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Panda Pahalwan पण्डा पहलवान-बुन्देली लोक कथा

गंगा किनारे एक गाँओं हतो किसनपुर। जा गाँओं के लोग राधाकिसनजी के भोत भक्त थे। बिनने गाँओं में राधाकिसन को मन्दिर बनबाओ । मन्दिर बन गओ तो पूजा के लाने पुजारी की जरूरत पड़ी। संजोग से एक गरीब बाम्हन को मोड़ा, जो कासी से पढ़के निकरो तो, गाँओं पोंहचो । गाँओं बारों ने बाय  मन्दिर को पुजारी बना दओ।

बो रोज पूजा करे, गाँओं से हर रोज एक से एक भोग भगबान के लाने आएँ । पुजारी बढ़िया ठाकुर जी हे भोग लगाए। भगबान तो भाओ के भूँके हैं, बे तो खात नई। सब कछु पुजारीजी ही खाएँ । बढ़िया दूध-दही, खीर-पूड़ी, हलुआ, मालपुआ और न जाने का का ?

पुजारीजी जब झाँ आए थे तो दुबरे – पतरे हते , अब बे खा-खाके मुटा गए । एक बार गाँओं के मुखिया ने पुजारीजी खों  देखके कई, “अब हमरे पुजारी जी बड़े हट्टे-कट्टे दिख रए हैं, पण्डा पहलबान के घाँई। जब से पुजारी जी की गाँओं भर में पण्डा पहलबान छाप पड़ गई ।

एक बार नागपंचमी के दिना दूसरे गाँओं को एक पहलबान अपनी धोंस जमाने किसनपुर आओ । बा समय गाँओं बारों की चोपाल पे बेठक लगी थी। जा पहलबान ने आओ देखो न ताओ चोपाल पे जाके मुट्ठे ठोकन लगो ओर कहन लगो, “जा गाँओं में कोई बीर हो तो आके मोसे कुस्ती लड़े।” जा सुनके सब लोग सकपका गए, जो काँ को खूँतो आ गओ । का करें का नई करें लोग सोचन लगे ।

इत्ते में फिर बाने चिल्लाके कई, कोई बीर हो तो मोसे कुस्ती लड़े, नई तो गाँओं भर के लोग एक-एक करके मेरी दोई टाँगों के बीच में से निकरें।” अब गाँव  भर के सामने जा बड़ी बेज्जती की बात भई  । जा पहलबान को डीलडोल देखके गाँओं के कोई भी आदमी की हिम्मत लड़बे  की नई भई ।

इते में मुखिया ने गाँओं बारों से कई, अब तो पण्डा पहलबानई हमें जा मुसीबत से बचा सकत हैं। सब लोगों खों  जा बात जम गई। मुखिया ने जा खतरनाक पहलबान से कई, तुम झई रओ हम तुमाये  जोड़ के लाने जा रए हैं, अभई लात हैं पहलबान है। पहलबान ने कई, “देर मत करिओ जल्दी अइओ, नई तो गाँओं में तोड़-फोड़ सुरू कर देहूँ ।”

मुखिया और गाँओं बारे चल दए मन्दिर । पण्डा पहलबान पूजा करके चबूतरा पे आराम कर रह थे। बिनने सबरे गाँओं बारों हे आत देखे, तो समझे कछु को न्योतो देबे आ रए हुएँ। बे भोत खुस भए । सोचन लगे अच्छे-अच्छे पकबान खाबे मिलहें ! मुखिया ने आके पण्डा पहलबान से पालागी करी । पण्डा पहलबान ने पूछी, “का बात है काउ  के झाँ ब्याओ है , मिजबान आ रए हैं, बताओ तो का बात हे ?”

मुखिया ने कई, “गुरूजी बड़ी आफत आ गई हे, अदि गाँओं की इज्जत बच गई तो सब कुसल मंगल रह है। दूसरे गाँओं को एक खतरनाक पहलबान आओ है। बाने भरी चोपाल में ललकारो हे, कोई मेरे से कुस्ती लड़ ले, नईतो सबकी इज्जत धूरा में मिला देहूँ। पण्डा पहलबान ने कई, “बामे में का करूँ ?” मुखिया ने कई, “गुरूजी हम तुमाये  हाथ जोड़ रए हैं तुम जाके बासे कुस्ती लड़ो।” पण्डा पहलबान घबरा गओ ! बाने कई, “जा तुमाये  मन्दिर के हाथ जोड़े, में तो अपने  गाँओं चलो।

गाँओं के बड़े-बूढ़ों ने कई, “पण्डा पहलबान तुम्हें चोपाल तक तो चलनो पड़हे।” मुखिया ने कई, “गुरूजी भलेई बा पहलबान से हाथ मिलाके भग लाईयो । काय से जो गाँओं की इज्जत को सबाल हे।” पण्डा पहलबान तैयार हो गओ ।

गबारों के संग बे चोपाल पोंहचे। उते  पहलबान की मालिस हो रई थी, कारो-कलूटो पहाड़ के घाँई काया । पण्डा पहलबान की तो देखके चुटिया कंप गई। मुखिया ने दूसरे पहलबान से जाके कई, “हमरे गाँओं के पहलबान ने तो तोहे लड़बे लाक नई समझो। बिनने अपने चेला पण्डा पहलबान हे लड़बे भेजो है ।

जो भोतईआज्ञा कारी हैं जो काम अपने गुरूजी से करने की बोल देत हैं , करकेई मानत । सबरे गाँओं बारे मिलके पण्डा पहलबान की मालिस करन लगे। गुदगुदी लगे तो पण्डा पहलबान भगबे के काजे जोर लगाए, जासे कोई गाँओं बारो इते पड़े कोई उते पड़े। जा देख के दूसरो पहलबान सोच में पड़ गओ कि जो तो बड़ो बलबान है।

कुस्ती सुरू भई तो पण्डा पहलबान ने कई, “मुखिया में तो बोई काम करहूँ।” मुखिया ने कई, “नई नई गुरूजी में तुमरे हाथ जोड़ रओ हूँ बो काम मत करियो ।” पण्डा पहलबान ने कई, मैं ठाकुर जी की सों खाके आओ हूँ, करहूँ तो बोई काम करहूँ।

दूसरे पहलबान ने मुखिया हे बुलाके पूछी, “जो पण्डा पहलबान कुस्ती लड़बे आगे नई आरओ, बस कई रट लगा रओ हे में बोई काम करहूँ ?” मुखिया ने पहलबान खों एक कोनें  में ले जाके बाके कान में कई, “जो भोतई खतरनाक बाम्हन है, परसराम के कुल को । जाने अपने गुरूजी से कहके आओ हे आज में कुस्ती लड़बे के पेलेई पहलबान की टाँग पे टाँग धरके चीर देहूँ ।

दूसरो पहलबान जा बात सुनके डर गओ ओर बाने चोपाल छोड़के गदबद लगा दई । सबरे गाँओं बारे पण्डा पहलबान की जय-जयकार करन लगे । मुखिया की हुसियारी से गाँओं की इज्जत बच गई।

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

संदर्भ
मिजबान बुंदेलखंडी लोक कथाओं का संकलन
पुनर्लेखन-  संपादन प्रदीप चौबे महेश बसेड़िया
एकलव्य प्रकाशन भोपाल

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