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Ketki Ke Phool केतकी के फूल- बुन्देली लोक कथा

एक बार किसी राजा की रानी स्नान करके धूप में बैठ अपने बाल सुखा रही थी। इसी समय सपरना की छत पर बैठे दो पक्षी सुआ-सारो आपस में बातचीत कर रहे थे। रानी दोनों  पक्षियों की बातें ध्यान से सुन रही थी। सुआ बोला-‘सारो, तुम्हारे सिरसे खूब सुगन्ध आ रही है। आज क्या तुम कोई बढ़िया तेल डालकर आई हो।’ सारो ने उत्तर दिया-‘नहीं, मैं कभी कोई तेल-ऐल नहीं डालती। तुमको मालूम नहीं मैं पूर्व जन्म में एक राजा की रानी थी। उस समय मैं नित्य केतकी के फूल Ketki Ke Phool का तेल सिर में डाला करती थी।

Ketki Ke Phool की बास बहुत दिनों तक रहती है। उस समय की वह सुगन्ध अभी तक बनी हुई है।’ सारो की बात सुनते ही रानी बाल सुखाना भूल गई। वह बालों को बांधकर शीघ्र उठ खड़ी हुई और मन-ही-मन कहने लगी- मैं भी तो एक राजा की रानी हूँ। मैं केतकी के फूल मंगाकर क्यों न उनका तेल अपने सिर में डाला करूँ?

रानी ने राजा के पास जाकर कहा-‘मुझे केतकी के फूल मंगा दो। आज से मैं केतकी के फूलों का तेल सिर में डाला करूँगी।’ राजा ने जवाब दिया-‘केतकी के फूल आसानी से नहीं मिलते हैं। खोज करके मंगवा दूँगा।’ रानी हठ पकड़ गई कहने लगी-‘जब तक केतकी के फूल न आ जायेंगे, मैं भोजन न करूँगी, राजसी कपड़े न पहनूँगी, फल-फूल खाकर और सादे कपड़े पहिन कर रहूँगी।’ राजा ने शीघ्र केतकी के फूल मंगवा देने की प्रतिज्ञा की।

राजा ने अपनी राजधानी और राज्य भर में डोड़ी पिटवा दी कि जो कोई Ketki Ke Phool केतकी के फूल ला देगा या उसका पता बतायेगा, उसे पाँच हजार मुहरें इनाम दी जायेंगी।’ डोड़ी पिटवाए एक मास हो गया, पर न कोई फूल लेकर आया, न किसी ने उनको पता बतलाया। राजा को चिन्ता हुई। इस बार राजा ने राज्य भर के सब गुणी और चतुर लोगों को बुलाया और उनसे कहा-‘मुझे, केतकी के फूलों की बड़ी जरूरत है। जो उन्हें ला देगा, मैं उसे दस हजार मुहरे इनाम में दूँगा। साथ ही उसका उपकार भी मानूँगा। जो कोई इस काम को करने का साहस रखता हो वह मेज पर सोने के थाल में रखे पाँच पान के बीड़ा को उठा ले।’

राजा की बात सुनकर सभा में सन्नाटा छा गया। सब एक-दूसरे के मुँह की ओर ताकने लगे। कुछ समय यह देख कर राजा ने फिर कहा-‘बड़ी लज्जा की बात है! क्या मेरे राज्य में एक भी ऐसा बहादुर आदमी नहीं जो केतकी के फूल जा सके! क्या सभी आलसी हो गये?’ राजा की यह चुभती हुई बात सुनकर एक बहेलिया का पुत्र उठ खड़ा हुआ। उसने राजा की मेज के पास जाकर पान का बीड़ा उठा लिया। बोला-‘महाराज, मैं केतकी के फूल लेने जाता हूँ या तो मैं फूल लेकर ही आऊँगा या फिर जन्म भर आपको मुँह न दिखाऊँगा।’

राजा ने उसकी सराहना करके कहा-‘शाबाश वीर ! तूने इस राज की लाज रख ली। परमेश्वर मुझे तेरे काम में सफलता दे।’ राजा के जी में जी आया। उसने बहेलिया के लड़के को राजमहल से आवश्यक सामान और राह खर्च ले लेने की आज्ञा दे दी।

बहेलिया का लड़का राजा के अस्तबल से एक उत्तम अबलख  घोड़ी ले आया। फिर उसने घोड़ी का सब साज-बाज भी लिया। उसके माथे पर सुनहली पान का डठूला लगाया; गले में कंठा पहिनाया, पीठ पर सुनहली जीन डाली, ऊपर से तारकशी के काम का पसमीने का तहरू डाला, बढ़िया तंग, चाँदी की रकाब और मोतीचूर जड़ी लगाम लगाई, रेशम का जेरबन्द, कानों और माथे पर जड़ाऊ कनगियाँ लटकाई, मोतियों की लड़ी लगीं अमेटी-पिछेटी दुमची लगाई और इस तरह घोड़ी को अच्छी तरह सजाकर उस पर सवार हो गया।

अब सवार का ठाट भी सुनो। बहेलिया का लड़का भरा-पूरा जवान था। देखने में वह शेर का सा बच्चा दिखता था। उसका शरीर गोरा और चेहरा गुलाब के फूल के समान खिला हुआ था। वह सिर पर जरी का मड़ील बांधे, कीमखाब का अंगरखा और मिसरू का पैजामा पहिने, कमर में चंदेरी का बना रेशमी जरी का फेंटा बांधे, जिसमें नक्काशी के काम का चाँदी की मूठ लगा पेशकब्ज खुला हुआ था। बगल में मखमली म्यान में तेगा लटक रहा था। कान में बड़े-बड़े मोती लगा बाला और गले में सूबेदारी कंठा। मुँह में पान का बीड़ा चबाता हुआ, पैरों में लड़ीदार चरकना जूता पूरे बुन्देलखण्डी ठाट में वह बहुत भला मालूम होता था।

इस तरह वह उस अलबेली घोड़ी पर सवार होकर कभी कदम, कभी दुलकी, कभी रोहल, कभी सागाम और कभी सरपट चाल चलता हुआ मजे के साथ चला जा रहा था। इस तरह वह अनेक सुनसान बियावान जंगलों, बड़ी-बड़ी नदियों और अनेक छोटे-बड़े नगरों को लांघता हुआ मंजिल-दर- मंजिल चला जा रहा था। एक दिन वह संध्या समय नदी किनारे एक पीपल के पेड़ के नीचे ठहर गया। घोड़ी एक दूसरे पेड़ के नीचे बांध दी। थका-मांदा तो था ही। थोड़ा बहुत खा-पीकर बिस्तर लगाकर लेट गया।

इस पीपल पर एक हंस-हंसनी का जोड़ा रहता था। हंस  के अंडों को एक सर्प लपका था। जब-जब हंसनी अंडे देती, सर्प रात के समय आकर उनको खा जाता। इस कारण हंस-हंसनी दोनों सदा दुःखी रहा करते थे। इस बार हंसनी ने फिर अंडे दिये। रात के समय हंस-हंसनी दोनों मोती चुगने मानसरोवर को जाया करते थे। हमेशा की तरह आज भी वे दोनों मोती चुगने चले गए। रात के समय सर्प आया और बहेलिया के बिस्तर पर से पेड़ पर चढ़ने लगा। बहेलिया की निगाह उस पर गई। उसने झट बगल से तेगा निकालकर उसका सिर काट लिया। फिर उसकी लाश को कुछ दूर ढाल के नीचे ढंककर निश्चित हो सो गया।

बड़े तड़के जब हंस-हंसनी मोती चुगकर लौटे तो उन्होंने किसी मनुष्य को पेड़ के नीचे सोते देखा। हंस कहने लगा-‘आज इतने दिन बाद चोर पकड़ पाया। यही आदमी अपने अंडों को खा जाता था। अब इसे मैं अपनी चोंच की मार से अभी यमपुर को पहुँचाता हूँ।’ हंसनी बोली-बिना बिचारे कोई काम नहीं करना चाहिये। पहले अपने अंडों को देख लो कि रखे हैं या नहीं। फिर जैसा ठीक समझो, करना।

उसने पीपल की खोखट में जाकर देखा तो अंडे रखे हुये थे। वापिस आकर हंसनी से कहने लगा-‘तुमने अच्छी सलाह दी। अंडे रखे हुए हैं और बिना बिचारे मैं मुसाफिर को मार डालता तो पीछे बहुत पछतावा होता।’ इसके बाद हंस ने मुसाफिर को जगाकर पूछा-‘तुम कौन हो और कहाँ जा रहे हो?’ बहेलिया ने अपना परिचय देकर कहा-‘मैं केतकी के फूल लेने जा रहा हूँ। कल रात को एक सर्प उस पेड़ पर चढ़ रहा था। मैंने उसे मारकर उस ढाल के नीचे ढंक दिया है।

सर्प को देखकर हंस समझ गया कि यही दुष्ट मेरे अंडे खा जाया करता था। उसके मर जाने से हंस बहुत खुश हुआ। उसने अपना उपकार करने वाले मुसाफिर के साथ अपनी लड़की हंसकुमारी का विवाह कर दिया। हंसकुमारी को वहीं छोड़ बहेलिया केतकी के खोज में आगे  बड़ा। चलते समय उसने उसे अपना एक पंखा देकर कहा-‘इसमें यह गुण है कि जिसे यह पंखा दिखा दोगे, उसकी सब बीमारियां तुरन्त मिट जायेंगी। वह चंगा हो जाएगा।’ बहेलिया का पुत्र घोड़ी पर सवार हो आगे बढ़ा। चलते-चलते वह कुछ दिन में एक राजा के नगर में जा पहुँचा। उस नगर के राजा की लड़की कुछ पीड़ित थी। वैद्य, हकीम, डाक्टर सभी इलाज करके हार गये, पर आराम न होता था।

बहेलिया-पुत्र ने यह समाचार सुना तो वह राजमहल पर गया और उसने राजा की लड़की को पंखा दिखा दिया। लड़की तुरन्त चंगी हो गई। उसके समस्त शरीर का कोढ़ मिट गया। राजा ने अपनी उस लड़की का ब्याह बहेलिया पुत्र के साथ कर दिया। अपनी इस रानी को भी वह यहीं छोड़ केतकी के फूल लेने आगे बढ़ा। चलते समय राजा ने इसके खाने के लिये तरह-तरह के पकवान साथ में रख दिये। बहेलिया का लड़का चलते-चलते कुछ दिन में कजली वन जा पहुँचा।

कजली वन का राजा बहुत से हाथी लिए शिकार खेलने बन मे जा रहा था। एक बड़े सफेद हाथी पर राजा बैठा था। उसके पीछे दूसरे बहुत से शिकारी अन्य हाथियों पर बैठे थे। राजा के हाथी के साथ कुछ आदमी सूर्यमुखी हाथ मंे लिये हुए दौड़े जा रहे थे। वे सूर्य की धूप से बचने के लिये राजा के ऊपर उसकी छाया डाल रहे थे। इधर से बहेलिया का पुत्र अपनी अलबेली घोड़ी दौड़ाता हुआ चला आ रहा था। इसका ठाट-बाट भी राजाओं से कुछ कम न था। राजा ने समझा यह भी कहीं का राजा मालूम पड़ता है।

दोनों की भेंट हुई। बहेलिया पुत्र ने अपना पकवान राजा को भेंट में दिया। राजा जंगली था, उसने ऐसे स्वादिष्ट पदार्थ कभी अपने जीवन में न खाये थे। पकवान खाकर वह प्रसन्न हुआ और बहेलिया पुत्र को अपने साथ शिकार पर ले गया। जंगल में जाकर उसने कई शेर मार गिराए। राजा ने उसके गुणों से खुश होकर अपनी लड़की नागकुमारी उसके साथ ब्याह दी। विवाह के पश्चात् बहेलिया-पुत्र ने कहा-‘मैं केतकी के फूल लेने जा रहा हूँ। यदि जीता-जागता बचा तो लौटकर आपके पास आऊँगा। इस समय मुझे जाने की आज्ञा दीजिये।

राजा ने कहा-‘मुझे केतकी के फूलों का पता मालूम है। मैं उनके मिलने का उपाय बतलाये देता हूँ। यहाँ से सात समुन्दर पार एक टापू है। उस टापू पर एक साधु रहता है। उस साधु की कृपा से तुम्हें केतकी के फूल मिल सकेंगे। इस घोड़ी को तुम यहीं छोड़ जाओ और मेरा यह उड़न-खटोला ले जाओ। वह उड़न-खटोला तुम्हें उस स्थान पर पहुँचा देगा।’ बहेलिया का लड़का झट उड़न-खटोले पर जा बैठा। बैठते ही खटोला आकाश में मड़राने लगा।

धीरे-धीरे उसकी चाल तेज होने लगी। वह बहुत शीघ्रता के साथ आकाश में छुक-छुक-छुक करके चलने लगा। बहेलिया पुत्र को उड़नखटोले में बैठकर बड़ा मजा आ रहा था। वह बहुत नीचे अनेक ग्राम, नदी, पहाड़ और मैदानों को छोड़ता हुआ उड़ा जा रहा था। ऊपर से देखने पर नीचे के बड़े-बड़े पहाड़, छोटे ढेलों के समान, महान वृक्ष गमले में लगे छोट पौधे के समान और बड़ी-बड़ी नदियां पतली रेखा के समान मालूम होती थी। मनुष्य और चौपाये तो छोटे-छोटे चींटा-चींटियों के समान दिखाई देते थे।

इस तरह आकाश में उड़ते-उड़ते वह कुछ दिन में सात समुन्दर पार उस टापू में जा पहुँचा, जहाँ साधु तपस्या करता था। उड़न-खटोले से उतर कर बहेलिया-पुत्र साधु के आश्रम में पहुँचा। देखा, साधु समाधि लगाये बैठा है। वह उसकी सेवा करने लगा। वह नित्य आसन को झाड़-बुहार कर साफ करता, जंगल से लकड़ी लाकर धूनी चेता देता और फल-मूल खाकर वहीं पड़ा रहता। कुछ दिन बाद साधु की समाधि खुली। इसे देख उसने  पूछा-‘बच्चे, तू कौन है और इधर सात समुन्दर पार किस लिये आया है।’ बहेलिया-पुत्र ने कहा-‘मैं आपका एक सेवक हूँ। केतकी के फूल लेने आया हूँ। आप मुझ पर प्रसन्न है तो मुझे केतकी के फूल मिलने का उपाय बतला दीजिये।’

साधु बोला-‘बच्चे, तूने मेरी सेवा की है। तूने मेरे आश्रम को साफ-सुथरा रखा है। मैं तुझ पर प्रसन्न हूँ। मैं तुझे केतकी के फूल मिलने का उपाय बतलाये देखा हूँ। ध्यान से सुन। मेरे इस आश्रम से थोड़ी दूर पर एक मनोहर बाग है। उस बाग में तुमको दो स्त्रियाँ मिलेंगी। एक बहुत सुन्दर और दूसरी बहुत मैली-कुचैली और कुष्ठ की वजह से जिसके अंग-अंग से पीव चू रही होगी। तू उस सुन्दर स्त्री की ओर ध्यान न देकर मैली-कुचैली स्त्री का हाथ पकड़ लेना। बस तेरा काम सिद्ध हो जायेगा। ध्यान रखना अगर सुन्दरी के मोह में फँसा तो सब काम बिगड़ जायेगा।’

साधु से आज्ञा लेकर बहेलिया का पुत्र उस रमणीक बाग में जा पहुँचा और उसकी शोभा देखता हुआ इधर-उधर टहलने लगा। उसने देखा, बाग की धरती-चाँदी की है, उसमें मूंगे की सड़कें बनी हुई है। सोने के वृक्ष है, जिनमें हरित मणि के पत्ते और पद्यराग के फूल-फूल रहे हैं। इन वृक्षों पर नाना प्रकार के सुनहले, हरे-नीले, लाल और बैंगनी रंग के पक्षी, जिनकी चोंचें और पंख रत्नों से जड़े हुये हैं, किलोले कर रहे हैं।

बाग की शोभा को देखकर बहेलिया-पुत्र बहुत प्रसन्न हुआ। उसने देखा, मध्य बाग में एक सुन्दर बंगला बना हुआ है। जिसमें दरवाजों पर रेशमी परदे और मोतियों की झालर लटक रही है। बंगले के मध्य सुवर्ण के सिंहासन पर एक अत्यन्त रूग्णता सर्प बैठा वीणा बजा रही है। कैसी है वह ? बाल-बाल मोती गुहें, सोलह श्रृँगार किये, बारह आभूषण पहिने, सुरमा-सिन्दूर लगाए, गज मोतियों से मांग भरे, केशर-कस्तूरी का लेप करे, पान खाय, इत्र लगाय, लौंग-इलायची का बटुवा कमर में खोसें हैं।

देखने में पूनो (पूर्णमासी) कैसा चन्दा, कोमलता में नेनू (मक्खन), कैसा लौदा, तेज  में होली कैसी झार, सुन्दरता में दीवाली कैसो दिया (दीपक), सुकुमारता में ऐसे कि पान खाय तो गले से पीक दिखाय, गुलाब का फूल ऊपर गिर पड़े तो खून कढ़ आये, लचीलेपन में कनैर कैसी डाल कि लफ-लफ कर दूनर हो जाय। नाजुक इतनी कि फूंक दो तो हवा में उड़ जाय। इस सुन्दरी को देखकर बहेलिया-पुत्र मोहित हो गया और एकटक उसकी ओर देखने लगा।

वह साधु की बात भूल गया। उस स्त्री ने उसे भीतर आने को कहा। ज्यों ही वह भीतर पहुँचा कि उसने उसे तोता बनाकर पिंजरे में टांग दिया। साधु नित्य उसके आने की वाट देखता था। जब तीन दिन बीत गए तब साधु को विश्वास हो गया कि बच्चाराम मोह में फंस गए। साधु टहलता हुआ बाग की ओर गया। देखा तो आप तोते बने पिंजरे में टंगे हैं। साधु ने पिंजरे की सींक खोल उसे बाहर निकाला और अपने कमण्डल का पानी उस पर छिड़क दिया। वह तुरन्त तोते से फिर मनुष्य बन गया।

साधु ने उसे धिक्कार कर कहा-‘तूने मेरा कहना नहीं माना। खैर, अब सचेत किये देता हूँ। अब उस सुन्दरी के जाल में न फंसना। अगर तू अपना काम बनाना चाहता है तो तुझे मैली-कुचैली स्त्री का हाथ पकड़ना चाहिये।’ साधू इतना कहकर वापिस चला गया। बहेलिया-पुत्र फिर बाग में टहलने लगा। कुछ समय बाद उसे वही सुन्दरी युवती अपनी सहेलियों के साथ उस बंगले की ओर जाती हुई दिखाई दी। बहेलिया युवक ने झट उस ओर पीठ फेर ली। वह साधु के बताये अनुसार उस गन्दी स्त्री की खोज में चला।

आगे कुछ दूर बढ़ा ही था कि उसे एक बहुत ही कुरूप और फटे-पुराने कपड़े पहिने एक स्त्री आती हुई दिखाई दी। उसका शरीर गल रहा था। पीव चूँ रही थी। बदबू से माथा फटा जाता था। बहेलिया-पुत्र ने साहस करके जल्दी से जाकर उसका हाथ पकड़ लिया। हाथ पकड़ते ही वह उस पहली स्त्री से भी अधिक रूपवान सोलह वर्ष की लड़की बन गई। वह उसे देखते ही जोर से खिल-खिलाकर हँस पड़ी। उसके हँसते ही बाग में केतकी के फूल बरसने लगे।

सारा बाग सुगन्ध से महक उठा। बहेलिया-पुत्र केतकी के फूलों को बाग में बिछे हुये देखकर उनको बीनने और अपने उपरने में रखने लगा। इतने में पीछे से साधु ने आकर उसकी पीठ पर एक सोटा जमाकर कहा-‘अरे नादान, यह क्या कर रहा है? जब पेड़ तेरे कब्जे में आ गया तब तू उसके पत्ते-फूल क्यों बटोरता फिरता है? ये फूल तो अब तेरी घर की खेती बन गए। जब चाहे जितने बटोर लेना। यहाँ से क्यों बेकार का बोझा समेट रहा है? तू इस पद्मिनी को ले जा, वह तेरी हो गई है।

यह जब-जब हँसेगी, फूलों के ढेर लग जायेंगे।’ बहेलिया का पुत्र साधू से विदा ले, पद्मिनी को उड़न-खटोला में बैठाकर कजली वन के राजा के यहाँ आ पहुँचा। यहाँ आते ही उसने राजकुमारी की विदा कराई। राजा ने उसे दहेज में बहुत से हाथी देकर कहा-‘जब-जब तुम मेरी याद करोगे, मैं सैकड़ों हाथी लेकर तुम्हारे पास पहुँच जाऊँगा।’

दहेज में मिले हाथी-घोड़ें आदि सामान को आदमियों द्वारा घर को रवाना करके स्वयं उड़न-खटोले पर बैठ अपनी दूसरी रानी के पास जा पहुँचा। इस रानी को भी खटोले में बिठाकर और दहेज में मिला सामान आदमियों द्वारा घर को रवाना करके वह हंसकुमारी के पिता के पास गया। हंस ने उसका खूब स्वागत किया। दो-तीन दिन पहुनई करके हंसकुमारी की विदा कर चारों रानियों समेत वह अपने घर आ गया। बहेलिया-पुत्र के नये महल बन गए और वह राजसी ठाठ से रहने लगा।

इस समय उसके पास धन-दौलत, हाथी-घोड़ा, दास-दासी किसी बात की कमी न थी। इधर नाई ने राजा को खबर दी कि बहेलिया का लड़का आ गया है। वह साथ में बहुत सी धन-दौलत और हाथी-घोड़ा लाया है। उसे बुलाकर पूछिये कि वह केतकी के फूल लाया है या नहीं।  राजा ने सिपाही भेज कर कहलाया कि केतकी के फूल लेकर तुरन्त चलो। बहेलिया बोला-‘केतकी के फूल ऐसे नहीं भेजे जाते। महल से सोने का थाल और रेशम का रूमाल ले आओ।’ सिपाही सोने का थाल और रेशमी रूमाल ले आया। पद्मिनी के हँसते ही फूल बरसने लगे।

बहेलिया ने फूलों को बीनकर सोने के थाल में रख कर, रेशमी रूमाल से ढँककर नौकर के हाथ राजा के पास भिजवा दिया। पीछे आप भी जा पहुँचा। केतकी के फूलों की सुगंध से राज-सभा महक उठी। केतकी के फूल पाकर राजा, रानी और सब लोग प्रसन्न हुए। रानी की मनोकामना पूर्ण हुई। वह केतकी के फूलों का तेल बनवाकर सिर में डालने लगी। कहावत है-‘पक्षियों में कौआ और आदमियों में नौवा’ (नाई) बहुत चालाक हुआ करते हैं। जो नाई राजा के महल में काम करता था वहीं बहेलिया के कुँवर के घर भी काम करने लगा था।

एकदिन नाई ने राजा से चुगली की- महाराज, बहेलिया के घर चार रानियाँ ऐसी रूपवती हैं, जैसी आपने कभी सपने में भी न देखी होगीं। वे सब आपके लायक हैं। इनमें एक रानी, जिसका नाम पद्मिनी है, बहुत ही सुन्दर है। जैसी वह सुन्दरी है, वैसे ही इसमें गुण भी है। जब वह हँसती है तब केतकी के फूल बरसने लगते हैं। आपको महारानी के लिये केतकी के फूलों की जरूरत पड़ती ही रहेगी। रोज-रोज फूल मंगाना आपको शोभा नहीं देता। इससे अच्छा हो कि कोई तरकीब निकालकर वे सब रानियाँ महल में आ जाये।’

राजा बोला-‘दूसरे की स्त्रियाँ कैसे ले लें ? कोई तरकीब बताओ, जिससे बदनामी न हो और काम बन जाये।’ नाई ने कहा-‘महाराज, यह कौन बड़ी बात है। बहेलिया को बुलाकर कहिये कि राजकुमारी का विवाह है। दस मानी धान के चावल रात भर में निकाल दो। एक भी टूटने न पावे। अगर काम पूरा  न कर सकोगे तो तुम्हारी सब जायजाद छीन ली जायेगी। यह तो आप जानते ही हैं कि वह रात भर में इस काम को नहीं कर सकेगा। बस, सबेरे उसकी सब रानियाँ छीन लीजिये।

राजा ने नाई की सलाह के अनुसार दस मानी धान बहेलिया के घर भिजवा दिये और कहला भेजा कि सबेरे तक चावल तैयार हो जाँय। एक भी न टूटे, नहीं तो तुम्हारी सब जायजाद जब्त कर ली जायेगी। बहेलिया राजा की इस विचित्र आज्ञा को सुनकर चकित हो गया। कुछ कारण समझ में न आया। उसने हंसकुमारी के पिता का स्मरण किया। हंस हजारों पक्षी लेकर तत्काल आ गया। पक्षियों ने रात ही में सब धान फंकल कर चावल निकाल दिये। एक भी न टूटा। सबेरा होते ही बहेलिया ने चावल राजा के पास भेज दिये।

काम पूरा हुआ देखकर राजा तथा नाई दोनों को बड़ा अचम्भा हुआ। नाई बोला-‘महाराज, चिंता की क्या बात है? एक काम पूरा कर दिया तो क्या हुआ। दस बार उससे कहो कि मुझे बेटी के दहेज के लिये पाँच सौ हाथियों की जरूरत है। शीघ्र मंगाकर दो, नहीं तो तुम्हारी जायजाद जप्त कर ली जायेगी।’ राजा ने ऐसा ही किया। बहेलिया-पुत्र ने राजकुमारी के पिता को स्मरण किया। वह अपने साथ हजारों हाथी लेकर आ गया। हाथी सब जंगली थे। नगर में आकर उत्पात मचाने लगे। उन्होंने सैकड़ों घर गिरा दिये और बहुत से आदमियों को मार डाला।

नगर भर में आतंक छा गया। राजा ने हाथियांे से डर कर बहेलिया पुत्र से कहा-‘मुझे इन हाथियों की जरूरत नहीं है। तुम इनको शीघ्र यहाँ से हटा दो।’ कंजली वन का राजा अपने हाथी लेकर वापिस चला गया। राजा ने नाई को बुलाकर डांटा कहा-‘तुम्हारी सलाह तो नगर भर को चौपट किये देती थी। कहो, अब क्या करना है?’ नाई ने इस बार अपनी छबीली बुद्धि लगाकर कहा-‘महाराज, आप निराश न हो। इस बार मैं ऐसा काम बतलाता हूँ जो बहेलिया के सात पुरखे भी न कर सकेंगे।

इस बार आपको उसकी रानियाँ अवश्य मिल जायंगी।’ ‘बहेलिया से कहिये कि राजकुमारी का विवाह है। तुम स्वर्ग में जाकर हमारे पुरखों को विवाह का निमंत्रण दे आओ। कहिये, कैसी तरकीब है? स्वर्ग जाने वाला आदमी फिर कभी लौटाता है?’ राजा ने बहेलिया के पुत्र को बुलाकर स्वर्ग में पुरखों को न्यौता दे आने को कहा। बहेलिया समझ गया कि यह सब नाई की करामात है। उसने कुछ सोचकर कहा-‘अच्छी बात है। मैं पुरखों को न्यौता देने जाता हूँ। जिन्हें बुलाना है, उन्हें चिट्ठियाँ लिख दें।

राह-खर्च के लिये एक हजार मुहरे मेरे घर भिजवा दें। इसके सिवा सौ गाड़ी सूखी लकड़ी शमशान में डलवा दें। मैं आज से सातवें दिन स्वर्ग को जाऊँगा।’ राजा ने सब प्रबन्ध कर दिया। इधर बहेलिया के बेटे ने एक चतुर कारीगर बुलाकर अपने घर के भीतर से शमशान तक, जहाँ लकड़ियों का ढेर पड़ा था, सुरंग तैयार कराई। सातवें दिन बहेलिया ने राजा के घर जाकर कहा-‘चिट्ठियाँ दीजिये। मैं स्वर्ग जाने की तैयारी कर चुका हूँ।’ मंत्री ने चिट्ठियाँ दी। नाई ने भी अपने पिता के लिये एक चिट्ठी दी।

चिट्ठी लेकर बहेलिया शमशान की ओर चला। राजा, मंत्री, नाई और बहुत से नगर-निवासी उसे पहुँचाने शमशान पहुँचे। बहेलिया का पुत्र सबको राम-राम करके लकड़ियों पर चढ़ गया। नीचे से आग लगा दी गई। जब आग तेज होने लगी, यह लकड़ियों के पीछे छिप गया और धीरे-धीरे नीचे उतर कर सुरंग के रास्ते अपने घर पर आ गया। लकड़ियां धूं-धूं करके जलने लगी। अवसर पाकर नाई ने राजा से कहा-‘कुसूर माफ हो, इस बार मेरी तरकीब काम कर गई।

सबके देखते बहेलिया जल मरा। अब चारों रानियों को महल में बुला लीजियेगा।’ राजा ने उत्तर दिया-‘वह दो माह की अवधि ले गया है। अवधि तो पूरी हो जाने दो। ऐसी उतावली क्यों करते हो?’ इधर बहेलिया आनन्द से अपने घर के भीतर रहने लगा। उसने किसी दूसरे नगर के सुनार से एक सोने की पेटी, उस्तरा और कैंची तैयार करा ली।

राजा की चिट्ठियों का जवाब भी एक विचित्र स्याही से लिखा लिया। दो माह तक वह घर में छिपा रहा। इस बीच में उसने हजामत नहीं बनवाई। बाल और नाखून बढ़ जाने से उसकी सूरत भयंकर दिखाई देने लगी। अवधि पूरी होने पर एक दिन उसने राजसभा में जाकर राजा को प्रणाम करके कहा-‘महाराज, मैं विवाह की चिट्ठियाँ आपके पुरखों को दे आया। आपके पूज्य पिताजी स्वर्ग का राज्य करते हैं। सब देवता और उनकी प्रजा उनसे खुश हैं।

राजकुमारी के विवाह का निमंत्रण पाकर वे बहुत प्रसन्न हुए, परन्तु वे विवाह में शामिल नहीं हो सकेंगे। उसी समय वे एक बड़ा यज्ञ कर रहे हैं। मेरे वहाँ पहुँचने से उन्हें प्रसन्नता हुई। वहाँ उन्हें सब प्रकार का सुख है। दुःख है तो बस यही कि वहाँ नाइयों की बहुत कमी है। उनकी सेवा के लिये उनके पास कोई अच्छा नाई नहीं है। नाई न होने से मैं भी हजामत नहीं बनवा सका। देखिये, मेरे बाल कितने बढ़ गये हैं। आपके पूज्य पिता जी ने अपने इस नाई को फौरन बुलाया है।’ इतना कहकर उसने   जेब से निकलकर स्वर्ग की चिट्ठियाँ दीं।

राजा ने उन्हें पढ़ा। उनमें भी यही बात लिखी थी। इसके बाद एक चिट्ठी नाई को देकर कहा-‘लो, यह तुम्हारे पिताजी की चिट्ठी है। स्वर्ग में नाइयों की कमी है। इस कारण राजा साहब व तुम्हारे पिता ने तुम्हें शीघ्र बुलाया है। जल्दी प्रबन्ध करके चले जाओ। स्वर्ग में दोना-पत्तल बहुत महंगी है। रुपये की एक-एक बिकती है। इसलिये तुम्हारे पिता ने कहा है कि कुछ पत्तलें भी लेते आना।’ इतना कहकर उसने सोने की पेटी और उस्तरा नाई को देकर कहा-लो, तुम्हारे पिता ने तुम्हारे लिये यह भेंट भेजी है।’

सोने की पेटी-उस्तरा पाकर नाई बहुत प्रसन्न हुआ। राजा ने उसे शीघ्र स्वर्ग जाने का आदेश दिया। नाई स्वर्ग जाने की तैयारी करने लगा। उसने अपना मकान गिरवी रखकर एक हजार रूपये की पत्तलें खरीदीं। राजा ने शमशान में सौ गाड़ी लकड़ियाँ भिजवा दीं। नाई ने खरीदी हुई सब पत्तलें लकड़ियों पर रख ली और बीच में आप बैठ गया। जाते समय नाई ने बहेलिया के पुत्र से पूछा-‘मालिक, आप तो स्वर्ग हो आये हैं। वहाँ पहुँचने की पूरी-पूरी तरकीब मुझे बता दो।’

बहेलिया के बेटे ने कहा-‘मैंने नीचे से लकड़ियों में आग लगा दी है। तुम निश्चिन्त रहो। आप फर्राटे में सीधे स्वर्ग पहुँच जाओगे।’ आग धूँ-धूँ करके जलने लगी और थोड़े ही समय में नाई पत्तलों समेत जलकर भस्म हो गया। धीरे-धीरे तीन महीने बीत गये। एक दिन नाइन ने आकर बहेलिया से पूछा-‘लालाजी, तुम तो दो महीने में ही लौट आये थे। तुम्हारे खवास को गये तो तीन माह हो चुके। वे अब तक नहीं लौटे?

बहेलिया पुत्र ने कहा-‘मालूम होता है, वे लोभ में फँस गए है भौजी। स्वर्ग में शादियों की बड़ी भरमार है। खूब रूपया कमाकर लायेंगे।’  धीरे-धीरे तीन माह और बीत गये। नाई के वापिस न आने से नाइन बहुत दुःखी थी। उसने बहेलिया के घर जाकर पूछा- ‘बहेलिया लाला, वे तो अभी तक नहीं आये। क्या बात है? मैं तो उनकी फिकर में मरी जाती हूँ। न हो तो उनको जल्दी आने के लिये चिट्ठी लिख दो न?’

बहेलिया-पुत्र ने कहा-‘अब वह नहीं आयेगा। वह तो उसी दिन जल मरा। मरा हुआ आदमी कहीं वापिस आता है।’ नाइन रोती-पीटती घर चली गई। राजा को भी नाई के मरने का भरोसा हो गया। उसे अपनी करनी पर रंज हुआ। उसने बहेलिया के पुत्र को बुलाकर माफी मांगी और उसके गुणों और बुद्धिमानी को देखकर अपनी लड़की उसे ब्याह दी। राजा के कोई लड़का नहीं था। सब राज-काज बहेलिया का पुत्र ही देखने लगा। राजा, रानी बहेलिया का पुत्र सब आनन्द से रहने लगे। रोज ताजे-ताजे केतकी के फूल पाकर उनका तेल केशों में डालकर रानी भी प्रसन्न रहने लगी।

बुन्देली लोक कथा परंपरा 

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