Homeबुन्देलखण्ड की लोक संस्कृतिबुन्देलखण्ड के लोकगीतBundelkhand Ka Lok Sangeet बुन्देलखण्ड का लोक संगीत

Bundelkhand Ka Lok Sangeet बुन्देलखण्ड का लोक संगीत

लोक गीत वैसे तो मानव समाज के विकास के साथ पनपने वाली मौखिक संपत्ति है, सभी देशों में लोक गीतों का विकास समान रूप से हुआ है।  ज्यों-ज्यों शब्दों में अभिव्यक्ति में  बल और क्षमता आती गयी, लोक-गीतों में संगीत के माध्यम से समाज की भाव धारा प्रकट होती गयी।  लोक गीत कोई व्यक्ति नही वरन जन-समूह करता है।

यह सहज क्षेत्र का साहित्य है जो कि मुक्तक काव्य होता है। परंपरा में चलकर इनमें नये-नये आयामों का संकलन होता चला गया। इन लोकगीतों की जड़ें बुंदेलखंड के लोक जीवन में बहुत गहरे तक धँसी हुई हैं, जो हमारी बहुत सी सांस्कृतिक मान्यताओं को अपने में सुरक्षित रखे हुए है।

ऋतुओं के बदलाव, उन बदलावों का सहज हृदय पर प्रभाव, रिश्तों की टीस, सुख-दुख, जीवन-मृत्यु की यात्रा, विवाह का उल्लास, मातृत्व की सुख व पीड़ा, उसकी उपेक्षा, खेत-खलिहान, किसान के जीवन का हाल, परिवारिक माहौल आदि समस्त मानवीय संघर्ष, सुख-दुख की कल्पना तथा उनकी अनुभूति ही लोकगीतों के काव्य की भूमि है।

बुंदेली लोकगीतों के अंतर्गत सैरे, फागें, लेदें, दीवारी गीत, कार्तिक गीत, गारी, विवाह गीत, बधाई गीत, श्रमगीत, विदाई गीत, कीर्तन-भजन आदि प्रत्येक अवसर के गीत आते है, जो कि जीवन के प्रत्येक पक्ष को गहराई से छूते है तथा उनको अपने परिपक्व शब्दों तथा मार्मिक धुनों से यथार्थता प्रदान करते है।

बुंदेलखंड मे ग्रामीण समाज की अधिकता होने के कारण रहन-सहन तथा वेश-भूषा, परिवेश में ग्रामीण रंग अधिक दिखता है। फसलों पर निर्भरता तथा मजदूरी, बुंदेलखंडी लोकगीतों की विभिन्न विधाओं यथा श्रम गीत, दीवारी गीत, लेद, बम्बुलिया में स्पष्ट देखी जा सकती है। इसीलिए बुंदेलखंड में भी लोकगीतों को सामूहिक रूप से इकट्ठे होकर ही गाया जाता है। कभी ये समूह उत्सव गीत को साथ मिलकर गाते है तो कभी प्रतिस्पर्धा के रूप में गीतों में एक से अधिक रसों का समावेश होता हैं ।

बुन्देली लोकगीतों में मानवीय समाज की विभिन्न क्रियाकलाप, भाव-सौन्दर्य आदि वर्णन होता है. लोकगीतों के माध्यम से “विरही युवकों ने कसक मिटाई है, विधवाओं ने अपने एकाकी जीवन में रस पाया है, पथिकों ने थकावटें दूर की है, किसानों ने अपने खेत जोतें हैं, मजदूरों ने विशाल भवनों पर पत्थर चढ़ाये है।

बुन्देली लोकगीतों में शौर्य, वीर, ओजस्व, श्रम आदि की व्याख्या के अतिरिक्त महिलाओं की कोमल भावनाओं से ओत-प्रोत श्रृंगारिक भावनाएँ भी इन लोकगीतों के माध्यम से व्यक्त होती है। पति से प्रेम-प्रसंग, ससुराल की नोक-झोंक, पुत्र स्नेह, माँ-बाप का स्नेह, प्रत्येक छोटी-छोटी भावनाओं का हृदयस्पर्शी वर्णन होता है।

बुंदेलखंड  के  संस्कार गीतों  में  जीवन  का  आधार  है।  जीवन  के अलग-अलग  पड़ाव पर  परम्परानुसार जिन-जिन अनुष्ठानों का  आयोजन  किया  जाता है। जन्म से लेकर विवाह, मृत्यु तक के संस्कारों से जुड़े गीतों को संस्कार गीतों के अंतर्गत रखा जाता है। ऋतूगीतों में ऋतुओं से सम्बंधित गीत, खेलगीत के अंतर्गत बच्चों के खेलों में प्रयुक्त गीतों का उल्लेख होता है, भक्तिगीत में जीवन के सत्य तत्वों का उद्घाटन होता है।

कथा गीतों में बुंदेलखंड में प्रचलित लोक गाथाओं का गायन यथा अल्हा उदल की कथाओं का गायन किया जाता हैं। जातिगत लोकगीतों के अंतर्गत विभिन्न जातियों द्वारा अलग-अलग विशेषताओं के साथ गीत गाये जाते हैं।

बुंदेलखंड में विभिन्न लोकनृत्यों प्रचलन है जिनमें विभिन्न प्रकार के गीतों का गायन होता है। बुंदेलखंड में लोकप्रिय मुख्य लोकनृत्य निम्न प्रकार है:- बधाई नृत्य, राई नृत्य, बरेदी नृत्य, सैरा नृत्य, कानड़ा नृत्य, ढ़िमरयाई नृत्य, नौरता नृत्य आदि ।

बुंदेलखंड के ये समस्त लोकनृत्य मध्य प्रदेश की परंपरा को संजोये हुए है। प्रत्येक नृत्य किसी न किसी परंपरा अथवा रीति-रिवाज से जुड़ा हुआ हैं। इन नृत्यों की वेशभूषा तथा सौबत पुर्णतः बुंदेलखंड के रंग में रंगी हुई हैं। इन नृत्यों में प्रयुक्त गीत पुर्णतः बुंदेलखंड की बोली में होती है। प्रत्येक नृत्य की गीतों की लय अलग-अलग होती है तथा इनके गीतों की लयात्मकता भी भिन्न होती है।

बुन्देली लोक गीतों की विशेषता

संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल

admin
adminhttps://bundeliijhalak.com
Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

error: Content is protected !!