भारत में आकर बसने तथा यायावर/खानाबदोस जीवन का परित्याग करने के साथ ही आर्यों ने ऋग्वेद में दूसरे देशों के जो साहित्यिक और सांस्कृतिक शब्द सम्मिलित किए, उससे उनकी संस्कृति के समन्वित होने के संकेत मिलते हैं। समय -समय पर अन्य संस्कृति के Bhartiya Sanskriti Par Prabhav देखे गए हैं ।
भारतीय संस्कृति पर अन्य संस्कृतियों का प्रभाव
Influence of other cultures on Indian culture
अन्य देशों के साथ व्यापारिक आदान-प्रदान से आर्थिक क्षेत्र में प्रभाव पड़ा। भारत और ईरान के संबन्ध भी अत्यंत प्राचीन रहे। समान उपासना शब्द बहुत अधिक संख्या में ऋग्वेद में प्रयुक्त हुए हैं। उन्होंने ही पश्चिम में प्राचीन यूनानियों से लेकर पूर्व में शायद भारतीयों तक फैले आर्य कबीलों को वर्णमाला दी। इस संपर्क ने न केवल व्यापारिक क्षेत्र को बल्कि शासन पद्धति को भी प्रभावित किया और इसके साथ Bhartiya Sanskriti Par Prabhav गौड़ हुए।
द्रविड़ों की अनसिली पोशाकें, धोती और दुपट्टा जैसी पोशाकों ने आर्यों की व्यक्तिगत ऊनी पोशाकों को समृद्ध किया। परवर्ती युगों में ईरानी पद्धति ने न केवल कला एवं वास्तुकला के क्षेत्र में अपितु दरबारी रस्मों , दायें से बायें लिखी जाने वाली खरोष्ठी लिपि, शिलालेखों एवं स्तंभों पर आलेखों के अंकन में भी Bhartiya Sanskriti Par Prabhav पड़ा ।
एशिया में मिस्र से लेकर पाटलिपुत्र तक चार हजार ईसा पूर्व से लेकर तीसरी सदी ई. पू. तक मिस्र, सुमेरिया, असुरिया, फारस, भारत की कड़ी अविच्छिन्न बनी रही। वास्तुकला के क्षेत्र में स्तूप सुमेर और बाबुल के जग्गुरत तथा मिस्र के पिरामिड और मिनारा आदि में खोद कर निकाले गए मकबरे उन स्तूपों के पर्ववर्ती नमूने थे, जो गांधार, पश्चिमी पंजाब और सिंध में ईरानी प्रभुत्व के समय बने थे।
मूर्तिकला के क्षेत्र में और भी महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। कनिष्क ने अपने सिक्कों में फारस के देवी- देवताओं के नामों का उल्लेख किया। जन्म कुण्डली के लिए संस्कृत में कोई शब्द नहीं है, भारतीय ज्योतिषि इसके लिए होड़ाचक्र का प्रयोग करते थे जो यूनानी शब्द होरस (सूर्य देवता) से बना है।
सिकन्दर के अभियान के बाद भारतीय, यूनानी, शक और कुषाणों ने यहां की राजनीति, सामाजिक आचार- व्यवहार तथा दर्शन एवं विचारों , खगोल विद्या, कला, सिक्के ढालने की कला, भारतीय शब्दावली (जैसे यवनिका ) पर गहरा प्रभाव डाला।
ज्योतिष में यूनानी प्रभाव का पता गार्गी संहिता और वाराहमिहिर से भी लगता है। गांधार कला के रूप में बुद्ध की मूर्तियों पर यूनानी प्रभाव स्पष्ट है। यूनानी संपर्क से भारत पश्चिमी जगत के संपर्क में आया। गुप्त काल मे (चौथी से छठी शताब्दी तक) भारत में रोमन बस्तियां बसने लगीं। भारत के बाजारों में रोमन दीनार का प्रचलन हुआ।
ज्योतिष पर रोमन प्रभाव भी है। रोमन सम्राटों के समकालीन प्रारंभिक कुषाण शासकों के सिक्कों पर रोम के मानदण्डों का प्रभाव है। यूनानियों द्वारा आरंभ की गई गांधार शैली को विकसित और प्रचलित करने का कार्य शकों और कुषाणों ने किया। शकों से शक संवत प्राप्त हुआ ( जिसकी स्थापना 78 ई. में कनिष्क ने की)।
पांचवीं शताब्दी के अन्तिम भाग में आए आभीर(अहीर) और गुर्जरों ने लोकप्रिय बोलियों प्राकृत और अपभ्रंश को प्रभावित किया और महत्वपूर्ण प्राकृत गुर्जरी से आधुनिक गुजराती भाषा का जन्म हुआ।
गुप्त काल में अनेक ईसाई बस्तियों का भी उदय हो चुका था। अरबों ने यूनानियों के दर्शन और विज्ञान को यूरोप के लिए संरक्षित किया और भारत से गणित तथा औषधि विज्ञान और चीन से कागज तथा छापे की मशीन पश्चिम में ले जाकर उसे प्रबुद्ध किया।
इस्लामी प्रभाव का एक प्रमुख परिणाम था, मुस्लिम सूफी संतों का हिन्दू जनता से संपर्क। सूफी मत इस्लामी मत की कट्टरता के विरुद्ध प्रतिक्रिया से उत्पन्न हुआ था और उदार संतों ने इस नए आन्दोलन का नेतृत्व किया। इस्लाम ने हिन्दू समारोहों, सामाजिक रीतियों, वेश-भूषा ,भाषा, विचार और आदर्शों, और साहित्य, ललित कलाओं , वास्तु शिल्प तथा संगीत और विज्ञान को गहरे रूप में प्रभावित किया।
वास्तुकला में दोनो शैलियों के मिश्रण से एक नई शैली का जन्म हुआ। इसी प्रकार चित्रकला में मुगल कलम का प्रादुर्भाव हुआ और स्थापत्य की तरह ही मुस्लिम तथा हिन्दू संस्कृतियों के मेल से यह पूर्णतः भारतीय हो गई। भाषा में अनेक अरबी, फारसी, तुर्की शब्दों का समावेश हुआ। उर्दू भाषा का जन्म इन्हीं सब का परिणाम था।
भारतीय संस्कृति पर यूरोपीय, मुख्यतः अंग्रेजों के संपर्क से राष्ट्रवाद का बोध, राजनैतिक, भौगोलिक एकता, स्वतंत्रता का विचार आया और भारतीय पश्चिमी शिक्षा, ज्ञान-विज्ञान और आधुनिक विचारों से अवगत हुए। अंग्रेजों और इससे पूर्व आए आक्रान्ताओं में एक मूल अंतर यह था कि अंग्रेज यहां बसने नहीं अपितु औपनिवेशिक हितों की पूर्ति के लिए आए थे। उन्होंने जहां एक ओर भारतीय अर्थव्यवस्था का शोषण किया, वहीं दूसरी ओर उनके प्रयत्नों से अतीत का गौरव भी उद्घाटित हुआ।
भारतीय कला, साहित्य, संगीत, शिक्षा, सामाजिक रीति रिवाजों आदि भी यूरोपीय प्रभाव से अछूते नहीं रहे। कुल मिलाकर आप ये समझ पाए होंगे कि इन सभी ने स्थानीय साहित्य, कला, विज्ञान और संस्कृति को प्रभावित किया और मिली-जुली संस्कृति पर गहरी छाप छोड़ी और उस समन्वयवादी, विविधताओं से भरी संस्कृति को जन्म दिया जिसे आज हम भारतीय संस्कृति के नाम से जानते हैं।