Homeशोध-पत्रBundeli Ki Boliyan बुंदेली की बोलियाँ  

Bundeli Ki Boliyan बुंदेली की बोलियाँ  

 हमने अपने शोधपत्र ‘बुंदेली भाषा और साहित्य का विकास एवं संरक्षण’ में Bundeli Ki Boliyan बुंदेली की बोलियों के बारे में इस प्रकार विवेचना की है – “बुन्देली भाषा-भाषी क्षेत्र दर्शन’ के अन्तर्गत आलोचक डॉ० राम नारायण शर्मा जनपदीय क्षेत्र विशेष और जाति विशेष में बुन्देली भाषा के नाम का उल्लेख करते हैं, जिन्हें हम बुन्देली की बोलियाँ मानते हैं।

उनके अनुसार अग्रलिखित बारह बोलियाँ हैं – शिष्ट हवेली, खटोला, बनाफरी, लुधियातीं, चौरासी, ग्वालियरी, भदावरी, तवरी, सिकरवारी, पवांरी, जबलपुरी, डंगाई। बुन्देलखंड में रहने वाले वाली जातियों की अपनी-अपनी बोलियाँ हैं। जातियों के आधार पर बुन्देली के प्रमुख बोलियाँ और उनकी जातियाँ इस प्रकार हैं –  कछियाई (काछी/कुशवाहा), ढिमरयाई (ढीमर/रायकवार), अहिरयाई (अहीर/यादव), धुबियाई (धोबी/रजक), लुधियाई (लोधी/राजपूत), बमनऊ (बामुन/ब्राह्मण/पंडित), किसानी (किसान), बनियाऊ (बनिया/व्यापारी), ठकुराऊ (ठाकुर/बुंदेला), चमरयाऊ (चमार/अहिरवार), गड़रियाई (गड़रिया/पाल), कुमरयाऊ या कुम्हारी (कुम्हार/प्रजापति), कलरऊ (कलार/राय), बेड़िया (बेड़नी/आदिवासी) आदि।

यद्यपि लुधियातीं और लुधियाई बोली एक ही है इसलिए डॉ० रामनारायण शर्मा द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त बारह (12) बोलियाँ और हमारे द्वारा प्रस्तुत तेरह (13) बोलियाँ मिलाकर बुन्देली भाषा की 25 बोलियाँ मुख्य रूप से प्रचलित हैं। इनके अलावा भी बोलियाँ हैं, जिनका अभी संज्ञान में आना अपेक्षित है।

संदर्भ –
डॉ० आरती दुबे, बुंदेली साहित्य का इतिहास, साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल, सन 2011, पृष्ठ 186

डॉ० आरती दुबे, बुंदेली साहित्य का इतिहास, साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश संस्कृति परिषद, भोपाल, सन 2011, पृष्ठ 187

डॉ० कामिनी, बजीर की गारियों में लोकरंजन एवं समसामयिक बुंदेलखंड़, बुंदेली झलक, 28 फरवरी 2022

डॉ० रंजना मिश्रा, बुन्देलखण्ड : सांस्कृतिक वैभव, अनुज्ञा बुक्स, दिल्ली, संस्करण 2016, पृष्ठ 71, 63, 65, 32, 72, 80, 80, 80, 80, 32, 36, 74, 32

किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज झाँसी’ एवं दीपक नामदेव, बुन्देली भाषा और साहित्य का विकास एवं संरक्षण, बुंदेली झलक, 14 मार्च 2024

https://bundeliijhalak.com/bundeli-bhasha-aur-sahitya-ka-vikas

बुन्देली का स्वरूप और विशेषताएं 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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