Homeबुन्देलखण्ड का सहित्यईसुरी की फागेंIsuri Ki Samajik Chetana ईसुरी की सामाजिक चेतना

Isuri Ki Samajik Chetana ईसुरी की सामाजिक चेतना

Bundelkhand के महाकवि ईसुरी ने लोक जीवन की समस्याओं जैसे शादी-विवाह, खुशी-दुःख, तकलीफ-बीमारी, बुरी आदतों के कुपरिणाम आदि विषयों पर भी उल्लेख करते हुये जनमानस को चेताया है,आगाह किया है। Isuri Ki Samajik Chetana जनमानस को चेतावनी के साथ एक दिशा देती है।

बुन्देलखंड के महाकवि ईसुरी की सामाजिक चेतना

महाकवि ईसुरी ने लोक जीवन की समस्याओं जैसे शादी-विवाह, खुशी-दुःख, तकलीफ-बीमारी, बुरी आदतों के कुपरिणाम आदि विषयों पर भी उल्लेख करते हुये जनमानस को चेताया है,आगाह किया है। Isuri Ki Samajik Chetana जनमानस को चेतावनी के साथ एक दिशा देती है।

 फागें सुन आए सुख होई, दई देवता मोई।
इन फागन पै फाग न आवै, कइयक करौ अनोई।
भोर भखन कौ उगलत रैगओ, कली-कली में गोई।
बस भर ईसुर एक बचो ना, सब रस लओ निचोई।

ईसुरी ने ऋतु वर्णन में एक से बढ़कर एक फागें कहीं है….।

अब रितु आई बसंत बहारन, पान फूल फल डारन।
हानन हद्द पहारन पारन, धाम धवल जल धारन।
कहटी कुटिल कदरन छाई, गई बैराग बिगारन।
चाहत हती प्रीत प्यारे की, हा-हा करत हजारन।
जिनके कन्त अन्त घर से हैं, तिने देख दुख दारन।
ईसुर मौर झौंर के ऊपर, लगे मौर गुंजारन।

 अब दिन आए बसंती नीरे, खलित और रंग मीरे।
टेसू और कदम फूले हैं, कालिन्दी के तीरे।
बसते रात नदी नद तट पै, मजे में पण्डा धीरे।
ईसुर कात नार बिरहन पै, पिउ-पिउ रटत पपीरे।

जै जीजा न बाग में बोलें, सबद कोकला कोलें।
सुनके सन्त भये उन्मादें, भसम अंग में घोलें।
जोगी जगा कटा खां पटकत, बिकी बिरोनी मोलें।
सीतल मन्द सुगंधे पवनें, प्रीत बड़ाउन डोलें।
फैल परे रितुराज ईसुरी, खस न खजाने खोलें।

महाकवि ईसुरी Mahakavi Isuri ने लोक जीवन की समस्याएँ, शादी-विवाह, खुशी, दुःख, तकलीफ-बीमारी, बुरी आदतों के कुपरिणाम आदि विषयों पर भी उल्लेख किया हैं। उन्होंने हर अवसर की फागे कहीं हैं।

पर गए हर सालन में ओरे, कउं भौत कउं थोरे।
आगे सुनत परत ते दिन के, अब दिन रात चबोरे।
कौनऊ ठीक कायदा ना रए, धरै बिधाता तोरे।
कैसे जियत गरीब गुसा में, छिके अंत के दौरे।
ईसुर कैद करे हैं ऐसे, कंगाली के कोरे।

आसों दै गओ साल कटोरा, करो खाव सब खौंहा।
गोऊं-पिसी खां गिरूआ लग गओ, मउअन लग गओ लौंका।
ककना दौरी सब धर खाए, रै गओ भकत अनौंटा।
कहत ईसुरी बांदे रइओ, जबर गांठ कौ घौंटा।

क्वार के महीना में लोग बीमार पड़ जाते हैं। उन दिनों मलेरिया ( तिजारी, परया, बज्जवारी, ड्योड़िया, अतरैला, मियादीं )आदि का प्रकोप बहुत रहता था। गरीबी बहुत थी, इलाज की कौन कहे, भूखे मरते थे लोग। महाकवि ईसुरी ने उन परिस्थितियों को अपनी फागों के माध्यम से कहा है ।

आसों हाल सबई के भूले, कइयक काखें कूलें।
कच्चे बोर बचे हैं नइयां, कंगारिन ने रूले।
फांके परत दिना दो-दो के, परचत नइया चूले।
मरे जात भूकन के मारे, अंदरा-कनवा लूले।
मारे-मारे फिरें ईसुरी, बडे़-बड़े दिन दूले।

किसी-किसी वर्ष में अच्छी फसल हो जाती थी, तो ईसुरी उस खुशी में भी फागें कह देते थे।

उनके दूर दलद्दुर भिनकें, बैलई ती जिन चिनकें।
ऐसी भई बड़ानी नइयां, ढोई रात ना दिन कें।
बम्बई चलो-चलो कलकत्ता, गिरे कड़ोरन गिनकें।
सन उन्नीस सौ छप्पन मइयां, बुधे परे ते रिन कें।
जनम-जनम के रिन चुकवा दए,परी फादली उनके।
बडे़ अभागे आसों ईसुर, तिली भई ना जिनकें।

इसे भी देखिए:  ईसुरी की वियोग श्रृँगारिक फागें

                   ईसुरी की संयोग श्रंगारिक फागें

एक आलसी किसान किसानी के समय हल खडे़ किए हुए खड़ा था। महाकवि ईसुरी   ने उसे देखा और उस पर भी फाग कह दी ।

तुखां काय लगत हैं जाडे़, बरसा के दिन आडे़।
ई अषाढ़ में चूके कब-कब, कीनें भर लए भांडे़।
ई बरसा सें सब कोउ लागो, जोगी राजा पांडे़।
ईसुर कात हमें का करने, रोज करें रओ ठांडे़।

सामाजिक बुराइयों की विवेचना करने में महाकवि ईसुरी   का कोई जवाब नहीं रहा है। वे जो देखते थे, उसे ज्यों का त्यों अपनी फागों में कह देते थे। एक आदमी अपनी पत्नी पर शक करता था। वह अकारण उसे पीट रहा था। और उसकी पत्नी बडे़ धीरज के साथ अपनी सफाई दे रही है।

बालम बेअनुआ ना मारो, ऊसई चाय निकारो।
संकरी खोर गैल सो कड़ गओ, काटत गओ किनारो।
ना मानो तो कौल करा लेव, होय यकीन हमारो।
ईसुर बैठो गम्म खाय कें,है बदनाम तुमारो।

प्रियतम बिना कसूर न मारिये, अगर घर से निकालना हो तो वैसे ही निकाल दीजिए। रास्ता संकीर्ण था, उसी से मुझे निकलना था। आने वाला पुरुष तो किनारा काटता हुआ निकल गया। विश्वास न हो तो कसम करा लो, मेरा कोई दोष नहीं है।

यदि संकीर्णता वश निकलते समय उसका स्पर्श हो भी गया हो तो उसे आप अन्यथा न लें, गम खाकर चुप बैठना चाहिए, क्योंकि मुझे पीटने या निकालने से तुम्हारी और इस परिवार की बदनामी होगी। ईसुरी उस औरत के माध्यम से समाज के भीतर उत्पन्न हो रही समस्याओं पर कितनी अच्छी तरह से अपनी सलाह देकर निराकरण का सुझाव देते थे।

आ गई नगन नगन पियराई,रजऊ के मौपे छाई।
कै तो तबक लगे सोने के, कै केसर की खाई।
कै घूंघट के रए छांहरे, धूप गई बरकाई।
कै संयोग वियोग विथा में, कै आधान अबाई।
कै धों ईसुर छटा भोर की, उगत भान की छाई।

महाकवि ईसुरी  दैनिक व्यवहार की बातों को भी कविता में कहने के आदी हो गए थे। वे जो भी बोलते थे, वह भी फाग ही में।

हो गओ फनगुनियां को फोरा, पैंला हता ददोरा।
एक के ऐंगर भओ दूसरौ, दो के भए कई जोरा।
गदिया तरें हतेली सूजी, सूज गए सब पोरा।
दवा होत रई दर्द गओ न, एक मास दिन सोरा।
फोरा से भओ खता ईसुरी, जौ रओ आन विलोरा।

तिजारी (मलेरिया बुखार का एक प्रकार) पर ईसुरी की फाग देखिए।

हौ वे गंदो रोग तिजारी, जा भारी बेजारी।
अपनों ऊधम दए फिरत हैं, बिच-बिच बज्जुर पारी।
बंगालन जा बात ले आई, हन गई देह हमारी।
मरज भओ तिरदोष बीत गए, कर ल्याई कफ जारी।
ईसुर जान परत है ऐसी, येई में मौत हमारी।

आदमी दुर्गुणों का शिकार हो जाता है, कोई शराब, कोई गांजा-भांग, बीड़ी पीने की आदतें पाल लेता है। ईसुरी एक शुभ चिन्तक की तरह सभी को शिक्षा देते हैं ।

गांजो पियो न प्रीतम प्यारे, जर जैं कमल तुमारे।
जारत काम बिगारत सूरत, सूखत रकत नियारे।
जौ तो आय साधु सन्तन कौ, अपुन गिरस्ती बारे।
ईसुर कात छोड़ दो ईकों, अबै उमर के वारे।

महाकवि ईसुरी  राष्ट्रीयता के कवि थे, वे उस हर बुराई से दूर रहने की सीख देते थे, जो देश-समाज एवं व्यक्ति के लिए बुरी हो। वे पर्यावरण की सुरक्षा एवं फलदार वृक्षों की रक्षा के लिए वृक्षों को न काटने की सलाह देते हैं।

इन पै लगें कुलरियां घालन, मउआ मानस पालन।
इने काटवो ना चइयत तो, काट देत जे कालन।
ऐसे रूख भूख के लाने, लगवा दये नंद लालन।
देख कर देत नई सी ईसुरी, मरी मराई खालन।

मनुष्य रूप की सुन्दरता, शरीर के रंग का गोरापन आदि पर प्रभावित होता है, भले ही उसके गुण कैसे भी हों। महाकवि ईसुरी  ने लोगों को तन की सुन्दरता से अधिक मन की सुन्दरता पर ध्यान देने की बात कही है।

कारी लगत प्रान से प्यारी,जीवन मूर हमारी।
कहा चीज कारी कें कमती, का गोरी का कारी।
कारिन की कउं देखीं नइयां, बसी बसीकत न्यारी।
ईसुर कात बसी मन मोरे, श्यामलिया रंगवारी।

 कारी से कारी का काने, जिये ताव भर जाने।
कारी के तुम सोच दूबरे, होत काय के लाने।
कारी से नफरत न करिया,कारी प्रान समाने।
कारी बंदी करे ईसुरी, और के छोर निभाने।

महाकवि ईसुरी खान-पान का व्यक्ति के स्वास्थ पर पड़ने वाले असर का उल्लेख भी अपनी फागों में करते हैं। उन्होंने उड़द की दाल खाने से स्वास्थ में आई खराबी पर फाग कही है।

जब से दार उरद की खाई, कफ ने दई दिखाई।
कफ के मारें फटी पसुरियां, ताप सोउ चढ़ आई।
धीरे पण्डा रोन लगे संग, हमें न आई राई।
लिखके पाती दई बगौरा, उत सै आई लुगाई।
राम नगर में परे ईसुरी, कर रए वैद दवाई।

महाकवि ईसुरी  झूठ-फरेब और बेईमानी को पसंद नहीं करते थे। वे कहा करते थे कि व्यक्ति जो है, उसे वही दिखना चाहिए। जो कर रहा है, वही कहना चाहिए और जो कह रहा है, वही कहना। वैसे भी व्यक्ति का दोहरा चरित्र छिपता नहीं है। एक न एक दिन कलई खुल ही जाती है।

करलो प्रीत खुलासा गोरी, जा मनसा है मोरी।
ऐसी करलो ठोक तारिया, फिर ना टूटे टोरी।
देह धरे के मजा उड़ा लो, जा उम्मर है थोरी।
ईसुर कात होत है नइयां, ऊंट की न्योरें चोरी।

महाकवि ईसुरी  लोगों को ईमानदारी और सच्चाई को स्वीकारने की सीख भीए देते हैं।

जी की सेर सबेरे खइए, बदी ना ऊकी कइए।
नौ दस मास गरभ में राखो, तिनके पुत्र कहइए।
सब जग रूठो-रूठो रन दो, राम न रूठो रइए।
ईसुर वे हैं चार भुजा के, का दो भुजा नि रहए।

इसे भी देखिए:कवि गंगाधर व्यास

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संदर्भ-
ईसुरी की फागें- घनश्याम कश्यप
बुंदेली के महाकवि- डॉ मोहन आनंद
ईसुरी का फाग साहित्य – डॉक्टर लोकेंद्र नगर
ईसुरी की फागें- कृष्णा नन्द गुप्त
मार्गदर्शन-
श्री गुणसागर शर्मा ‘सत्यार्थी’
डॉ सुरेश द्विवेदी ‘पराग’

admin
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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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