Bundelkhand Ki Bhasha Aur Kshetra उत्तरप्रदेश तथा मध्यप्रदेश के लगमग 30 जनपदों में है। उत्तर प्रदेश में झांसी , ललितपुर, हमीरपुर, जालौन, महोबा, चित्रकूट और बांदा के क्षेत्रों में बुन्देली भाषा का प्रयोग होता है। मध्यप्रदेश में टीकमगढ़ , छतरपुर , पन्ना , सागर , दमोह , दतिया , भिण्ड, मुरैना , गुना, शिवपुरी , विदिशा, रायसेन , होशंगाबाद, जबलपुर, नरसिंहपुर, शिवनी , छिन्दवाड़ा, बालाघाट, बेतूल तथा सतना की नागौद तहसील आदि के सीमान्त क्षेत्रों बुन्देली भाषा का प्रचलन है।
बुन्देलखण्ड “बुन्देली भाषा ” से ही पहचाना जाता है। राजनैतिक क्षेत्र की एकरूपता के अभाव से कुछ क्षेत्र के लोगों ने अपनी क्षेत्रीयभाषा को स्थानीय नाम दे रखे हैं। उदाहरण के लिए तवरधारी, भदावरी और बनाफरी क्षेत्रीय भाषा के नाम प्रस्तुत किये जा सकते हैं। भिण्ड मुरैना के लोगों ने अपनी क्षेत्रीय भाषा को तवरधारी और भदावरी कहा है। बांदा और हमीरपुर जिलों के कुछ अंचलो में बोली जाने वाली भाषा को बनाफरी कहा जाता है।
वस्तुत: घने जंगलों, पहाड़ों और नदियों से घिरा होने कारण इस पूरे भूभाग की बोली में स्थानीय विशेषताओं के प्रभाव के कारण ध्वनि प्रयोग में आंशिक अन्तर आ जाता है लेकिन इन क्षेत्रों की भाषा को बुन्देली ही कहना उचित है।
डॉ० ग्रियेंसन जी ने भारत भाषा सर्वेक्षण खण्ड 9 में बुन्देली भाषा की विवेचना की है। जिसके आधार पर बुन्देली के प्रकारों को समझा जा सकता है।
1 – झाँसी, सागर, टीकमगढ़ और ओरछा प्रमाणिक बुन्देली के केन्द्र है।
2 – झाँसी जिले के उत्तर में जालौन जिला है। इसकी पूर्वी सीमा पर निमट्टा एवं
लोधन्ती बोलियों का प्रभाव है। शेष भाग में प्रमाणिक बुन्देली का प्रभाव है। मध्य जालौन में ऐ- तथा ‘औ’ के स्थान पर ‘ए’ और ‘ओ’ का प्रयोग होता है।
उदाहरणार्थ-
ऐसो को एसो कहना
जैहै को जेहे कहना
और को ओर कहना
‘इ” का अतिरिक्त प्रयोग होता है –
यथा- शहर को सिहर
पहिरान को पिहरान – कहना
3 – हमीरपुर के मध्यभाग की बोली प्रमाणिक बुन्देली है।
यथा – मुझको – को – मौकाँ – मोरवों कहा जाता है। ध्यान देने की बात है कि “खौ”’ की अपेक्षा ‘काँ’ का व्यवहार विकृत अवधी के प्रभाव रूप से होता है। हमीरपुर में बुन्देली की सहयोगी उपबोली लोधन्ती, कुण्डरी , बनाफरी , तिरहारी आदि भी बोली जाती हैं।
4 – पूर्वी ग्वालियर, झांसी तथा सागर जिले की पश्चिमी सीमा के साथ दक्षिण की ओर झांसी की प्रमाणित बुन्देली बोली जाती है।
5 – बुन्देलखण्ड के पश्चमी भाग में ओरछा, टोड़ी फतेहपुर, बिजना, बंकापहाड़ी आदि स्थान है। यहां पर प्रमाणित बुन्देली का प्रयोग होता है।
6 – बुन्देलखण्ड के दक्षिण मध्य एवं पश्चिम मध्य अर्थात – विजावर, पन्ना, चरखारी, महाराजपुर व छतरपुर आदि क्षेत्र साथ-साथ दमोह में जिस बुन्देली का प्रयोग होता है उसे “खटोला ” नाम से पुकारा जाता है।
स्थानीय विशेषताओं का अन्तर इस रूप में दिखता है
यथा – नहीं है – नहियां
दोगे – दैहां
जायगा – जैहै
पुलिंग (कर्ता) यह -जो
स्त्रीलिंग(कर्ता) यह -जा
7 – हमीरपुर जिले के उत्तरी पश्चिमी तथा निकटवर्ती उरई परगने में लोध जाति का बाहुलय है यहाँ बोली जाने वाली बुन्देली लोधन्ती या राठोरा बुन्देली कही जाती है।
8 – बुन्देली का बनाफरी रूप बनाफर जाति के राजपूतों द्वारा व्यवहार में प्रचलित है। यह मिश्रित भाषा का रूप है परन्तु इसका मूल स्वरूप बुन्देली का ही है । बनाफरी को बुन्देली और बघेली का मिश्रित रूप भी कहा जा सकता है।
9 – भदावर राजपूत चंबल नदी के दोनों ओर पाये जाते हैं। यही ग्वालियर का तोवरगढ़ जनपद तोमर राजपूतों का खास निवास क्षेत्र है। यहां व्यवहार में आने वाली बोली को भदौरी व तोवरगढ़ी पुकारा जाता है। ग्वालियर में मदौरी ही प्रचलित हैं।
10 – सागर और दमोह जिलों के दक्षिण में नर्मदा घाटी के अन्तर्गत मण्डला, जबलपुर, नरसिंहपुर, होशंगाबाद आदि क्षेत्र हैं। मण्डला तथा जबलपुर में पूर्वी हिन्दी का प्रभाव है। नरसिंहपुर होशंगाबाद में प्रमाणिक बुन्देली का प्रयोग होता है। इनसे इतर भागों में विकृत बोलियों का प्रयोग होता है।
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