Paropkari Nag परोपकारी नाग

एक जंगल में इच्छादारी नाग रहता था वह Paropkari Nag परोपकारी नाग था । वह चाहे जब अपनी इच्छा से कोई भी रूप बदल लेता था। एक बार उस जंगल में एक गरीब लकड़हारा तथा उसका बालक लकड़ी काटने आया। लकड़हारा लकड़ी काटने लगा और उसका बालक जंगल में इच्छादारी नाग के बिल के पास खेलने लगा। नाग ने जंगल में खेलते हुए उस बालक को देखा । वह सोचने लगा कि इस गरीब बालक की मदद की जाय । वह इच्छादारी नाग हीरे के रूप में बदल कर बालक के सामने जा कर गिर गया।

जब  बालक ने उस चमचमाते पत्थर को देखा तो उसने सोचा कि बापू पान खाता है  इसे बेचकर बापू की खूब सारी तम्बाकू, कत्था, चूना, सुपारी, लाऊंगा । उसने उस चमचमाते हए पत्थर को उठा कर रख लिया। बालक जाकर एक बनिये की दुकान पर उस चमचमाते पत्थर को लेकर पहुंचा और उसे दिखाकर बोला क्या तुम इस पत्थर के बदले में बापू के लिए तम्बाकू, कत्था, चूना, सुपारी दोगे ? बनिय ने उस पत्थर को देखा वह समझ गया कि यह तो बहुत कीमती हीरा है। बालक सब कछ खुशी-खुशी लेकर अपने घर को चला गया।

इधर वह बनिया हीरे को लेकर राजा त्रिलोक सिंह के पास पहुचा राजा ने उस हीरे को देखा तो देखता ही रह गया उसने आज तक ऐसा हीरा कभी नहीं देखा था और उसने हीरे के बदले में उस बनिये को दो हजार रुपये दिये। बनियाँ खुशी खशी रुपये लेकर चला आया। राजा की मित्रता जयपुर के जोहरी संपतलाल से थी इसलिए वह हीरा की परख जानता था।

राजा ने वह हीरा अपनी रानी को दे दिया रानी हमेशा उदास रहती थी उसके कोई सन्तान न थी हीरेकोदेख कर वह कुछ देर के लिए खुश हो गयी। उसने हीरा अपने शयन कक्ष में रख दिया हीरे के रुप में बैठे परोपकारी नाग से रानी की उदासी देखी नहीं गई। रानी जब शयन कक्ष के बाहर गई तभी वह परोपकरी नाग हीरे से सुन्दर बालक के रुप में परिवर्तित हो गया।

रानी ने बच्चे के रोने की आवाज सुनी तो वह दौड़कर शयनकक्ष में आई उसने वहाँ एक सुन्दर बालक को देखा, देखते ही उसे गोद में ले लिया। राजा-रानी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं रहा उस हीरे के बारे में सभी भूल गये राजा-रानी उस बालक के लालन मे लग गये। परोपकारी नाग बालक के रूप मे रानी की  गोद मे खेलने लगा उसका नाम प्रेमसिंह रखा  गया। धीरे-धीरे वह बीस  वर्ष का  हो गया।

तभी भरतपुर नरेश मानसिंह का उसकी अठारह वषीय राजकुमारी के साथ मे आगमन हुआ। राजा ने अपने राजकुमार का भरतपुर नरेश की राजकुमारी के साथ रिश्ता तय कर दिया। लेकिन विवाह की तिथि आने के पूर्व ही राजकुमार के पिता राजा त्रिलोक सिंह दुनियाँ से चल बसे । राज्य का कार्यभार दीवान के हाथों मे आ गया। उसने अपनी कपटनीति से राजकुमार को मारना चाहा,रानी को उसके विश्वासघाती दुराचरण की जानकारी मिली तो वह राजकुमार प्रेम सिंह को लेकर जयपुर में संपतलाल जौहरी  के यहाँ जा बसी । जौहरी ने रानी को अपनी बहिन जैसा समझा और स्नेह दिया।

इधर भरतपुर नरेश मानसिंह को जब पता चला कि राज कुमार राज्य छोड़कर चले गये तो उन्होने अपनी राजकुमारी रूपमती को राजकुमार से होने वाला विवाह संबंध तोड़ दिया। सम्बंध तोड़ने का समाचार राजकुमारी रुपमती को ज्ञात हुआ और उसे पता लगा कि राजकुमार प्रेमसिंह अपना राज्य छोड़कर जयपुर में एक जोहरी के यहाँ रह रहे हैं । उसने मन ही मन राजकुमार को अपना पति मान लिया था। यह संबंध टूटा तो उसे बहुत दुख हुआ।

उधर राजकुमार प्रेमसिंह भी बहुत दुखी था। राजकुमारी रुपमती अपनी बुद्धि कौशल का परिचय देती हुई जयपुर जाकर राजकुमार प्रेमसिंह से मिली। दोनों ने मिलकर गुप्त रूप से अपने राज्य की यात्रा की और मौका पाकर उस कपटी दीवान को मार डाला इसके बाद उन दोनों ने विवाह कर अपने राज्य को सम्भाला।

इच्छादारी नाग ने हमेशा दूसरों की सेवा करके समाज में उच्च स्थान प्राप्त किया। राजकुमार के रुप में वह राजकुमारी के साथ सुख से समय बिताता रहा।

लेखक- डॉ. राज गोस्वामी 

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