Homeबुन्देलखण्ड के साहित्यकारMahadev Chaube ‘Anant’ महादेव चौबे ‘अनन्त’

Mahadev Chaube ‘Anant’ महादेव चौबे ‘अनन्त’

बुन्देली काव्य को अपनी असाधारण प्रतिभा से रचनात्मक सम्पन्नता देने वाले सपूतों में Mahadev Chaube ‘Anant’ का नाम बड़े आदर से लिया जाता है। इनका जन्म छतरपुर शहर के आजाद रोड, स्थित सरानी गेट मोहल्ला में रहने वाले श्री भगवानदास चौबे के यहाँ 3 मार्च सन् 1901 को हुआ। इनका बचपन साधारण ब्राह्मण परिवार में बीता।

स्वतंत्रता संग्राम योद्धा … आशु कवि श्री महादेव चौबेअनन्त’

श्री महादेव चौबेअनन्त’ ने लाहौर यूनिवर्सिटी से इंटर पास किया तथा छतरपुर में इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल नियुक्त हो गये। इसके बाद छतरपुर स्टेट के जिला शिक्षा अधिकारी बने। आप स्वतंत्रता संग्राम के सक्रिय योद्धा थे जिससे आपने सरकारी नौकरी त्याग दी। आप सदा प्रचार-प्रसार से बचते अपने को सीमित रखे रहे। आपने लाहौर यूनिवर्सिटी से बाद में साहित्य रत्न की उपाधि प्राप्त की। आप आशु कवि थे।

आशु कवि श्री महादेव चौबेअनन्त’ की  विलक्षण काव्य प्रतिभा से सैर, गारी, कीर्तन तथा फागों का लेखन करने में माहिर थे। आपने सैर फड़बाजी में श्री परमानंद पाण्डेय दल के महत्त्वपूर्ण साथी थे। आपकी सैकड़ों रचनाएँ लोककंठों में अभी सुरक्षित है। आपके महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए चेतना साहित्य परिषद् ने आपको सम्मानित किया। श्री महादेव चौबेअनन्त’ का देहावसान एक दिसम्बर सन् 1985 को हुआ।

सैर
दोहा – शीश धरें हैं गागरी ओज आगरी नार।
दोय भारन कटि लाचली सोचो हृदय विचार।।

सैर – भर ल्याई नीर सुन्दरी उठ बड़े भोर है।
तन खीन ओज उन्नत भरपूर जोर है।

सिर धार गगर आई निज भवन दोर है।
लचकत लंक खिसकत आंचर कौ छोर है।।टेक।।

झलकत है मदन छलकत गागर की कोर है,
नव नेह नयन ललकत ज्यें शशि चकोर है,

आगर उरोज गागर भारन विभोर है।
लचकत लंक खिसकत ………………..।।

लावनी : बोल रही अपने देवर सौं अधरन में मुस्कान भरें।
अइयो लला उतारो गागर कोनउ करकें हरें हरें।।

देख दृश्य लाला जी बोले तनक तौ भौजी धर धीरज।
गागर के इस सागर में अब खिल जाने दे नव नीरज।।

सैर : रंग गई अनंग रंगन तन पोर पोर है,
पुनि वारि की फुहारिन भई चोर वोर है,

नई दिपन दृगन दर्शी सरसी अथोर है।
लचकत लंक खिसकत ………………..।।

विधि कलाकार का ये नूतन निचोर है,
मनसिज कै मत्त सागर की या हिलोर है,

लीलाअनंत’ जग की निरखौ निहोर है।
लचकत लंक खिसकत ………………..।।
(गायक – श्री स्वामी प्रसाद अग्रवाल)

यौवन की तेजस्विता से भरपूर नायिका सिर पर जल से भरा घट रखे हुए है। दो प्रकार के भार से उसकी कमर लचक रही है। इसपर विचार करें। प्रातःकाल उठकर नव यौवना पानी भरकर ले आई। छरहरे तन की उस सुन्दरी को कान्तिपूर्ण समृद्धि पर उठते यौवन का प्रभाव है। सिर पर घड़ा रखकर वह अपने प्रासाद के द्वार पर आई। चलने में उसकी कमर के लचकने से उसके वक्षःस्थल पर पड़ा  साड़ी का छोर (आंचल) खिसक जाता है।

घड़े के किनारे से छलके जल के साथ ही अनंग की आभा भी झलक जाती है। नव नेह से व्यथित नेत्र ऐसे ललचाते हैं जैसे चन्द्रमा के दर्शन हेतु चकोर। गागर के भार से विह्वल पयोधर अधिक सुन्दर लग रहे हैं। होठों में मुस्कुराहट भरके वह अपने देवर से कहती है कि हे लाला! यहाँ आकर मेरी गागर किसी तरह धीरे-धीरे उतार दीजिये। देवर ने दृश्य देखकर कहा – भाभी जी, थोड़ा धैर्य धारण कीजिये। अभी गागर के इस समुद्र में नया कमल खिल जाने दीजिये।

नायिका के तन का अंग-अंग कामदेव के नेह रस से रसवती हो गया, फिर पानी की फुहारन से सराबोर हो गई अब वह नवीन छवि के अथाह सरोवर की तरह आँखों को दिखाई देने लगी। ईश्वर की कलात्मकता का यह नवीन सारतत्व है अथवा कामदेव के रसयुक्त समुद्र की तरंग है। कवि अनंत कहते हैं कि संसार की यह लीला कृतज्ञ होकर देखिये।

सैर
दोहा – नारि सजीली नवीली खड़ी द्वार मझधार।
केश लमछरे की लटें छहरें लगत बयार।।

छंद – केश सटकारे ललित कारे निखारे हाल कें
लट गुच्छ लटके लमछरी दोउ ओर दोउन गाल के,

झूमतीं मनों चूमतीं उनमत उरोजन के शिखर
या स्वर्ण मठ पर बैठने को दो सापिनी आ रईं उतर।।

सैर – सटकारे केश कारे की लटें सलौनी।
मुख चंद्र पर लहरतीं सुखकंद दिपौनी।

रसियन के मन रिझावन है सुरम रिझौनी।।
ज्यो चन्द्र भाल झूमें दो व्याल बचौनी।।टेक।।

लहरान लगी लुर-लुर उर लगन लगौनी,
हों ओत प्रोत दर्शक हिय ओज उगौनी,

नई सजन गजन गरिमा की रचन रचौनी,
ज्यों चन्द्र भाल झूमें ………………..।।

हैं विस विहीन दोऊ पर निपट निरौनी,
जिय जंत्रि जाल बीच सुभग सुमन पिरौनी,

हिय हरन भरन भारन रति रंग रगौनी,
ज्यों चन्द्र भाल झूमें ………………..।।

हैं सुमतवान जन जो तिन्हें जुगत जतौनी,
जो रंग ढंग वाले उन्हें चलत मतौनी,

कहवेंअनंत’ बहुतन सुख साज सजौनी,
ज्यों चन्द्र भाल झूमें ………………..।।
(गायक – श्री स्वामी प्रसाद अग्रवाल)

सुन्दर नव यौवना द्वार के बीच खड़ी है, उसके सिर के लम्बे बालों की केशपाश हवा के झोकों के लगने से छतर (बिखर) रही है। तुरन्त के धोये हुए सुन्दर काले लम्बे बालों के लम्बे केशपाश दोनों कपोलों के दोनों ओर लटक रहे हैं। लहरातीं लटें ऐसी प्रतीत होती हैं मानो रसभाव युक्त कुचों के अग्र भाग का चुम्बन ले रही हों अथवा सोने के मठ पर बैठने को दो सर्पिणी नीचे उतर कर आ रहीं हो।

कोमल और लम्बे बालों की सुन्दर लटें मुखरूपी चन्द्रमा पर लहराती हुई सुखदायी और दीप्तिमान हो रही हैं। रसिकों के मन को आकर्षित करने के लिये रमणीय और मोहित करने वाली हैं। लगता है जैसे सर्प के दो छोटे बच्चे चन्द्रमा के माथे पर झूम रहे हों। हृदय में प्रेम के लगाव को लगाने वाली वे लटें लहरातीं हुईं बार-बार आपस में एक दूसरे को छूने लगीं। हृदय में प्रकाश उत्पन्न करने वालीं इन लटों को देखकर दर्शकों के हृदय रस से सराबोर हो जाते हैं। नये प्रियतम के गौरवमय अनुराग को अनुरक्ति देने वाली हैं।

दोनों में किसी प्रकार का विष नहीं है मात्र दिखावा है। हृदय रूपी यांत्रिक झरोखे से मनोहर पुष्पों को गूंथने वाली है। हृदय के बोझ को मिटाकर रति रंग से हृदय को भरने वाली हैं। जो बुद्धिमान लोग हैं उनके लिये ये युक्ति को बताने वाली हैं, सुमार्ग बताने वाली हैं। जो रंगीन स्वभाव वाले हैं उन्हें मतवाला बनाती है। कवि अनंत कहते हैं बहुतों को सुख-समृद्धि देने वाली हैं।

सैर
दोहा – सहज रसीली रस भरी युवति अनोखी नेक।
ताके गोल कपोल पर सोह श्याम तिल एक।।

सोरठा – सोह श्याम तिल एक वारिद जिन देख्यो कभउं।
कवि जन करत विवेक विधि की नई नवीनता।।

छंद – देख्यो कभउं जिन श्याम तिल वा गोल गोरे गाल पर।
ते स्वयं अनुभव कर सकहि बाके निराले हाल पर।।

फिर भी कछुक मैं भी कहत लघु बुद्धि के आधार से।
महंत जन गण छमहिगे भव्य भाव विचार से।।

सैर – छरहरे रूप रमणी मुख सहज सलौना।
सौन्दर्य और छबि कौ मनु भयउ मिलौना।

दायें कपोल शोभित है तिल एक लौना।
या अमल कमल विलसत अली बर कौ छौना।।टेक।।

जग माहिं पिरे बहुतक तिल कोलहु कोना,
इस तिल ने जगत पेरा फिर अचरज क्यों ना,

सुठि स्वर्ण मेरु पर है मणि नील निगौना,
या अमल कमल विलसत ………………..।।

छंद – जिस ठौर लाखों निशाने नेह नजरों के गढ़े।
उस जगह यह चिन्ह काला क्यों न हो क्यों ना पड़े।।

रतिनाथ के सम्राज्य की यह चाल समझो तो नई।
क्या खूब अपने कोष पर पुखता मुहर यह कर दई।।

सैर – विधि जान नीक निपुनई कर दियो दिठौना,
ना दीठ लगे जासें ना जादू टौना,

रक्षक है रूप गढ़ कौ इक हफसी बौना,
या अमल कमल विलसत ………………..।।

पर धन पै आय बैठो विष व्याल बछौना,
करबे सचेत सबकों बच जाव फसौना,

कहवें अनंत तिल है या लगन लगौना,
या अमल कमल विलसत ………………..।।
(गायक – श्री स्वामी प्रसाद अग्रवाल)

सरल नेह रस वाली यौवना विलक्षण गुणों से युक्त अच्छे स्वभाव की है, उसके गोरे कपोल पर एक काला तिल सुशोभित है। एक काला तिल ऐसा सुशोभित है जैसा कभी किसी ने काला बादल (मेघ) देखा हो। विधाता की इस नवीन कृति पर कवि लोग विचार करते हैं। जिसने कभी भी उस गोरे गाल पर काला तिल देखा होगा वे स्वयं उसकी अनूठी स्थिति का अनुभव कर सकेंगे। उस संबंध में मैं अपनी छोटी बुद्धि के आधार पर कुछ कह रहा हूँ। बड़े और विवेकी जन अपने हृदय की विशालता के भाव से मुझे क्षमा करेंगे।

दुबली-पतली फुरतीली देह वाली युवती के मुख पर सहज सौन्दर्य है। सौन्दर्य (सुन्दरता) और छवि (शरीर की सुन्दर बनावट) का मानों मिलन हो गया है। उसके दांये गाल के ऊपर एक सलौना तिल सुशोभित है। मानों पावन कमल के ऊपर भौरें का बच्चा क्रीड़ा कर रहा है। संसार में अनेक (ढेरों) तिल कोल्हू के कोने में पिर गये (तिल से तेल निकालने हेतु कोल्हू में पेरा जाता है) फिर यदि इस तिल ने जगत को व्यथित किया तो आश्चर्य क्यों नहीं है? सुन्दर सुमेरू पर्वत पर नीलमणि के नग की तरह यह तिल शोभायमान है।

जिस जगह को लाखों लोगों के प्रेम की निगाहें अपना निशाना बना रहीं हों वहाँ पर यह काला चिन्ह क्यों नहीं होना चाहिए (अर्थात् नजर के प्रभाव से उसकी रक्षा हेतु डिठौने की तरह इसकी आवश्यकता है)? कामदेव के साम्राज्य में एक नई नीति अपनाई गई है कि अपने सौन्दर्य के खजाने सुरक्षित करने के लिये एक मजबूत छाप लगा दी। विधाता ने अधिक सौन्दर्य को समझ कर दिठौना लगा दिया ताकि न किसी की नजर लगे न जादू-टोने का प्रभाव पड़ सके।

रूप के किले की रक्षा के लिये एक बौना हफ्सी नियुक्त कर दिया गया। मानो दूसरे के खजाने पर विषैले सर्प का बच्चा आकर बैठ गया है अथवा सभी को सावधान करने के लिये बैठा है कि इससे बचिये, इसमें फँस मत जाना। कवि अनंत कहते हैं कि यह तिल है अथवा प्रेम सम्बंध स्थापित कराने वाला मनोरम कर्ता (विधाता) है।

सैर
दोहा – तरुनई की अरुनई झलक अंगन करै उदोत्त।
अंगन अंगन सें बढ़त दिन दूनी छवि होत।।

सैर – सत चरितवान पूरी उत्तम विचार है
अंगन अनंग आभा कौ नयो उभार है

बचपन विहाय तरुनई कौ प्रथम पार है
देवरा सें प्यार माने प्रीतम सें रार है।।टेक।।

सिंदुरई सुरंग सुमनन कौ गलैं हार है।
मुसकान मधुर मुख पर सुंदर श्रृंगार है।।

नयनन पै छई थिरता बयनन उदार है।।
देवरा सें प्यार माने प्रीतम…………………..।। 2।।

लावनी – तरुनई कौ यह प्रथम चरन है
भरन लगत हिय में उल्लास।

हरन लगत है मन प्रियतम कौ
करन चहत है हास विलास।।

डरन लगत है तन तरुनी कौ
धरन लगत चतुराई चाल।

झरन लगत है सुमन सुमन से
गथन लगत है नूतन भाल।।

सैर – चतुरई के देत उत्तर अतुरई सम्हार है।
है सुनत गुनत ऊँहूँ कौ शब्द सार है।।

कछु सहम जात सुन कैं बात रहसदार है।।
देवरा से प्यार मानै प्रीतम……………………..।। 3।।

साझहुँ सें सास सेवा की लगातार है।
धरकन बढ़न हिये की करतन उसार है।।

अपनेअनंत’ प्रियवर कौ कर अधार है।
देवरा से प्यार माने प्रीतम…………………।। 4।।
(सौजन्य : श्री महेश देव चौबे)

यौवन के आगमन पर आई लालिमा ने शरीर के सभी अंगों को प्रकाशित कर दिया है अब दिन-प्रतिदिन प्रत्येक अंग की शोभा बढ़ती जाती है। नायिका अच्छे चरित्र वाली है उसके आचार-विचार उत्तम हैं। उसके सभी अंगों में कामदेव का ओज नया उत्थान कर रहा है। उसने बचपन को छोड़ते हुए यौवन की पहली सीढ़ी पर कदम रखा है। वह अपने पति के छोटे भाई से प्यार मानती है, उसकी पतिदेव से लड़ाई है।

सिंदूर के गहरे रंग वाले पुष्पों का हार वह अपने गले में पहने हुए है। मधुर मुस्कान ही उसके चेहरे का सबसे सुन्दर श्रृँगार है। उसके नयनों में चंचलता नहीं है और बोली में उदारता आ गई है। यह यौवन में प्रवेश का समय है। इस समय हृदय में उल्लास भरने लगता है। इस समय वह अपने प्रियतम का मन अपनी ओर आकृष्ट करती है, उसके साथ आमोद-प्रमोद करना चाहती है।

तरुणाई के समय उसके शरीर में प्रविष्ट डर उसकी गति में चातुर्य ला देता है। उसके वचनों में फूल से झरने लगते हैं और वाणी चातुर्य सुन्दर भाल सा आकर्षक हो जाता है। वह किसी भी बात का उत्तर बड़ी चतुरता से सम्हल कर देती है उसमें जल्दबाजी नहीं करती। किसी बात को बड़ी गंभीरता से सुनती और संक्षिप्त उत्तर हाँ-हाँ में देती है और किसी रहस्य की बात सुनकर डर सी जाती है। सायंकाल से ही वह अपनी सास की नियमित सेवा करती है। वह घर का काम करते समय उसके हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं। कवि अनंत जी कहते हैं कि अपने प्रियतम का आश्रय ले ले, यही उत्तम है।

शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!