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भूरागढ़ किला बांदा

बुंदेलखंड का जनपद बांदा। जहां पर स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित अनेक क्रांतिकारियों को Bhuragarh Kila Banda में फांसी पर चढ़ा दिया गया था। जहां की माटी ने साहित्य कला संस्कृति और शौर्य के हीरे उत्पन्न किये। दक्षिण के कैथूर पर्वत से निकली स्वच्छ सलिला केन नदी की चट्टानों और सजर की प्रकृति सर्जन के मध्य बांदा के उत्तर की ओर यमुना से संगम करती है। इसी पवित्र नदी के किनारे महर्षि वामदेव से मिलने भगवान श्री राम अपने बनवास काल में आए थे।

जहां वीरांगना दुर्गावती जैसी तेजस्विनी कालिंजर के राजा कीर्ति सिंह की पुत्री जिन्होंने अकबर को दो बार पराजित किया, जिनके शौर्य और बलिदान की गाथा धरती के कण- कण में समाई है। इसी नगरी बांदा में बड़े ही शान से खड़ा भूरागढ़ किला जहां पर स्वतंत्रता संग्राम के लिए समर्पित अनेक क्रांतिकारियों को फांसी पर चढ़ा दिया गया था।

भूरागढ़ का इतिहास बलिदान की गाथा बड़ी शान से दुहराता रहेगा। महाराजा छत्रसाल के वंशज दुर्गा के अनन्य उपासक महाराज गुमान सिंह द्वारा भूरे रंग के खूबसूरत पत्थरों से निर्मित के किला भूरागढ़ किला आज भी क्रांतिकारियों के बलिदान का गवाह है। मेरठ में क्रांति आरंभ होने के बाद यह क्रांति अन्य रियासतों ने भी फैल गई।

बांदा में 14 जून 1857 को ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन का प्रारंभ हुआ। इसका नेतृत्व नवाब अली बहादुर द्वितीय ने किया। इसी समय क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों द्वारा किए जा रहे जुल्म के विरुद्ध लड़ते हुए ज्वाइंट मजिस्ट्रेट काकरोल की हत्या कर दी। तदुपरांत 16 अप्रैल 1858 को अंग्रेज अफसर हिटलर का आगमन बांदा हुआ। उसी समय युद्ध में क्रांतिकारियों से आमना-सामना हुआ। कहा जाता है कि इस जंग में लगभग 3000 से अधिक क्रांतिकारी शहीद हुए जिसमें कुछ के नाम आज भी शिलालेख में मौजूद हैं।

 जो क्रांतिकारी शहीद हुए उनके नाम है नवाब अली, अकबर बेग, फरियाज मोहम्मद,छत्तर खान, बेग उर्फ बुद्ध, इदरीश मोहम्मद,अली मोहम्मद, अली रहमत,पैगाम अली,काले खां,इस्माइल खां,अली अय्याम,शेख जुम्मन, विलायत हुसैन, गुलाम हैदर खान,शहीद हुए। वहीं इमदाद अली हनुमंतराव फत्ते,बाबूराव गोरे, डिप्टी कलेक्टर फतेहपुर हिकमत उल्ला खां,तहसीलदार उस्मान खान,माल विभाग अधिकारी मिर्जापुर इमदाद अली बेग आदि भी मारे गए। सुगरा स्टेट के राव महिमत सिंह के साथ 80 सिपाहियों को भी इसी भूरागढ़ दुर्ग में फांसी दी गई।

बताते हैं कि 1857 की क्रांति में बांदा का पूरा भूरागढ़ किला क्रांतिकारियों का गढ़ बन गया था। रानी लक्ष्मीबाई ने मदद हेतु अली बहादुर को राखी के साथ चिट्ठी भेजी थी।यहीं पर नवाब की सेना के सिपाही झांसी जाने के लिए इकट्ठा हुए थे। यहां से तीन दिन के अंदर रानी की मदद को झांसी पहुंच गए। यह किला आज भी क्रांतिकारियों की फांसी का मुख्य गवाह है।

भूरागढ़ दुर्ग स्मारक शिला पर आज भी बलदानी वीरों के नाम अंकित है। कहते हैं कि नजदीक गांव की रहने वाले नटों ने आजादी की लड़ाई में भाग लिया, जिसमें वह भी बलिदान हुए। नदी तट पर मकर संक्रांति में भव्य मेले का आयोजन होता है। स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारियों की स्मृति के रूप में यह मेला शहीदों के मेले के नाम से प्रसिद्ध हो गया।

केन नदी के तट पर मकर संक्रांति का मेला आज भी बड़े सौहार्द और उल्लास के साथ मनाया जाता है। लोग पवित्र केन नदी में स्नान कर नाव पर भ्रमण करते हैं। नाव में बैठकर भूरागढ़ किले की अदभुत कला को देखते हुए  क्रान्तिकारियों को नमन कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। तट पर ही नटों के मुखिया की मजार है जिसने स्वतंत्रता संग्राम में अपने कुनबे के साथ भाग लिया था अपने जादू और करतबों से सेनानियों की मदद करता था।

क्रांतिकारियों की बलिदान भूमि पर सरकार द्वारा शहीद स्मारक बनाया गया। नगर के चारों मार्गों में सुशोभित वामदेवेश्वर द्वार,वीरांगना दुर्गावती द्वार, महाराज गुमान सिंह द्वार,नटबली शहीद द्वार,शहीदों की वीर गाथा को दोहरा रहा है। भूरागढ़ किला अपने शहीदों की याद में खड़ा हुआ शहीदों को नमन करता रहेगा और हम उनके जीवन से प्रेरणा लेते रहेंगे।     

आलेख
सुश्री मीरा रविकुल (प्र०अ०)
प्राथमिक विद्यालय कतरावल
बड़ोखर खुर्द बांदा (यू०पी०)

चन्देलकाल में राम 

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