कवि Naval Kishor Soni ‘Mayus’ का जन्म छतरपुर में श्री ठाकुर दास सोनी ‘करइया’ के यहाँ उनकी धर्मपत्नी श्रीमती मुन्नी देवी की कोख से 5 जुलाई सन् 1941 को हुआ।
बुन्देली, हिन्दी तथा उर्दू के ज्ञाता श्री नवल किशोर सोनी ‘मायूस’
श्री नवल किशोर सोनी ‘मायूस’ की प्राथमिक, माध्यमिक तथा हाई स्कूल तक की शिक्षा छतरपुर के स्कूलों में ही हुई। हाई स्कूल उत्तीर्ण करने के बाद इनका विवाह चिरगाँव निवासी जानकीदेवी के साथ 1958 में हुआ। इन्हें पंचायत विभाग में सचिव पंचायत के रूप में 1959 में शासकीय सेवा करने का आदेश मिला और उन्होंने अनेक पंचायतों में इस पद पर कार्य किया। 31 जुलाई 2001 को उप अंकेक्षक के पद से सेवा निवृत्त हुए।
श्री नवल किशोर सोनी ‘मायूस’ को कविता लिखने का शौक बचपन से ही रहा किन्तु विधिवत लेखन 1975 से प्रारंभ किया। इन्होंने बुन्देली, हिन्दी तथा उर्दू तीनों भाषाओं में रचनायें लिखीं हैं। विभिन्न शहरों के मंचों पर काव्य पाठ के साथ आकाशवाणी से निरन्तर इनकी कविताएँ प्रसारित होती रहती हैं। अनेक समाचार पत्र व पत्रिकायें में रचनायें प्रकाशित हुई हैं। इन्हें कालपी, पन्ना, बिजावर तथा छतरपुर की साहित्यिक संस्थाओं ने रचनाधर्मिता हेतु सम्मानित किया है।
श्री नवल किशोर सोनी ‘मायूस’ की चार पुस्तकें प्रकाशित हैं – 1 – रैबे इतै देवता तरसें, 2 – एहसास की गहराइयाँ, 3 – चौकड़िया शतक, 4 – बहत्तर के सामने। इनकी अनेक रचनाओं को लोक तक पहुँचाने में बुन्देली गायक श्री देशराज पटैरिया ने भी योगदान दिया है।
चौकड़ियाँ
सब एक रहें सब नेक रहें, सबरे दुर्भाव मिटें जरसें।
निज भारत देश अखण्ड रहै, निज प्रेम के रंग इतै बरसें।
करनैं है विकास अबै इतनो, बन जाँय बड़े दुनिया भरसें।
अज्ञान मिटै कछु लोगन को, कर जोर करें बिनती हरसें।
हम सब एकता के सूत्र में नेक विचारों से परिपूरित हो समस्त दुर्भावनाओं को जड़ से समाप्त करते हुए बँधे रहें। हमारा भारत देश की अखण्डता बनी रहे। प्रेम का वातावरण बनाने हेतु प्रेम वर्षा यहाँ हो। अब हमें इतना विकास करना है कि विश्व में सर्वश्रेष्ठ बन जायें। मैं प्रसन्नतापूर्वक हाथ जोड़कर विनय करता हूँ कि जो कुछ लोग यहाँ अज्ञानी हैं, उनका अज्ञान समाप्त हो जाये।
जब चौंच मिली चुन सोउ मिलै, इतने न अबै उकताब पिया।
सबरी विपदा कट जैय इतै, कइ मान लो अन्त न जाव पिया।
तुम काम करौ तौ कछू मन सें, सबरे सुख एइ सें पाव पिया।
सबके हित के भए काज शुरू, परमेसुर के गुन गाव पिया।।
विपत्ति से परेशान अपने पति को समझाती हुए उसकी प्रिया कहती है कि प्रिय, जब ईश्वर ने मुँह दिया है तो भोजन भी देगा, अभी इतने अधिक व्यग्र मत हो। सारी विपत्तियाँ यहीं समाप्त हो जायेंगी, मेरा कहना मानो, दूसरे स्थान पर मत जाइये। तुम जो भी काम करो, मन लगाकर करो तो सभी सुख प्राप्त होंगे। सभी लोगों के कल्याणार्थ यहाँ काम प्रारंभ हो गए हैं, अब ईश्वर के गुणों का गायन करो।
सब कोउ जो चाहत है जग में, अपने घर आय सजै पलना।
मचलै ठिनकै अँगना में लली, पलना में परो किलकै ललना।
सबरे सुख चैन मिलें इनखाँ, इनके सँग कोउ करै छलना।
जब दोइ हुयैं तौ मजे में पलैं, कउँ भौत भए तौ मिलैं कल ना।
संसार में सभी लोग चाहते हैं कि उनके घर में पलना सजे अर्थात् नवजात शिशु जन्मे। आँगन में बहू मचले तथा ठनगन करे तथा पालना में लेटा बच्चा किलकारी मारे। सारे सुख व शांति इसी में मिलेगी, इनके साथ कोई छल कपट न करे। जब दो ही बच्चे हों तो उनका लालन-पालन मजे से होता है और यदि अधिक हुए तो फिर चैन नहीं मिलता।
छिन में जरकैं सब राख हुयै, इतनो न गुमान करौ तन को।
इयै जातन में नँइ झेल लगै, विरथा अभिमान करौ धन को।
कछू नेकी बदी को न ध्यान करौ, अबलौ सब काम करो मन को।
अपनी अब चाव भलाइ कछू, तौ जिया न जराव गरीबन को।।
इस शरीर का इतना घमण्ड मत करो, यह कुछ ही क्षणों में जलकर राख हो जाएगा। इस धन का व्यर्थ अभिमान करते हो इसको समाप्त होने में देरी नहीं लगती। हमनें अच्छे-बुरे का ध्यान दिए बिना अभी तक मनमाने काम किए हैं। अब यदि तुम अपनी भलाई चाहते हो तो गरीबों के हृदयों को मत जलाइये।
पइसा बिन काम चलै न कछू, जब आन परै घर में अटका।
कउँ आज करो खरचा सबरो, हम काल बिदैंय फिरैं पटका।।
जिनकैं जुर जैय पुँजी अपनी, उनखाँ नइँ रैय कछू खटका।
मिल एकइ एक हजार हुयैं, और बूँदइ बूँद-भरै मटका।।
पैसों के बिना कोई काम नहीं चलता, जब भी घर में कोई काम रुकता है, तो पैसे से ही चलता है। यदि हमने अपव्यय करके सभी पैसा आज ही खर्च कर दिया तो कल फटेहाल जीवन जीना पड़ेगा। जिनके पास कुछ पूँजी जमा हो जाएगी, तो उन्हें कोई चिन्ता न रहेगी। एक-एक मिलकर एक हजार वैसे ही होते हैं जिस प्रकार बूँद-बूँद पानी से मटका भर जाता है।
शोध एवं आलेख -डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)