कवि Dr. Narayan Das Gupt ‘Kamlesh’ का जन्म भिण्ड जिले के आलमपुर के एक वैश्य परिवार में 11 सितम्बर 1933 को हुआ। आपकी प्राथमिक शिक्षा आलमपुर में ही हुई। इसके अलावा एम.ए. हिन्दी तथा पीएच.डी. की डिग्री हासिल की। आपने आयुर्वेद वाचस्पति, आयुर्वेद रत्न तथा साहित्य रत्न की चिकित्सकीय उपाधियाँ हासिल की।
विनायक वंदन
अधम महान मैं हों, अधम उघारन आप,
गुरु-पितु-मातु-तात आप, मैं तो चेरौ हों।
आरत-अनाथ, रत स्वारथ में आठों याम,
बुद्धि को मलीन-हीन, दीनता सें घेरौ हों।।
जीव को जहाज मझधार में फँसौ है आज
काहू कौ सहारौ नाँहि तेरी और हेरौ हौं।
गह कें गरीब हाथ मोय निरवारो नाथ,
दासन कौ दास एक तुच्छ दास तेरौ हों।।
मैं सबसे बड़ा पापी हूँ और आप पापियों को तारने वाले हो। आप गुरु, पिता, माता एवं बंधु हो, मैं तो आपका सेवक हूँ। मैं परेशान, बेसहारा तथा दिनरात स्वार्थ में संलग्न रहने वाला हूँ। मैं बुद्धिहीन हूँ जिससे गरीबी से ग्रस्त हूँ। मुझ जीव का जीवन रूपी जहाज आज संसार रूपी सागर की मंझधार में फँसा है और आपके सिवाय किसी का सहारा नहीं है इसीलिए सहायता कीजिए। मैं दासों का दास एक बहुत हीन तुम्हारा सेवक हूँ।
जी भर आज बसंत मनेंहों
विरहिन के मन सीरी समीरन नें,
सजनी सुन ताप बढ़ायौ।
ढायवे कों गढ़ मानिनी मान कौ,
तान कें काम कमान चढ़ायौ।।
हूक उठै दिन आवें वे याद,
जबै पिय के संग लाड़ लड़ायौ।
होबै बसंत सुहावन काहुकों
मो कों तो दुक्ख बढ़ावन आयो।।
शीतल हवाओं के प्रवाह ने विरहिन नायिका के विरह का ताप बढ़ा दिया है। रूठी हुई नायिका का मान रूपी किला ध्वस्त करने हेतु कामदेव ने धनुष चढ़ाकर प्रहार किया है। इससे उस विरहिन नायिका के हृदय में हूक उन दिनों को याद करते उठ रही है, जो प्रिय के नेह में बिताये थे। यह बसन्त किसी के लिए सुहावना व मनभावन होगा, मेरे लिए तो यह दुखों को बढ़ाने हेतु आया है।
अंत सें कंत हमारे पधारे,
उन्हें सखि आज बसंत बनें हों।
पीरौ उन्हें पहराय कें जामा मैं,
पीरे ही रंग पजामा रंगेंहों।।
प्रीतम-प्रीति के रंग में डूब कें,
मंत्र मनोज कौ आज जगेंहों।
गोरे पिया कों बनाय के पीरे में,
जी भर आज बसंत मनेंहों।।
मेरे प्रिय आज बाहर से आए हैं। री सखी! मैं उन्हें आज बसंत बनाऊँगी। उन्हें पीला जामा पहनाकर पीले ही रंग का पजामा पहनाकर उसे रंगूँगी। प्रिय के प्रेम में आकंठ डूबकर कामदेव के मंत्र को सिद्ध करूँगी। गौरवर्ण के प्रिय को पीले रंग में रंगकर आज जी भरकर बसन्त मनाऊँगी।
नई नायिकायें
(वियोगिनी वायरलेस ऑपरेटरनी)
वायरलेस के तैस में आयकें, रोजईं धौंस जमावत हैं।
सखि काँसें फँसी इनके संग में, मोय मूर्ख-गँवार बतावत हैं।।
कॉन्टेक्ट करें सिगरे जग सें, हमसें कॉन्टेक्ट न वारत हैं।
वे तार के तार पै यार फिदा, घर कौ न सितार बजावत हैं।।
वितन्तु (वायरलेस) के आवेश में आकर के उसकी धौंस (रौब) प्रतिदिन दिखाते हैं। सखी! मैं इनके साथ कहाँ से फँस गई हूँ, मुझे ये मूर्ख-गँवार कहते हैं। ये सारे संसार से सम्पर्क करते हैं किन्तु मुझसे संपर्क नहीं करते हैं। वे तार के काम करने पर आसक्त हैं किन्तु घर में मुझ सितार के तारों को झंकृत नहीं करते हैं।
(ओवरसियारनी)
साइड पै नित जात सवेरे सें, साँझ कें हू घर आवत नाहीं।
आग लगै ऐसी ओवरसियरी में, टेम सें खाना हू खाबत नाहीं।
बेलन रोज घुमावत रोडपै, प्रेम कौ पंथ बुहारत नाहीं।
फटी-टूटी इमारतें भावें इन्हें, घर की नई गैलरी भावत नहीं।।
प्रतिदिन प्रातः से कार्यस्थल पर जाकर संध्या तक घर नहीं लौटते। ऐसी उपयंत्री की नौकरी में आग लग जाये, ये समय से खाना भी नहीं ग्रहण कर पाते। रोड रोलर को सड़क पर प्रतिदिन चलाकर बनवाते हैं किन्तु प्रेम का रास्ता नहीं चलते। इनको जीर्ण-शीर्ण इमारतें अच्छी लगती हैं किन्तु घर में नई वीथिका नहीं सुहाती है।
थानेदारनी
रयँ गस्त में मस्त हमारे पिया, नहिं रातउ कें घर आवत हैं।
तफतीस औ कोर्ट की पेशिन में, रति रंग कौ वक्त गँवावत हैं।।
क्या जिन्दगी है थानेदारनी की, हम सेज परे पछताबत हैं।
जे जाय इलाके में मौज करें, हम रो-रो कें रेंन बितावत हैं।
मेरे थानेदार पति गश्त देने में व्यस्त रहते हैं जिससे रात्रि में भी घर नहीं लौटते हैं। प्रकरणों की अन्वीक्षा तथा न्यायालयों की उपस्थिति में पूरा समय व्यर्थ खोते हैं, यह समय रति प्रसंग का है। हम सेज पर बैठकर सोचते हैं कि थानेदार की पत्नी की जिन्दगी व्यर्थ है। वे तो अपने अधीनस्थ क्षेत्र में जाकर रंगरैलियाँ मनाते हैं और मैं रात्रि रो-रोकर गुजारती हूँ।
डॉक्टरनी
डॉक्टरी पढ़बे कों विदेश में, जायकें आधी जुआनी गँवाई।
लौट के आय बने बड़े सर्जन, सूदे लगें पर पूरे कसाई।।
मोय भुलाई वा सौत के फेर में, नाइट ड्यूटी में रात बिताई।
औरँन की तो दवाई करें, पर मेरी दवाई कों लेंय जम्हाई।।
चिकित्सकीय ज्ञान अर्जित करने के लिए इन्होंने आधी युवावस्था व्यतीत कर दी, जब लौटकर आये तो बड़े शल्यज्ञ बन गये। लोगों को यह सीधे दिखते हैं किन्तु मुझे तो निष्ठुर लगते हैं। मुझे भुलाकर उस सौत के साथ रात्रिकालीन ड्यूटी में मौज मस्ती करते हैं किन्तु मेरी औषधि करने की स्थिति में जम्हाइयाँ लेते हैं।
दर्दीले दोहे
नेता चौकस बाज से, जनता चिरई अचेत।
जबहिं लगत मौका तबहिं, मार झपट्टा देत।।
आज के नेता सजग शिकारी बाज तथा जनता लापरवाह चिड़िया के समान है। जैसे ही बाज को अवसर मिलता है वह झपटकर चिड़िया का शिकार कर लेता है।
बहुत जमानों देख लऔ, ऐसो कबहुँ न आव।
पानी बिकत बजार में, रस-गोरस के भाव।।
मैंने बहुत युग देखा किन्तु ऐसा समय कभी नहीं आया कि पानी दूध के भाव बिक रहा है।
दो टकिया की नौकरी, महंगाई की मार।
भामिनी रोबै भिण्ड में, बस्तर में भरतार।।
इस छोटी सी दो टका की नौकरी में और महँगाई के प्रभाव से पत्नी भिण्ड में रहकर रुदन करती है और पति बस्तर में पदस्थ हो रुंदन करते हैं।
जिय जारत आतप कढ़ौ, अँखियन सें बरसात।
सीसी करतन बीत गयौ, शीत कपाकें गात।।
विरहिन नायिका कहती है कि इस शीत ऋतु में भी मेरे हृदय का ताप बढ़ने से आँखों से अश्रुधार प्रवाहित हो रही है। सीसी करके ही शीतऋतु बिना प्रिय के बीत गई है।
भारतवासी काय पै, इतनो गरत गरूर।
भेंट आग की हो रई, बहुयें बिना कसूर।।
भारतवासियो आप किन कृत्यों पर इतना गर्व कर रहे हो? आज बेकसूर बहुएँ दहेज की बलिवेदी पर आग की भेंट चढ़ रही हैं, कुछ तो शर्म करो।
डॉ. नारायण दास गुप्त ‘कमलेश’ का जीवन परिचय
शोध एवं आलेख– डॉ. बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (मध्य प्रदेश)