Dr. Kali Charan Sanehi का जन्म 20 मार्च 1957 ई. को कठऊ पहाड़ी जिला टीकमगढ़, मध्य प्रदेश में हुआ था । कालीचरण स्नेही शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी प्राध्यापक हैं। वे बुंदेली काव्य के सफल रचनाकार हैं। उनकी बुदेली फागें बड़ी लोकप्रिय हुई है। उनकी पांच पुस्तके प्रकाशित हो चुकी है। इनमें बुंदेली के प्रतिनिधि कवि बुदेली गीतों की संकलित पुस्तक है।
डॉ. काली चरन स्नेही के लेखन पर राष्ट्र स्तरीय डॉ. अम्बेडकर पुरस्कार तथा 1994 में सारस्वत सम्मान प्राप्त हुआ है। उनकी फागों में गांवों की भीनी भीनी गंध है। बुंदेली अल्हड़ सौन्दर्य उनके शब्द शब्द में टपकता है। कृषि जीवन के दुख सुख फागों में रूपायित हो उठते है। उनकी फागों में राष्ट्रीयता और राजनैतिक व्यंग्य भी प्रकट हुआ है।Dr. Kali Charan Sanehi की इस फाग में नेतागिरी पर चुटीला व्यंग्य –
नेतागिरी छाँट रए जमके, खां खा मौटे पर गए।
कोट कतर खाइ बापू की, मसकऊं बिल में उर गए ।
का कर सकत बिलैयां इनकौ, खुद गनेश जू ढर गए ।
भावह भुगत रये स्नेही, कैऊ लाड़ले मर गए ।
डॉ. काली चरन स्नेही जी ने फागों को श्रंगार और अश्लीलता के निर्मोक से निकालकर आधुनिक जीवन की ज्वलंत समस्याओं से जोड़ा है। दहेज प्रथा, नारी शिक्षा, साक्षरता और सांस्कृति अपसंस्कृति जैसे विषयों को समाविष्टित् किया है। एक फाग देखिए-
भौजी, अब रामायन बॉचे, सगुन सांतिया खांचे।
घर कौ खरचा पानी जितनौ, सब कागद पै टॉचें।
दादू तुलसी सूर कबीरा, हिय में भरत कुलांचें।
नागमती संग आंसू ढारत, मीरा के संग नांचे।
डॉ. काली चरन स्नेही समकालीन बुंदेली काव्य के सजग रचनाकार हैं। वे राष्ट्रीय मंचों पर अपने फाग गीतों को प्रस्तुत कर लोक जीवन को उद्घाटित कर रहे हैं। हिन्दी साहित्य को खासकर बुदेली साहित्य को उनसे बहुत सी आशाएं है।