सावन मास में महिलाएं अपने मायके जाती हैं। वहाँ झूला झूलती हैं। सावन के गीत (मल्हार) गाती हैं। रक्षाबंधन पर राखी बाँधती हैं। झील या नदी पर पुष्प भरे दौने डालती हैं। इस उत्सव को ‘भुजरियाँ’ भी कहा जाता है, Kirati Sagar par yuddh इसे भुजरियों की लडाई भी कहते है। इस पर्व से पूर्व सावन में चंद्रावलि भी महोबे आई थी, परंतु आल्हा, ऊदल, मलखान भाइयों के महोबे में न होने से उदास थी।
माहिल फिर से पृथ्वीराज चौहान के दरबार में पहुँचा। मलखान को मरवाने से भी उनका मन संतुष्ट नहीं हुआ। वह अब राजा परिमाल और महोबे को लुटवाना चाहता था। इतिहास में पृथ्वीराज चौहान को एक अच्छे राजा के नाते देखा जाता है, परंतु उसकी गलतियों का परिणाम सारे देश ने भोगा है। परिमाल का पुत्र ब्रह्मानंद उसका दामाद था। उसकी पुत्री बेला का विवाह महोबे के चंदेला परिवार में हुआ था। माहिल के कहने में आकर मलखान जैसे वरदानी वीर को मारने का षड्यंत्र रचा। फिर भी बुद्धि नहीं आई।
माहिल के कहने से फिर फौजें लेकर महोबे पर चढ़ आया। माहिल ने कहा, “आक्रमण करने में देर मत करो। आल्हा-ऊदल कन्नौज के राजगिरि में हैं। मलखान का काम तमाम हो गया। ब्रह्मानंद तो लड़ ही नहीं पाएगा। परिमाल को मारना या बाँधना सरल है, क्योंकि वह शस्त्र उठाना छोड़ चुका है। बस महोबे को तहस-नहस कर दो।” चालाकी दिखाने में अग्रणी एक मूर्ख ने सलाह दी, दूसरे मूर्ख ने मानी और पृथ्वीराज ने चौंडिया राय को सेना लेकर आक्रमण करने का आदेश दे दिया। आदेश का पालन कर पृथ्वीराज की सेना ने महोबे को घेर लिया। बाहर से कोई आ न सके। महोबे से कोई जा न सके।
रानी मल्हना की चिंता बढ़ना स्वाभाविक था। जब कोई सहारा नहीं दिखाई देता, तब देवी-देवता और भगवान् याद आते हैं। रानी मल्हना देवी के मठ में पहुँची। मंत्र जाप किया, फिर चामुंडा का हवन किया। माता से बचाने की प्रार्थना की। माता ने आशीर्वाद दिया। माता स्वयं उसी समय ऊदल के पास पहुँची। स्वप्न में देवी ने महोबे की समस्या ऊदल को समझा दी और सहायता के लिए जाने की प्ररेणा दी। सुबह होते ही ऊदल ने स्वप्न की सारी बात ढेवा को सुनाई। विचार कर लाखन से मिले। आल्हा को बताने से मना हो सकती थी। अतः लाखन के शिकार खेलने जाने का बहाना करके तीनों ने राजा जयचंद से अनुमति ली।
अंत में रानी सुनवां (आल्हा की पत्नी) से प्रणाम करके ऊदल ने असली बात बता दी। सुनवां ने भी महोबे की रक्षा के लिए जाने का समर्थन करके आशीर्वाद दिया। तीनों अपने साथ हाथी, घोड़े और सैनिक लेकर चले। ढेवा ने चार गुदड़ी जोगी वेश के लिए साथ ले ली। मीरा सैयद ने इकतारा बजाया, ढेवा ने खंजरी बजानी शरू कर दी, लाखन ने डमरू बजाया और ऊदल को बाँसरी पकडा दी। महोबा पहुँचकर देखा तो दिल्ली के सैनिक निगरानी कर रहे थे। जोगियों को जाने से रोका। ऊदल बोले, “हम तो भिक्षा माँगकर चले जाएँगे, आप अपना काम करो।” चारों जोगी प्रवेश कर गए। थोड़ी देर में महल के पास पहुँच गए। बाग के पास किसानों ने जोगियों से कहा, “यहाँ कोई भिक्षा नहीं देगा। आल्हा-ऊदल यहाँ से चले गए हैं।
सिरसा में मलखान मारा जा चुका है।” यह सुनते ऊदल रोने लगा। किसानों ने पूछा तो ऊदल बोला, “पहले हम आए थे तो मलखान से मिले थे। अब नहीं मिलेंगे, पर मलखान को किसने मारा? यह तो बताओ।” फिर किसान ने पृथ्वीराज के द्वारा धोखे से मलखान के मारे जाने की सारी बात सुनाई। एक बार ऊदल का मन हुआ कि महोबे न जाए। उन्हें दुःख था कि ब्रह्मानंद ने मलखान की सहायता क्यों नहीं की, तभी गजमोतिन की आभा ने ऊदल को महाबे जाकर सहायता करने की प्रेरणा दी। रानी मल्हना को बाँदी से जोगियों के आने की सूचना मिली तो उसने जोगियों को बुलवा लिया। महल देखकर लाखन राजा को बहुत अच्छा लगा। मल्हना को लगा, ये जोगी पृथ्वीराज के जासूस हो सकते हैं।
ऊदल ने विश्वास दिलाकर कहा कि दुविधा में मत पड़ो। पृथ्वीराज से हमारा कोई संबंध नहीं। अपने सोने के कुंडल ऊदल ने कन्नौज के ऊदल-आल्हा के दिए हुए बताए। ऊदल का नाम सुनते ही मल्हना के आँसू निकल गए। वह बोली, “यदि तुम अभी कन्नौज जाओ तो ऊदल को महोबे पर मुसीबत की खबर सुनाना। माता मल्हना याद कर रही है, यह कहना। महलों में भुजरियाँ धरी गई हैं, ऊदल के बिना कौन सागर में इन्हें सिराएगा?” ऊदल ने कहा, “हम जोगी हैं, परंतु भुजरियाँ सिराने की जिम्मेदारी हम लेते हैं।” इसके बाद जोगी महल से अपने डेरे पर पहुँच गए।
माहिल फिर आग में घी डालने पहुँच गया। बोला, “हे पिथौरा राय! मैंने चुगली कर बनाफरों को महोबे से निकलवाया, मलखान को मारने का रहस्य बताया। अब ये जोगी आ गए हैं, जादू करके मुकाबला करेंगे। जाओ, तुम दिल्ली वापस लौट जाओ। तुम्हारे करने से कुछ नहीं होगा।” माहिल पृथ्वीराज को उकसाकर रानी मल्हना के पास पहुँचा और बोला, “चौहान लौट जाएगा। उसे ग्वालियर शहर दे दो, नौलखा हार दे दो, खजुहागढ़ की बैठक भी माँग रहा है। चंद्रावली का डोला भी वह ताहर के लिए माँग रहा है। पारसमणि भी पृथ्वीराज लेना चाहता है। बिना हील-हुज्जत के ये सारी चीजें चौहान को दे दो तो वह लौट जाएगा।”
बेशर्म माहिल ने अपनी सगी बहन से अपनी विवाहित भानजी को ताहर को देने के लिए कहा तो मल्हना रोने लगी। माहिल के जाते ही दोनों ब्रह्मानंद के पास गई। सारी बात उसे बताई। ब्रह्मा ने कहा, “जोगियों ने भरोसा दिया तो वे ही पवनी करा देंगे।” माहिल का पुत्र अभई भी वहाँ पहुँचा। उसके भुजरियाँ सिलाने की पवनी की प्रक्रिया करने के लिए तैयारी शुरू हो गई। फिर मल्हना ने सब डोलों में बारूद का एक-एक मटका रख दिया और एक-एक जहर बुझी छुरी भी डोले में रखवा दी, ताकि यदि पृथ्वीराज की सेना आकर लूट मचाए और डोला छीने तो छुरी से अपनी हत्या कर लेना, जीते जी काबू में मत आना।
अभई और रंजीत के संरक्षण में डोले कीर्ति सागर पर जा पहुँचे। पृथ्वीराज की फौज पं. चौंडा राय के नेतृत्व में डोले लूटने आ गई। अभई और रंजीत की चौंडा राय से लड़ाई हुई। तीन घंटे तक तलवारें चलीं। चौंडा राय के सिपाही भागने लगे तो चौंडा ने स्वयं गुर्ज उठाकर अभई पर वार किया। अभई के घोड़े की टाप पड़ी तो चौंडा का हाथी भाग निकला। फिर पृथ्वीराज ने बेटे सूरज को भेजा। सूरज ने डोला रखने की बात कही तो अभई ने कहा, “डोलों की ओर नजर घुमाई तो दोनों आँखें निकाल लूँगा।” फिर तो जोरदार युद्ध हुआ। रंजीत ने दो बार चोट बचा ली। फिर रंजीत ने वार किया तो सूरज धरती पर गिर गया। इधर से टंकराज आ गए, उन्होंने अभई पर सांग चला दी। अभई तो बच गया, परंतु उसने भाला मारा तो टंकराज के पेट में घुस गया।
तब राजा ने सरदनि-मरदनि को भेजा। ताहर भी आगे आया। दोनों फौजें मारा-मार मचाने लगीं। ताहर ने ललकारा, “मेरे भाई सूरज को किसने मारा है?” अभई सामने आ गए और कहा, “डोले की बात की तो जीभ खींच ली जाएगी।” ताहर से युद्ध करते समय रंजीत शहीद हो गया। चकमा देकर ताहर ने अभई को भी मार गिराया। उनके रुंड भी लड़ने लगे, तब ब्रह्मानंद को खबर पहुँची।
ब्रह्मानंद ने सोचा कि महोबे की लाज बचाने को मेरा युद्ध में जाना जरूरी है। घोड़ा हर नागर पर सवार होकर अपनी फौज के साथ ब्रह्मानंद अपने ससुर पृथ्वीराज का सामना करने मैदान में पहुँच गया। तब तक रंजीत और अभई के बिना सिर के धड़ लड़ रहे थे। ताहर ने लीला झंडा घुमाकर उन्हें शांत किया। दोनों रुंड मल्हना के डोले के पास जाकर गिरे। ब्रह्मानंद ने उनकी लाश भिजवा दी और फिर हनुमानजी को याद करके युद्ध करने लगे। शत्रु सेना को ऐसे काटने लगे, जैसे खेत काटकर खलिहान में फेंक रहा हो। ब्रह्मानंद की भयंकर मार से पृथ्वीराज के सिपाही भागने लगे। ताहर ने पृथ्वीराज के पास समाचार भेजा कि राजा और फौज लेकर जल्दी सागर पर पहुँचे, नहीं तो सब काम बिगड़ जाएगा।
तब तक माहिल वहाँ पहुँच गया और पृथ्वीराज से कहा, “अच्छा अवसर है। ब्रह्मानंद अकेला रह गया है। तुरंत जोरदार आक्रमण करके उसे बाँध लो और चंद्रावलि का डोला छीन लो। महोबे को लूटकर तहस-नहस कर दो।” पृथ्वीराज ने चौंडा व धाँधू को साथ लिया और भारी फौज लेकर कीर्ति सागर पर पहुँच गए। पृथ्वीराज को आता देखकर ब्रह्मानंद और जोश से लड़ने लगा। किसान जैसे फसल काटता है या तमोली पान काटता है, सब मोह त्यागकर ब्रह्मानंद शत्रु सेना का नाश कर रहा था।
चौंडा पंडित ने गुर्ज चलाया। ब्रह्मानंद ने बचाव कर लिया, पर सोचा कि क्षत्रिय होकर मैं ब्राह्मण को मारूँ तो ठीक नहीं। तो ब्रह्मानंद ने सम्मोहन बाण चला दिया। चौंडा रणभूमि में अचेत होकर गिर पड़ा। तब धाँधू सामने आए। धाँधू ब्रह्मा पर वार करने में सकुचा गए, क्योंकि ब्रह्मानंद बड़े भाई ही तो लगे। ब्रह्मा के बाण से धाँधू भी हौदा से गिर गया, तब सरदनि-मरदनि दोनों सामने आ गए। वे दोनों भी गिर गए तो ताहर मुकाबले पर आ पहुँचे।
ब्रह्मानंद का वार होने पर ताहर अपना घोड़ा भगाकर ले गया। तब पृथ्वीराज ने धीर सिंह को आगे बढ़ने को कहा। धीर सिंह सामने आया और डोला माँगने लगा तो ब्रह्मानंद ने कहा, “तुम आल्हा के मित्र हो और आल्हा मेरे बड़े भाई हैं। पृथ्वीराज की नीति को क्या कहूँ, मुझसे उनकी पुत्री का विवाह हुआ है। महोबे को ही लूटने फौज लेकर चले आए हैं।” धीर सिंह ने गुर्ज फेंका, ब्रह्मानंद ने बचा लिया। ब्रह्मा पर जितने वार किए, सब व्यर्थ गए। धीर सिंह ने अपना हाथी वापस हटा लिया। पृथ्वीराज ब्रह्मा की बहादुरी देखकर हैरान रह गए। चौंडा और ताहर ने जाकर डोले घेर लिये और जोर से नगाड़ा बजाया। नगाड़े की आवाज से लाखन और ऊदल को भनक लगी। ढेवा और मीरा सैयद चारों जोगी वेश में ही अपनी जोगियों की टोली लेकर कीर्ति सागर पर पहुँच गए।
धाँधू ने जोगियों से कहा, “जोगी होकर क्यों प्राण गँवाने चले आए। वापस लौट जाओ।” तब ऊदल ने तलवार खींच ली और ऐसे घुस गया, जैसे भेड़ों के दल में भेडिया घुस जाता है। धाँधू के हौदे पर वार करके रस्से काट दिए तो धाँधू मोरचे से वापस हट गया। उधर चौंडा पंडित मल्हना के डोला पर पहुँच गया। पृथ्वीराज की आज्ञा है, हमें नौलखा हार दे दो। मल्हना तब आसमान की ओर देखकर ऊदल को याद करने लगी। तब तक ऊदल वहाँ पहुँच ही गया।
जोगी रूप देखकर मल्हना ने सोचा कि भगवान् ने ही जोगी भेज दिए हैं। ऊदल ने दुल को एड़ लगाई और चौंडा के सामने जा पहुँचा। चौंडा का हौदा गिरा दिया। फिर ऊदल रानी मल्हना के पास जा पहुँचा और कहा, हमारी भिक्षा मँगवा दो। तब मल्हना ने कहा, “पृथ्वीराज बेटी चंद्रावलि का डोला छीनकर ले जाना चाहता है, हमारी रक्षा करो।” ऊदल ने कहा, “तुम्हारी पवनी हम करवाएँगे। डोला ले जाने की शक्ति किसी में नहीं।” लाखन और ऊदल पंचपेड़न (पंचवटी) के पास पहुंच गए।
ऊदल ने ताहर को बता दिया कि पवनी हम करवाएँगे, यह हम वादा कर चुके हैं। ताहर ने फौज से कहा, इन जोगियों को भगाओ। ताहर ने लाखन पर वार किया। लाखन ने बचाव कर लिया। लाखन ने गुर्ज चलाया तो ताहर अपना घोड़ा भगा ले गया। ऊदल ने चंद्रावलि का डोला मल्हना के पास ले जाकर रख दिया। इधर पृथ्वीराज ने ब्रह्मा पर वार करने के लिए लाव कमान उठाई। ब्रह्मानंद को लगा मेरे ससुर हैं, पिता समान हैं, अत: मोहन बाण चला दिया। पृथ्वीराज मूर्च्छित होकर गिर गए। तब तक ऊदल भी वहाँ पहुँच गया।
जोगी का वेश धरे जो राजा ऊदल के साथ आए थे, सब बढ़कर आगे आ गए। ब्रह्मानंद जोगियों का लश्कर देख लौट पड़े। उधर पृथ्वीराज की मूर्छा खुली तो सेनाओं में फिर जोश आ गया। खटाखट तलवारें बजने लगीं। लाखन अपनी हथिनी भुरूही को लेकर पृथ्वीराज के सामने जा पहुँचा। भुरूही की टक्कर ने आदि भयंकर हाथी को पीछे हटा दिया। फिर ऊदल को सामने देख पृथ्वीराज अपने लश्कर को सागर के दक्षिण की ओर ले गए। उत्तर में ऊदल का लश्कर था।
ऊदल ने चंद्रावलि से कहा, “बहन, अपनी भुजरियाँ सागर में सिरा दो।” माहिल बोला, “सागर में से सगुन का दौना उठवा लो।” चौंडा राय दौना लेने को बढ़ा तो चंद्रावलि बोली, “ऊदल भैया होते तो कोई और यह दौना कैसे ले जाता?” लाखन ने संकेत दिया, ऊदल ने दौना लेने को हाथ बढ़ाया। चौंडा भी बढ़ा। चौंडा ने ऊदल पर भाला फेंका। ऊदल ने फुरती से चोट बचाई और दौना उठा लिया। दौना बहन चंद्रावलि को पकड़ा दिया।
मल्हना ने कहा, “बेटी, सामने जोगी खड़े हैं। इनको ही तुम अपना ऊदल भैया मान लो।” ऊदल ने अपना कंगन बहन को दक्षिणा में दे दिया। चंद्रावलि बोली, “यह कंगन तो ऊदल भैया का ही है।” ऊदल मुसकराए तो मल्हना पहचान गई कि यह जोगी नहीं, ऊदल है। फिर ऊदल माता मल्हना और सबसे मिले। सब सखियों ने सागर में दौने सिरा दिए। पृथ्वीराज ने फिर कहा, “कुछ दौने उठा लाओ।” परंतु ऊदल ने लाखन को सावधान कर दिया, “एक भी दौना दिल्ली नहीं जाना चाहिए।”
धाँधू ज्यों ही आगे बढ़ा, ऊदल ने अपना घोड़ा हाथी के आगे अड़ा दिया। ढाल का धक्का मारकर हौदा के कलश गिरा दिए। उसने अपना हाथी वापस दौड़ा दिया। युद्ध में दोनों ओर के वीर काम आए। तब माहिल ने ही पृथ्वीराज को वापस लौटने की सलाह दी। बोला, “जब ऊदल कन्नौज लौट जाएगा, तो मैं तुम्हें फिर सूचित करूँगा।” उधर परिमाल राजा ने ऊदल का नाम व काम सुना। राजा पालकी में बैठकर वहाँ आए। ऊदल ने राजा के चरण छुए। राजा ने उसे छाती से लगा लिया। परिमाल ने ऊदल से अब यहीं रहने का आग्रह किया। ऊदल ने कहा, “आपने प्यार को त्यागकर माहिल की बात मानी। अब हम महोबा नहीं आएँगे।”
रानी मल्हना ने अपने पालन-पोषण की याद दिलाई। ब्रह्मानंद के भी तुम ही रखवाले हो। तब ऊदल ने बताया कि मैं कहकर नहीं आया। आल्हा से छिपकर बहाने से आया हूँ। पृथ्वीराज या और कोई शत्रु आक्रमण कर दे, तो सूचना भेजना, मैं तुरंत आऊँगा। फिर रानी मल्हना को प्रणाम करके ऊदल ढेवा और लाखन ने विदा ली और कन्नौज लौट गए।