सनातन धर्म मे विवाह को जीवन के एक अनिवार्य ‘संस्कार’ के रूप में माना जाता है। विवाह का आशय उत्तरदायित्व का निर्वाह करना है। पति-पत्नी के बीच जन्म जन्मांतरों का सम्न्ध होता है। जिसे किसी भी परिस्थित मे तोडा नही जा सकता। Bundeli Vivah Sanskar में कुछ परंपरागत रसम-रिवाज, अनुष्ठान और धार्मिक संस्कार अलग होते है।
सगाई Engagement
बुन्देलखंड के Bundeli Vivah Sanskar मे सगाई की प्रथा आज भी प्राचीन परम्परा के अनुसार ही चल रही है। समय के अनुसार थोडा अंतर अवश्य आया है। पर आज भी लडका-लडकी का रिश्ता पंच,मुखिया ,घर के बडे बुजुर्ग के सामने कुछ पैसे और फल, मिठाई देकर पक्का कर दिया जाता है।
गोद भराई God Bharai
Bundeli Vivah Sanskar मे सगाई होने के उपरांत लडके का पिता लडकी की गोद भरता है। इस प्रथा मे सोने अथवा चांदी क एक आभूषण पहना कर उसकी झोली (गोद) मे फल,मिठाई,नारियल डालता है.पंडित द्वारा विवाह का मुहुर्त सुधाकर लग्न पत्रिका लिखाई जाती है.जिसमे मातृ-पूजन,तेल,मंडप, द्वारचार,टीका और भांवर पडने की तिथियां लिखी जाती हैं।
पंडित गोबर के गणेश की प्रतिमा बना कर भूमि मे चौक पूर कर गणेश जी को प्रस्थापित कर लग्न पत्रिका का पूजन करता है। उसके बाद सभी रिश्तेदार लग्न पत्रिका को हाथ से स्पर्श करते हैं। और तब वह पत्रिका नाई द्वारा समधी के घर भेज दी जाती है।
सगाई पक्की हो जाने के बाद नाई लग्न पत्रिका लेकर समधी के घर पहुच गया.सायं काल करीबी रिश्तेदार,पंच आते हैं। पंडित लग्न पत्रिका पढता है.व्योहार मे लड्डू और बतासे बांटे जाते हैं। और सभी भोजन करते हैं। इसे लग्न की पंगत कहते है। और इसी के साथ वर तथा कन्या दोनो घरों मे विवाह कार्यक्रम आरम्भ हो जाता है।
विवाह संस्कार मे वर –कन्या दोनो के घरों मे मुहुर्त के अनुसार मातृ-पूजन,तेल,मंडप आदि का कार्यक्रम चलता है.तेल दोनो पक्षों मे चढाया जाता है। कन्या को पांच बार और वर को सात बार।तेल के बाद मंडप गाडा जाता है। जिसको दोनो पक्षों के मान दान (सगे बहनोई और फूफा) ही गाडते हैं।
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मातृ-पूजन
तेल के बाद मायनो (मातृ-पूजन) होता है। इसमे स्त्रियां खदान का पूजन करके मिट्टी लाती हैंइसी मिट्टी द्वार एक चूल्हा बनाया जाता है। जिस पर सबसे पहले मेहर (जो कुल देवता को चढता है) सेंका जाता है। मेहर मे गेंहू के आटे मे गुड मिला कर उसको माद कर छोटी-छोटी गोलियां और किसी के यहां बत्तीयां बना कर उमेठ दिया जाता है। इनको मायें (माईं) कहते हैं।
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मंडप
मंडप अधिकांशतः पलाश बृक्ष की लकडियों से बना होता है। जिसको बढई बना कर लाता है। जब बढई मंडप लाता है। तब उसका पूजन होता है। और बढई को सगुन के तौर पर अनाज और पैसे नेंग के तौर पर दिया जाता है। बाद मे भूमि का पूजन करके गडढा करते है। उस गड्ढे मे पैसे पांच हल्दी की गांठे,डाल कर पांच व्यक्ति उस मंडप को पकड क़र प्रस्थापित करते हैं। फिर होम करके रसोई का भोग लगाते हैं। मंडप का पूजन ब्रम्हा की भावना से किया जाता है। जिस प्रकार ब्रम्हा के चार मुख होते है उसी प्रकार मंडप के चार मुख बनाये जाते है। मंडप गाडते समय लोक गीत गाया जाता है।
सुगर बडैया चंदन मडवा,
रूच-रूच के गढ ल्यायो रे।
रोप फफुल ने आमन-जामुन के,
पत्तन सौं छायौ रे।
सौने की झारी फुआ भर ल्याई,
छ्प्पन भोग लगायौ रे।
दै देउतन सुमर मनई-मन,
जुर मिल मंगल गायौ रे।
चतुर शिल्पी बढई चन्दन का कला पूर्ण मंडप बना कर लाया है। फूफा ने उसक पूजन करके उसको प्रस्थापित किया है। और उसके उपर आम और जामुन के पत्ते छा दिये है। फुआ सोने के लोटा मे जल और छप्पन भोज लाई है। जिससे मंडप मे भोग लगाया गया है। कुटुम्ब के सभी सम्बन्धियों ने कुल देवता का स्मरण करते हुये मंगल गान गाना आरम्भ कर दिया है। मंडप पूजन के बाद कढी,चने की दाल,भात,,बरा बनता है। इस पंगत को मंडप की पंगत कहा जाता है।
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चीकट (भात)
मंडप के बाद भाई द्वारा बहन को जिसके लडके अथवा लडकी का विवाह होता है उसे भेंट देने को चीकट कहते है (इसे भात देना भी कहते हैं)इसे भाई अपनी पीठ पर वस्त्र रख कर भेंट करता है। बाद मे बहन भाई को मंडप के नीचे बैठा कर मिठाई खिलाती है। चीकट के बाद रात मे सभी कुटुम्बजन देवी-देवताओं को आमंत्रित करते हैं।
टीका (द्वारचार)
बुन्देलखण्ड मे दूल्हे का टीका अधिकतर घोडे पर ही किया जाता है। कही-कही पालकी या पटा पर भी किया जाता है।
प्रीतिभोज
टीका (द्वारचार) के बाद प्रीतिभोज होता है। जिसको अगौनी की पंगत कहते हैं। इसमे पूडी,सब्जी,मिठाई,,रायता आदि परोसा जाता है। पंगत के समय महिलायें लोकगीत गाती हैं जिसे गारी कहा जाता है।
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चढ़ावा
पंगत के बाद लडके का पिता दुल्हन को चढावा चढाने जाता है।और मंडप के मध्य ससुर कन्या को स्वयं अपने हाथों से सोने और चांदी के आभूषण देता है।और उसकी ओली मे नारियल,बतासा डालता है। कन्या को शक्ती का रूप मान कर उसका पूजन करता है।
चढावा चढने के बाद परिक्रमा(फेरे) के समय सात ऋषियों और सात समुद्रों को प्रस्थापित किया जाता है। इसमे किसी धातु या मिट्टी के चौदह पात्र रख दिये जाते हैं। जिनको सप्त ऋषियों और सात समुद्र का रूप मान लिया जाता है। वर-कन्या जब मंडप के नीचे अपने-अपने स्थान पर बैठ जाते हैं। तब जवा,तिल,शक्कर,शहद,घी से बनाई गई “शाकिल्य” को पंडित मंत्र उच्चारण के साथ आहुति देकर हवन करता है।
कन्यादान
हवन के बाद कन्या का पिता वर के हाथ मे अपनी पुत्री का हाथ रख कर कन्यादान (पाणिग्रहण) करता है। पंडित कन्यादान संकल्प का मंत्र उच्चारण करता है। इस अवसर पर गो दान भी किया जाता है।
भांवर (परिक्रमा)
पंडित वर और कन्या को प्रतिज्ञा करवाता है। वर कन्या को सदैव ग्रहण करने के लिए सात प्रतिज्ञा करता है। और कन्या वर को सदैव ग्रहण करने के लिये पांच प्रतिज्ञा करती है। जब वर-कन्या वचनबद्व हो जाते हैं तब भांवर (परिक्रमा) पडना आरम्भ हो जाती है। भांवर पडते समय महिलायें गीत गाती हैं।
पैली भांवर के परतई भौजी मन मुस्कानी
दूजी भांवर के परतई, मांई मन सकुचानी
तीजी भांवर के परतई, वीरन हिय भर आओ
चौथी भांवर के परतई, सखियन मोद मनाओ
पांची भांवर के परतई, माई-पीर सिरानी
छाटी भांवर के परतई, मैना मन बिलखानी
साती भांवर के परतई, बेटी भई है बिरानी
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पांव पखराई
परिक्रमा के बाद पांव पखराई होती है,वर-कन्या को पद प्रक्षालन करते हुए पैसे,आभूषण,एवं अन्य वस्तुए भेंट स्वरूप दी जाती हैं। इसके बाद दूल्हा ससुर के मैंहर-गृह (कुल-देवता गृह)मे प्रवेश करता है.तब उसे साली-सरहजें द्वार पर पर्दा डाल कर अन्दर आने से रोकती है.और गीत गाती है………..
धीरे-धीरे आओ छिनर के नदिया बहत है
तेरी बैना ,मोरे भैया जुडिया मिलत है.
दूल्हे के घर मे प्रवेश के बाद कुल देवता के समक्ष ज्योति मिलाई जाती है। जिसमे वर और कन्या दो जलती हुई बत्तीयों को अपने-अपने हाथों से एक करके,अपने दो ह्र्दयों के एक होने का प्रमाण देते हैं। इस ज्योति मिलाने मे वर को नेंग दिया जाता है।इसके बाद दूदा-भाती (दूल्हा-दुलहिन एक दूसरे को दूध भात खिलाते हैं)होती है।इसमे भी दो ह्र्दयों के एक होने का भाव प्रदर्शित होता है।इसके बाद दूल्हा जनवासे चला जाता है।
कुंअर कलेउ
दूल्हा फिर कुंअर कलेउ के लिये ससुर के घर आता है।और मनाने पर ही कलेउ करता है।इस समय दूल्हे को उसकी इच्छा अनुसार भेंट भी दी जाती है।
विदाई
विवाह संस्कार समाप्त हो जाने के बाद केवल विदा और दहेज लेना रह जाते हैं इसके लिये दूल्हा अपने मान्य के साथ मंडप के मध्य आता है।दूल्हा मंडप का कंकन छोर कर ससुर-सास से विदा लेता है।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल
[…] व्यक्ति पर केन्द्रित नृत्य है, जो विवाह-संस्कार के प्रसंगों, जैसे मैर (मैहर) का पानी […]