उत्तरप्रदेश के झाँसी जनपद के मऊरानीपुर नगर में स्वर्गीय पं. बल्देव प्रसाद धमैनियाँ और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सरजूबाई के घर मे 1 अगस्त सन् 1928 को जिस बालक ने जन्म लिया वह बुन्देली का सशक्त Pandit Jaitram Dhamainiya ‘Jait’ है। आपके बारे में कहा जाता है कि अल्पायु से ही आप काव्य सृजन करने लगे थे। कक्षा चौथी में पढ़ते हुए लगभग बारह वर्ष की आयु से आप कविताएँ रच रहे हैं। आपने वनीक्यूर मिडिल स्कूल सर्टिफिकेट परीक्षा उत्तीर्ण करते हुए उर्दू तथा हिन्दी में मिडिल पास किया।
बुन्देली के सशक्त कवि जैतराम धमैनियाँ ‘जैत’
पं. जैतराम धमैनियाँ ‘जैत’ का विवाह सोना देवी के साथ हुआ। आपके चार पुत्र तथा दो पुत्रियाँ हैं। आपकी पत्नी का देहावसान 1980 को हो गया है। आपके प्रेरणास्रोत पं. गंगाधर व्यास, घासीराम व्यास तथा घनश्याम दास पाण्डेय रहे हैं। आप रानीपुर के पास स्थित जैत माता के भक्त हैं। आपकी पत्नी ने भी प्रेरणा का कार्य किया है। इन्होंने सैकड़ों छन्दों की रचना की है किन्तु लिपिबद्ध नहीं किया। इनको सभी छन्द स्मरण हैं। इनके कई छन्द लोक में प्रचलित हैं। आज वृद्धावस्था में होते हुए भी उनमें उत्साह तथा रचनाओं के प्रति लगाव विद्यमान है।
कवित्त (पावस)
सिंधु मांह मुक्ता स्वाति बिंदु के बनावे सदा,
हंसन चुनावे भलो भूतल कौ भेदी है।
‘जैत’ गरुड़गामी के बाहन के भोजनार्थ,
व्याल प्रगटावे दिव्य वसुधा कुरेदी है।।
नंदी गण भोले कौ देखकें कुटुम्ब बहु,
हरी हरी घास चरवे की छूट दे दी है।
मानौ त्रिदेवन के वाहन कों चरावे हेतु,
राजा ऋतुराज कौ पावस बरेदी है।।
(सौजन्य – श्री वीरेन्द्र शर्मा ‘कौशिक’, मऊरानीपुर)
समुद्र में स्वाति बूंद से सदैव मोती बनाता है और उन मोतियों को हंसों को चुगने के लिये देता है। वह धरातल का भेद जानने वाला है। जैत कवि कहते हैं कि भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ के भोजन हेतु सर्पों को प्रकट करने के लिये अलौकिक धरती को खुरचा (ऊपरी पर्त को हटाना) है।
भोले शंकर के वाहन नंदीगण ने बड़े परिवार (कुल) के लिये हरा चारा खाने (चरने) के लिये स्वतन्त्रता दे दी है। ऐसा प्रतीत होता है कि तीनों देवों (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) के वाहनों को राजा ऋतुराज (बसंत) का पावस बरेदी (चौपाये चराने वाला) बना हुआ है।
वारिधि वरिष्ठ पुत्र वारिद तिहारौ नाम,
मानसून वाले मानसूनता लिए रहौ।
सिंधुसुत इन्दु यहाँ डारत सुधा के बुंद,
पानीदार पानी जौ अपनौ पिं यें रहौ।।
‘जैत कवि’ आए हौ दुखाऔ ना किसी कौ दिल,
विश्व प्रतिपाल छूट इतनी दियें रहौ।
जैसें रामकृष्ण चन्द्र नाम कौ लियें हैं साथ,
मेरे नभचन्द्र कौ उजारौ कियें रहौ।।
(सौजन्य – श्री वीरेन्द्र शर्मा ‘कौशिक’, मऊरानीपुर)
तुम समुद्र के श्रेष्ठ पुत्र हो तुम्हारा नाम बादल है। तुम मानसून लाने वाले हो, अतः उस अस्मिता को बनाये रखो। समुद्र का पुत्र चन्द्रमा यहाँ अमृत की बूँदें डालता है किन्तु आत्माभिमानी अपने पानी से ही संतुष्ट रहता है। जैत कवि कहते हैं कि तुम यहाँ आये हो किसी को पीड़ा न दो। समस्त जगत के पालन-पोषण करने वाले हो तुम इतनी छूट दिये रहना कि जिस प्रकार राम कृष्ण चन्द्र के नाम का साथ लिये अर्थात् आश्रय लिये हैं तो मेरे आकाश के चन्द्रमा का प्रकाश करते रहना।
सुनकें मरोरदार मोरनी के तीखे बोल,
चटुल चकोरी के पंख फरकन लगे।
पूरवी दिशा सें जो सांवले उठे थे घन,
‘जैत’ शशि आनन की ओर सरकन लगे।।
उपमा में कहौं कौन जैखो विलोको हृदय,
उलटे क्रम शुक्ल पक्ष नैन परखन लगे।
चन्द्र गगनांगन में मेघों की मची धूम,
श्याम अभिराम घनश्याम बरसन लगे।।
(सौजन्य – श्री वीरेन्द्र शर्मा ‘कौशिक’, मऊरानीपुर)
मोरनी की उमंग भरी चटकीली बोली सुनकर चकोरी के पंखों में फड़फड़ाहट आ गई अर्थात् उत्साह आ गया। पूर्व की दिशा में जो काले-काले बादल घिरे थे वे चन्द्रमुख की ओर खिसकने लगे। कवि कहता है कि जैसा दृश्य मैंने देखा है उसकी कौन-सी उपमा दूँ।
शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा विपरीत क्रम में चलता दिखा अर्थात् चन्द्रमा बढ़ने के स्थान पर घटने लगा, उसे मेघों ने आच्छादित कर लिया और आकाश रूपी आँगन में मेघों के समूह घिर आये। सुन्दर श्यामलता छा गई और बादलों से पानी बरसने लगा। यहाँ कवि भक्ति के भाव में श्री कृष्ण और राधिका जी के मिलन की अभिव्यक्ति करना चाहता है।
शोध एवं आलेख – डॉ.बहादुर सिंह परमार
महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड विश्वविद्यालय छतरपुर (म.प्र.)