रागबद्ध पदों में होरी या फाग-गीत भी रचे गए और उनका अनुसरण लोककवियों ने भी किया, जिसके फलस्वरूप 16 वीं शती में पदशैली की फाग का आविर्भाव हुआ। इस फागरूप को चाहे जितना लोक-सहज बनाया गया हो, पर उस पर शास्त्रीय संगीत और गायनशैली की छाप अवश्य रही होगी।इस लिए इस फाग को Padshaili Ki Fag कहा गया है
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संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल