Homeबुन्देलखण्ड के लोक विश्वासKrishi Sambandhi Lok Vishwas कृषि सम्बन्धी लोक-विश्वास

Krishi Sambandhi Lok Vishwas कृषि सम्बन्धी लोक-विश्वास

कृषि संबंधी लोक-विश्वास Krishi Sambandhi Lok Vishwas कृषि प्रधान समाजों में गहराई से जुड़े होते हैं और ये विश्वास किसानों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होते हैं। ये लोक-विश्वास प्राकृतिक घटनाओं, ऋतुचक्र, देवताओं, और कृषि प्रथाओं से संबंधित होते हैं। इन विश्वासों का उद्देश्य अक्सर खेती को सफल बनाने, फसलों की सुरक्षा सुनिश्चित करने और समृद्धि की प्राप्ति के लिए कृषि प्रक्रियाओं को धार्मिक और सांस्कृतिक धारणाओं से जोड़ना होता है। यहां कुछ प्रमुख कृषि संबंधी लोक-विश्वास दिए गए हैं:

1- फसल बोने और कटाई के शुभ मुहूर्त
कृषि में यह लोक विश्वास है कि फसल बोने और कटाई करने के लिए कुछ खास दिन और समय शुभ होते हैं। विभिन्न पंचांगों के अनुसार, विशेष नक्षत्र या चंद्रमा की स्थिति में बुआई या कटाई करने से फसल अच्छी होती है। कुछ क्षेत्रों में, अमावस्या या ग्रहण के दिन फसल बोने या काटने से बचने की परंपरा है क्योंकि इसे अशुभ माना जाता है।

2- वर्षा के देवता और अनुष्ठान
वर्षा को कृषि के लिए जीवनदायिनी माना जाता है, और वर्षा की पर्याप्तता के लिए लोक विश्वासों का पालन किया जाता है। भारत में इंद्र देव को वर्षा का देवता माना जाता है, और उनकी पूजा करके अच्छी वर्षा की प्रार्थना की जाती है। कुछ स्थानों पर सूखे के समय किसानों द्वारा विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं, जैसे मेंढक की शादी या नाग देवता की पूजा, ताकि वर्षा जल्दी हो और फसल खराब न हो।

3- वृक्षों और पौधों से जुड़े विश्वास
खेती में यह लोक विश्वास है कि कुछ पेड़-पौधों का फसल के लिए शुभ या अशुभ प्रभाव होता है। उदाहरण के लिए, तुलसी का पौधा घर या खेत के पास लगाने से समृद्धि आती है और नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है। इसी प्रकार, कुछ फसलों के बीच विशेष पेड़ों को लगाने से फसलों की सुरक्षा होती है। आमतौर पर यह भी माना जाता है कि कुछ विशेष वृक्षों के नीचे फसल बोना हानिकारक हो सकता है।

4- नजर दोष से फसल की रक्षा
कई क्षेत्रों में यह विश्वास है कि अगर किसी की बुरी नजर खेत या फसल पर पड़ जाती है, तो वह फसल खराब हो सकती है। इसे बचाने के लिए खेतों के चारों ओर नींबू-मिर्च लटकाने या काला धागा बांधने का चलन होता है। कुछ स्थानों पर किसान खेत में झाड़ू लगाकर या कोई अशुभ वस्त्र लगाकर नजर दोष से बचाने की कोशिश करते हैं।

5- धूप और चंद्रमा का प्रभाव
भारतीय लोक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रमा और सूर्य की स्थिति का कृषि पर गहरा प्रभाव होता है। कई किसान मानते हैं कि चंद्रमा के घटने-बढ़ने से फसलों की वृद्धि पर असर पड़ता है। पूर्णिमा के दिन बोई गई फसलें बेहतर होती हैं और अमावस्या के दिन बोने से फसल पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। सूर्य की स्थिति भी बुआई और कटाई के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है।

6- कीटों और फसलों की सुरक्षा के लिए अनुष्ठान
कीटों और रोगों से फसलों की रक्षा के लिए विभिन्न धार्मिक अनुष्ठानों और उपायों का सहारा लिया जाता है। कुछ स्थानों पर कीटों से बचाव के लिए खेतों में पूजा की जाती है या ताबीज लगाए जाते हैं। यह भी माना जाता है कि खेत में हनुमान जी का झंडा लगाने से कीटों और नकारात्मक शक्तियों से फसल की रक्षा होती है। इसके अलावा, कुछ लोक मान्यताओं के अनुसार, यदि किसान किसी खास समय पर पूजा करता है, तो फसलों पर कीटों का आक्रमण नहीं होता है।

7- फसल के प्रथम अंश की पूजा
कई समुदायों में यह लोक विश्वास है कि जब पहली फसल कटाई के लिए तैयार होती है, तो उसकी पूजा करना अनिवार्य होता है। इसे फसल देवता को अर्पित करने की परंपरा भी कहा जाता है। किसान पहले फसल का अंश देवताओं को चढ़ाते हैं और फिर उसे उपयोग में लाते हैं। इस विश्वास के पीछे यह धारणा है कि ऐसा करने से फसल की समृद्धि और घर की खुशहाली बनी रहती है।

8- भूमि को पवित्र मानना
कृषि समाजों में भूमि को माँ के रूप में पूजा जाता है, और उसे पवित्र माना जाता है। फसल बोने से पहले भूमि की पूजा करने की परंपरा होती है, जिसमें किसान धरती माता से क्षमा मांगते हैं और अच्छी फसल की कामना करते हैं। कुछ क्षेत्रों में हल चलाने से पहले भूमि पर हल्दी और कुंकुम से पूजा की जाती है। यह विश्वास होता है कि भूमि की पूजा करने से फसलें अच्छी होती हैं और प्राकृतिक आपदाओं से बचाव होता है।

9- ऋतु परिवर्तन और कृषि पर्व
भारतीय कृषि समाजों में ऋतु परिवर्तन का विशेष महत्व होता है, और इससे संबंधित कई लोक विश्वास प्रचलित हैं। जैसे, मकर संक्रांति और लोहड़ी जैसे पर्व फसलों की कटाई के समय मनाए जाते हैं और इन अवसरों पर देवताओं को धन्यवाद दिया जाता है। इसी प्रकार, मानसून के आगमन पर भी कई स्थानों पर विशेष उत्सव मनाए जाते हैं, ताकि समय पर वर्षा हो और फसलें अच्छी हों।

10- महिलाओं की विशेष भूमिका
कृषि संबंधी कई लोक विश्वासों में महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कुछ क्षेत्रों में यह माना जाता है कि यदि कोई महिला खेत में पहले बीज बोती है, तो फसल अच्छी होगी। इसके अलावा, यह विश्वास है कि गर्भवती महिला के खेत में आने से फसल की वृद्धि तेज हो सकती है। कुछ समुदायों में महिलाएं फसल की कटाई के दौरान विशेष गीत गाती हैं, ताकि देवताओं की कृपा प्राप्त हो और फसलें समृद्ध हों।

11- अलौकिक शक्तियों और देवताओं से संरक्षण
किसानों का यह लोक विश्वास होता है कि खेती के दौरान अलौकिक शक्तियां और देवता उनकी मदद और संरक्षण करते हैं। इसलिए किसान खेत में देवी-देवताओं की मूर्तियां या प्रतीक रखते हैं, ताकि फसलें हानि से बची रहें। कुछ स्थानों पर फसल की बुआई के समय ग्राम देवता की पूजा भी की जाती है, ताकि फसल को प्राकृतिक आपदाओं और अन्य संकटों से बचाया जा सके।

12- स्वप्न और पूर्व संकेत
किसानों का यह विश्वास है कि स्वप्न या पूर्व संकेत उनकी कृषि के भविष्य के बारे में बताते हैं। अगर किसी किसान को स्वप्न में पानी या हरे-भरे खेत दिखाई देते हैं, तो इसे अच्छी फसल का संकेत माना जाता है। वहीं, सूखे या बंजर भूमि के स्वप्न को अपशकुन माना जाता है, और इससे बचने के लिए किसान विशेष अनुष्ठान करते हैं।

कृषि संबंधी ये लोक-विश्वास पीढ़ियों से किसानों की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा रहे हैं और उनके जीवन में मार्गदर्शन का काम करते हैं। ये विश्वास न केवल धार्मिकता और अध्यात्म से जुड़े हैं, बल्कि कृषि के प्राकृतिक और पर्यावरणीय पहलुओं से भी गहराई से जुड़े हैं। यह लोक-विश्वास कृषक समाज में अनुभवों के आधार पर ही व्याप्त है। कृषि-सम्बन्धी कहावतों में भी लोक-विश्वास की झलक प्राप्त होती है-
माई न परसे भरे न पेट, मघा न बरसे भरे न खेत

अर्थात्‌ जब तक माँ संतान को भोजन न परोसे तब तक उसका का पेट नही भरता है। उसी तरह किसान कितनी भी सिंचाई करे किन्तु, उत्तम फसल तो तभी होगी जब मधा नक्षत्र में वर्षा से खेत भरें ।

इसी प्रकार –
जो कऊं बरसें हाथी, गैऊं लग है छाती।
अर्थात्‌ हस्ति नक्षत्र में वर्षा होने से गेहूँ की पैदावार अच्छी होती है।

स्वाति गेहूँ आर्द्रों धान, न ब्यापें कीरा और घाम
अर्थात्‌ स्वाति नक्षत्र में गेहूँ बोये तो कभी फसल कीड़े या धूप से नष्ट नहीं होगी। इसका आन्तरिक भाव यही है कि समय से बुआई होने पर उचित मौसम का भरपूर लाभ फसल को मिलता है।

लोक-विश्वास है कि मंगल और गुरूवार को काछी जाति के लोग अच्छी सब्जी उत्पन्न हो, इसके लिये होम-धूप करते हैं। अर्न्तभाव यही है कि सब्जी की खेती में सप्ताह में दो बार धुंआ करने से वातावरण के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। जिससे सब्जियों को उनसे हानि नही होती। यह लोक विश्वास भी है कि जब तक बौनी पूरी न हो किसान बाल नही बनवाते अर्थात्‌ बुआई के मध्य में किसी भी अन्य कार्य में समय व्यर्थ न करें। इसी उद्देश्य का संकल्प है-बाल न बनवाना ।  

घर-परिवार के लोक-विश्वास परिवार में कन्यादान पुण्य है, पुत्री के घर भोजन न करना उसके चरण स्पर्श करना जैसे लोक-विश्वास हैं। बुन्देलखण्ड में कन्या को देवी स्वरूप माना जाता है, इस कारण आदर-भाव से चरण स्पर्श करते हैं ।  एक भाव यह है कि. दान देने के बाद वस्तु पर हमारा अधिकार नही रहता। यह सोच ही कन्यादान के बाद पुत्री को पराया मानने में सहायक है।

दक्षिण दिशा से संबंधित  अनेक लोक-विश्वास हैं जैसे – दक्षिण की ओर पैर करके नही सोना, दक्षिण मुखी निवास स्थल अशुभ है। वैज्ञानिक दृष्टि से पृथ्वी के चुम्बकीय ध्रुव उत्तर-दक्षिण हैं, उस दिशा में सोने से हमारे तंत्रिका-तंत्र, रक्‍त-संचार एवं शारीरिक स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसी प्रकार दक्षिण मुखी निवास में पूर्व से निकलने वाले सूर्य व उसके पश्चिम में अस्त होने की दशा में प्राकृतिक प्रकाश का अभाव होगा। विज्ञान बताता है कि सूर्य का प्रकाश अनेक बीमारियों के कीटाणुओं का नाश करता है धूप सेवन से हमें विटामिन ‘डी’ प्राप्त होता है। यह समस्त सुविधायें दक्षिण मुखी निवास में असम्भव होंगी ।

रात्रि में झाड़ू लगाने व कूड़ा फेंकने से लक्ष्मी की हानि होती है, ऐसा लोक-विश्वास है। संभवतः रात्रि में छोटी महत्वपूर्ण वस्तु कूड़े के साथ न चली जाये इसी आशय का भाव निहित है। प्रात: काल घर की सफाई लक्ष्मी का आगमन मानी जाती है। प्रातःकाल उठना स्वास्थ्य के लिये तथा नियमित दिनचर्या के लिये आवश्यक है |

घरों में जल भरा कलश, दही भरा बर्तन इत्यादि देखना शुभ मानते हैं यह पूर्णता के प्रतीक हैं। बछड़े को दूध पिलाती गाय दिखना शुभ माना जाता है। यह संतृप्ति व मातृत्व भाव का संचार करती है। मनो भावों को बल प्रदान करने वाले लोक-विश्वासों की सार्थकता मानव जीवन के लिये आवश्यक है।

उत्तम स्वास्थ्य के लिये व्रत-उपवास रखना केवल फल और दूध का सेवन करना पौष्टिक तत्वों से शरीर में ऊर्जा संचार का द्योतक है। घरों में तौबें के पात्र पानी भरने में प्रयुक्त होना, नीम की पत्तियां चबाने से ज्वर न होना जैसे स्वास्थ्य भावना से युक्त लोक-विश्वास भी है। इनका वैज्ञानिक व चिकित्सीय गुण सर्व विदित है।

संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल

गाँव का स्वरूप 

admin
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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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