गौरीबाई
मिठउवा है ई कुआ कौ नीर,
छाँयरी पीपर कौ गंभीर,
मिटा ले तनिक घाम की पीर, ओ पानी पीले गैलारे,
तनिक बैठ के तुम सुस्ता लेव, जानै फिर जा रे।
क्वाँर कौ घामौ हे,
औ सूरज सामौ है।।
को ठाकुर तुम आए कितै सें, और तुम्हें काँ जानें,
मोखाँ ऐसौ लगत, होव तुम जैसें जानैं-मानैं,
पसीना बैठौ बिलमा लेव,
और दो-दो बातें कर लेव,
न आँगें पानी मिलै पसेव,
हौ प्यासे मजलन के मारे।
और हम का करिए सत्कार,
गाँव के मूरख अपढ़ गँवार,
गड़ई भर जल हाजिर,
करै तुम खाँ सादर।।
हम तौ हैं ग्वालन की बेटी, हार-पहारन रइए
गइयन-बछलन सें बाबू जी, मन की बातें कर लइए,
हमारे गुइयाँ छ्योल-सगौन
करै बातैं हम बे रएँ मौन,
दुक्ख मन कौ जानत है कौन, रहैं मन ऐसइँ समझा रे।
आज जानें का मन में आई, और तुमसें इतनी बतयाई।।
लाज सब टोरी है,
करी मुँहजोरी है।।
माँजी गड़ई निकारो गगरा जब बा पानी ल्याई,
मैंने पूछौ- ‘नाव तुम्हारौ’, बोली- ‘गौरीबाई’,
न देखे ऐसे निछल सनेह
जा मैंने जब सें धरी है देह,
उमड़ आए आँखन मैं मेह, तौ टेढ़ौ मुँह करकै टारे।
बोली ‘तुम-सौ लम्बौ ज्वान, हतो भइया मोरौ मलखान।
पुलिस नें माड़ारो;
दुखी घर कर डारो।।’
फिर मैं बोलो, ‘बिन्ना तौरौ ब्याव भओ कै नइयाँ?’
झुक गए नैन, तनिक मुसक्यानी, फिर भर दई तरइयाँ,
तुरत मैं बोलो-‘गौरीबाई,
आज सें मैं हौं तोरौ भाई’
नेह की नदिया-सी भर आई, खुसी सैं नैना कजरारे।
चूम लए मैंने ऊकैं पाँव, बताओ अपनौ नाँव औ गाँव,
और बा लिपट्याई,
फिर बोली हरखाई।।
‘मोरी उमर तुमैं लग जाबै, भाभी रहै सुहागन,
दूधन-पूतन फलौ, खेलबैं चन्दा-सूरज आँगन,
लौट आई मोरे घर दोज
मनाहौं मैं अब सावन रोज,
मोरी जनम-जनम की खोज, करो तुम पूरी भइया रे।
रहत तो औरन के मन भार, बिना सारे की है ससुरार।।
दुक्ख सब मिट गए हैं,
कैं भइया मिल गए हैं।।
बापू अबै न आए
ओरी बापू अबै न आए,
अबै लौ खैबे कछू न ल्याए,
सुनत दृग माता के भर आए,
बोली तनिक लाल गम खाव,
बेई करै का तीन दिना सें, परै न कछू उपाव,
बचन माता कए हैं।
अबइयाँ बे भए हैं।।
कोड़ी-काड़ परो है जाड़ौ, तन पै उन्ना नइयाँ,
अब तौ उनकी लाज-बचइया, तुम हौ राम गुसइयाँ,
ऊसइँ रातैं हतो बुखार
उनैं, फिर भारी परो तुसार,
मरे खाँ मारत है करतार,
भँजा रओ जनम-जनम के दाव।
तरा ऊमैंसें गए ते छोड़
कातते ल्याय सिंगारे तोड़,
तला के चोरी सें,
चाहे सैजोरी सें।।
भुंसारौ हो गओ, छुटक गई, गेरऊँ-गेर उरइयाँ,
जानें काए तुमाए बापू, आए अबै लौ नइयाँ,
बहन लागो आँखन सें नीर,
छूट रओ माँ-बेटा कौ धीर,
ओरी चली तला के तीर, उतइँ कछु पूँछौ पतौ लगाव।
माए बापू भर आ जायं, हम ना खैबे कभउँ मगायँ,
चलौ माता चलिए,
पतौ उनकौ करिए।।
गतिया बाँध दई पटका की, लरकै करो अँगारें,
चिपका लए हाँत छाती सें, खुद निग चली पछारें,
पूछन लागी नायँ और मायँ,
कछू आपस में लोग बतायँ,
तौ बड़कै पूछो मात अगायँ, ”भइया साँची बात बताव।
करत हौ तुम जा कीकी बात मोरौ जियरा बैठो जात,
बता दो साँसी-सी,
लगी है गाँसी-सी।
”आज तला के पार डुकरिया मर गओ एक बटोई,
परदेसी-सौ लगत संग मैं ऊके नइयाँ कोई,
सिँघारे लएँ तनिक-से संग,
ककुर गओ है जाड़े में अंग,
तन को पर गऔ नीलौ रंग” सुनतन लगो करेजें घाव।
जाकें चीन्हीं पति की लास, मानौ टूट परो आकास,
झमा-सौ आ गओ है,
अँधेरौ छा गओ है।।
कितै छोड़ गए बापू मोखाँ, तुम काँ जातों मइया
गेरउँ गेर हेर कै रोबै मनौ अबोध लबइया,
थर-थर काँपै और चिल्लाय,
हतो को जो ऊखाँ समझाय?
देख दुख धरती फाटी जाय,
देख दुख दुख कौ टूटौ चाव।
जौ लौ खुले मात कै नैन,
बाली लटपट धीरे बैन,
‘न बेटा घबराओ,
आओ एंगर आओ।।
बापू नें तौ मौखाँ छोड़ो, मैं तोय छोड़ चली हौं,
तोरे नाजुक हाथ लाड़ले, अब मैं सौपौं कीहौं?
माँ धरती, बापू आकास,
तुमारे, करौ उनइँ की आस,
जौ लौ बाबा ईसुरदास आ गये, बोले, ना घबराव।
उठा कै बालक बाले, ”मात, करौ ना चिन्ता कौनउँ, भाँत,
न दुख हूहै ईहौं,
कै जौ लौ मैं जी हाँ।।