कन्नौज के राजा जयचंद की कर्ज वसूली के लिये पहले बिरियागढ़ राजा, पट्टी के राजा, और कामरूप के राजा कमलापति से उदल ने Ganjar (कर वसूली ) ki Ladai की और कर्ज वसूला उसे Ganjar (Kar Vasuli) ki Ladai- Kathanak कहा गया ।
कन्नौज के राजा जयचंद ने अपने दरबार में सोने के कलश पर पान का बीड़ा रखकर वीरों को चुनौती दी कि कुछ तहसीलों में कर-वसूली का धन बरसों से फँसा हुआ है, जो वीर इसे वसूल करके लाएगा, वह इस चुनौती को स्वीकार करे और बीड़ा उठा ले। दोपहर तक भी किसी वीर ने बीड़ा नहीं उठाया। ऊदल को ज्यों ही पता चला, उसने आकर बीड़ा उठा लिया।
गाँजर (कर-वसूली) की लड़ाई मे उदल का शौर्य
राजा से पूछा कि कर कहाँ-कहाँ अटका हुआ है, उनके नाम बताओ। नाम पूछकर लाखन को साथ लिया। जोगा-भोगा को भी तैयार किया और ऊदल ने लश्कर (हाथी, घोड़ा, पैदल) लेकर कूच कर दिया। जब बिरियागढ़ पाँच कोस रह गया तो वहाँ डेरा डाल दिया। वहाँ से ऊदल ने पत्र लिखकर भिजवाया कि पिछले बारह साल का कर तुम्हारी ओर बाकी है। मुझे राजा जयचंद ने भेजा है। मेरा नाम ऊदल है। अब बिना देरी किए कर चुका दो, वरना बिरियागढ़ को तहस-नहस कर दिया जाएगा। हरकारा पत्र लेकर गया।
हीर सिंह और वीर सिंह दोनों भाई दरबार में बैठे थे। पत्र पढ़ते ही उन्होंने युद्ध का डंका बजा दिया। हरकारे ने लौटकर वहाँ का हाल बताया तो ऊदल ने भी लाखन को लश्कर को सावधान होने को कह दिया। दोनों सेनाओं का सामना मैदान में हुआ। ऊदल ने फिर कहा कि तुमने बारह साल से कर नहीं चुकाया है। हीर सिंह ने कहा, “स्वयं जयचंद भी धमकी देने आया था, उसे भी हमने एक पैसा तक नहीं दिया। तुम कौन, किस खेत की मूली हो?”
हीर सिंह ने ऊदल पर भाले से वार किया। ऊदल ने बचा लिया। तब ऊदल ने अपना घोड़ा आगे बढ़ाया और हीर सिंह को बाँध लिया। इस बार वीर सिंह ने गुर्ज उठाकर फेंका। घोड़ा जरा दाएँ हो गया, गुर्ज नीचे गिरा। वीर सिंह ने तलवार के लगातार तीन वार किए, ऊदल ने चोट बचा ली। तलवार की मूठ हाथ में रह गई, तलवार टूटकर धरती पर जा गिरी। वैदुल घोड़े ने हाथी के माथे पर टाप मारी और हौदा टूटकर नीचे गिर गया।
वीर सिंह भी नीचे गिर पड़ा। उसने ताल ठोंकी और कहा, “दम है तो कुश्ती लड़ ले।” जैसे ही ऊदल घोड़े से उतरा, वैसे ही वीर सिंह ने झपटकर उठा लिया। बोला, “बता कहाँ फेंकूँ?” ऊदल ने ऊपर से ही दाव मारा और जमीन पर गिराकर छाती पर चढ़ बैठा। फटाफट ऊदल ने उसे भी बाँध लिया। जीत का डंका बजा दिया। खजाना लूट लिया और कैदी बना उसे साथ लिये लश्कर आगे बढ़ गया।
इसके बाद पट्टी के राजा सातनि को पत्र लिखकर भेजा। हीर सिंह, वीर सिंह की क्या दशा हुई, यह भी बता दिया। सातनि राजा ने पत्र पढ़ा, वह भी युद्ध को तैयार हो गए। जब तक स्वयं न हार जाएँ, तब तक हर क्षत्रिय जीतने की ही सोचता है। राजा सातनि ने तो तोपें चलवा दीं। गोले ओलों की तरह बरसने लगे। जब दोनों फौजें पास पहुँच गई तो सिरोही बजने लगी। वीर आमने-सामने लड़ने, कटने लगे।
ऊदल का तलवार का वार सातनि ने बचा लिया। सातनि ने गुर्ज उठाकर फेंका तो वैदुल घोड़ा पीछे हट गया। पीछे से आगे कूदकर वैदुल ने हाथी पर टाप मारी और ऊदल ने हौदे की रस्सी काट दी। सातनि फिर घोडे पर सवार हो गया। जोगा पर सातनि ने आक्रमण कर दिया। जोगा के गिरते ही भोगा ने सामना किया। तीन बार सातनि के लगातार वार से उसकी तलवार टूटकर गिर पड़ी। मूठ हाथ में रह गई, पर भोगा भी भूमि पर गिर पड़ा।
तब ऊदल ने आगे बढ़कर ढाल के धक्के से सातनि को नीचे गिरा दिया। ऊदल ने फुरती से सातनि को बंदी बना लिया। बाँधकर लाखन के पास भिजवा दिया और जीत का डंका बजवा दिया। पट्टी के खजाने की भी लूट करवा दी, परंतु जोगा-भोगा के मारे जाने से जीतकर भी आल्हा-ऊदल दुःखी हुए।
इसके पश्चात् कामरूप के राजा कमलापति पर चढ़ाई की तैयारी कर दी। पत्र में लिख दिया कि विरिथागढ़ और पट्टी का क्या हाल हुआ, परंतु सब राजा अपने आपको महावीर ही मानते हैं। युद्ध हुआ और ऊदल ने कमलापति को भी बंदी बना लिया। उसका भी कोष लूट लिया और आगे बढ़ गया।
ऊदल ने बंगाल के राजा गोरखा को इसी प्रकार का पत्र लिखा। पत्र पढ़कर राजा गोरखा स्वयं ही युद्ध करने पहुँच गया। ऊदल को ललकारा और वार कर दिया। वैदुल घोड़ा ऊपर उड़ गया, परंतु ऊदल ने पहली ही चोट में उसे हाथी से गिराकर बाँध लिया। उसका भी खजाना लूट लिया गया। इसी क्रम से ऊदल ने कटक, जिन्सी, गोरखपुर और पटना के राजाओं को भी हराया और बहुत बड़ा खजाना लेकर कन्नौज के राजा जयचंद को दिया। बारह कैदी राजाओं को भी राजा जयचंद को सौंप दिया। जयचंद ने उनको माफी मँगवाकर आजाद कर दिया। ऊदल और बनाफरों की सभी दिशाओं में बड़ी प्रशंसा हुई।