छीपानेर गाँव से नर्मदा सटकर बहती है । छीपानेर से चिचोट कुटी यही कोई एक फर्लांग पर होगी। मैं और मेरे लोकशाला के साथी Chichot Kuti जरूर देखना चाहते थे । छीपानेर हरदा जिले की टिमरनी तहसील का नर्मदा तीर पर बसा गाँव है और पास में ही है- चिचोट कुटी । सूरज डूब रहा था। गायें गाँव की ओर आ रही थीं । उस गोधूलि में गाँव धूल-धूसरित हो उठा था।
धरती यशोदा बन गयी थी । आकाश बाबा नन्द की तरह शांत – प्रशांत था । धूल-धूसरित उस वातावरण शाम के सूरज का रक्तिम वर्ण कुछ-कुछ हल्का लाल हो उठा था। संभवतः यशोदा के आँगन में खेलते हुए रसखान के धूल भरे की छवि ऐसी ही रही हो । साँझ की बेला में पूरा भारत धूल कृष्ण से विभूषित होकर श्याम बन जाता है ।
मैं यह सब सोचते-सोचते अपने साथियों के साथ चिचोट कुटी Chichot Kuti की ओर बढ़ रहा था । घनी झाड़ियों से निकलकर जैसे ही नर्मदा की कगार पर पहुँचे कि चिचोट कुटी एकदम सामने बिलकुल पास में दिखायी दी। कुटी में हलचल थी। नर्मदा शांत थी। यही कोई फरवरी का महीना था । हल्की ठंड थी । वातावरण में एक खुशनुमा उल्लास तैर रहा था । सूरज की अंतिम किरण भी माँ नर्मदा के जल में हाथ-पाँव धोकर घर चली गयी थी ।
चिचोट में नर्मदा के किनारे की ऊँचाई पर दो मंज़िला सुन्दर छोटा भवन बना है, जो पहले पर्ण कुटिया थी । एक मंदिर है, जिसमें हनुमान जी की आकर्षक और सौम्य – शांत प्रतिमा है। मंदिर का मुँह पूर्व की ओर है। मंदिर के ठीक सामने चौगान में चबूतरे पर संगमरमर का कमल बना हुआ है । कमल में पादुकाएँ हैं। ये पादुकाएँ बजरंग दास बाबा की हैं। यह Chichot Kuti आध्यात्मिक केन्द्र के रूप में विश्व में प्रसिद्ध है । पर मध्यप्रदेश और भारत के लोगों को इसका पता नहीं है ।
यहाँ नर्मदा का कोई पक्का घाट नहीं बना है। लेकिन नर्मदा का यहाँ सौम्य रूप सर्वाधिक है। नर्मदा बहुत लम्बे पाट में बहती हैं । यहाँ नर्मदा थोड़ी घुमावदार है। छीपानेर से चिचोट की ओर बहते हुए नर्मदा थोड़ी पश्चिम- उत्तर की ओर हो जाती है । चिचोट के पास से फिर यह सीधी पश्चिम की ओर बहने लगती है। इस कारण यहाँ वह मेखला भी बन गयी है और घुमाव के कारण सौन्दर्य तो बढ़ ही गया है ।
किनारे से नीचे उतरकर मैं और मेरा साथी नर्मदा जल तक गये। हाथ-पांव धोये । पानी पिया। हाथ जोड़े । प्रवाह को तथा नर्मदा की अविरत जल साधना को निर्निमेष देखता रहा।पास में चार- पाँच परकम्मावासी बैठे थे। जिनमें दो साध्वी भी थीं । उन्होंने कंडे की अंगार पर गुड़ और धी का होम दिया। अगरबत्ती जलायी । छोटी-सी थाली में दीपक जलाकर, आरती संजोकर आराधना की – ‘जय जगदानन्दी, और मैया जय जगदानन्दी।’ चूंकि उस दिन चिचोट में बड़ी चहल-पहल थी । अन्तर्राष्ट्रीय स्तर का आध्यात्मिक चिन्तन समारोह हो रहा था ।
मैंने कुटी से जुड़े कुछ लोगों से कुटी के बारे में, स्थान के बारे में, कुटी बनाने वाले बाबा के बारे में जानकारी चाही। पता चला इस स्थान पर बहुत पहले बजरंगदास बाबा नामक एक संन्यासी आकर रहने लगे । यह स्थान सूनसान और वृक्षों – झाड़ियों से घिरा हुआ था। लेकिन अपनी प्रकृति में बड़ा रमणीय था जो अभी भी है । यही कारण था कि बाबा बजरंगदास यहाँ बिरम गये । साधनारत रहे । एक छोटी- सी पर्णकुटी बना ली थी । उसी में रहते थे । नर्मदा की सेवा, भक्ति, भाव, योग, साधना, अध्ययन, ज्ञान, प्रेम, उपदेश । आदि विभागों में उनका जीवन होकर भी सम्पूर्ण की तलाश में लगा रहता था।
आसपास के गाँव वाले अमावस्या-पूनम, पर्वों पर नर्मदा में स्नान व पूजन हेतु आते थे। सीधा दे जाते थे। भक्ति-भजन होता था । जीवन की गति उर्ध्वगामी होती चली गयी । नर्मदा बहती रही। एक दिन संझा बेला में बाबा बजरंग दास जी रेवा जल की एक चट्टान पर बैठे थे। एक युवक संन्यासी वहाँ से निकलकर जा रहा था। युवक संन्यासी नर्मदा परकम्मावासी था । बजरंगदास बाबा को देखकर वह रूका । पाँव लगे। और आगे बढ़ लिया।
बाबा ने कहा – ‘ बेटा रुकोगे नहीं ?’ वह युवक रुका नहीं और आगे निकल गया । पर बाबा के शब्द उसके कानों में गूँजते रहे। थोड़ी दूर जाकर वह लौट आया । उसने बजरंगदास बाबा को अपना गुरू बना लिया । उस कुटिया में गुरू-शिष्य रहने लगे । शिष्य का नाम था तिलक। जो अब तिलक महाराज के नाम से पूरे विश्व में जाना जाता है । यह घटना सन 1962 के पूर्व की है । 13 फरवरी 1979 को बजरंगदास बाबा देवलोक सिधार गये ।
उनके शिष्य तिलक महाराज ने सम्पूर्ण भारत की यात्रा की। साथ ही उन्होंने दुनिया के 70 देशों की यात्राएं की। देश – विदेश में तिलक महाराज के शिष्यों की संख्या हजारों में है । तिलक महाराज ने चिचोट को एक आध्यात्मिक चिन्तन केन्द्र के रूप में विकसित किया। उन्होंने अनेक पुस्तकें लिखीं। धर्म और दर्शन का यह अमर चिन्तक और रचनाकार देश – काल की चिन्तना के पार चला गया। एक बहुत समृद्ध पुस्तकालय चिचोट में है । यह तपोभूमि आज साहित्य, लोक जीवन, संस्कृति और प्रकृति की साधना भूमि और रमण भूमि दोनों बन गयी है।
बजरंगदास बाबा का कथन है- ‘काल का पेट भरते किसी ने नहीं देखा है। इस दुनिया में साधु महात्मा तो बहुत हैं ।, मनुष्य कम हैं । इसलिए मनुष्य बनो।’ इस उपदेश का लोगों पर और तिलक महाराज पर गहरा प्रभाव पड़ा। तिलक महाराज ने सरला भक्ति के माध्यम से लोक जीवन के बीच हरते हुए मनुष्य को मनुष्य बनने की तथा आडम्बर विहीन जीवन जीने की राह बतायी। तिलक महाराज का कहना था कि ‘प्रसिद्ध होने से कोई व्यक्ति महान नहीं हो जाता। बड़े-बड़े आश्रमों का भार ढोके और चमत्कारपूर्ण वक्तव्य से कोई महात्मा नहीं बन जाता । आत्म संयम, इन्द्रिय निग्रह तथा तितिक्षा के अभाव में सब कुछ व्यर्थ है ।
न्यूयार्क में सम्पन्न होने वाले दसवें विश्व हिन्दू सम्मेलन के लिए वे जा रहे थे। तब स्पेन में, बारसीलोना और बेलेन्सिया के बीच 11 मई 1984 को कार दुर्घटना में उन्होंने देह त्याग दी। निंतर यात्रा करने वाले इस महायात्री ने अपनी अमर यात्रा का आरंभ भी यात्रा के दौरान ही किया । नर्मदा की शिलाओं पर उनके कार्यों के निशान भी बोलते हैं । चिचोट कुटी के आसपास सघन छाया में उनका चिन्तन जैसे विश्राम कर रहा है। रात गहराने लगी थी। हम टिमरनी के लिए वापस चल देते हैं। चिचोट मन में बसा है।
शोध एवं आलेख- डॉ. श्रीराम परिहार