Homeबुन्देली व्रत कथायेंGada Aathen Vrat गढ़ा आठें व्रत कथा

Gada Aathen Vrat गढ़ा आठें व्रत कथा

बुन्देलखण्ड की महिलाएँ पितृ पक्ष में Gada Aathen Vrat महालक्ष्मी की पूजा करती हैं, जो विशेष फलदायी है । एक शिहिर में एक बड़े प्रतापी राजा राज करत तें । उनके राज में प्रजा हर तरा सैं की हती। काऊये कोनऊ तरा की तकलीफ नई हती। सबई प्रेम सैं हिलमिल कै रत्ते। राजा पूरे राज मे घूम फिरकै जनता के सुख को इंतजाम करत रत्ते । राजा की दो ठौआ रानी हतीं। बड़ी रानी को नाम हतो लच्छमी उर हल्की कौ नाव हतो कुलच्छमी।

बड़ी रानी देखवे सुनवे में लच्छिमिअई की नाई सुन्दर हती। राजा कौ प्यार ऊपै भौतई जादा हतो । ऊकै दो ठौवा फूल से सुकुमार कुंवर हते । हल्की रानी कुलच्छमी तौ बड़ी रानी की घाई सुन्दर तौनई हती । अकेलै हती पतिव्रता रात दिना राजा की सेवा खुशामद में लगी रत्ती । राजा उयै डारै – ढारै फिरत रत्ते । बड़ी के डरन के मारै ऊस जादा बोल बता नई पाऊत ते। तोऊ राजा कौ ऊपै भीतरई भीतर लगाव सौं बनो रत्तो ।

जा बात बड़ी मन में खतासी कसकत रत्ती । औरतन में जरवे बरबे की तौ आदत होतिअई है। बड़ी सोसत रत्ती कै कजन राजा कौ झुकाव ऊ कुदाऊ हो जैय । तौ फिर हमाओ पूछवे वारौ कोऊ नइया । ईसै तौ जेऊ अच्छौ है कै ई विष के बिरखा खौं जरई सैं खुदवा कै फिकवा दओ जाय । कन लगत कै ना रहें बाँस ना बजे बाँसुरी। जा सोसत – सोसत बड़ी रानी एक दिना खाट पाटी लैकै पररई।

दिन भर ऊनें कछू खाव पियो नई। जीसै उनकौ रूप रंग मुरजा गओं । राजकाज के कामन सै फुरसत हो जब राजा रनिवास में पौंचे तौ उने उतै सूनर सी दिखानीं । उतै हँसत खेलत बड़ी रानी नई दिखानी। वे एक कोने में दवी मुदीं डरीतीं । राजा ने उनकौ मौ उगार कै पूँछी कै का बात है रानी । का कोनऊ वेद हकीम बुलआबैं। बुखार चढ़ों है का । रानी बोली कै अब हम बच नई सकत देखौ मराज हम अन्न पानी जबई खँय जब तुम हल्की रानी खौं घर से निकार देव ।

राजा बोले कै वा बिचारी तुमाव का लयें। एक कोठामें पर बायरी डरी रत । उर तुम मिहिलन में राज कररई। वा कभऊँ तुमसै कभऊँ आदी बात नई कत । उर तुम उयै घर से निकारबै खौं उतारू हो गई ।

रानी बोली के कजन तुम हमाव जियत मौ देखन चाऊत होव तौ उयै आजई कोनऊ जंगल में छोड आव। नईतर हम मिहिल छोड कै चले जैय या कटार मार कै प्रान खों दैय। राजा ने जान लइकै अब जा मानई नई सकत । कन लगत कै औरत की लीला दुनिया भर सैं न्यारी है। कओ वे ऐसौ उपद्रो कर दैबे के जियै कोऊ सोसई नई सकत ।

राजा ने बड़ी रानी के लिंगा जाकै कई कै तुम उठो हाँत मौ धोव सपरो खोरौ खाव पियों । हम आजई हल्की रानी खौं लुआकै जंगल में छोड़ै आऊत। बताव हम तुमें दुखी कैसे देख सकत। सुनतनई रानी भली चंगी हो गई। तनक देर में राजा हल्की रानी कुलच्छमी के लिंगा पौंचे वा विचारी झारा बटोरी कर रई ती ।

राजा खौं देखतनई वा गोड़न पै गिरी । ऊकौ नाँव भली कुलच्छमी हतो। अकेलै हती वा भौतई अच्छे लच्छनन की। उयै देखतनई राजा की आँखन में डबरिया भर आई । अकेलै ऊ दुष्टन के मारै कर का सकत तें वे। राजा ने हल्की रानी झैं कई कै चलों हम तुमें घुमा फिरा ल्याबै । इतै अकेली डरी-डरी तुम हैरान होत रती।

रानी हती भौतई भोरी भारी वा राजा कै संगै जाबे खौ तैयार हो गई । राजा उयै रथ पै बिठा कै घनघोर जंगल के बीच में लुआ गये। गर्मी भौत पररइती रानी खौं प्यास लग आई । उर्ने तनक दूर एक गाँव सौं दिखा रओं तो। रानी ने कई कै मराज कजन आज्ञा होयतौ हम ऊ गांव में जाकै पानी पी आबै। राजा तौ जा चाऊतई हतें । उनकी तौ फूदई में हुन कड़ गई ती।

राजा ने कई कै हओं चली जाव। पानी पीकै वे फिर कै आनई पाई राजा अपनौ रथ लैके अपने मिहिलन में लौट कै बड़ी रानी सै कई कै अब तुम सुक सो मिहिलन में राज करो। हम हल्की रानी खौं जंगल में छोड कै लौट आये। अब वा इतै लौट कै नईआ सकत। जंगल के जानवर उयै उतै मार कै खा लैय । बड़ी रानी मस्ती सैं घूमन फिरन लगी । हल्की रानी गाँव में पानी पीवै खौं गई सों उयै कछू लुगाई की पूजा करत दिखानीं ।

उतै बैठ कै पूजा देखी पानी पियों उर जब वा उतै लौट के पौंची सोऊ उयै उतै कोऊ नई दिखानों । राजातौ उयै छोड़कै भगई गये तौ वा जानतौ सबरई ती । अकेलै अपनी छाती में गतकौ सौ दैके रै गई । ऊनें सोसी के हमाये भागमें ऐसऊ लिखो हुइयै। अब जौन गड़न जैसों हुइयै सौ सब देखी जैय। जोई राम सोई राम ।

ऊनें सोसी कै अब हम इतै का करें। उतै फिर चार जनियन जाकै पूजा देखेँ तनक मनई बहलें । हल्की रानी फिर उतै पाँच कै पूजा देखन लगी। उनन कौ एक गड़ा जादाँ बन गओं तो। औरतन ने सोसी कै जौ एक गड़ा ईकौ आय बेचारी बडी देर सै इतै बैठी है। हल्की रानी बोली कै बैन तुमने हमें गड़ा तौ अच्छौ दओं अकेलें हम तौ अनाथ है ई जंगल में। हम कैसे का पूजा करें।

ईसैं उनन ने कई कैभोले कै तौ भगवान होत । तुमतौ होम लगाऊत रइयौ गड़ा खौं । अब वा बिचारी का करें। गड़ा खौं लैकै ओई जगा पै पौंच गई जि राजा उयै छोड़ कै चले गये ते । जंगल सैं घास फूस उर नकरिया जंगल के फूल फल खाकैं ओई में डरी रये। अकेलै गड़ा की पूजा टैम से करबै में वा कभऊँ नई चूकी हरा-हरा गड़ा की पूजा कौ समय पूरौ हो गओं। मां लच्छमी की पूजा उर सोरा ढाबे कौ समय आ गओं ।

ओई रातें एक फटी- पुरानी धुतिया पैरै लठिया टेकत एक डुक्को ने टपइया के दौर में जाकै आवाज लगाई के अरे कोई है। टपरिया में सुनतनई हल्की रानी ने कई कै हम आँ हैं एक दुखयारी । बायरै आकै हल्की रानी ने देखौ कै एक बूढ़ी डुकरो ठाढ़ी हैं । उयै भौचक्को देखतनई डुक्को ने कई कै काय बेटा तुमने हमें चीनौ नइयाँ। हम तुमाई मौसी आंय । हल्के में तुमने देखौ हुइयै सों तुमें खबर भूल गई हुइयै। जा सुनतनई रानी डुक्को के गरे सैं लगकै रोऊत रई । उर कन लगी कै मौसी इतै हम अकेले आफत के मारे डरे हैं। तेनै हमाई अच्छी खबर लई अब तुम हमें छोड़कै कितऊँ जइयौ नई।

आज महा लच्छमी की पूजा है हमने गडा लओं तो उनकौ । डुक्को बोली कै तुम चिन्ता नई करो। अब तौ हम तुमाई संगै रैय । रानी बोली कै इतै जंगल में हम अकेले बुरओ लगत तुमाये संगै रैकै हमाये जे दुखन के दिन कटत रैय। डुक्को बोली कै बैटा अब हम तुमाओं संग कभऊँ नई छोड़ै। आज महालच्छमी है सो तुम नदिया पे जाकै अच्छे अस्नान करौ सोरा ढारौ । जोलौ हम पूजा कौ सामान बनायें लेत।

रानी बोली कै मौसी हमनौ तौ एकई धुतिया है सो हम का पैरकै सपरै । फिर हम सपर कै का पैरे। डुक्को कन लई कै तुम डरइयौ नई उतै घाट पै तुमें सोने कौ लोटा उर लहर पटोरौ धरो मिलै । तुम सपर खोरकै घरें आ जइयो । ओ मौसी मोये भाग में लहर पटोरौ काँ धरो । इत्तो बड़ो राज छूट  गओं उर इतै हम जंगल में ठोकरै खा रये तोऊ हम जी रये ।

तुमाई बात हम कैसे टार सकत। इत्ती कै- कै रानी सपरबे खौं जईसै नदिया के घाट पै गई सो उयै उतै सबरों सामान धरो मिलो । रानी ने अच्छी तरा सैं सपरो खोरो- सोरा ढारे उर लहर पटोरौ पैर के सोने कौ गऊआ भरकै टपरिया कै लिंगा पौंची। उतै ऊकी टपरिया की जगापै तिखण्डा मिहिल ठाढ़े ते । वा सोसन लगी कै कऊँ हम गैल तौ नई भूल गये ।

जा सोसत वा दोरई में ठाँढ़ी होके रै गई इतेकई में ऊकी मौसी बारै कड़कै बोली कै बैटा जो तुमाओं घर आय । लच्छमी जूकी तुमाये ऊपर पूरी कृपा हो गई । अब हमाये जाबे की बेरा हो गई। जब तुम हमाई खबर करो सो हम तुमाये लिंगा जल्दी आ जैय । रानी ने मौसी कें गरे सैं लगकै भेंट करी उर मौसी चली गई। रानी अंसुआ पोछत वो अपने मिहिल में जा परी। अबतौ उर्ने जंगल में मंगलई मंगल हतो कोनऊ कमीं नई हती उनके मिहिल में । जीपै लच्छमी जू की कृपा होय उयै कायकी कमी हो सकत।

लच्छमी जू की कृपा सैं एक दिना राजा खौं हल्की रानी की खबर हो आई, उर ऊकी याद उनें भौतई सतावन लगी। राजा ने सोसी कै हम उयै धोकौ दैकै जंगल में अकेली छोड़ आये तें। अब तौ वा मरई गई हुइयै । ई दुष्टन कै कये सै हमने ऊके संगै भौत अन्याय करो तो । ऊकी का गल्ती हती। तोऊ चलो चलकै देखे कै ऊकौ का हाल भओं जंगल में ।

जा सोस कै राजा घुरखा पै बैठकै जंगल में ओई जगा पै पौचें । उतै बड़े-बड़े अटा अटारी देखकै चौक परे । रानी छज्जे पै ठाँढ़ी देख रई ती । ऊने राजा खौं चीन लऔं । वा नैचे उतर कै आकै राजा के गोड़न पै गिरी राजा उयै देखकै भौचक्कै रे गये। बा बोली कै मराज जा सब लच्छमी जू की कृपा है। अपुन तौ हमें जंगल में अनाथ की नाँई छोड़ कै चले गये ते । हमने इतै मां लच्छमी कौ गड़ा लैकै पूजा करी उर उनई की कृपा सैई जंगल में मंगल हो रओ ।

अब इतै बायरै ठाड़े का करत । भीतरै चलबो होय । राजा ने भीतर जाकै आराम करो । उरवे राजा भये उरवे रानी भई । लच्छमी जू कै गड़न की कृपा सै हल्की रानी कुलच्छमी के दिन फिर गये। जैसे हल्की रानी के दिन फिरे | ऐसई सबके दिन फेरियो काऊ पै कभऊँ ऐसी गिरानी नई आवै। बाढ़ई ने बनाई टिकटी उर हमाई किसा निपटी ।

भावार्थ

एक बड़े प्रतापी राजा राज्य करते थे । उनके राज्य में प्रजा हर तरह से सुखी और समृद्ध थी। किसी को किसी भी प्रकार का कोई कष्ट नहीं था । सारी जनता प्रेम से हिल-मिलकर रहा करती थी। राजा स्वयं पूरे नगर में घूम-घूमकर लोगों के कष्टों का निवारण करते थे और प्रजा को सुख साधनों की व्यवस्था करते थे । उस राजा की प्रमुख रूप से दो रानियाँ थीं। बड़ी रानी का नाम था लक्ष्मी और उनकी छोटी रानी का नाम था कुलक्ष्मी ।

 बड़ी रानी देखने-सुनने में लक्ष्मी की ही भाँति परम सुंदर और आकर्षक थी । राजा का उसके ऊपर सबसे अधिक प्यार था। उसके दो सुंदर सुकुमार फूल सरीखे राजकुमार थे । छोटी रानी कुलक्ष्मी बड़ी की तरह सुंदर तो नहीं थी, किन्तु थी वह पतिव्रता नारी । वह रात – दिन महाराज की सेवा सुश्रूषा में लगी रहती थी, किन्तु राजा का उस पर जरा भी प्रेम नहीं था । बड़ी रानी के डर के कारण राजा उससे ज्यादा बातचीत भी नहीं कर पाते थे। फिर भी राजा के मन में उसके ऊपर भीतर ही भीतर प्रेम सा बना रहता था ।

ये बात बड़ी रानी को बहुत कष्ट देती रहती थी । प्राय: औरतें तो ईर्ष्यालु होती ही हैं। बड़ी रानी रात-दिन छोटी रानी से जलती भुनती रहती थी। बड़ी प्राय: ये सोचती थी कि यदि राजा का झुकाव छोटी की ओर हो जायेगा तो मुझे पूछने वाला कौन है? इससे अच्छा यही है कि विष के वृक्ष को जड़ से उखाड़कर फेंक दिया जाय। न रहे बाँस और न बजे बाँसुरी । ये सोचते-सोचते बड़ी रानी एक दिन रूठकर पलंग पर लेट गई। दिन भर वह भूखी-प्यासी बनी रही, जिससे उसका चेहरा बुरी तरह से मुरझा गया।

राजा राज-काज से निवृत्त होकर संध्या के समय रनिवास में पहुँचे तो उन्हें रनिवास सूना- सूना दिखाई दिया। उन्हें रनिवास में हँसती खेलती हुई बड़ी रानी दिखाई नहीं दी। ध्यान से देखा तो बड़ी रानी पलंग पर मुरझाई हुई पड़ी थी । राजा ने शरीर पर हाथ रखते हुए पूछा कि क्या बात है, रानी साहिबा। क्या आपकी तबियत खराब है? क्या किसी वैद्य, हकीम को बुलवाऊँ? क्या आपको बुखार है ?

रानी बोली कि महाराज, अब हम बच नहीं सकते। हम अन्न जल तभी ग्रहण करेंगे, जब आप छोटी रानी को घर से निकाल देंगे, राजा बोले कि वह बेचारी तुम्हारा क्या लिए हैं? बेचारी एक अलग कमरे में बाहर पड़ी रहती है और तुम महलों में राज कर रही हो। वह बेचारी तुमसे कभी कुछ भी नहीं कहती और तुम उसे घर से निकालने पर तुली हो ।

बड़ी रानी तो अपनी जिद पर तुली थी। यदि आप मुझे जीवित देखना चाहते हो तो आज ही आप उसे किसी जंगल में छुड़वा दीजिए। नहीं तो मैं स्वयं रनिवास छोड़कर जंगल में चली जाऊँगी या कटार भोंककर प्राण त्याग दूँगी। राजा समझ गये कि अब ये किसी भी तरह मान नहीं सकेगी। नारी की लीला बड़ी ही विचित्र होती है । कहा भी है त्रियाचरित्रं पुरुषस्य भाग्यम् । दैवो न जानाति कुतो मनुष्यः ?

राजा ने बड़ी रानी के समीप जाकर कहा कि अब तुम उठकर हाथ-पाँव धोकर स्नान करो, भोजन करो। मैं अभी छोटी रानी को जंगल में छोड़ने जा रहा हूँ। मैं तुम्हें कभी दुखी नहीं देख सकता। सुनते ही बड़ी रानी भली चंगी हो गई। थोड़ी ही देर में राजा छोटी रानी के समीप पहुँचे। उस समय छोटी रानी घर की सफाई कर रही थी । राजा को देखते ही वह उनके चरणों पर गिर पड़ी। भले ही उसका नाम कुलक्ष्मी था, किन्तु उसमें लक्षण थे बहुत ही अच्छे ।

उसे देखते ही राजा की आँखों में आँसू आ गये, किन्तु उस पापिन के मारे वे कर ही क्या सकते थे? राजा ने छोटी रानी से कहा कि चलो हम तुम्हें घुमाने के लिए ले चलें । यहाँ तुम अकेली पड़ी पड़ी परेशान हुआ करती हो। रानी तो बहुत ही भोली भाली थी, वह राजा के साथ जाने के लिए तुरन्त ही तैयार हो गई। राजा उसे रथ पर बैठाकर घनघोर जंगल के बीच में ले गये ।

गर्मी के कारण रानी बहुत प्यासी थी। समीप ही एक गाँव दिखाई दे रहा था । रानी ने कहा कि यदि आज्ञा हो तो मैं उस गाँव में पानी पीकर शीघ्र ही आती हूँ। राजा तो यह चाहते ही थे। उन्हें उसे भगाना नहीं पड़ा । राजा ने कहा कि ठीक है चली जाइयेगा। रानी गाँव की ओर पानी पीने के लिये चली गई और राजा मौका पाकर अपना रथ लेकर लौट आये। वे सीधे बड़ी रानी के समीप जाकर बोले कि मैं छोटी रानी को जंगल में छोड़ आया हूँ। अब तुम अकेली राजमहल में रहकर मजे से राज करो ।

अब वह इधर लौटकर नहीं आ सकती । जंगल के जानवर उसे मारकर खा लेंगे । अब क्या था ? बड़ी रानी मस्ती में घूमने- फिरने लगी? छोटी रानी पानी पीने के लिए गाँव में पहुँची । वहाँ उसे कुछ औरतें गड़न की पूजा करती हुई दिखाई दीं। वहाँ बैठकर उसने पूजा देखी, पानी पीया, और वह जब वहाँ लौटकर पहुँची तो वहाँ उसे राजा दिखाई नहीं दिए। राजा तो उसे छोड़कर भाग ही गये थे । वह समझ तो सब कुछ गई थी, अब कर ही क्या सकती थी?

हाय, साँस लेकर रह गई । उसने सोचा कि हमारे भाग्य में ऐसा ही लिखा होगा। अब जो होगा सो देखा जायेगा, जो कुछ भगवान को स्वीकार है, वही होकर रहेगा। उसने सोचा कि अब हम यहाँ क्या करें ? गाँव में जाकर औरतों के पास बैठें। पूजा देखें तो थोड़ा बहुत मन ही बहलता रहेगा। छोटी रानी गाँव में जाकर औरतों के पास बैठकर पूजा देखने लगी।

औरतों का एक गड़ा अधिक बन गया था । औरतों में तो एक दूसरे के प्रति सहानुभूति तो होती ही है। उन्होंने सोचा कि ये बेचारी यहाँ बड़ी देर से बैठी है। ये एक गड़ा इसी को दे देना चाहिए। छोटी रानी ने गड़ा लेकर कहा कि तुमने हमें गड़ा दे तो दिया, किन्तु हम इसका क्या करें? बहिन हम तो अनाथ हैं। इस जंगल में रहकर हम कैसे इस गड़ा की पूजा कर सकेंगे? औरतों ने कहा कि बहिन तुम तो बहुत भोली हो, भगवान तुम्हारी रक्षा करेगा। तुम तो इस गड़ा को होम लगाती रहना। वही तुम्हारी लाज रखेंगे।

गड़ा को लेकर वह चिंतित हो गई और वह उसी स्थान पर पहुँचकर रुक गई, जहाँ राजा उसे छोड़कर चले गए थे । वह उस जंगल के फल फूल खाकर उसी स्थान पर पड़ी रहती थी, किन्तु उसने उस गड़ा की पूजा करना नहीं छोड़ा। वह रोज समय पर पूजा करती रहती थी। धीरे-धीरे उस गड़ा की पूजा का समय पूरा हो गया और एक दिन महालक्ष्मी का पावन पर्व आ गया। उस दिन प्रात:काल सोलह बार सिर पर जल डाला जाता है।

उसी रात को एक फटी पुरानी धोती पहिने लाठी टेकते हुए एक बूढ़ी डोकरी उस रानी की झोपड़ी के द्वार पर खड़ी होकर आवाज लगाई, अरे ! इस झोपड़ी में कौन रहता है? सुनते ही छोटी रानी ने उत्तर दिया कि मैं हूँ एक अभागिन नारी । इतना कहकर रानी ने बाहर आकर देखा कि एक बूढ़ी अम्मा मैले-कुचैले कपड़े पहिने हुए दरवाजे पर खड़ी हैं ।

उसको आश्चर्यचकित देखकर वृद्धा ने कहा कि- क्यों बेटी ! क्या तुमने मुझे पहिचाना नहीं है। हम तुम्हारी मौसी हैं। बचपन में तुमने मुझे देखा होगा, इस कारण से ध्यान नहीं है । ये बात सुनते ही रानी वृद्धा के गले से लिपट कर रोने लगी। वह बोली कि मौसी मेरे ऊपर बहुत बड़ा संकट आ पड़ा है। राजा ने मेरा परित्याग कर दिया है। मौसी तुमने विपदा के समय खबर लेकर मेरा बहुत बड़ा उपकार किया है। अब तुम मुझे छोड़कर कहीं मत जाना।

आज महालक्ष्मी की पूजा है, हमने उनका गड़ा लिया है। उस वृद्धा ने कहा कि अब तुम चिंता मत करो । अब मैं सदा तुम्हारे ही साथ रहूँगी। रानी बोली कि इस जंगल मुझे बहुत बुरा लगता है । तुम्हारे साथ मेरे दुःख के दिन कट जायेंगे । वृद्धा ने कहा कि- बेटा! अब मैं तुम्हारा साथ कभी नहीं छोडूंगी।

देखो, आज महालक्ष्मी का दिन है। तुम जल्दी जाकर अच्छी तरह से स्नान करो और जब तक हम पूजा का सामान तैयार किए देते हैं। रानी बोली कि मौसी मेरे पास तो केवल एक ही धोती है। इसलिए अब मैं क्या पहिनकर स्नान करूँ? वृद्धा ने कहा कि देखो तुम डरना मत । घाट पर तुम्हें सोने का लोटा और रेशमी धोती रखी मिलेगी। तुम अच्छी तरह से स्नान करके सोने के लोटे से सोरा ढारना और रेशमी धोती पहिनकर और हाथ में सोने का लोटा लेकर सीधी झोपड़ी में चली आना ।

रानी घाट पर पहुंची तो उसे वहाँ सारा सामान रखा मिला। उसने अच्छी तरह से स्नान किया, सोरा ढारे और रेशमी धोती पहिनकर सोने का गडुआ भरकर सीधी अपनी झोपड़ी में पहुँची । वहाँ उसकी झोपड़ी के स्थान पर ऊँचे-ऊँचे महल खड़े हो गये। देखकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ । उसने सोचा कि मैं कहीं रास्ता तो नहीं भूल गई। ये सोचती हुई वह महल के दरवाजे पर खड़ी होकर रह गई । उसे खड़ी देखकर मौसी ने बाहर निकलकर कहा कि बेटी ! तुम खड़ी खड़ी क्या सोच रही हो?

ये तो तुम्हारा ही घर है । तुम्हारे ऊपर लक्ष्मी जी की पूर्ण कृपा हो गई है। अब हमारे जाने का समय आ गया है। मैं अब जा रही हूँ। जब तुम मुझे याद करोगी, तब मैं तुरन्त तुम्हारे पास आ जाऊँगी। रानी ने मौसी के गले लगकर भेंट की और मौसी वहाँ से चली गई। रानी अपने आँसू पोछते हुए महल में जा लेटी । अब तो उसे जंगल में ही मंगल हो गया था । उसे अब वहाँ किसी प्रकार की कोई कमी नहीं थी । वहाँ कोई कष्ट नहीं था।

जिस पर लक्ष्मी जी की कृपा हो, फिर उसे क्या कमी रह सकती हैं? लक्ष्मी जी की कृपा से एक दिन राजा को छोटी रानी का स्मरण हो आया । उसे रानी की याद बहुत कष्ट देने लगी। राजा सोचने लगे कि मैंने उस भोली भाली के साथ बड़ा विश्वासघात किया था, मैं उसे जंगल में अकेली ही छोड़ आया। अब तो वह मर ही गई होगी, इस पापिनी के कहने से मैंने उसके साथ बहुत अन्याय किया था । उस बेचारी की तो कोई गलती थी ही नहीं। उन्होंने सोचा कि जंगल में जाकर उसका हालचाल जानना चाहिए।

यह सोचकर राजा घोड़े पर चढ़कर उसी स्थान पर जंगल में पहुँचे वहाँ उन्हें बड़े-बड़े महल खड़े हुए दिखाई दिए, जिन्हें देखकर वे चकित हो गये। रानी छत पर खड़ी हुई जंगल का दृश्य देख रही थी । उसने दूर से देखकर ही राजा को पहिचान लिया। वह नीचे उतरकर राजा के चरणों पर गिर पड़ी। उसे देखकर राजा आश्चर्यचकित हो गए । वह बोली कि ये सब लक्ष्मी जी की ही कृपा है। आप तो मुझे जंगल में अनाथ छोड़कर चले गए थे। मैं तो महालक्ष्मी के गड़ा लेकर लगातार पूजा करती रही और उन्हीं की कृपा से इस जंगल में मंगल हो गया है।

अब आप बाहर खड़े-खड़े क्या कर रहे हैं? अब आप अंदर बैठकर विश्राम कीजिए । अंत में राजा और रानी प्रेमपूर्वक रहने लगे । लक्ष्मी जी के गड़े की कृपा से छोटी रानी कुलक्ष्मी के दिन फिर गये। ये है महालक्ष्मी की पूजा का प्रभाव । आज भी बुन्देलखण्ड की महिलाएँ पितृ पक्ष में महालक्ष्मी की पूजा करती हैं, जो विशेष फलदायी है ।

बुन्देलखण्ड के श्रम के गीत 

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Bundeli Jhalak: The Cultural Archive of Bundelkhand. Bundeli Jhalak Tries to Preserve and Promote the Folk Art and Culture of Bundelkhand and to reach out to all the masses so that the basic, Cultural and Aesthetic values and concepts related to Art and Culture can be kept alive in the public mind.
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