गाँव हमाए सुरग लोक से, ओजू साँसी मानों ।
बिरछन तरें हरी काँदी, परतन लगै सुहानों ।।
भुका भुके में चलै बैर, बिजना सौ आन डुलावै ।
ओइ सब खेतन में, मोती से बगराबै ।।
सगुन चिरइया हारन में नित गाए मधुर परभाती ।
ऊशा उठकें बड़े भोर सूरज खों देवै पाती ।।
उजयारौ सौ होबै जब तब रमुआँ जावैं हारै ।
देख उरैंयाँ रूपा भौजी अपनो काम सँवारैं ।।
बिन्नू के संग चकिया औरे बन्न – बन्न कौ गावै ।
करै उसार बगर कौ उठतन गइयाँ ढीलन जावैं ।।
उयै आउतन देख सार में बच्छा बँदौ रमानौं ।
चितकबरा बैलन की जोड़ी है रमुआ कौ गानौं । ।
ढीली गइयाँ कड़ीं, कड़तन भव उजयारौ ।
ऐसें लगतइ आसमान से उतर परौ ध्रुवतारौ ।।
उसनींदे से सोसैं मनमें, हो गइ अब लौलइया ।
ईसें फैल गई चंदा की, नौनी सेत जुनइया ।।
अरुनाई लख कऐं कोउ सूरज को भऔ पसारौ ।
ईसें धरती के आँचर में दुकन लगौ अँदयारौ । ।
जे स्वभाव की भोंरी भारी, आड़ पेंच न जानें ।
मुआँ काम करै खेतन में, उतइँ मड़इया तानें ।।
बिनचुन मठा लटा कौ रोजउँ उठतन करें कलेवा।
बेर मकोरा और मकुइयाँ, गुलगुच मउआ मेवा ।।
फिल्मी गीत इनें न भावें, लोकगीत नित गावैं ।
सैरौ और दिवारी सुनबे, इनके मन ललचावैं ।।
अदवइयाँ पंचा पैरें, जे लगें देखतन नोंनें ।
जैसें विधि ने रूप ढारदय, गोरे बरन सलोंने ।।
प्यारी छटा ‘कंज’ गाँबुदन की, जियै देख सब हरशें ।
इते वास करबै सुरपति जू, सुरग लोक में तरसें ।।
रचनाकार – रतिभान तिवारी “कंज”