ज़िंदगी एक आसान रास्ते पर चलते-चलते अचानक ऐसे उलझा जाती लगता है इसके बाद कोई रास्ता नही है पर उम्मीद हमेशा यही कहती हिम्मत ना हार आहे बढ । Jo Rab Rache वो कोई ना बांचे। ईश्वर ने तो सब कुछ लिख कर तय कर दिया है अच्छे को अच्छा और बुरे को बुरा।
अबकी बार मैंने खीझकर जसवंत के दिए दूसरे नम्बर पर ट्राई किया। रिंग के जाते ही उधर से मधुर कण्ठ में किसी लड़की की सुरीली आवाज कानों में सुनाई दी, “हैलो!” “हाँ! हैलो! क्या मेरी बात जसवंत सिंह से हो जाएगी ?” “जसवंत सिंह… सॉरी सर! राँग नम्बर लग गया है, आपसे।”
“ओह! सॉरी! आई एम वेरी सॉरी मैम ।” मैंने जसवंत के दिए सारे नम्बर ट्राई कर लिए थे, एक इस नम्बर पर रिंग गई थी, पर यह भी राँग नम्बर निकला, क्या करूँ इसका? मौके पर फोन ही बंद किए है। मैं बौखलाया-सा बरामदे में चहलकदमी करने लगा। अच्छा खासा मौका हाथ आया था, पर जनाब हैं कि फोन ही बंद किए हैं, दूसरे शब्दों में इसे कहते हैं, ‘दुर्भाग्य!’
मेरे मोबाइल की ट्यून बजी, मैंने तत्काल, ‘हैलो’ बोला। वही लड़की मधुर कण्ठ वाली बोली, “सॉरी सर ! बात कर सकती हूँ, आपसे?” “हाँ कीजिए।” “सर! मेरा नाम शालिनी है। शालिनी माथुर। दरअसल सर! मैं पहले जसवंत सर के ऑफिस में जॉब करती थी। हो सकता है उस समय उन्होंने इमरजेंसी के लिये मेरा नम्बर आपको दे दिया हो।”
“हाँ हो सकता है। मुझे उससे जरूरी काम है। क्या कोई और नम्बर है उसका, तुम्हारे पास?” “देखती हूँ सर! शायद हो। कैन आई रिंग बेक टू यू जस्ट आफ्टर फाइव मिनट्स सर?” “यस व्हाय नाट प्लीज सर्च आई एम वेटिंग फ़ॉर योर कॉल ।” “ओके सर”
शालिनी की रिंग आयी, “सॉरी सर! मेरे पास उनका कोई नम्बर सेव नहीं है, दरअसल…मैंने उनके नम्बर डिलीट कर दिए थे।” “क्या हुआ तुम कुछ कहते-कहते रुक गयी?” “जी सर! जसवंत सर आपके मित्र हैं, बुरा लगेगा आपको, सुनकर। इसलिए रुक गई थी।” “अरे ऐसा क्या किया उसने? वैसे मैं स्पष्ट कर दूँ। वह मेरा मित्र नहीं है, हाँ! कभी-कभार बेगारी कर देता है, इसलिए उसको छोटे-मोटे लाभ दिला देता हूँ।” मेरी उत्सुकता बढ़ी यह तो स्पष्ट है कि यह लड़की जसवंत के प्रति अच्छा विचार तो नहीं रखती है, फिर भी ऐसी क्या बात है जो वह कहते-कहते रुक गई।
“वैसे क्या नाम बताया था तुमने… हाँ शालिनी! तुम चाहो तो मुझे बता सकती हो। मुझसे कोई बात उस तक नहीं जाएगी। विश्वास रखो मेरा।” “क्या सर! कोई लड़की अगर अपने घर परिवार की आर्थिक मदद या स्वयं की पढ़ाई के खर्चे उठाने के लिए कोई जॉब करती है, तो इसका यह मतलब तो नहीं हो जाता कि वह आसानी से सुलभ हो जाएगी ।” “नहीं कदापि नहीं।”
“सर! मेरा उनके यहाँ से जॉब छोड़ने का कारण यही था कि उन्होंने मुझे गलत तरीके से अप्रोच किया था। मेरे पास दो विकल्प थे पहला मैं जॉब छोड़ दूँ, दूसरा अपना स्वाभिमान गिरवी रखकर अपना शोषण होने दूँ। मैंने पहला विकल्प चुना। मेरी दो माह की सैलरी के कुल अठारह हजार रुपये मिलने बाकी हैं। आप चाहे सर तो मुझे दिलवा सकते हैं।” “अच्छा जरूर। मैं तुम्हारे पैसे दिलवाने की पूरी कोशिश करूँगा।” “जी सर! प्लीज मैं और मेरा परिवार घोर आर्थिक तंगी से गुजर रहा है, आपकी बड़ी कृपा होगी… प्रणाम सर !” “प्रणाम…”
सायं मैं अपने ऑफिस से घर की ओर जा रहा था, तभी शालिनी का फोन आया, “सर! आपसे बात कर सकती हूँ… आप ट्रैफिक में हैं, बाद में बात करती हूँ।” “नहीं! तुम अभी बात कर सकती हो। गाड़ी ड्राइवर चला रहा है, बोलो शालिनी !” “सर! क्या आपकी जसवंत सर से बात हो पाई ?” “नहीं अभी तो नहीं हुई उसका फोन ही नहीं लगता।” “जी अच्छा सर! बात हो तो मेरे पैसे की बात कीजियेगा। मुझे इस समय पैसों की सख्त जरूरत है ।” “ठीक है, बात करूँगा और तुम्हारे पैसे भी दिलवाऊँगा ।” “जी सर! आप बहुत अच्छे है सर! अपना ख्याल रखिएगा । प्रणाम सर !” “हाँ! प्रणाम, प्रणाम।”
पहली बार मैंने शालिनी की बातों पर गम्भीरता से विचार किया। आर्थिक संकट से जूझ रही इस लड़की को इसकी सैलरी के पैसे दिलवाकर रहूँगा। मुझे जसवंत की इस हरकत से उसके प्रति झल्लाहट हुई। अपने भरोसे पर आयी किसी मजबूर लड़की के प्रति दुर्भावना रखना गलत होता है। रोज की आदत के अनुसार रात्रि भोजन के बाद मैं कॉलोनी में ही स्थित पार्क में टहलने पहुँचा। अमूमन इस दौरान मैं अपना सेलफोन घर में ही छोड़कर आता हूँ, पर आज साथ ले आया था, शायद शालिनी फोन करे। मेरा अंदाजा सही निकला। अभी एक चक्कर भी पूरा नहीं हुआ था कि उनकी का फोन आ गया ।
“हैलो! सर!” “हाँ बोलो शालिनी…” “क्या यह समय आपसे बात करने का सही समय है सर?” “हाँ बिल्कुल, बोलो शालिनी!” अपनत्व जताते मैंने उसके नाम को जानबूझकर लिया। “सर! आपका डिनर हो गया ?” “हाँ! हो गया और इस समय मैं टहल रहा हूँ। मेरे पास तुमसे बात करने के लिये पर्याप्त समय भी है।” मैं हँसते हुए बोला। “सर! मुझे आपसे मिलना है।” “मुझसे क्यों मिलना है? मैं तुम्हारा काम, जो जसवंत से है, वह करा दूँगा।” “सर! हमारे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब है।” “मैं तुम्हारे लिए कोई अच्छी-सी जॉब ढूँढता हूँ।” “सर! मुझे आपसे मिलना है ।” “अरे जब बिना मिले ही काम हुआ जा रहा है, फिर…”
“सर! मुझे आपसे तत्काल आर्थिक मदद चाहिए, कल बी.एड. में एडमिशन के लिए फीस जमा करने की अंतिम तारीख है। कुछ समझ में नहीं आ रहा सर! सत्तर हजार जमा होना है। सर! मैं वादा करती हूँ। आपके रुपये एक सप्ताह में लौटा दूँगी।” शालिनी एक सपाटे में अपनी सारी बात कह गई उसकी साँसें तेज चलने लगी थीं । एकाएक मेरे मन मैं विचार आया ‘राँग नम्बर, लगातार थोड़े-थोड़े अंतराल में फोन आना, फिर अपने उद्देश्य में आ जाना। बेहिचक रुपये की माँग करना। मुझे अजीब लगा, बल्कि बुरा भी। कैसे लड़कियाँ सम्वेदना का फायदा उठा पैसे ठगती हैं? मैंने बिना कोई उत्तर दिए फोन काट दिया।
मैं उधेड़बुन में टहलने लगा। मन अशांत हो उठा। शालिनी का फोन फिर आया। मैंने काट दिया, फिर कोई फोन नहीं आया। घर आकर मैंने एक गिलास दूध पिया। कथाकार तेजेन्द्र शर्मा की शेष रह गई कहानी ‘कब्र का मुनाफा’ पढ़कर पूरी की और सो गया। सुबह-सबेरे टहलने निकला, तो फोन ट्रैक सूट की जेब में रखना नहीं भूला। अन्तस् में कहीं ध्यान था कि शालिनी का फोन आ सकता है। एक फोन आया भी, पर वह शालिनी का नहीं था। ऐसा क्यों हो रहा है? मन उद्विग्न हो सोचने लगा । मुझे उसका फोन नहीं काटना था, खैर!
घर आकर नहाने चला गया, फिर तैयार होकर ऑफिस के लिए निकला। गाड़ी में बैठते ही आदतन मोबाइल अपडेट देखने के लिये खोला, शालिनी की पाँच मिस्ड कॉल पड़ी थी। मैंने शालिनी के अगले फोन का इंतजार न करते हुए उसे स्वयं फोन किया। घण्टी भी नहीं गई कि शालिनी की आवाज आई, “प्रणाम! सर! आपको मिलाने वाली थीं।” “हाँ! बोलो तुम्हारी पाँच मिस्डकॉल थीं सब कुशल ?” “कुशल तो नहीं सर! आपसे मदद माँगी थी। आपने मुझे कोई ठग लड़की समझकर टाल दिया।” “देखो! शालिनी अभी तुमसे परिचय हुए चौबीस घण्टे भी नहीं बीते हैं और तुम्हारी डिमांड, तुम्हारी उम्मीदें मुझसे बढ़ गईं। इसलिये, जो तुम्हारा खाका मेरे मन-मस्तिष्क में पनप गया, उससे दूर होकर भला कैसे सोच सकता हूँ।”
“सर! मैं एक सैनिक की बेटी हूँ … मेरे पापा का कोर्ट-मार्शल हुआ था। वे निर्दोष और स्वाभिमानी थे, वे अपने ऊपर झूठे आरोप सह नहीं पाए और उन्होंने स्वयं को गोली मार ली। पापा के न रहने से एकाएक हमारे परिवार को विपत्तियों का सामना करना पड़ रहा है। मेरे दो छोटे भाई बहन भी हैं। मम्मी अवसाद में रहती हैं। उनका इलाज चल रहा है। हम लोग किराए के मकान में एक छोटे-से हिस्से में रहते हैं। मकान मालकिन की हम पर दया है, वह किराया नहीं लेतीं।”
शालिनी का गला भर आया था, उसने कुछ पल रुककर आगे कहा, “पापा का मुकदमा हाईकोर्ट से अब क्षेत्रीय सशस्त्र बल अधिकरण, लखनऊ में आ गया है। मुकदमे की पैरवी, घर खर्च सब मेरे ऊपर है। बीते कोरोना काल में मेरी जॉब छूट गयी। वकील साहब फीस माँगते रहते हैं। क्या करूँ? दोनों भाई-बहन घर बैठे हैं। फीस जमा न होने के कारण स्कूल से उनका नाम भी कट गया है। मेरे पापा निर्दोष न होते तो आत्महत्या क्यों करते? वह निर्दोष थे, उन्हें झूठा फँसाया गया है। देखिएगा न्यायालय से हमें न्याय मिलेगा। सारे आरोप निराधार निकलेंगे और उनके सारे लाभ, पेंशन आदि हम लोग पाएँगे।” शालिनी का गला फिर से भर आया था ।
मुझे भी उसकी स्थिति जान उसके प्रति अपनी सोच पर पछतावा हो रहा था। एक सैनिक का परिवार झूठे लांछन के साथ उसके न रहने के बाद कितनी सारी आर्थिक, सामाजिक कठिनाइयों से जूझ रहा था। मैंने तत्क्षण निर्णय लेते हुए शालिनी को बिना देर किए मेरे ऑफिस में आने को कहा।
शालिनी को मेरे पास आने में कोई चालीस मिनट लगे होंगे। जब वह मेरे ऑफिस में आईं उस समय राज फ़िल्म प्रोडक्शन के प्रोड्यूसर व निर्देशक राजेश्वर पांडेय बैठे हुए थे। शालिनी ने शालीनता से हम दोनों से नमस्ते की। मैंने उसे बैठने को कहा। चपरासी से एक चाय और दे जाने को कह मैं प्रोड्यूसर महोदय को निपटाने की गरज से उनकी ओर मुखातिब हुआ, पर वह ज़नाब शालिनी को घूरे जा रहे थे। मैं कुछ कहने को हुआ ही था कि वह बोल पड़े, “क्या फिगर है, मेरी एड फिल्म में मॉडलिंग करोगी?”
“मैं! हाँ जरूर कर लूँगी। यदि पैसे मिले और कास्टिंग काउच का शिकार न होना पड़े तो..।” शालिनी के द्वारा इस तरह एक अजनबी को एकाएक जवाब देना यद्यपि मुझे असहज कर गया, पर सुंदरता के साथ उसने स्वयं को परिस्थितियों में ढाल लेने की अद्भुत क्षमता का कौशल दिखा दिया था। “यह मेरा कार्ड है और हाँ यह मेरा सर के सामने तुमसे वादा है तुम्हें कास्टिंग काउच से नहीं गुजरना होगा ।” राजेश्वर पांडेय हो-हो करके हँसने लगा, फिर मुझसे बोला, “सर! लड़की में गजब का आत्मविश्वास दिखा मुझे, मैं इससे आज पहली बार मिला हूँ और इससे प्रभावित हो होकर जा रहा हूँ, यह टैलेंटेड है।”
राजेश्वर को नहीं पता था कि मैं भी इस टैलेंटेड लड़की से पहली बार मिल रहा हूँ। प्रोड्यूसर राजेश्वर पांडेय के जाने के बाद मैंने चाय पीती शालिनी को गौर से देखा। सादा किंतु मौसम के अनुकूल कपड़ों में गौरवर्ण, सुंदर देहयष्टि वाली इस लड़की को यदि प्रोड्यूसर ने मॉडलिंग का प्रस्ताव दिया है, तो कोई गलत नहीं किया। शालिनी की उम्र कोई छब्बीस-सत्ताईस वर्ष होगी। गोद मे हेलमेट रखे वह मुझे स्वयं की ओर देखते पा, अपने स्थान से खड़ी हो गई और विनम्रता से बोली, “सर! मैंने आपको अकारण डिस्टर्ब किया, सॉरी सर!” “अरे नहीं, तुमने इतने कम समय में मुझे अपने प्रभाव में ले लिया। सच बताऊँ मुझे अपने आप पर विश्वास नहीं हो पा रहा है।”
“सर !” शालिनी ने बड़ी मासूमियत से अपनी प्रतिक्रिया दी । “शालिनी! तुम पाँच मिनट सोफे पर बैठो, एक चाय और पियो, तब तक मैं पी.ए. को एक जरूरी लेटर डिक्टेट कर देता हूँ ।” मैंने रिमोट बेल का बटन दबा दिया। “सॉरी सर! मैं जल्दी में हूँ, मुझे अपने जीवन का एक बड़ा फैसला तय करना है, आज और अभी ।”
“वह क्या ?” “आपको बताया था न सर! मुझे बी.एड. की फीस सत्तर हजार आज ही जमा करनी है, आज अंतिम तारीख है ।” “… पर अभी मेरे हाथ तंग हैं ।” “हाँ! कोई बात नहीं सर!… मुझे आपकी जानकारी में देना था आप मेरे अभिभावक बन कर निर्णय कीजियेगा।” “हाँ! बताओ शालिनी।” शालिनी ने अपने पर्स से एक लिफाफा निकालकर टेबिल पर रख दिया, फिर उससे पाँच सौ रुपयों की एक गड्डी निकाल ली।
“सर! यह पचास हजार रुपये बतौर अग्रिम धनराशि है। यदि मैं किसी के प्रस्ताव को मान लूँ, तो बाकी के पचास हजार भी मुझे घण्टे भर बाद मिल जाएँगे, जिससे मैं न केवल अपनी फीस जमा कर दूँगी बल्कि बाकी के रुपयों से छोटे भाई-बहन को स्कूल भेज सकूँगी ।” “मैं समझा नहीं… कहीं तुम…” “नहीं सर! जैसा आप समझ रहे वैसा बिल्कुल भी नहीं है…” शालिनी ने अपने स्थान पर खड़े होकर झुकते हुए मेरी आँखों में झाँका, “बल्कि उससे भी बुरा।” “क्या?” मैंने अचकचाकर अपनी आँखें नीची कर लीं और गिलास में रखा सारा पानी एक साँस में पी गया, “फिर वह बुरा क्या?” “सर! मुझे कम से कम तीन दिन के लिए किसी की बीबी बन कर रहने का प्रस्ताव मिला है, वह भी बाकायदा एक मुस्लिम अधेड़ से मुताह निकाह करके, जिसकी पहली शर्त ही है कि मैं पहले इस्लाम धर्म अपनाकर मुस्लिम बनूँ ।” “अरे! यह क्या कह रही हो तुम ?”
“एकदम सच कह रही हूँ सर! मेरा एक परिचित मुस्लिम दोस्त है। मैंने जब उससे अपनी परेशानी बताई तब उसने मुझे यह रास्ता सुझाया और मुझे अपने परिचित मुस्लिम अधेड़ से मिलवाया, जो लन्दन में रहता है और भारत अपने बिजनेस के सिलसिले में एक माह के लिये आया हुआ है। मैंने बिना यह झंझट किये उस अधेड़ को रुपयों के बदले अपनी देह समर्पण करने की सहमति दी, तो वह अपने धर्म का वास्ता देने लगा कि हमारे यहाँ व्यभिचार की सख्ती से मनाही है, जबकि मुताह निकाह कर कम से कम तीन दिन इस विवाह को चला कर खत्म कर सकते हैं। यह धर्म संगत होगा, अतः व्यभिचार मुक्त माना जाएगा।” शालिनी चुप हो गई। उसने खाली गिलास में जग से पानी भरा और सारा पानी एक साँस में पी गई। मैं उसके गले से गटकते पानी को देख तो नहीं पा रहा था, पर उसे गले से नीचे जाते हुए महसूस कर पा रहा था।
शालिनी के सेलफोन की रिंग टोन बजी, ‘इतनी शक्ति हमें देना दाता, मन का विश्वास कमजोर होना’ शालिनी फोन उठाने को उद्दत हुई मैंने संकेत से उसे मना किया, ‘दूर हो अज्ञानता के अँधेरे,भूल से भी कोई भूल हो न, इतनी…’ मैंने उसे फोन अटेंड करने का इशारा किया । “उसी मुस्लिम मित्र का है।” शालिनी ने सेलफोन की आवाज तेज कर दी । “शालिनी! तुम कहाँ हो? अंकल ने जब से तुम्हें देखा है। मेरे पीछे हाथ धोकर पड़ गए हैं, यार! बोल रहे हैं, आज शाम ही निकाह पढ़ा दो। बोलो मैं उन्हें क्या जवाब दूँ ।” मैंने शालिनी को फोन बंद करने का इशारा किया। “अभी बताती हूँ पाँच मिनट में।” फोन काटते शालिनी ने मेरी ओर देखा।
“शालिनी! मैं तुम्हें मजबूरी में ऐसा कोई असंगत कदम नहीं उठाने दूँगा, जो तुम्हारे स्वर्गवासी पिता के सम्मान को ठेस पहुँचाये। तुम अपने उस मित्र को मना कर दो। मैं तुम्हारी समस्या दूर करता हूँ।” इंटरकाम से मैंने पी.ए. को अपने चेम्बर में बुलाया। पी.ए. से मैंने अपने बचत खाते में कुल धनराशि का पता करने को कहा। इसी समय जसवंत का फोन आ गया, पहले तो मैंने उसे काफी लताड़ा, शालिनी को तत्काल आकर पैसे देने की शर्त रखी। वह राजी हो गया।
घण्टे भर में ही मेरे पचास हजार और जसवंत के बीस हजार रुपयों से शालिनी की बी.एड. की फीस की व्यवस्था हो गई, जिसे मेरा कर्मचारी शालिनी के साथ बैंक जाकर जमा भी कर आया। शालिनी ने अपने मुस्लिम मित्र को बुलाकर मेरे सामने मुताह निकाह के एवज में दी गई पेशगी की राशि उसे वापस कर दी। शालिनी मेरे प्रति कृतज्ञता से भर उठी उसकी आँखों में आँसू तैर आए।
“पगली” मैंने उसके सर पर हाथ रखा। वह मुझसे लिपटकर रोने लगी। मैंने उसे पानी पिलाया कुछ देर बाद वह सामान्य हो गई। मैं अपनी सीट पर आँखें मूंदे इस कार्य मे सहयोग कर संतोष-सुख की अनुभूति में डूब गया। कालांतर में शालिनी ने प्रथम श्रेणी के साथ बी.एड. पूरा किया, टी.ई.टी की परीक्षा पास की और प्राथमिक विद्यालय की शिक्षिका बन गई।
क्षेत्रीय सशस्त्र बल अधिकरण, लखनऊ ने शालिनी के स्वर्गवासी पिता को सारे दोषों से न केवल मुक्त कर दिया, बल्कि सारे रुके भुगतान जारी करते हुए शालिनी की माँ को ससम्मान पेंशन व अन्य देयों का भुगतान करने का आदेश पारित किया । इसी लिये कहते हैं जो रब राचे वो कोई ना बांचे।
शालिनी का आज ब्याह है। वर थल सेना में कैप्टन है। मेरे घर में पिछले एक माह से उसके विवाह की जोरदार तैयारियाँ चल रही हैं। मैं बहुत व्यस्त हूँ। पिछले पन्द्रह दिन से अवकाश पर हूँ। अरे! बेटी का ब्याह है, अविवाहित हूँ, तो क्या हुआ आज मैं बहुत प्रसन्न हूँ। मुझे शालिनी के रूप में बेटी के कन्यादान का सौभाग्य जो मिलने जा रहा है। शालिनी के ब्याह के बाद मैं भी अब अविवाहित नहीं रहने वाला हूँ। यह सारी खुराफात इसी शालिनी की है। अब यह नहीं पूछना कि मेरी जीवन संगिनी कौन बनने वाली है? अभी इतना ही आगे की शेष कथा, फिर कभी।
लेखक-महेन्द्र भीष्म