकर गोपीचन्दा से भेंट हुई। धन्धे का लोभ देकर महल ले गया और जादू से वश में कर लिया। धर्मा ने उसे मुक्त करवाया। लेकिन परसा की गोपीचन्दा को ब्याहने की बलवती इच्छा थी।
गोपीचन्दा ने तालाब में जादू की तुमरिया छोड़कर चुनौती दी कि तुमरिया ले आने पर विवाह होगा। परसा तालाब में कूदकर फँस गया। ताल में हजार तुमरियाँ उतराने लगीं। परसा ने थककर देवी का स्मरण किया। देवी ने धर्मा को बताया और धर्मा जादू की थैली से परसा को निकालने में सफल हुई।
परसा की प्रतिज्ञा थी कि बिना ब्याहे नहीं जाएगा। गोपीचन्दा ने जादू से परसा को मेढ़ा बना दिया। हेमा को खबर भेजी गई और जादू का युद्ध हुआ। बेटी परास्त हुई तो पिता गोरा लमना द्वारा युद्ध हुआ। परास्त होने पर गोपीचन्दा और परसा का विवाह हुआ। कुलदेवी की पूजा हेतु जलेसुर गए।
बीना बंडान में महाभारत छिड़ा। दानसा से युद्ध करने हेमा काठ की घोड़ी पर चढ़कर दौड़ी। दानसा की सांग से उसकी मत्यु के बाद धर्मा और गोपीचन्दा ने युद्ध किया, जिसमें गोपीचन्दा मूर्छित हो गई, लेकिन धर्मा ने उसे घायल कर दिया था। फिर राजा बेन का युद्ध छिड़ा, जिसमें रिछरिया और परसा ने फौजों को विनाश किया।
धानक ने युद्ध किया, लेकिन गोपीचन्दा ने उसका शीश उतार लिया। धानक की पत्नी धनकन का युद्ध हुआ, जिसमें वह सांग से घायल होकर वीरगति को प्राप्त हुई। देवियों ने युद्ध का तांडव देखा और सबको पत्थर कर दिया तथा वे उत्तराखंड चली गईं।
इस कथा में विवाह के दो रूप हैं एक तो आक्रमण करने के बाद डोला ले जाने का एक तरह से नारी का अपहरण है तो दूसरा युद्ध के बाद विवाह करने का, जो पहले लोक-प्रचलित था। गोपीचन्दा का पिता गोरा लमना तो यहाँ तक कहता है। ‘बिना लड़ाई हम नै मानें, कैसें ब्याव देव करवाय।।’
तात्पर्य यह है कि विवाह युद्धपरक राजनीति का एक भाग था, जिसे आदिकालीन कविता में प्रधान स्थान मिला। सभी चरागाही गाथाओं में विवाह एक खास मुद्दा रहा है। दूसरा मुख्य तत्त्व जादू है, जो जादूगरनी महिलाओं के कारण पूरी कथा में सक्रिय भूमिका अदा करता है। गाथा के सभी स्त्राी चरित्रा जादू करने में कुशल हैं। धर्मासाँवरी, गोपीचन्दा, जालम धोबिन, हेमा आदि सभी जादू विद्या की थैली रखती हैं या जादुई चमत्कार करने में अग्रणी हैं।
रिछरिया माल और परसा जैसे कथानायक वीर हैं, लेकिन उनकी वीरता जादू के सामने पानी भरती है। रिछरिया माल अकेले घिनौची भर देता है और बावन गाड़ियों में लकड़ी भरकर अकेले ले आता है, लेकिन जालम धोबिन और हेमा का जादू उसे पूरी तरह वश में कर लेता है। उस समय वीरनायक के लिए रूप का जादू और तन्त्र-मन्त्र का जादू दोनों सम्मोहन के केन्द्र बिन्दु थी।
तीसरा तत्त्व था वीरता, जो असाधारण और चुनौती वाले कार्यों में व्यक्त होती थी। उसके प्रेरक या तो किसी सुन्दरी के प्रति आकर्षण था, या बदला लेना अथवा रक्षा करने की भावना। रिछरिया माल का बंगाल जाना रूप-सौन्दर्य के प्रति मोह ही है और परसा का सात वर्ष की उम्र में एक सुल्तान की फौज से संघर्ष नारी की रक्षा के प्रति सचेतनता। प्रथम तीन चरागाही गाथाओं में किसी सुल्तान द्वारा डोला उठाने की घटना नहीं है, इस आधार पर यह गाथा 14वीं शती की ठहरती है, लेकिन इस घटना का प्रसंग बाद में जोड़ा गया है।
मुस्लिम सत्ता का दबाव गाथाओं में दिखाई देने लगता है। इस गाथा में अकबर शाह सम्राट अकबर नहीं है, वरन् एक काल्पनिक सुल्तान का प्रतीक है, जो नारी के अपहरण का इतिहास रचने में माध्यम बन चुका है। लोक के इतिहास में किसी विशिष्ट व्यक्ति की चिन्ता का प्रश्न नहीं है, नारी का अपहरण उसके इतिहास की प्रमुख घटना है, भले ही वह नारी धर्मासाँवरी हो या अन्य और अपहरणकर्ता सुल्तान अकबर शाह या अन्य। विवाह-संस्कार में अंगरिया चीर, पाटन की चोली, खेड़े के लोकदेवों की पूजा, एक हजार गायों का दहेज, कुलदेवी की पूजा, कंकन छूटने का नेंग, बकरे की बलि आदि तत्कालीन संस्कृति के द्योतक हैं।
संदर्भ-
बुंदेलखंड दर्शन- मोतीलाल त्रिपाठी ‘अशांत’
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेलखंड की संस्कृति और साहित्य- रामचरण हरण ‘मित्र’
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास- नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली संस्कृति और साहित्य- नर्मदा प्रसाद गुप्त
मार्गदर्शन-
श्री गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’
डॉ सुरेश द्विवेदी ‘पराग’
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