संक्रांति का पर्व वैसे तो सम्पूर्ण भारत मे बड़े बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। सबकी अपनी अपनी मान्यताएं हैं अपनी अपनी परंपराएं हैं और इस पर्व को मनाने के अपने अपने तौर-तरीके हैं। लेकिन कार एक ही है कि यह संक्रांति पर्व सूर्य के मकर राशि में आने पर मनाया जाता है । मकर संक्रांति पर्व कभी पास और कभी माघ मास में पड़ता है।बुंदेलखंड में मकर संक्रांति को बुड़की के नाम से भी जाना जाता है। Bundelkhand Ki Makar Sankranti पर्व पर अनेक जगह विशाल मेला लगता है ।
मकर संक्रांति का महान पर्व और मेला
बुन्देलखण्ड में सभी जन परिवार सहित स्थानीय नदी में तिल का लेप (श्वेत या काली तिल को पानी के साथ पीस कर) लगाकर स्नान करते हैं एवं घाटों पर स्थापित महादेव मन्दिर में जल अर्पित करते हैं। तिल और गुड़ के लड्डू का प्रसाद भोलेनाथ को लगाकर, सभी परिवार जनों को वितरित करते हैं ।
उसके उपरांत विशिष्ट पकवान ठडूला (गेहूं, उड़द की दाल के आटे को अदरक, हरी मिर्ची, हरी धनिया की चटनी मिलाकर गूँथने उपरांत बनी पूडी) टमाटर या अमरूद की चटनी, खुरमी, खजुलियां मैदा में तिल मिलाकर बनाई छोटी पूडी) घढ़िया घुल्ला (केवल शक्कर से बनी विभिन्न आकृति वाली मिठाई), लाई (चावल का उत्पाद) के लड्डू, सेव सादा नमकीन तथा मूंगफली और गुड़ की मिठाई परिवार जन और मित्रों के साथ खाने की प्रथा है।
भोजन उपरांत मेला ( 2 या 3 दिवसीय अस्थाई बजरिया या हाट) में आनंद पूर्वक घर गृहस्थी, पूजा पाठ, और बाल गोपाल के मनोरंजन का सामान खरीदते हैं। इन मेलों में झूले का आनंद और चाट (बुन्देलखण्ड की पाक कला में विशिष्ट पहचान) की बात ही न्यारी है। बुन्देलखण्ड के मकर संक्रांति (बुड़की) के मेलों में खास तौर पर ओरछा, बालाजी, पारीछा, मऊरानीपुर, अमर शहीद नारायण दास खरे स्मृति मेला (नरौसा नाला, बड़ागांव धसान जिला टीकमगढ़ मध्य प्रदेश) ।
गुरुजन मेला (ग्राम कुटोरा के निकट धसान नदी के किनारे स्थित श्री नरसिम्ह भगवान मन्दिर तहसील घुरवारा छतरपुर मध्य प्रदेश ) , बड़ागांव धसान जिला टीकमगढ़ मध्य प्रदेश ) के निकट धसान नदी किनारे, श्री कुंडेश्वर धाम टीकमगढ़ मध्य प्रदेश ) जमडार नदी, श्री जटाशंकर धाम, बिजावर छतरपुर मध्य प्रदेश, श्री चौपरिया सरकार धाम, बिजावर बड़ा मलहरा (मगडार नदी) विशिष्ट महत्व रखते हैं। अनेक ऐसी जगह हैं । इस पुण्य पर्व पर स्नान करने के लिए सैकड़ों लोग बहुत दूर-दूर से बेतवा, पुष्पावती, सिंधु, नर्मदा, केन ,धसान , आदि नदियों के घाटों पर जाते हैं।
पौराणिक कथा अनुसार मकर संक्रांति का पर्व रोग नाशक और मोक्ष प्रदान माना जाता है परंपराओं के अनुसार स्नान के पूर्व शरीर पर तिल का उबटन करके फिर जल में डुबकी लगाई जाती है। स्नान के बाद हवन पूजन करते हैं । तिल-गुड डालते हैं और पुरोहित को खिचड़ी का दान करते हैं । इसके पश्चात घी -खिचड़ी प्रसाद रूप मे गृहण करते हैं ।
मकर सूर्य की सांध्य में
संक्रांती का योग
तिल उबटन तन का करें
रहिये सदा निरोग
जहाँ भरे हों ताल नद
निर्मल जल के श्रोत
वहीं मधुर अस्नान का
फल भी शुभ शुभ होत
तीर्थ क्षेत्र में जाइये
परिजन पुरजन मित्र
इष्ट देव दर्शन करो
तन मन बना पवित्र
स्नान ध्यान कर सूर्य के
सम्मुख दीजे अर्घ ।
प्रथम निवाला तिली गुण
बल आयू संबर्ध ।।
इस पुनीत आनंद में
पायें परमानंद
वर्ष हर्ष युत बीतबै
मिलें सच्चिदानंद
बद्री प्रसाद खरे ‘निरंकार‘
छतरपुर ( म.प्र.)
अगर बात की जाए बुंदेलखंड के खानपान की तो पद्मश्री अवध किशोर जड़िया जी की बुंदेली संस्कृत पर आधारित रचना ‘बुंदेली के बरा बरी की नाईं है बराबरी’ सचमुच बुंदेलखंड के व्यंजनों की कोई बराबरी नहीं है । मकर संक्रांति पर्व पर विशेष उत्साह के साथ लोग अपने अपने तरीके से इस महापर्व को मनाते हैं बुंदेलखंड के लोग जीवन में यह तिल लाई के लड्डू, शक्कर से बने घढ़िया घुल्ला .. बुन्देलखण्ड में मकर संक्रांति का त्यौहार मतलब घढ़िया घुल्ला नाम की मिठाई । इस मिठाई के बिना मकर संक्रांति का त्यौहार अधूरा ही माना जाएगा।
घढ़िया घुल्ला नामक मिठाई की खास विशेषता यह है कि इसको बनाते समय सेना के विशेष पात्रों का चित्रण किया जाता है जैसे घोड़ा, हाथी, ऊंट, रथ, चक्र और कई प्रकार के मूर्तियों का निर्माण होता है कहीं-कहीं आभूषण का भी निर्माण इस मिठाई में होता है कहीं-कहीं पर वनस्पति के रूप में पेड़ पौधों का चित्रण इस मिठाई में किया जाता है और साथ ही अनेक प्रकार के जानवरों का चित्रण किया जाता है।
बुंदेलखंड में मकर संक्रांति के पर्व से एक दिन पहले सभी घरों में मूंग की दाल के मंगोड़े अवश्य बनते हैं यह पकवान हर घर में बड़े उत्साह पूर्वक बनता है और खाया जाता है। साथ ही साथ उड़द की दाल के बड़े भी बनते हैं इन बड़े- माँगोड़े को प्रिजर्व करने के लिए दही या मट्ठे में जीरे की बघार लगाकर रख दिए जाते हैं यह बड़े -मंगोड़े लगभग 15 से 20 दिन तक सुरक्षित रहते हैं और लोग रोजाना इन्हें शक्कर गुड़ के साथ खाते हैं।
बुंदेलखंड में मकर संक्रांति के पर्व पर लोग अपने -अपने गांव से निकलकर लमटेरा की तान के साथ गीत गाते हुए बैलगाड़ी और साइकिल से मेला देखने जाते थे आज समय के साथ चीजें बदल गई फिर भी लोग साइकिल, मोटरसाइकिल, ट्रैक्टर से मेला देखने जाते हैं।
बुंदेलखंड में मकर संक्रांति के पर्व पर अनेक जगह मेले लगते हैं जहां पर खानपान के साथ-साथ गृह उपयोगी वस्तुएं बिकती हैं बच्चों के लिए खिलौने मिलते हैं मनोरंजन के लिए अनेक प्रकार के झूले और अन्य संसाधन होते हैं जिससे लोग आनंद की अनुभूति प्राप्त करते है।
मकर संक्रांति और लोक विज्ञान
पर्यावरण की दृष्टि से मकर संक्रांति का त्योहार अपने आप में एक अलग ही महत्व रखता है। मकर संक्रांति के दिन से सर्दियां खत्म होना शुरू हो जाती हैं भारतीय नदियों में वाष्पन क्रिया शुरू हो जाती है क्योंकि मकर संक्रांति से सूर्य भारत की ओर बढ़ना शुरू कर देता है। वैज्ञानिकों के अनुसार नदियों से निकलने वाली वाष्प अनेक रोगों को दूर करती है अतः मकर संक्रांति के दिन नदियों में नहाना भारतीय सभ्यता के अनुसार शुभ और वैज्ञानिकों के अनुसार शरीर के लिए लाभकारी होता है।
भारत मे मकर संक्रांति कहाँ कैसे मनाई जाती हैं?
मकर संक्रांति का त्योहार पूरे देश में एक साथ मनाया जाता हैं। लेकिन इस त्योहार को मनाने का तरीके हर जगह एक जैसे नहीं हैं। सबकी अलग-अलग मान्यताएं हैं अलग-अलग परंपराएं हैं अलग-अलग अवधारणाएं हैं।
उत्तर प्रदेश में मकर संक्रांति पर्व को दान के पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। लोगों की अवधारणा है की इस दिन अधिक से अधिक दान देने से पुण्य की प्राप्ति होती है । बिहार में मकर संक्रांति पर्व में दही -चूरा -गुड / शक्कर खाते हैं । पंजाब और हरयाणा प्रदेश में में मकर संक्रांति पर्व को लोहड़ी के रूप में मनाया जाता हैं मकर संक्रांति पर्व पर तिल, गुड़ के साथ भुने मक्के की अग्नि में आहुति देने की प्रथा हैं।
राजस्थान में यह त्यौहार साँस और बहु के रिश्ते को अच्छा करने के लिए जाना जाता हैं। इस दिन बहुएं अपनी सास को वस्त्र और चूड़ियां भेंट करती हैं और उनसे आशीर्वाद लेती हैं। बंगाल में मकर संक्रांति के दिन तिल दान करने की प्रथा प्रचलित हैं। तमिलनाडु में मकर संक्रांति के त्यौहार को पोंगल के नाम से जाना जाता हैं । यहाँ इस पर्व को चार दिन तक मनाया जाता हैं।महाराष्ट्र में इस दिन हलवा मनाने और दान देने की प्रथा हैं। गुजरात में यह पर्व बहुत ही हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं। इस दिन पूरे गुजरात में आसमान पतंगों से भरा हुआ दिखाई देता हैं।