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Bundeli Bara-Bari Ki Nahi Kaun Barabari Hai बुंदेली बरा-बरी की नहिं कउँ बराबरी है 

बुन्देलखण्ड की संस्कृति मे अतिथि देवो भाव:। मेहमानों की आवा-भगत, खान -पान का बड़ा महत्व है । सचमुच बुन्देलखण्ड के बरा-बरी की नहिं कउँ बराबरी है । 

बुंदेलखण्ड की संस्कृति

आवें इतै पाहुनें तौ पलकन पै पारे जावें ।
जौ लौ कछू न खा लें तौ लौ खालें उतर न पावें ।।

जीवन में भू-खन मरिवे कौ इतै भान न होवै ।
इतै अन्न कौ समाधान तौ समाधान से होवै ।।

मुरका देत स्वाद कछु मुरका खट्टी कढ़ी करी है।
अरु बुंदेली बरा – बरी की नहिं कउँ बराबरी है ।।

आल्हा के तेगा के पानी पै बुंदेली-पानी ।
पानी माँग गये गोरा, जब रानी लई कृपानी ।।

जोर जोर धरती रई आँचर में हीरन की घानी ।
धरती के हीरन की ऐसी धरती भई रजधानी ।।

पैरें नारी उन्ना लत्ता जी खाँ जैसे पूँजें ।
अकती परैं इतै वर पूजें पी-पर कोउ न पूजें ।।

पहिर लाज कौ गानौं मों पै लमटेरा कौ गानौ ।
तब जानौ कै हो रव इनकौ गंगा जू पै जानौ ।।

जब बुंदेलखण्ड के पानी पै विपदा छाती है।
इतै मरद के पीठ नईं है बस ताती छाती है ।।

रमतूला में रण तुरही कौ सुर बोलत अलबेला ।
अलगोजन में अलिगुंजन को समझो जात झमेला ।।

भये व्यास कवि और व्यास कवियन की काँ लौ कइये ।
जय बुंदेली भूमि शीष पै तोरी अशीषें चइये ।।

वर – बड का पेढ /दूल्हा
मुरका – मोड देना /महुए का व्यंजन
पीपर – पीपल का पेड़ /पराया वर
समाधान से होवै – एक प्रकार का प्राकृतिक धान जिसे संवाधान भी कहते हैं। 

रचनाकार – पद्मश्री डॉ.अवध किशोर जड़िया

पद्मश्री डॉ.अवध किशोर जड़िया का जीवन परिचय 

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