लोक में प्रचलित आचार (आचरण ) को लोकचार कहते हैं। आचार व्यक्ति के स्तर पर व्यक्ति के संस्कार और लोक के स्तर पर लोक संस्कृति को प्रगट करते हैं लोक संस्कार, लोकरीतियाँ, लोक प्रथाएं और लोक वर्जनाओं का समन्वितयोग ही Bundeli Lokachar Bundeli Ethos बन जाता है।
“विष्णु धमोत्तर पुराण” की शिक्षा है कि पुरूष यदि आचार रहित है, तो उसे न तो विद्या की प्राप्ति होती है और न लक्ष्य की।आचारवान को स्वर्ग, कीर्ति, आयु, सम्मान तथा लौकिक सुखों की प्राप्ति होती है। लोकाचारों की परम्परा बहुत प्राचीन है।
लोकाचारों का उल्लेख गोस्वामी तुलसीदास जी के श्रीरामचरित मानस में अनेक स्थानों पर मिलता है। जन्म के समय विवाह के समय तथा अंतिम संस्कार के समय लोकाचारों का वर्णन बालकाण्ड, अयोध्याकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड में प्रचुरता से वर्णित है।
Ethos
बुन्देली लोकाचारों के संबंधों में डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त ने लिखा है कि….।
”रामायण काल में वैदिक आचार ऋषियों मुनियों के साथ आये थे। बुन्देलखण्ड (बुन्देली अंचल) कीं निषाद और शबरी ने श्रीराम का स्वागत किया था। रामायण के निषाद और शबरी प्रसंग इसके प्रामाणिक साक्ष्य है। आदि जातियों के धार्मिक आचारों में धरती, जल, वृक्ष, नाग और पशु-पूजा तथा महामारी एवं पशुपति की भक्ति प्रमुख थी। वे कृषि, शिकार और देवों से संबंधित उत्सवों को मनाते थे। नयी ऋतुओं के स्वागत में समारोह करते थे।
चरखारी नरेश गंगासिह देव द्वारा प्रकाशित ‘विवाहगीतावली’ में बना (दुल्हा) की नजर निछावर , लगुन , सीधौ छना , करैया धरना , छेईमाटी , मड़वा गड़ना , चीकट उतरना , मायनी व मटयानौ, मैर को पानी भरना कंकन पूरना, राछ फिरना, निकासी, टीका, चढ़ायो, सुहागलेना, कन्यादान, भाँवर , पंगत में गारी गाना, कुंवर कलेउ, दायजौ सौपना, बंद खोलना, विदा, देवता पूजन, कंकन छोरना, मौचाइनों आदि लोकाचारों का विस्तृत वर्णन है।
बुन्देली लोक कथाओं में लोकाचारों का अमूल्य कोश भरा है। पुत्रों के मंगल के लिए हरछट और संतान साते की पूजा होती है। इसी प्रकार महालक्ष्मी, दशारानी तीजा आदि पूजाओं का प्रचलन लोक प्रसिद्ध है। शिशु के जन्मोत्सव के अवसर पर अनेक लोकाचार है। ननद पच के अवसर पर चंगेर बाजे गाजे के साथ लेकर आती है। नवजात शिशु के मंगल के लिए-उसे हाय पहनाई जाती है। मामी ननद को ससम्मान विदाई भेंट देती है। बच्चे की नजर उतारने के लिए राई नौन की प्रथा आम है।
प्रसूता को पानी पिलाने के लिए चरूआ रखा जाता है। चरूआ अर्थात् मिट्टी के एक मटके में पानी भर कर उसमें दसमूल (जटी बूटियां) की पोटली डालकर पानी उबाला जाता है। इस पानी को ठंडा करके प्रसूता को दिया जाता है।
विवाह शादियों और जन्म उत्सवों के अवसरों पर महिलाऐं नृत्य करती हैं। गाना गाती है। लहंगा चुनरियां नृत्य में महिलाओं की खास पोशाक होती हैं। नृत्य के समय मृदंग, कसावरी (बिलिया) , झींका, ढोल, मंजीरा संगत के वाद्य होते हैं।
गौरइयां का लोकाचार बुन्देलखण्ड में बहुत प्रचलित है। जब वर पक्ष के पुरूष बरात चलाकर कन्यापक्ष के नगर या ग्राम चले जाते हैं तब घर पर महिलाऐं ही रहती है। इस अवसर पर गौरईया का लोकाचार पूरा किया जाता है। कुछ खास महिलाओं को जो नाते रिश्तेदारों की भी होती है और पास पड़ौस के व्यवहार की भी होती है, आमंत्रित किया जाता है। एक खास पूजा करके इन आमंत्रित महिलाओं को दूधभात और पकवान परोसे जाते हैं। रात्रि में ये समी महिलाऐं- नाना प्रकार के हास परिहास के खेल खेलती है। स्वांग बनाये जाते हैं।
महिलायें रात भर खेल तमाशे कर मनोरंजन करती है। स्वांगों को विशेष नाम बाबा कहकर पुकारते हैं। यह लोकाचार पुरूषों की अनुपस्थिति में घर की सुरक्षा और महिलाओं की आत्मरक्षा की दृष्टि से बड़ा महत्वपूर्ण होता है। इसमें गीत आदि भी गाये जाते है। ये गीत श्लील और अश्लील होते हैं।
लोकाचार के अन्तर्गत बस्त्रामरण भी आते हैं। बुन्देली लोक जीवन में साफा, पगड़ी अंगोछा, टोपी सिर के वस्त्र हैं । शेष परिधानों में कुर्ता धोती, अंगरखा, बण्डी, कमीज आदि प्रमुख है। पुरूष कंधे पर पटका (एक प्रकार का उत्तरी), तौलिया या साफी प्राय: डालते हैं। महिलायें लहंगा चुनरिया, धोती चोली, बलाउज पेटीकोट आदि बस्त्र धारण करती है। माथे पर बिन्दी, मांग में सिंदूर पैरों में बिछिया विवाहित महिलाऐँ पहनती है। ग्रामीण महिलाएँ
‘कछौटा लगाये धोती पहनती हैं। महिलाओं की धोती धुतिया और पुरूष की धोती – परदनी कहलाती है। बुन्देली लोकाचार में विशेष रूप से गाँव की बहुऐं (बधुऐं) घूंघट निकालती है। घुंघट मान मर्यादा लज्जा शील का प्रतीक माना जाताहै।
स्वागत सत्कार में रामराम, जैरामजी, पांयलगें आदि सम्बोधन होते है। छोटे बड़ों के चरण स्पर्श करते हैं। लॉग, इलाइची, शरबत आदि प्रारंभिक स्वागत की सामग्री है। पुरूष वर्ग में चिलम बीड़ी देने लेने का प्रचलन भी कहीं कहीं प्रचलित है। बुन्देली लोकाचारों से बुन्देली लोकसंस्कृति की सौम्यता, शिष्टता, व्यवहार-कुशलता, धार्मिकता और पारवारिक सामाजिक स्वाभिमान, सम्मान आत्मरक्षा की चेतना आलोकित होती है।
According to the National Education Policy 2020, it is very useful for the Masters of Hindi (M.A. Hindi) course and research students of Bundelkhand University Jhansi’s university campus and affiliated colleges.