Homeबुन्देली व्रत कथायेंKarva Chauth Vrat  करवा चौथ व्रत कथा

Karva Chauth Vrat  करवा चौथ व्रत कथा

बुन्देलखण्ड की औरतें अपने पति की लंबी उम्र के लाने Karva Chauth Vrat रखती है किसकी कथा इस प्रकार है कि एक गाँव में एक भरो-पूरौ परिवार रत्तो । घर में खूब खेती किसानी होतत्ती । गइयाँ भैंसे खेत सब कछू हतो उनके घर में, कोनऊ तरा की कमी नई हती। घर में माते उर मातैन अच्छे ठाट ठाट सै रत्ते गाँव में। गाँव उर आस पास के लोग उनको खूबई आदर सत्कार करत्ते।

माते के सात लरका उर एक बिटिया हती । सबई भइया अपनी घरगिरस्ती के कामन में बिदे रत्ते । सात भइयन के बीच में एक बैन भौतई लाड़ली हती । सब भइयन ने मिल करकै एक अच्छे भरे पूरे घर में बैन कै अच्छे शाके कौ ब्याव कर दओ ।

बैन अपने घर में सुख शान्ति सैं रन लगी । मायकौ जादाँ दूर नई हतो । मताई बाप उर भईन खौं जब बैन की खबर आऊत्ती सोऊ तुरन्तई लुँआ ल्याउत ते मायकौ उर सांसरो दोई भरे पूरे हते। ऊ ऐई ऐसे सुख भोगत – भोगत कैऊ सालै कड़ गईती । उनकी सातई भइयन के खूब शाके के ब्याव हो गये। मायकें में सात भौजाई उर एक ननद अब का कने आदर सत्कार की।

एक दिना मायकई में करवा चौथ आ गई । सबई सातई भौजाई उर बैन ने उपास करों । उनखौं खबर नई रई । वे उदना दिन भर सिलाई करत रई, ऊके पति के शरीर भर में कांटे चुभ गए, उर वौ बीमार हो गओं। करवा चौथ के व्रत में दिनभर अन्न पानी नई लओं जात। चंदा ऊँगे वे चौथ मइया की पूजा करकै नये उन्ना पैरे जात । उर फिर पानी पियों जात, उर भोजन करें जात ।

बैन दिन भर पानी के बिना इकदम मुरजा गई । भइयन सैं जौ सब नई देखो गऔं । उनन ने सोसी कै चंदा ऊगबै में तौ अबै भोतई देर है। जबनौ तौ बैन अदमरिअई हो जैय । तौ कछू उपाय करो चइयै। जीसै बैन जल्दी खापी ले ।

एक भइया दिन बूड़ई सै पेड़े पै चढ़े गओं। एक भइया नै पेड़े पै आगी बरत दिखा दई । दो तीन भइया बैन के लिंगा ठाढ़े होकैं कन लगें कै देखो बैन चंदा ऊँग आव । उठौ जल्दी पूजा करकै पानी पीले भोजन करलों भौत देर हो गई तुमें । भौजाई तौ भइयन की चाल समज गई ती सो उन्ने पूजा नई करी । अकेलै बैन ने भईयन की बात पै विश्वास करकै पूजा कर लई । चन्दा खौं अर्ध दै दओं। चौथ मइया की पूजा करकै पानी पी लओं जीसै उनकौ व्रत खण्डित हो गओ ।

उर चौथ मइया उनसौं नाराज हो गई। भइया हरे उने जल्दी टाठी परस कै ल्आये उर कन लगे कै बैन तुम दिन भर की भूकी हो, भोजन करलो । भइयन के कये सैं जई सै बैन ने पैलो कौर टोरौ सोऊ ऊमे बार आ गओ । दूसरे कौर लेतई में छींक भई । उनकी कछू समज में नई आरई ती कैं जौ हो का रओ। उन्ने जईसै फिर खाबौ शुरू करो सोऊ उनके सासरे के एक आदमी ने आकै खबर दई के तुमाये पति सख्त बीमार हैं, तुम जल्दी घरै चलो।

खबर मिलतनई भईया बैन खौं लुआ कैं चले, सोऊ गेलई में उनके पती की अर्थी लयें गाँव के लोग मरघट की ओर जा रये तें । पती की अर्थी देखके बैन ने पागलन की तरा अर्थी खौड्ड बीचई गैल में छेंक लई उर अर्थी के सामेँ लोट गई । ऊ लोगन ने भौतई समजाव अकेले व अर्थी से लिपट गई। उ अपने ब्रत पै पूरौ विश्वास हतो, लोग उयै पागल जान के अर्थी खौं बीच जंगल में छोड़ के चले गये ।

उन्हें सोसी कैं लास उतै सड़गल क समाप्त हो जैय । चील कौवा खालै उयै । ई पगली खौं डरी रनदो। इतै जई सैं लोग लास छोड़कै चल गये सोऊ ऊने उतै एक झुपड़िया बनाकैं लास खौं उतई धर लई । लास में काटई काँटे छिदेते कायकै उदना दिनभर सिलाई करत रई ती । ऊने लाश के हरा-हरा काँटे काड़बौ शुरू करो उर चौथ मइया सैं विनय करत रई, वा उतै रोज चौथ मैया की पूजा करें, उर उनसै क्षमा माँगत रये ।

ऐसई ऐसे साल भर कड़े गई उर वा कांटे काड़त रई । करवा चौथ आई सो ऊने अच्छी तरा सैं पूजा करी र पति की आँखन के काँटे काड़े। सोऊ ऊके पति उठकै बैठ गए उर मड़िया की जगा पै मिहिल बन गओं। मइया की कृपा सैं सबई सुख साधन जुट गये, दोई जने आनंद सै रन लगें। साल भरमें ऊके ससुरार बारन ने सोस लई कै व पागल भग गई हुइयै उ सै ।

उतें जाकै देखो कैं झुपड़िया की जगा पै मिहिल ठाढ़ो हो गऔं । उतई बैठे दोई जने चौपड़ खेल रयेते । बड़ो अचम्भौ भओं सबई खौं । जा हती चौथ मइया के ब्रत की कृपा । चौथ मइया ने बैन के सुहाग खौं अमर कर दओं। जैसी बैन पै मइया की कृपा भई, ऐसई वे सबपै कृपा करत रये, सबकौ सुहाग ऐसऊ हरौ भरौ बनो रये ।

भावार्थ

एक गाँव में सुसंपन्न परिवार निवास करता था। घर में बहुत अच्छी खेती होती थी । परिवार में अनेक गायें-भैंसें पली थीं । दूध-दही अनाज से भरा-पूरा घर था वह । परिवार के मुखिया मा और मातैन बड़ी शान रहते थे। आस-पास के गाँवों ‘उनका खूब आदर सत्कार था । माते के सात लड़के और एक लड़की थी । सातों लड़के घर-गृहस्थी के कार्यों में व्यस्त रहते थे।

सात भाइयों के बीच में एक बहिन बहुत लाड़ली थी। सभी भाई उससे प्यार करते थे। धीरे-धीरे अच्छे भरे-पूरे घरों में सातों भाइयों की बढ़िया शादियाँ हो गईं। अच्छी फूल सी सुकुमार और सुंदर वधुओं से घर की शोभा में चार चाँद लग गये । सात- भाभियों के बीच में एक ननद हाथों-हाथों पर रहती थी।

सातों भाइयों ने मिल-जुलकर अपनी बहिन की शादी एक अच्छे भरे-पूरे परिवार में कर दी। बहिन की ससुराल उसके मायके से दस-बारह किलोमीटर दूरी पर ही थी । हर पर्व और त्योहार के अवसर पर बहिन आती-जाती रहती थी। ससुराल में वह घर की लक्ष्मी थी, तो वह मायके की लाड़ली बेटी थी ।

‘करवा चौथ ‘ के त्योहार के अवसर पर उसका बड़ा भाई अपनी बहिन को अपने घर ले आया। आते ही भाभियों ने उसका खूब आदर सत्कार किया। सभी भाभियों ने ‘करवा चौथ’ का व्रत रखा। भाभियों को देखकर बहिन ने भी उपवास किया।

यह महिलाओं का बहुत कठोर व्रत है। इस उपवास में महिलाओं को चंद्रोदय के पूर्व तक निराहार और निर्जल रहना पड़ता है। चंद्रमा को अर्घ्य देकर और चौथ मइया की पूजा करने के बाद ही जल और भोजन ग्रहण किया जाता है । दिन भर भूखी-प्यासी रहने के कारण बहिन पूरी तरह से मुरझा गई थी। अपनी बहिन की दुर्दशा को देखकर सातों भाई बहुत दुखी थे ।

वे सोचते थे कि हमारी बहिन जल्दी से अन्न-जल ग्रहण कर ले। बहिन दिन भर सिलाई करती रही, जिससे और अधिक थक गई थी । भाइयों को अपनी बहिन पर बहुत दया आ रही थी । जैसे-तैसे पूरा दिन निकल गया और रात हो गई, चारों तरफ अंधेरा छा गया। अभी चंद्रोदय होने में दो-तीन घंटे की देरी थी । सभी भाई मिल-जुलकर उपाय सोचने लगे।

एक भाई बाहर जाकर एक पेड़ पर चढ़कर उस पर आग जलाने लगा। एक भाई खड़ा होकर चलनी दिखाने लगा । दो भाई उसे छत पर ले जाकर बोले कि देखो बहिन चंद्रमा उदित हो गया है। चलो जल्दी चौथ मइया की पूजा करके पानी पी लो, भोजन कर लो, पूरा दिन गया है । है तुम भूख-प्यास के कारण मुरझा गई ।

भाभियाँ तो उनकी चाल समझ गईं। उन्होंने पूजा प्रारंभ नहीं की। बहिन तो बहुत भोली थी । भाइयों के कहने से चौथ मइया की पूजा विस्तार ली और पंद्रह मिनिट में पूजा पूरी कर ली । उधर उनके भाई जल्दी से थाली लगाकर ले आये । दो भाई खड़े होकर कहने लगे- बहिन जी ! अब आप जल्दी से भोजन कर लीजिये, बहुत देर हो गई है।

अपने भाइयों के कहने से ज्यों ही उसने रोटी का पहला कौर तोड़ा, तो उसमें बाल आ गया। दूसरा कौर तोड़ते ही बहिन के ससुराल के एक आदमी ने आकर खबर दी कि तुम्हारे पति सख्त बीमार हैं। और आप जल्दी से घर चलिए । बहिन उस टूटे हुए कौर को थाली में रखकर उस आदमी के साथ ससुराल की ओर चल दी। उसकी ससुराल वहाँ से समीप ही थी । वे लोग घर पहुँच भी नहीं पाये थे कि बीच में ही उसके पति की अर्थी लिए हुए गाँव के लोग दिखाई दिए।

उन्हें देखकर वह पागल सी होकर अर्थी से चिपट गई। लोगों ने उसे बहुत समझाया, किन्तु उसने किसी की बात नहीं मानी। उसने कहा कि मैं लाश को जलाने नहीं दूँगी। अंत में गाँव के लोग हैरान होकर लाश को वहीं छोड़कर चले गये । बहिन उस लाश को सुरक्षित रखकर बीच जंगल में बैठ गई। उसे अपने व्रत और उपवास पर पूरा भरोसा था।

वह सोच रही थी कि चौथ मइया की कृपा से मेरा कभी अनर्थ नहीं हो सकता और मैं कभी विधवा नहीं हो सकती । उसने देखा कि लाश के सारे शरीर में काँटे ही काँटे चुभे हुए थे। वह उस पूरे दिन सिलाई करती रही थी । वह अपनी गलती पर पछताने लगी। उसने जंगल से लकड़ी और घास-फूस एकत्रित करके लाश की छाया के लिए एक छोटी सी झोपड़ी बना ली।

वह रोज पति के शरीर के काँटे निकालती रही और रोज चौथ मइया की पूजा करके उनसे निवेदन करती रही कि माताजी हमारे पति को शीघ्र ही स्वस्थ कर दीजिये और हमारी गलती को क्षमा कीजियेगा । इस प्रकार लाश के काँटे निकालते-निकालते एक वर्ष व्यतीत हो गया। रोज चौथ मइया की पूजा करने से माताजी उससे प्रसन्न हो गई। उसके शरीर के सारे काँटे निकल चुके थे, केवल आँखों के ही काँटे शेष रह गए ।

उसने माताजी से विनय करके ज्यों ही दोनों आँखों के काँटे निकाले, त्यों ही उसके पति ने आँखें खोलकर कहा कि- अरे ! यहाँ मुझे कौन ले आया है? इतना कहकर उसका पति उठकर बैठ गया, उसे देखते बहिन ने सुख और शांति की साँस लेते हुए कहा कि ‘चौथ मइया’ ने मेरे सुहाग को लौटा दिया है।

ऐसा कहकर उसने विधि-विधान से चौथ मइया का पूजन किया। चौथ मइया की कृपा से उसकी झोपड़ी के स्थान पर बड़े-बड़े महल खड़े हो गये, अब क्या था? बहिन अपने पति के साथ उस आलीशान भवन में सुखपूर्वक रहने लगी । उधर उसके भाई भी चिंतित थे। भाइयों ने जब बहिन का ठाट-बाट देखा सो आश्चर्य चकित हो गए। ये सब बहिन की पूजा का ही फल था।

उसके गाँव वाले और परिवार वालों ने सोचा कि अब तो वो लाश सड़-गल ही गई होगी या उसे चील, कौए खा गये होंगे। वह पगलू तो कहीं भाग ही गई होगी। फिर भी कुछ लोगों ने वहाँ जाकर देखा तो बड़ा आश्चर्य हुआ कि वे दोनों तो उस महल में बैठे चौपड़ खेल रहे हैं।

गाँव वालों ने उसके चरणों पर गिरकर पूछा कि ये सब कैसे हुआ है? उसने कहा है कि ये सब चौथ मइया के व्रत-उपवास और उन पर अटूट विश्वास का ही सुफल है। क्योंकि कहा भी है कि ‘विश्वासो फलदायक:’, तभी से अपने अचल सुहाग की रक्षा करने के लिए महिलाएँ ‘का व्रत करती आ रही हैं । ये परंपरा बुंदेलखण्ड में सैकड़ों वर्षों से प्रचालित है ।

बुन्देलखण्ड के त्योहार 

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