करमा आदिवासियों का सबसे प्रिय नृत्य है, जो विवाह, मेले आदि के आनंददायी क्षणों के अवसरों पर किया जाता है। स्त्री-पुरुष नर्तक घुटनों के ऊपर अधोवस्त्र पहनकर सिर पर मोरपंख लगा लेते हैं। दो या तीन पुरुष मुख्य वाद्य माँदर बजाते हैं और नगड़िया सहायक वाद्य की श्रेणी में आता है। 7 से 16 तक स्त्रियाँ नर्तक रहती हैं और 8-10 पुरुष नर्तक स्त्रियों के सामने मुख करके खड़े हो जाते हैं।
गीत के बोलों (हो हो रे ओ हो हम रे गा आय हाय हाय हो रे) से नृत्य शुरू होता है। स्त्रियों और पुरुष नर्तकों की आमने-सामने खड़ी पंक्तियाँ एक-दूसरे की कमर में हाथ डाले नाचती हैं। सबसे पहले कदम्ब वृक्ष की एक टहनी बीच में गाड़ दी जाती है, तब उसके चारों ओर करमा नृत्य होता है। उस डाल के पास गोबर से लीपकर चैक पूरा जाता है।
रात्रि में व्रत रखनेवाली लड़कियाँ स्नान करने के बाद जलाशय से कोरे घड़ों में पानी भरकर उसी डाल के पास रख देती हैं। घड़ों पर दिये जलाकर रखे जाते हैं। पुजारी आकर पूजा करता है। इसके बाद नृत्य होता है। शीत ऋतु में यह नृत्य पूरी रात चलता है, पर वर्षा में नहीं होता। यह नृत्य सृजन, कर्म और जिजीविषा पर आस्था का है, इस वजह से पैर उठाकर कदम रखने (स्टैपिंग) की सामूहिक संगति अनिवार्य है और उसी में नृत्य का सौंदर्य है।
पुरुष नर्तकों का झुकते, उठते और झूमते हुए नृत्य करना आंगिक क्रियाओं की समरसता प्रदर्शित करना है। जब स्त्री नर्तक आगे बढ़ती हैं, तब पुरुष नर्तक पीछे बढ़ते हैं और जब पुरुष नर्तक आगे बढ़ते हैं, तब स्त्री नर्तक पीछे की ओर बढ़ती हैं। नृत्य में कदम रखना (स्टैपिंग) ही महत्व का है, क्योंकि उसी पर नृत्य निर्भर है।
सबेरे के पहले पुजारी डाल उखाड़कर आगे चलता है और उसके पीछे गाँव के लोक नृत्य करते हुए जाते हैं। तालाब के पास पहुँचकर डाल जमीन में गाड़ देते हैं और उसके पास नृत्य करते हैं। सूर्योदय के पूर्व डाल और घड़ों को जल में विसर्जित कर देते हैं। करमा-संबंधी एक गीत की कुछ पंक्तियाँ .. ।
जी चोला का मत करो गुमान, बचाने वाला कोऊ नइयाँ रे
कौंड़ी कौंड़ी माया जोरी, हो गई लाख करोर,
निंकर प्रान बाहर हो गये, मिचका मिचका होय……।
आदिवासी करमा को तीन भागों में मनाते हैं-
1 – करमा तीजा- यह क्वाँर मासकी तीज को मनाया जाता है, इसमें क्वाँरी कन्याएँ ही भाग लेती हैं।
2 – करमा एकादशी– यह क्वाँर मासकी ग्यारस को मनाया जाता है, इसमें क्वाँरी लड़कियाँ एवं लड़के भाग लेते हैं।
3 – करमा जितिया– यह क्वाँर मास की ग्यारस के बारह दिन बाद मनाया जाता है, इसमें सभी भाग लेते हैं।
करमा नृत्यका उद्देश्य केवल मनोरंजन नहीं है, वरन् गाँव के सभी लोगों के प्रति मंगल कामना और कल्याण की भावना है। करमा को दो भागों में रखा जा सकता है-एक तो आनुष्ठानिक करमा, जो मध्यप्रदेश के पूर्व-उत्तर क्षेत्र में गाया और नाचा जाता है। उसमें पूजा मुख्य और अनिवार्य है, गीत और नृत्य गौण।
मध्यप्रदेश के मध्य और दक्षिण भाग में करमा गीत प्रधान है और नृत्य भी। पहले में करमा मनौती और कर्म की प्रतिष्ठा के लिए एक उत्सव है, तो दूसरे में मनोरंजन के लिए। करमा गीतों में पारिवारिक प्रसंग, गरीबी, अभावग्रस्तता, मँहगाई आदि समस्याएँ, आर्थिक एवं सामाजिक पक्षों, व्यावसायिक पक्ष, धार्मिक पक्ष आदि पूरे जीवन को प्रतिबिम्बित कर एक प्रतिष्ठा-कर्म बना दिया गया है।
संदर्भ-
बुंदेली लोक साहित्य परंपरा और इतिहास – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुंदेली लोक संस्कृति और साहित्य – डॉ. नर्मदा प्रसाद गुप्त
बुन्देलखंड की संस्कृति और साहित्य – श्री राम चरण हयारण “मित्र”
बुन्देलखंड दर्शन – मोतीलाल त्रिपाठी “अशांत”
बुंदेली लोक काव्य – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुंदेली काव्य परंपरा – डॉ. बलभद्र तिवारी
बुन्देली का भाषाशास्त्रीय अध्ययन -रामेश्वर प्रसाद अग्रवाल