Bundeli Lok Vishwas बुन्देली लोक विश्वास

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By admin

आत्मिक और मानसिक स्तर पर किसी मान्यता की व्यापक स्वीकृति Lok Vishwas बन जाता है। लोकमान्य और लोक में प्रचलित “विश्वास” लोक विश्वास कहलाते है। ये विश्वास लोक अनुभवों से अर्जित होते हैं। अनेक प्रांतों की तरह बुन्देलखण्ड में Bundeli Lok Vishwas प्रचलित हैं । लोक विश्वासों के दो रूप हैं- एक वह जो प्रमाणिक आधारों पर मान्य हुए और  दूसरे वह जो प्रमाणित आधार रहित हैं ।

बुन्देलखण्ड के लोक विश्वास 

किसी क्षेत्र की सभ्यता और संस्कृति का हृदय और मस्तिक एक साथ परखना हो तो वहाँ के लोक विश्वासों को जानना अत्यन्त आवश्यक है। वास्तविकता यह है कि व्यक्ति को अपनी गति समाज के साथ बनाये रखने के लिए लोक का आश्रय लेना पड़ता है। यहाँ लोक अपनी प्रमाणिकता के लिए न शास्त्रीयवनों की सहभागिता एवं प्रगतिशीलों की परवाह करता है न ही वह तथ्यों की ओर ध्यान देता है, परन्तु लोक में प्रचलित धारणायें जाने अनजाने उसकी परम्परा बन जाती है।

यह प्रक्रिया विश्वास का रूप धारण करती जाती है और इस प्रकार जिन्दगी अपनी रफ्तार के साथ लोक विश्वास में रचने-बसने लगती है जिस प्रकार लोक की भाषा होती है. धर्म होता है, रीति होती है, संस्कृति होती है…. उसी प्रकार विश्वास भी होता है। सदियों से साधारण लोग अच्छे सपने एवं बुरे सपने पर शारीरिक अंगों के फड़कने पर, असमय कुत्तों के रोने, घर के मुंडेर पर बैठे कौओं के काँव-काँव करने पर, चीलों के किसी के ऊपर मंडराने अथवा घर के ऊपर चकर लगाने पर, गीदड़ों बिछियों के द्वारा रास्ता काट देने पर

सामने से किसी के छींकने पर, शीशा फूटने पर रास्ते में काने लंगड़े के दिखाई देने पर मार्ग में जाते समय शव के दीख जाने पर, यात्रा के समय राह में मछली, बछड़े को दूध पिलाती गाय किसी विधवा के शुभ कार्य में सम्मिलित नहीं करने पर कोई शुभ कार्य में तीन आदमी के नहीं रखने पर विश्वास करते रहे हैं। इस पर विश्वास करके शुभशकुन अथवा अपशकुन का अंदाजा लगाते रहे हैं

आधुनिक युग में लोक विश्वासों की परम्परा को तर्क की कसौटी में कसने से अधिकांशत: इनकी मान्यताओं एवं परम्पराओं पर ग्रहण लगना शुरू हो गया है और इस प्रमाणिकता ने लोक विश्वासों को, बुन्देलखण्ड की संस्कृति एवं सभ्यता को एक नई  दिशा दी है।

प्रमाणित आधारों में बने लोकविश्वासों में कुछ पौराणिक मान्यताओं से निर्मित हुए और दूसरे लोक अनुभवों और लोक मान्यताओं द्वारा प्रचलित हुए हैं। लोकविश्वास इतने अधिक और विविध प्रकार के हैं कि उन सबका विवरण देना स्वयं में एक वृहद्व कार्य है। अध्ययन को सुगम बनाने के लिए लोक विश्वासों को निम्नांकित वर्गों में रखा जा सकता है।

1 – प्रकृति संबंधी लोक विश्वास
2 – धार्मिक लोक विश्वास
3 – कृषि संबंधी लोक विश्वास
4 – पशु-पक्षी संबंधी लोक विश्वास
5 – आकाशीय पिण्ड संबंधी लोक विश्वास  

सांस्कृतिक दृष्टि से देखें तो Bundeli Lok Vishwas प्राचीन जनपदीय संस्कृति यक्ष संस्कृति, और आर्यों की आश्रमी संस्कृति का सार संचित रूप बन गये हैं। सूर्यदेवता की शक्ति, नदियों, पर्वतों और ऋतुओं की ऊर्जा पशु-पक्षियों की प्रतीकतात्मक अनुभूतियों से लोक विश्वास का झरना वह निकला है। अनुभव के आधार पर यह विश्वास लोक व्याप्त हो गया।  कि तीतर के पंखो जैसे बादल अवश्यक बरसते है नेत्रों में काजल लगाने वाली विधवा किसी न किसी पुरूष के बल में रम जाती है।

बुन्देलखण्ड में प्रचलित से लोक-विश्वास से सम्बन्धित तथ्य आम आदमी की दिनचर्या, उनकी यात्रा एवं शुभ-अशुभ को ध्यान में रखकर किये जाते थे। शायद इन्हीं बिन्दुओं को ध्यान में रखते हुए साधारण जन अपने कार्यों को हल करने का उपक्रम करते थे और इसकी प्रमाणिकता के लिए ठोस उपाय भी करते थे। पृथ्वी पूजा के पीछे उसकी उत्पादकता को केन्द्र में रखा जाता था जो आज भी प्रमाणित माना जाता है।

यहाँ हकीकत यह है कि लोक विश्वास युगों से जनमानस में व्याप्त हैं, जो अपनी लोक-कल्याणकारी अवधारणा के कारण ही जीवित है। लोक देवताओं पर विश्वास यह सिद्ध करता है कि व्यक्ति अपने कार्यों से युग-युगान्तर तक अमर रहता है। सामाजिक भलाई के कार्य ही व्यक्ति को महान बनाते हैं सम्पूर्ण लोक को अपने व्यक्तित्व व कार्यों से प्रभावित करना और विशाल जन समूह में विश्वास उत्पन्न कराना, किसी साधारण व्यक्ति के वश की बात नहीं है।

 हमारे बुन्देली समाज में भी आज ऐसे अनेक अप्रत्यक्ष रूप से प्रचलित लोक-विश्वास है, जो समय के समान्तर अपनी उपस्थिति दर्ज किए हुए हैं। समय के साथ-साथ आज उनमें कुछ परिवर्तन हुए हैं, परन्तु इस लम्बी यात्रा में वे आज भी कहीं न कहीं हमारे साथ हैं।

नीम की पत्तियाँ खाना एवं ताँबे के बर्तन में पानी पीना आयुर्वेद की दृष्टि से शरीर में अनेक लोगों से छुटकारा दिलाता है तथा वैज्ञानिक एवं चिकित्सीय अवधारणा की दृष्टि से प्रमाणिकता की ओर संकेत करता है। इसी तरह के अन्य लोक- विश्वास जैसे दक्षिण की दिशा में पैर करके न होना हमारी पृथ्वी के उत्तरी दक्षिणी ध्रुवों का एक दूसरी दिशा में खिंचाव के कारण ऐसा होता है, जिससे शरीर के अंगों का सीधा सम्बन्ध होता है। इसी तरह से रात्रि में झाडू न लगाना के पीछे अंधेरे में कोई मूल्यवान वस्तु पर की, कूड़े के रूप में बाहर न चली जाए।

वर्तमान में बुन्देलखण्ड में प्रकृति पूजा के पीछे वह लोक विश्वास प्रचलित था कि (पीपल, वट वृक्ष केला, तुलसी) इनमें देवताओं का निवास होता है, परन्तु आयुर्वेदिक दृष्टि से पीपल (आक्सीजन), तुलसी (वात-पित्त एवं स्मरण शक्ति में उपयोगी), वट वृक्ष छाया के लिए उपयोगी होता है गाय को माता मानकर पूजने के पीछे एक कारण यह है कि इसका दूध पौष्टिक एवं सुपाच्य तथा इसके बच्चे (बछड़े) कृषि कार्यों में उपयोगी एवं इसके मूत्र एवं गोवर में कीटनाशकता के गुण मौजूद होते हैं।

बुन्देलखण्ड में धर्म सम्बन्धी लोक विश्वासों के पीछे स्वर्ग-नरक की परिकल्पना छिपी हुई थी। वैज्ञानिकता की दृष्टि से अवलोकन करें तो इन धार्मिक लोक विश्वासों के पीछे मनुष्य को अपने आपमें आत्मिक रूप से सबल बनाने की बात रही है। गंगा पूजा तथा स्वर्ग-नरक की कल्पना मानव को पापों से छुटकारा दिलाने एवं अपने आपमें संयमित दिनचर्या की ओर प्रेरित करती है।

इसके पीछे विज्ञान ने यह भी सिद्ध कर दिया है कि जब हम मानसिक रूप से शांत चित्त एवं आनंदित होते हैं, अनेक बीमारियाँ हमारी अपने आप दूर हो जाती हैं। हवन-पूजन इत्यादि के करने से वातावरण शुद्ध होता है, क्योंकि इस ईंधन में कार्बन डाई आक्साईड को नष्ट करने की क्षमता रहती है।

बुन्देलखण्ड में कृषि सम्बन्धी लोक विश्वासों से तात्पर्य यह है कि समय पर किसी कार्य को करने से फसलें अच्छी पैदा होती हैं और इसकी पूजा के पीछे इसमें पैदा होने वाले कीटाणुओं की रक्षा हेतु होम-धूप का प्रयोग करते हैं। बुन्देलखण्ड में आम कृषकों को यह लोक विश्वास है कि जब तक बीनी पूरी न हो किसान बाल नहीं बनवाते अर्थात् बुआई के मध्य में किसी भी अन्य कार्य में समय व्यर्थ न करें।

विश्वास के पीछे मानव कल्याण की भावना निहित थी, क्योंकि बुन्देलखण्ड के क्षेत्र में नीति एवं ज्योतिष सम्बन्धी लोक पराधीन को कोई सुख नहीं होता। यह स्वतंत्र संघर्ष की और अग्रसर करता है। ग्रहों की पूजा के पीछे आज खगोलशास्त्रियों ने स्पष्ट अनुमान लगाये हैं कि इससे शरीर में स्थिति अंगों की गति निर्धारित होती है। नौ ग्रहों की पूजा के पीछे माँ दुर्गा के रूप में माता की पूजा की जाती है, इसके पीछे यह कारण है कि माँ ही निरपेक्ष भाव से अपनी संतान की भलाई कर सकती है और उसका यह आश्रय मानव को सबल आत्मबल प्रदान करता है।

बुन्देली लोक जीवन में रीति-रिवाजों एवं मान्यताओं की खुशबू आज भी हर तरफ महकती रहती है और पुरातन सोलह संस्कारों के पीछे वैज्ञानिकता की सुगन्ध वर्तमान में आज भी उपलब्ध है। गर्भाधान से लेकर अन्येष्टि यात्रा के पीछे मानव के विकास एवं सफलता की दास्तान छिपी हुई है और आने वाली पीढ़ी को एक क्रम प्रदान करने का निहितार्थ निहित रहता है।

तीतर बारी बादरी, विधवा काजर रेख ।
बो बरसे बौघर करे, जामैं मीन न मेख ।।

इसी लोक विश्वास को आचार्य भड्डरी इस तरह व्यक्त करते हैं।
तीतर बरनी बादरी, रहे गगन पर छाय ।
डंक कहे सुनु मड्डली, बिन बरखे न जाय ।।

इसी तरह एक विश्वास है कि बर (बरगद) की पूजन करने से वर (पति) के प्राणों की रक्षा होती है। जेठ के महिने में अमावश के दिन बुन्देली नारियाँ वर पूजा का ब्रत इसी विश्वास के कारण रखती है।

तुलसी का पौधा भारतीय जीवन में और लोक जीवन में अनेक विश्वासों का प्रतीक हो गया है। धार्मिक दृष्टि से तुलसी को ‘हरिप्रिया’ माना जाता है- अर्थात विष्णु की प्रिया है।

बुन्देलखण्ड के ग्रामों प्रायः सभी घरों में तुलसीघरा होता है जिसमें  तुलसी लगी होती है। नारियाँ प्रति दिन तुलसी के पौधे पर जल चढ़ातीं है। सांयकाल इस पौधे के समीप घी का दीपक जलाती है। कार्तिक में बैकुंठी चौदस को तुलसी की विशेष पूजा की जाती है। लोक विश्वास है कि तुलसी घर परिवार के कल्याण में सदा सहाय होती हैं।
पांच पदारथ सोना पाई ।
तुलसी महारानी एहि जग माही ॥ 

गाय व को गऊमाता की तरह माना जाता है। गाय के लिए रसोई के पहली रोटी रख लीं जाती है। गाय के विभिन्‍न अंगों में भिन्‍न भिन्‍न देवताओं का निवास माना जाता है। लोक विश्वास है गाय मृत्यु के पश्चात अन्य लोक को जाते समय वैतरणी नदी को पार कराने में सहायक होती है। इसीलिए गाय की पूंछ पकड़कर जीवन के अंतिम दिनों में लोक गोदान करते हैं।

लोक जीवन में कौआ के संबंध में अनेक लोक विश्वास प्रचलित हैं। बुन्देलखण्ड में कौआ को प्रेतात्माओं तक भोजन पहुंचाने का अनन्यतम माध्यम माना जाता है। पितृपक्ष में कौआ को पूड़ी या रोटी आदि अलग से दी जाती है। इसी प्रकार मनुष्य के कान व आंख संबंधित अनेक लोक विश्वास प्रचलित है।

बुन्देली जीवन शैलियों पर भी लोक विश्वासों का अच्छा खासा प्रभाव है। कई प्रकार की विधि निषैध प्रचलित हैं। नये बस्त्र पहनने के लिए लोक विश्वास के आधार पर कहा जाता है…। 
कपड़ा पहने तीन बार बुध, वृहस्पति, शुक्रवार।
बुधवार को बेटी की घर से विदा नहीं की जाती है। यात्रा के नवें दिन घर लौटना वर्जित होता है। शनिवार को तेल नहीं खरीदा जाता है । हाँ तेल शनिदेव पर अवश्य चढ़ाया जाता है। रात्रि में दाहसंस्कार नहीं होता ।

प्रसूता स्त्री अपनी चारपाई में सदैव लोहा रखती है। बाहर निकलने पर भी लोहा लेकर जाती हैं। लोक विश्वास है कि ऐसा करने से प्रेतात्माओं से अनिष्ट होने की आशंका नहीं रहती।

According to the National Education Policy 2020, it is very useful for the Masters of Hindi (M.A. Hindi) course and research students of Bundelkhand University Jhansi’s university campus and affiliated colleges.

बुन्देली की उपबोलियाँ 

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