छठी शताब्दी ईसवी पूर्व तक गंगा घाटी की उपत्किाओं में नीवन बौद्धिक वर्ग अस्तित्व में आने लगा था Baudh Sanskriti कीविचारधारा प्रवाहित होने लगी थी । इस समय चतुर्दिक भौतिक औार अभौतिक प्रगति होने लगी। इस काल में लोहे के प्रयोग ने ऐतिहासिक भूमिका निभाई।
लोहा युद्ध एवं कृषि कार्य में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा, जिससे कुछ मूलभूत सामाजिक परिवर्तन सामने आने लगे। कृषिमूलक अर्थव्यवस्था ने वैदिक यज्ञ में पशुबलि का घोर विरोध करना प्रारंभ कर दिया। नवीन धार्मिक विचारधाराएँ वैदिक धर्म के विरूद्ध एक असंतोष के रूप में प्रगट होने लगीं।
वैदिक कर्मकांडों, वैदिक यज्ञों में पशुबलि, बहुदेववाद, ब्राह्मणों के नैतिक पतन, सामाजिक असमानता, वर्णाश्रम व्यवस्था आदि अनेक कारणों से चतुर्दिक हलचल मचने लगी। चारों ओर तर्क – विर्तक होने लगे। चतुर्दिक धार्मिक बौद्धिक आंदोलन पुरातन जीवन दर्शन के विरोध में चलने लगे।
इन्हीं परिस्थितियों और धार्मिक बौद्धिक आंदोलनों ने महात्मा बुद्ध और बौद्ध धर्म को जन्म दिया। तत्कालीन समय में Baudh Sanskriti बौद्ध संस्कृति ने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र पर अपनी अमिट छाप छोड़ी।