Babaju बाबाजू-बुन्देली लोक कथा

एक गाँव में एक गरीब बामुन कौ परवार रत्तो। परिवार में पति-पत्नी उर दो ठौवा लरका हते। भलेई उनकौ परिवार हल्कौ सो हतो। तोऊ इतनी गरीबी हती कै दो-दो दिन के फाँके पर जात ते। ऊनें सोसी कै इतै गाँव में डरे-डरे का करें। इतै इन लरकन खौ पढ़बे लिखबे कौ कोनऊं साधन नइयाँ। इनें Babaju कें नाय  लै जा कैं पढ़ा लिखा कै हुशयार बनाबे की कोशिश करें। जीसै जे अपनौ उर अपने परिवार कौ पेट भर सकें।

एक दिना पंडित जी पंडितानी सैं बोले कैं काल हम इन लरकन खौं लुआकैं परदेशै जान चाऊत। तुम कछू थोरौ भौत खाबे खौं बना दिइयौ। पंडितानी ने गैल के लानें तनक सौ सतुआ उर गुर बाँध दओ। वे बड़े भुन्सराँ दोई लरकन खौ लुआकैं चल दये। निंगत-निंगत एक जंगल में पौंचे। खूबई भूक-प्यास लगी ती। उने जंगल में एक टपइया दिखानीं। वे तीनई जने ऊ टपइया नौ पौंचे तौ उतै एक बाबा आँखें मीचें बैठो तो।

उतै बैठकैं उननने पानी पियो तन-तन सतुवा खाव। उरऊ बाबा की सेवा खुशामद में लग गये। बाबा ने आँखें खोली उर उनन खौं देखकैं भौतई खुश भओ। पंडित जी बोले कैं मराज हम अपने इन दोई लरकन खौ पढ़ाबे लिखाबे के लानें परदेशैं जा रये हैं। कजन अपुन इनें पढ़ाबे-लिखाबे की कृपा कर दो तौ अच्छी बात है। बाबा जी बोले कै ऐई जंगल में तनक दूर हमाये गुरू हैं। वे भौत बड़े गुनिया है। वे इनन खौ विद्या सिखा कै हुशयार बना दैय। तुम औरें उतई चले जाव।

वे तीनई जनें खोजत-खोजत उनई बाबा जूँ नौ चले गये। बाबा ने एक शर्त रखी कै इनन खौ हम ज्ञान तौ पूरौ दै दैय, अकेलैं गुरुदच्छिना में तुमाव एक लरका हम लै लैय। सुनतनई पंडित जी कौ मौ उतर गऔ। जैसे तैसे छाती पै पथरा धरकै बाबा की शर्त मान कै दोई लरकन खौ बाबा के लिंगा छोड़कैं अपने घरैं लौट गये। उर पंडितानी खौ रो-रो कै पूरी किसा सुनाई। बाबा जू नौ बनौ रैय, अकेलैं कोआय तौ अपनऊ। कभऊँ ना कभऊँ तौ अपनी सुर्त करे।

बाबा नें सोसी कैं इन दोईयँन की बुद्धि की परीक्षा लओ चइये। बाबा नें एक-एक लडुआ दोई जनन खौं दओ उर कई कैं तुम ऐसी जगा पै हुन जो लछुआ खाकैं आ जाव जितै तुमें कोऊ नई देख पाय। बड़े भइया तौ पेड़न की ओट में ठाँढ़ो होकै लडुआ खाकै आ गओ। अकेलै हल्कौ भइया लडुआ वापिस लैकै आ गओ उर बोलो कै गुरुजी ऐसी कोनऊ जगा नइयाँ जितै कोऊ देखत नई होंय। भगवान तौ हर जगह हैं। बाबा जी समज गये कै हल्के लरका की बुद्धि जादाँ तेज है।

फिर बाबा ने दोईयैन खौ एक-एक खाली घड़ा दओ उर कई कैं जाब तुम शिहिर सैं इनें घी सैं भरा ल्आव। बड़ो भइया तौ गेरऊ घी माँगत फिरो। अकेलैं कोऊ ऊकौ घड़ा भरबे तैयार नई भओ। हल्के भइया नें एक बानियाँ सैं कई कै भइया ईमें थोरौ सौ घी डार जो जीसै जौ अपने आप घी सै भर जैय। बानियाँ ने घड़ा में थोरौ सौ घी डार दओ फिर लरकाने ऊमें एक जादूकौ गुटका डार दओ जीके बल सैं घड़ा मौसे भर गओ।

जौ चमत्कार देखकैं बनिया उनें मन मुक्तौ घी दैबे तैयार हो गओ। बाबा जू हल्के लरका की हुशयारी देखकैं भौत खुश भये उर उयै बड़े लाड़-प्यार सैं जादू सिखाउन लगे। बड़े खौ पंडिताई पढ़ाई। जादू के बल सै हल्कौ लरका गैलारन खौ लूट-लूट कै बाबा खौ माला माल करन लगो।

बाबा ने सोसी कैं हम ऊ बामुन सैं हल्के लरका खौं लैकै धन्धों करवाँय। हल्कौ लरका बाबा की बदनीयत खौ तौ समजई गओ। वौ ऊके चंगुल सैं छूट कैं अपने मताई बाप की सेवा करन चाऊत तौ। उर बौ उतै सैं भगबे को मौका तलाश रओ तो।

बाबा ने उयें कण्डा बीन बेखौ जंगल में पौंचा दओ उर उतै उयै घर सैं आऊतन पिता जी मिल गये। ऊनें पिता जी खौ बाबा की बदनियत बता दई उर कई कैं बाबा हमाई भौतई बुराई करें तुम एक नई मानियौ। तुम हमइयै माँगियौ फिर मौका पाकै हम बड़े भइया खौ छुड़ा लै जैय।

पंडित जी सूदे बाबा नौ पौचे। बाबा ने हल्के भइया की सैंकरन बुराई उगल दई। अकेलैं पंडित जी बाबा की करतूतन खौं जानतई हते। उन्नें कई कैं हम तौ अपने हल्कई लरका खौं चाऊत। बड़े लरका खौ तुम राखैं रओ। अंत में बुरये मन सै बाबा ने हल्कौ लरका पंडित जी खौं सौंप दओ। पंडित जी उयैं लोआ कैं अपने घर खौ चल दये।

गैल में ऊनें अपनें पिता जी सैं कई कै तुमें पइसा तौ नई चाने। पंडित जी बोले कैं तुमनौ पइसा काँसे आये। वौ बोलौ कै देखौ हम पइसा कौ इंतजाम करत हैं। ई जंगल में एक सेठ जी अपनी गाड़ी लैकै जा रये उनकी गाड़ी कौ एक बैल बीमार होकैं बैठ गओ वे जंगल में हैरान हो गये हैं। हम बैल बने जात उर तुम हमें सेठ खौ बैचकैं रूपइया लैलिइयौ। हम तनक देर में उतै सैं भग आँय।

पंडित जी बैला खौं डुरयाकै उतई हुन जा कड़े। सेठ ने कई कैं जौ बैलवा कितेक में बैंच रये। पंडित जी कन लगे कैं हम तौ इयै एक हजार सैं कम में नई दैय। सेठ नें तुतरई एक हजार गोआदयें। पंडित जी जेब में डार कैं औलट हो गये। तनक दूर तौ बैलवा निंगत गओ उर फिर गाड़ी में सैं निबक कैं दै भगो। कछू दूर तौ सेठ जी ऊके पाछैं। दौरे उर वौ ऊ जंगल में हिलविलान हो गओ। सेठ जी हाँत मींड़त रै गये।

वे बाप बेटा दोई जनें तनक और आगैं बढ़े। लरका नें कई कैं हम हाती बनें जात तुम हमें कोनऊ राजा खौं चार पाँच हजार में बैच कैं रूपइया गिनवा लिइयौ। इत्ती कैकैं लरका हाती बन गओ। बाबा ने योग बल सैं जान लई कै वौ लरका हाती बन कैं अब बिकबे खौं जा रओ। बाबा ने राजा बन कैं ऊ हाती खौं खरीद कै अपने आसरम में बँधवा दओ।

लरका फिरकऊँ बाबा के चंगुल में फँस गओ। वौ उतै सैं निकरबे कौ उपाव सोसन लगो। बाबा उयै खूटा सैं बाँध कैं गस्त करबे निकर गये। बड़ो भइया तौ उतै हतोई। हाती ने अपने बड़े भइया खौ पूरी कहानी सुनाई। भइया ने उयै खूँटा सैं छोर दओ उर वौ चिन्टा बन कैं उतै सैं भग चलो।

बाबा खौं योग बल सैं सब पतो लग गओ उर वे सोऊ चिन्टी बन कैं ऊके पाछैं-पाछैं दौर परे। तनक देर में लरका तोता बनकर पेड़ पै सुअन के बीच में बैठ गओ। बाबा जू उयै खोज-खोज कै हैरान हो गये। उर निराश होकैं अपनी कुटिया में लौट गये। छोटौ लरका भौतई भूको प्यासौं हतो।

एक राजकुमार अपने छत पै हुन दाना चुगाऊत ते, पानी भर कैं घर देत ते। ऊने पक्षियँन के संगै बैठकै खूबई दाना चुनों भरपेट पानी पियो। सब तोते तौ दाना चुग चुगकैं उड़ गये, अकेलौ बेऊ छत पै बैठो रओ। ऊने मौका पाकैं रानी खौं पूरी किस्सा सुना दई। रानी ने ऊकी रक्षा कौ वचन दै दओ।

बाबा ने योग बल सैं जा सब जान लई उर वौ जादूगर बनकैं राजा खौं जादू कौ खेल दिखाबे पौंचो। राजा ऊकौ जादू देखकैं खुश हो गये। उर कई कै माँगलै तोय का चाने। जादूगर ने राजा सै रानी कौ पिंजरा माँग लओ। रानी ने पिंजरा दैबे सैं साफ इंकार कर दओ। अकेलैं वौ बाबा कैसे मान सकत तो ऊने दूसरे दिना फिर कऊँ आकै जादू कौ खेल दिखाव। तब तक वौ सुआ रानी के हार में जा बैठो। बाबा ने इनाम में रानी कौ हार मँगाव। रानी ने लरका की जान अपनी मुट्ठी में लै लई उर हार टोर कै फेंक दओ।

बाबा मुर्गा बनकैं मोती चुनन लगो। लरका नें बिल्ली बनकैं मुरगा की गर्दन मरोड़ कैं मार डारौ उर अपनौ कंटक दूर कर दओ। अपने बड़े भइया खौ लुआकैं दोई जनें बड़े प्रेम सैं मताई बाप की सेवा करन लगे। बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी।

बुन्देलखण्ड के साके 

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