बुंदेली रसिया ब्रज से यहां आया, संभवतः 16 वीं शती के उत्तरार्द्ध में। शायद ओरछा नरेश मधुकरशाह के राज्य काल में पारस्परिक सम्बन्धों का सूत्रपात हुआ था, क्योंकि नृसिंह-उपासक राजा को कृष्णभक्ति की ओर उन्मुख करने के लिए अनेक कृष्णभक्तों का आगमन ओरछा हुआ था।
इस भक्तिपरक संस्कृति के सम्पर्क से रसिया जैसे ब्रजगीतों का प्रभाव यहाँ की Rasiya Fag गायकी पर पड़ा और बुंदेली ने उन्हें अपनाया, पर काफी परिवर्तन के साथ। बुंदेली रसिया की गायनशैली और लय भिन्न है, कहीं पर लोकगीत बिलवारी की तरह और कहीं लेद के ताल-स्वरों में बँधी।
राधा खेलें होरी हो, मनमोहन के साथ मोरे रसिया।
कै मन केसर गारी हो, कै मन उड़त गुलाल मोरे रसिया।
नौ मन केसर गारी हो, दस मन उड़त गुलाल मोरे रसिया।
कौना की चूनर भींजी हो, कौना की पंचरंग पाग मोरे रसिया।
राधा की चूनर भींजी हो, किसना की पंचरंग पाग मोरे रसिया।।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल
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