Homeबुन्देली फाग साहित्यManbhavan Kavi मनभावन कवि-बुन्देली फाग साहित्यकार

Manbhavan Kavi मनभावन कवि-बुन्देली फाग साहित्यकार

बुंदेलखण्ड के प्रमुख फागकारों में से Manbhavan Kavi भी एक थे। ये लोक कवि ईसुरी के समान ही सुरीले कंठ के फाग गायक थे। मनभावन का जन्म सम्वत् 1929  एवं मृत्यु सम्वत् 1974  मानी जाती है। मनभावन ईसुरी के समकालीन लोककवियों की श्रेणी  में गिने  जाते हैं। मनभावन जी ने ईसुरी की भाति नायिकाओं का नख शिख चित्रण किया है तथा अन्य सभी विषयों से सम्बन्धित फागों की रचना भी मनभावन ने बुंदेली भाषा में की है।

महाभारत, कृष्ण चरित्र, रामपाल चरित्र, रामचरित्र तथा नीतिपरक फागें आपने पर्याप्त मात्रा में लिखी हैं। फड़बाजी में मनभावन जब अपनी शील वाणी में फाग गाया करते थे। तो विपक्षी दल झुककर रह जाता था। उदाहरण के लिए लंका दहन विषयक एक फाग उल्लेखनीय हैं-

सुन-सुन हनुमान की हूंके, रावण के मौं सूके ।
हनुमान लंका खां जल भयै, चरन राम के छूके ।
बहुतक जौथा लंकापुर के, मडियन हो दूके ।
लता तेल पूंछ में बाधें, चले पवन की लूके ।
मनभावन कार्य पार न पाहौ, तुमसे कहयक झूके।
मनभावन कार्य पार न पाहौ, तुमसे कहयक झूके।

मनभावन के रचना काल में फागों की फड़बाजी अपने चरमोत्कर्ष पर थी। इनके समकालीन सभी फागकारों द्वारा लिखित फड़बाजी की फागों का अध्ययन एवं विश्लेषण करने से ज्ञात होता है, कि आपकी फड़ प्रतिस्पर्धा अनेक फागकारों से होती रहती थी ।

मनभावन लोक कवि ईसुरी की भाषा शैली श्रंगार तथा नायिकाओं के नख शिख चित्रण से पूर्ण प्रभावित थे। दोनों लोक कवियों द्वारा किये गये नायिकाओं के चिकने श्यामन, लम्बे केशों के वर्णन सर्वत्र प्रसिद्ध हैं। उदाहरण के लिए दोनों कवियों की एक-एक फाग दृष्टव्य हैं-

ईसुरी की फाग
गोला मां पे पटियां पारे, सुन्दर मांग समारे ।
कहा सोने के कलसा पै जैसे, कागा पंख पसारे।
दोऊ तरफ बएं सुन्दर सी, गंगा जमुना धारे ।
तिरबनी बैनी खों देखत, राती सिमट किनारे ।
ईसुर कात दरस के होतन, कल मल सिखर निकारे ।

मनभावन की फाग
पटिया मन हराबें खां पारेन रच रच माँग समारे
चुटिया चुस्त बंधी चुटलासे, गुरिया कुंज पै डारे ।
ऊपर मांग भरी मोतिन की, सीस फूल को धारे।
मनभावन मन हरवे कारण, हर हर बेर उघारे ।

इस प्रकार मन भावन ने ईसुरी गंगाधर, ख्यालीराम आदि की भांति ही फागों की सर्जना की है।

बुन्देली आल्हा गायकी 

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!