एक विशाल शोधपूर्ण ग्रंथ Madhypradesh ke Itihas Men Mahilayen मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलायें, जिसका सबसे अधिक श्रेय सुश्री सारिका ठाकुर जी को जाता है जिनके प्रयास से छप कर आया है । इस ग्रंथ के बारे में चर्चा कर रही हैं डा. (सुश्री) शरद सिंह।
महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को सहेजता एक महत्वपूर्ण ग्रंथ
इतिहास पर हमेशा यह आरोप लगता रहा है कि वह पुरुषों के वर्चस्व से भरा हुआ है। यह आरोप किसी हद तक सही भी है क्योंकि इतिहास में पुरुषों के कारनामों अथवा उपलब्धियां को महिमा मंडित कर लेखबद्ध किया गया है, किंतु वहीं महिलाओं की उपलब्धियों को गौण रखा गया है। इतिहास चाहे राजनीति का हो, कला-संस्कृति और साहित्य का या किसी भी अन्य क्षेत्र का, महिलाओं की उपलब्धियों को कम ही सहेजा गया।
विगत में इस संदर्भ में जो कुछ महत्वपूर्ण काम हुआ, उसमें भी महिलाओं के योगदान को विषयवार अलग-अलग संकलित किया गया। जैसे- हरिहर निवास द्विवेदी ने सन 1959 में एक ग्रंथ संपादित किया था – ‘‘मध्यभारत का इतिहास’’। सूचना एवं प्रकाशन विभाग, मध्यप्रदेश से यह चार खंडों में प्रकाशित हुआ था और प्रत्येक खंड में संदर्भानुसार महिलाओं के योगदान का अत्यंत संक्षिप्त उल्लेख किया गया था। सन 1960 में ‘‘हिन्दी की महिला साहित्यकार’’ सत्यप्रकाश मिलिंद के संपादन में राजकमल प्रकाशन से आया। सन 1962 में ‘‘आधुनिक हिन्दी कवयित्रियों के प्रेम गीत’’ का सम्पादन क्षेमचन्द्र ‘‘सुमन’’ ने किया, जिसे राजपाल एण्ड संस ने छापा था। समय-समय पर इस दिशा में फुटकर कार्य होता रहा।
एक लंबे अंतराल के बाद एक बड़ा और ठोस काम किया गया ‘‘स्वयंसिद्धा: मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ’’ के रूप में। यह ग्रंथ अपने आप में महत्वपूर्ण तो था ही साथ ही यह नींव का पत्थर बना ‘‘मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएं’’ ग्रंथ का। हाल ही में प्रकाशित इस’ ग्रंथ का संपादन पलाश सुरजन तथा सरिका ठाकुर ने किया है। इसमें विविध क्षेत्रों में महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को बड़े जतन से सहेजा गया है। निश्चित रूप से इस तरह के ग्रंथ का संपादन करना और इसके लिए सामग्री एकत्र करना अत्यंत श्रमसाध्य कार्य है। ऐसा कार्य पर्याप्त समय और गहरी धैर्य की मांग करता है। ‘‘स्वयंसिद्धा: मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ’’ के सफल संपादन से उत्साहित होकर संपादक द्वय ने इससे आगे बढ़कर कार्य करने का साहस जुटा लिया, जिसका सुपरिणाम इस सद्यः प्रकाशित ग्रंथ के रूप में हुआ।
संपादक द्वय को यह महसूस हुआ कि जो कार्य उन्होंने ‘‘स्वयंसिद्धा…’’ के रूप में संपादित किया, उसमें कहीं न कहीं कुछ छूट गया है जिसे सामने लाना जरूरी है। कोई और संपादक होता तो शायद वह अपने कार्य को पूर्ण मानकर वहीं ठहर जाता, किंतु इस जोड़ी को लगा कि जितनी संपूर्णता से महिलाओं के योगदान को प्रस्तुत किया जाये, उतना ही उत्तम होगा। इस संबंध में सरिका ठाकुर ने पुस्तक के आरंभ में ‘‘अपनी बात’’ में लिखा है-‘‘सन् 2012 में जब पुस्तक ‘स्वयंसिद्धाः मध्यप्रदेश महिला सन्दर्भ’ प्रकाशित हुई तो ऐसा लगा जैसे अतीत से लेकर वर्तमान तक मध्यप्रदेश की समस्त प्रमुख महिलाओं को हमने एक माला में पिरो लिया।
उस समय ग्रंथ को भी वैसा ही सम्मान प्राप्त हुआ। समय व्यतीत हुआ और 2020 के कोरोना काल में हम स्वयंसिद्धा के डिजिटल संस्करण पर विचार करने लगे। इसके लिये 2012 की पुस्तक ‘स्वयंसिद्धा’ को अपडेट करने के साथ नये नामों को जोड़ने की जरूरत थी, क्योंकि विगत आठ वर्षों में प्रदेश की महिलाएं कई बड़े-बड़े कीर्तिमान रच चुकी थीं। इसी अपडेट करने की प्रक्रिया में वेबसाइट ‘स्वयंसिद्धा’ का जन्म हुआ, जिसमें एक झरोखे का नाम हमने ‘अतीत गाथा’ रखा। नाम से ही जाहिर है इसमें हम अतीत में जन्मी उन महिलाओं की जीवन गाथा संजो रहे थे, जिन्होंने प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से प्रदेश के इतिहास को प्रभावित किया हो। शोध की प्रक्रिया तभी प्रारंभ हुई।’’
गहन शोध कार्य तथा लगभग हर स्रोत को खंगालते हुए Madhypradesh ke Itihas Men Mahilayen मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाओं के योगदान को ठीक उसी प्रकार निकाला गया जैसे गहरे समुद्र में गोता लगाकर सीप और मोती निकल जाते हैं। श्री सुरजन ने अपनी परिकल्पना को साकार करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और सारिका ने संपादन का महत्वपूर्ण दायित्व पूरी गंभीरता से निभाया। वहीं उप संपादक सीमा चौबे ने व्हाट्सएप, फेसबुक आदि सोशल मीडिया के माध्यम से उल्लेखनीय महिलाओं के वंशजों से निरंतर संपर्क करते हुए सामग्री जुटाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया। सतत परिश्रम कर इस समुद्र मंथन से रत्न के रूप में जो ग्रंथ सामने आया वह मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाओं की ऐतिहासिक उपस्थिति को बखूबी रेखांकित करता है।
516 पन्नों और आठों खंडों के इस ग्रन्थ की अनुक्रमणिका पर एक नज़र डालकर समझा जा सकता है कि कितनी शिद्दत से सामग्री जुटाई और प्रस्तुत की गई है। इनमें से कई नाम ऐसे हैं जो समय के साथ लगभग भुला दिये गये। जैसे भोपाल की बेगमों के योगदान को भी धीरे-धीरे हाशिये पर समेट दिया गया। वस्तुतः बाज़ारवाद के इस दौर में ऐसा चलन आया कि यह माना जाने लगा कि जो वर्तमान में भी समर्थ है अथवा ‘जिसकी कथित मार्केट वैल्यू है, वही चर्चा में रहने योग्य है।
इस सोच ने अतीत को यानी वर्तमान की नींव को ही उपेक्षित करने का दुखद कार्य किया है। मानवीय मूल्यों के गिरावट वाले एवं अपने इतिहास के प्रति उदासीनता ओढ़ने वाले ऐसे कठोर समय में ‘मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएं’ जैसा ग्रंथ लाने के लिये पलाश सुरजन तथा सरिका ठाकुर को साधुवाद। यह ग्रंथ अतीत में सक्रिय सभी महिलाओं को पुनः सम्मानजनक स्थान दिलाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। Madhypradesh ke Itihas Men Mahilayen यह अपने आप में एक ऐतिहासिक दस्तावेज की भांति है जो आने वाली पीढ़ी को अतीत के बारे में तथा अतीत में महिलाओं के ऐतिहासिक योगदान के बारे में पर्याप्त जानकारी दे सकेगा। निश्चित रूप से यह एक संग्रहणीय ग्रंथ है।
डा. (सुश्री) शरद सिंह
वन्दना अवस्थी दुबे की कलम से
कोई लेखक जब अपनी मौलिक कृति तैयार कर रहा होता है तो ये उसके लिए बहुत आसान काम होता है। स्वतः स्फूर्त होता है। कहानी हो या उपन्यास, सब हमारे दिमाग़ की उपज है। दिमाग़ के इशारे पर हमारे हाथ इसे कागज़ पर उतार देते हैं। यहां वहां भटके बिना रचना तैयार होती रहती है। लेकिन यदि उपन्यास किसी ऐतिहासिक चरित्र पर आधारित है तो लिखने के पहले उस चरित्र विशेष के सम्पूर्ण इतिहास को खंगालना पड़ता है।
अब यदि किसी पुस्तक का विषय कोई एक चरित्र नहीं बल्कि इतिहास के चर्चित चेहरों के अलावा वे महत्वपूर्ण चरित्र हों, जो आज गुमनाम से हैं तो सोचिये, पुस्तक तैयार करते हुए कितनी मेहनत हुई होगी!! कितना समय लगा होगा और कितने लोगों से सम्पर्क साधना पड़ा होगा! ‘मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएँ’ ऐसा ही श्रमसाध्य, समयसाध्य संदर्भ ग्रंथ है जिसे पाठकों तक पहुँचाने हेतु पूरी लगन के साथ, पूरी सजगता समर्पण के साथ तैयार किया है पलाश सुरजन जी और सारिका ठाकुर जी ने। 5 सौ पृष्ठों के इस वृहद ऐतिहासिक संदर्भ ग्रंथ में ऐसा एक भी पन्ना नहीं है जिसे पलटकर आप आगे बढ़ सकें।
ग्रंथ के आरंभ में ही सारिका जी ‘अपनी बात’ कहते हुए लिखती हैं – “प्रामाणिक दस्तावेजों के संदर्भ सहित सन और ईस्वी युक्त इतिहास लेखन की शुरुआत अँग्रेजों ने की, वह भी अपने हिसाब से। उन्होंने उतना ही दर्ज किया जितना उनके लिए ज़रूरी था, उन्हीं का नाम दर्ज किया जो उनके लिए महत्वपूर्ण थे।
“हम इतिहास की वीथिकाओं में महिलाओं के पगचिन्हों का पीछा कर रहे थे।” सारिका जी ने कुछ इस अंदाज़ और इस लगन से इन पगचिन्हों का पीछा किया कि थोड़े बहुत नहीं, पूरे 134 पगचिन्ह खोज निकाले। और वो भी सतही या सुने सुनाये नहीं, पूरे प्रामाणिक दस्तावेज़ सहित ब्यौरा जुटाया गया। सारिका जी लिखती हैं- “लोकगाथाओं की प्रामाणिकता पर इतिहासकारों द्वारा सदैव संदेह व्यक्त किया जाता रहा है। यहां सहानुभूतिपूर्वक विचार करने की आवश्यकता यह है कि जिसे इतिहास के पन्नों पर प्रतिष्ठित करने योग्य ही नहीं माना गया वहां विकल्प भी तो नहीं है।” बहुत सच्ची और खरी बात है ये। इतिहास ने महिलाओं को तब तक महत्व नहीं दिया जब तक कि उनका किया हुआ सिर चढ़ के न बोलने लगा। गद्दी संभालने वाले चंद नाम ही हैं जिन्हें इतिहास में स्थान मिल सका।
पूरी तरह महिलाओं पर केंद्रित इस अनूठी पुस्तक में सारिका जी आगे लिखती हैं- इतिहासकारों के लिए भले ही किसी ऐतिहासिक व्यक्तित्व की जन्मतिथि और पिता का नाम ही महत्वपूर्ण रहा हो, हमारे लिए तो माता का नाम भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सम्भवतः यह पहला ऐसा संदर्भ ग्रंथ है जो केवल महिलाओं पर केंद्रित है, वे महिलाएं जिनका इतिहास में कोई न कोई योगदान रहा है, लेकिन इतिहासकारों ने उन्हें महत्व देना ज़रूरी नहीं समझा। सारिका जी ने जिस लगन से यहां-वहां बिखरी पड़ी जानकारियों को इकट्ठा कर, इन महिलाओं के अस्तित्व को जैसे जीवन दान दिया है।
इस वृहद संदर्भ ग्रन्थ को आठ खंडों में बाँटा गया है। प्रत्येक खण्ड अलग-अलग क्षेत्रों की स्वनामधन्य महिलाओं के प्रामाणिक विवरण को समेटे है। आदिकाल, स्वतंत्रता आंदोलन, भोपाल की नवाब बेगमें, समाज सेवा एवं राजनीति, साहित्य एवं पत्रकारिता, गायन, वादन एवं नृत्य, रंगमंच, सिनेमा, टीवी, चित्रकला, सिरेमिक, और अंत में विविध के ज़रिए मध्यप्रदेश की कुल 134 महत्वपूर्ण महिलाओं को ग्रन्थ में स्थान मिला है।
इनमें से अनेक नाम ऐसे हैं जिन्हें पाठक पहली बार पढ़ेंगे/सुनेंगे, जबकि अपने समय में इन हस्तियों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है अपने राज्य में या अपने कार्यक्षेत्र में। कितनी वीरांगनाओं ने आज़ादी की लड़ाई में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया, कितनी बेगमों ने बाकायदा अपनी रियासतों को संभाला, नवाब की हैसियत से, लेखन, गायन, वादन, नृत्य या अन्य कलाओं में कितनी कुशल महिलाओं ने अपना योगदान दिया और कितने नाम आप जानते हैं, ये इस ग्रन्थ को पढ़ने के बाद ही महसूस हुआ कि हमारी जानकारी कितनी अधूरी है।
ग्रंथ के लिए सामग्री जुटाना जितना मुश्किल रहा होगा उतना ही मुश्किल सम्बंधित इतिहास- महिलाओं की तस्वीरें एकत्र करना भी बहुत बड़ा काम साबित हुआ होगा लेकिन इस काम को भी बहुत खूबसूरती से अंजाम तक पहुंचाया है सारिका जी ने। इसके अलावा पुस्तक का आकार, कागज़ और छपाई सब मनभावन है। प्रूफ की कहीं कोई एक ग़लती भी मुझे नहीं मिली। मीडियाटिक कम्युनिकेशन प्राइवेट लिमिटेड से प्रकाशित और श्री श्रद्धा ऑफसेट से मुद्रित, रु.1499/- कीमत का यह संदर्भ ग्रंथ हमें अपने इस मूल्य में बहुत कुछ अनमोल दे रहा है।
इतिहास में जिनकी रुचि है, उन्हें तो अवश्य ही खरीद लेना चाहिए ये ग्रंथ, जिनकी रुचि इतिहास में नहीं है, उन्हें भी -किसी कथा की तरह चलता शब्द प्रवाह मोह लेगा। प्रदेश के हर विद्यालय/महाविद्यालय/पुस्तकालयों में अनिवार्य रूप से इस ग्रंथ को शामिल होना चाहिए। मुझे खुशी है कि इस महत्वपूर्ण ग्रंथ का एक छोटा सा हिस्सा मैं भी बन सकी। बहुत धन्यवाद पलाश भैया, सारिका जी।
आप सबसे आग्रह है, कि इस ग्रन्थ को अवश्य मंगवाएं, निराश नहीं होंगे, ये पक्की बात है।
पुस्तक – मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएं
संपादक – पलाश सुरजन एवं सारिका ठाकुर
प्रकाशक – मीडियाटेक कम्युनिकेशन प्रा.लि.
26-बी, इंदिरा प्रेस कॉम्प्लेक्स,
ज़ोन-1. महाराणा प्रताप नगर,
भोपाल – 462011
मूल्य – 1499/-