चौकड़िया फाग Chaukadiya Fag लोककाव्य के पुनरूत्थान-काल अर्थात् 19 वीं शती के अंतिम चरण की देन है। लोककवि ईसुरी चौकड़िया फाग के जनक माने जाता है। उसके प्रत्येक चरण में 28 मात्राएँ होती हैं। चैकड़िया की विशेषता यह है कि उसके प्रथम चरण में 16 मात्राओं पर यति है और उसका तुकांत वर्ण ही हर चरण के तुकांत में आना जरूरी है।
इस तरह अनुप्रास-सौन्दर्य का आकर्षण बना रहता है। गायन में प्रथम पंक्ति की चैथी मात्रा पर भी एक अल्प विराम निश्चित है। चैकड़िया कई रागों में गायी जा सकती है, पर मैंने काफी और वृन्दाबनी सारंग में उसे सुना है। लोकगायक तो काफी में ही अधिकतर गाते हैं। वे अपनी सुविधा के लिए उसकी प्रथम पंक्ति में परिवर्तन कर देते हैं।
जो तुम छैल छला हो जाते, परे उँगरियन राते।
मौं पोंछत गालन खाँ लगते, कजरा देत दिखाते।
घरी-घरी घूँघट खोलत में नजर सामनें राते।
ईसुर दूर दरस के लानें ऐसे काये ललाते।।
फाग चौकडिया दादरा ताल
स्थायी
ग – – ग – – ग – रे ग सा सा
छै ऽ ल छ ला ऽ हो ऽ जा ऽ ते –
सा रे रे सा नि नि प प नि ऩि सा –
जो ऽ ऽ तु म ऽ छै ऽ ल छ ला ऽ
ऩिसा रेग ग रे ग सा सा – – सा – –
होऽ ऽऽ ऽ जा ऽ ते ला ऽ ऽ ल ऽ ऽ
प प – प प प प प पध मग रे सा
प रे ऽ उँ ग रि ऽ य नऽ ऽरा ते ऽ
सा रे रे सा ऩि ऩि जो ऽ ऽ तु म ऽ
निम्न को दुगनी लय में बजाएँ
पप पप पप पप मम मम गग रेसा ऩिऩि
ऩिऩि सासा सासा
परे ऽउँ गरि यन राऽ तेऽ जोऽ तुम छैऽ
लछ लाऽ होऽ
रेरे रेरे सासा
जाऽ तेऽ लाल
अन्तरा
प़ ऩि ऩि सा – ऩि सा – रे ग सा
मो ऽ पो ऽ छ त गा ऽ ऽ ल न खाँ
रे ऩि सा सा – – ल ग ऽ ते ऽ ऽ
सा – ग म प प प प ग ग म प
मो ऽ पो ऽ छ त गा ऽ ल न खाँ ऽ
ग ग ग सा सा सा ल ग ऽ ते ऽ ऽ
ग ग – ग – – ग – – ग रेग सा
क ज रा ऽ दे ऽ ऽ त दि ऽ खाऽ ते
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल